मध्य मुंबई के परेल इलाके में नगर पालिका की ओर से चलाए जा रहे सबसे बड़े अस्पताल किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल के कर्मचारी अवसाद में घिरे नजर आते हैं. अस्पताल से जुड़ा हर शख्स हताश है. करीब 1,000 रेजिडेंट डॉक्टरों को पूरा खाना तक नहीं मिल रहा, नर्सें सुरक्षा को लेकर सकते में हैं क्योंकि उन्हें घर पहुंचाने वाली बसें सोशल डिस्टेंसिंग को धता बताते हुए ठसाठस भरी होती हैं. 3,000 बेड के इस अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों के रिश्तेदार घबराए हुए हैं. उनमें कइयों को पता ही नहीं कि परिजनों के संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार कैसे करना है.
केईएम तो भारी दबाव झेल रही मुंबई की स्वास्थ्य प्रणाली का एक नमूना भर है. मई के पहले सप्ताह में वायरल हुए एक वीडियो ने सायन अस्पताल के रूप में लोकप्रिय शहर के एक और लोकमान्य तिलक नगरपालिका अस्पताल की खस्ता हालत को उजागर किया था. उस वीडियो में कोविड वार्ड में भर्ती मरीजों के पास ही काले प्लास्टिक में लिपटे कोविड मरीजों के शव भी दिख रहे थे. 80 प्रतिशत रोगग्रस्त और गंभीर रोगी नगरपालिका के या सरकारी अस्पतालों में भर्ती हैं.
केईएम अस्पताल के एक सीनियर डॉक्टर कहते हैं कि यहां के हालात सायन अस्पताल से भी बदतर हैं. उनके मुताबिक, अस्पताल में सफाईकर्मियों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने शवों को यह कहकर पैक करने से मना कर दिया कि यह उनका काम नहीं. उन्होंने बताया, ‘‘मैंने परिजनों को बिना किसी सुरक्षा के संक्रमित शव ले जाते हुए देखा है. यह अमानवीय तो है ही, इससे उनके संक्रमित होने का बहुत खतरा रहता है.’’
बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) कोविड वार्डों में काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को 300 रु. रोज का भत्ता दे रहा है. उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे स्वच्छता बनाए रखें, परीक्षण के लिए मरीजों के रक्त के नमूने लें और शवों को पैक करें. लेकिन स्वयंसेवकों की कमी के चलते बीएमसी ने इसे पैक करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को 1,300 रुपए प्रति शव की पेशकश शुरू कर दी है. भले वे यह काम ठीक से कर पाते हों या नहीं. रोगियों के परिजनों को खून के नमूने डॉक्टरों के पास ले जाने को मजबूर किया जाता है. कोविड वार्डों में कई लोगों को बस मास्क लगाकर घूमते देखा गया है जबकि वहां एक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट जरूरी है.
केईएम ने रोगियों को दो विंग में बांटा है. अस्पताल की पुरानी इमारत में सबसे बड़ा विंग अब कोविड मरीजों को समर्पित है. नए भवन में गैर-कोविड रोगियों का इलाज चल रहा है. हालांकि, केईएम में आने वाले कोविड मरीजों की संक्चया को देखते हुए 31 मई तक शायद ही कोई बेड खाली बचे.
उधर, डॉक्टरों के लिए उचित भोजन व्यवस्था के वास्ते कुछ गैर सरकारी संगठनों के आगे आने के बाद 15 मई से स्थिति में सुधार हुआ है. रेजिडेंट डॉक्टरों का एक प्रतिनिधिमंडल 18 मई को राज्य चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. टी.पी. लहाने से मिला और डॉक्टरों की समस्याओं को बताया. उन्होंने जल्द समाधान का आश्वासन दिया है.
केईएम की तरह सायन अस्पताल भी गैर-कोविड रोगियों को ले रहा है. महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स (एमएआरडी) की सायन इकाई के अध्यक्ष डॉ. अविनाश सकनूरे मानते हैं कि मरीजों की भीड़ से अव्यवस्था बढ़ी है. उन्होंने इंडिया टुडे टीवी को बताया, ‘‘कोई भी डॉक्टर एक बिस्तर पर दो मरीज नहीं रखना चाहेगा, पर आपको हालात समझने की जरूरत है. कई बार हमारे पास हमारी क्षमता से दो से ढाई गुना ज्यादा मरीज होते हैं. इलाज सभी का जरूरी है.’’ वहीं, सायन अस्पताल के रेजिडेंट डॉ. ऋषभ छेड़ा कहते हैं, ‘‘हम ऐसे वक्त में महामारी का सामना कर रहे हैं जब अस्पताल इसके लिए तैयार नहीं हैं. संसाधनों का गंभीर संकट है.’’

मुंबई में हर दिन औसतन 1,200 कोविड मामले सामने आ रहे हैं. 17 मई को यहां 1,595 मामले आए, जो एक दिन में मरीजों की अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि 70 फीसद मामले लक्षण-रहित हैं, 27 फीसद में रोग के लक्षण दिखते हैं, और तीन प्रतिशत गंभीर मामले हैं.
स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं को तीन श्रेणियों में बांटा है: कोविड केयर सेंटर (सीसीसी), समर्पित कोविड स्वास्थ्य केंद्र (डीसीएचसी) और समर्पित कोविड अस्पताल (डीसीएच). सरकार ने उच्च-रक्तचाप, हृदय रोगों और मधुमेह जैसी पहले से ही अन्य-बीमारियों से ग्रस्त रोगियों को भी डीसीएच में रखने का फैसला किया है. यहीं पर आइसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट या निगरानी की जरूरत वाले गंभीर मरीजों को भर्ती किया जाता है.
इस वक्त सीसीसी और डीसीएचसी में क्रमश: 57,000 और 10,000 बेड हैं. वहां बेड की कोई कमी नहीं है. समस्या डीसीएच में है जहां केवल 4,800 बेड हैं. बीएमसी में विशेष ड्यूटी पर तैनात आइएएस अफसर मनीषा म्हैस्कर कहती हैं कि उनकी योजना मई के अंत तक इन बेड की संख्या 8,000 करने की है.
मुंबई में कोविड के मामलों की वृद्धि दर थोड़ी सुस्त तो हुई है. अप्रैल के पहले सप्ताह में हर तीन दिन में मरीजों की संख्या दोगुनी हो जाती थी लेकिन 17 मई तक मरीजों की संख्या दोगुनी होने में 13 दिन लग रहे हैं. इसे ऐसे बिंदु तक पहुंचने की जरूरत है जब यह संख्या दोगुनी होने में 17 दिन का समय लगे, तभी अस्पतालों पर बोझ कम किया जा सकता है.
स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे डीसीएचसी और डीसीएच श्रेणियों में कुछ सुविधाओं की कमी स्वीकारते हैं. वे कहते हैं, ''डीसीएचसी में ऑक्सीजन की जरूरतों से जुड़ी समस्या आ रही है, और डीसीएच में बेड की कमी से परेशानी हो रही है. बेड की संख्या बढ़ाने का काम चल रहा है.’’
मई के अंत तक पूरे केईएम अस्पताल को अगर कोविड-19 अस्पताल के रूप में नामित कर दिया जाता है, तो दो बेड के बीच आदर्श दूरी बनाए रखने की जरूरत को देखते हुए अस्पताल की 3,000 बेड की मौजूदा क्षमता घटकर आधी रह जाएगी. मुंबई के केईएम और बी.वाइ.एल. नायर अस्पतालों ने पहले से ही अधिक बेड को समायोजित करने के लिए दो बेड के बीच आठ फुट की दूरी को घटाकर चार फुट तक करना शुरू कर दिया है.
हालांकि म्हैस्कर को इससे कोई समस्या नहीं दिखती. वे कहती हैं. ‘‘भले दो बिस्तरों के बीच की दूरी कम हो, पर डॉक्टर और स्वास्थ्य कार्यकर्ता पीपीई किट पहन रहे हैं. बीएमसी सुरक्षा उपायों और बेड की जरूरतों को समान महत्व देकर उपलब्ध जगह के बीच समायोजन करने की कोशिश कर रहा है.’’
सरकार का मानना है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के लक्षण-रहित मरीजों को 10 दिन में डिस्चार्ज करने के फैसले से बेड की उपलब्धता बढ़ जाएगी.
केईएम अस्पताल के पूर्व डीन डॉ. संजय ओक के नेतृत्व में एक राज्य स्तरीय टास्क फोर्स ने सिफारिश की है कि नर्सिंग होम सहित करीब 30,000 निजी अस्पतालों में 70 फीसद बेड को डीसीएचसी और डीसीएच के लिए अधिग्रहीत किया जाना चाहिए. वहीं, टोपे कहते हैं, ‘‘हम निजी अस्पतालों को उनके नुक्सान की भरपाई के लिए भुगतान कर सकते हैं.’’
मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए, राज्य सरकार जून और जुलाई में इसमें जबरदस्त वृद्धि की उम्मीद कर रही है. अगर वायरस, स्वास्थ्य इंतजामों को पछाड़ देगा तो मुंबई के लिए आने वाला वक्त बड़ी मुश्किलों वाला होगा. ठ्ठ
‘‘हम अस्पताल के बाहर कोविड केयर सेंटरों पर ऑक्सीजन की सुविधा प्रदान करने वाले हैं. इससे अस्पतालों से बोझ कम होगा. मैं इसका महिमामंडन नहीं करना चाहता, लेकिन यह देश में अपने तरह का अनूठा प्रयोग होगा.’’
—उद्धव ठाकरे
मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र
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