महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 17 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिसिया कार्रवाई की कड़ी आलोचना की और उसे एक सदी पहले ब्रिटिश शासन के दौरान हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसा बताया. ठाकरे नागपुर में राज्य विधानमंडल सत्र के दौरान बोल रहे थे. बाद में, उन्होंने यहां तक कहा कि अतीत में हिंदुत्व को राजनीति के साथ मिलाना, उनकी पार्टी शिवसेना की गंभीर गलती थी.
उनकी यह टिप्पणी शिवसेना के कट्टर हिंदुत्व की राजनीति से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान है. राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि ठाकरे लगातार यह संकेत दे रहे हैं कि अब शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के साथ अपने वैचारिक मतभेदों को एक तरफ रखते हुए राज्य में अपनी 'महा विकास अघाड़ी' सरकार को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक समान सोच के साथ आगे बढ़ रही है. एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने मुख्यमंत्री की इन टिप्पणियों का स्वागत करते हुए कहा कि राज्य सरकार ''सही रास्ते पर'' चलती दिखाई दे रही है.
ठाकरे ने सामंजस्य के और प्रमाण 30 दिसंबर को अपनी कैबिनेट के पहले विस्तार में भी दिए. एनसीपी को न केवल गृह, वित्त, सार्वजनिक कार्य, उत्पाद शुल्क, आवास और श्रम जैसे अधिकतर प्रमुख विभाग मिले बल्कि ठाकरे अजित पवार को उप-मुख्यमंत्री बनाने को भी राजी हो गए. अजित ने ही एनसीपी के विधायकों के समर्थन की चिठ्ठी सौंपकर देवेंद्र फड़णवीस की अगुआई वाली भाजपा सरकार के गठन का रास्ता तैयार किया था. उससे नवंबर में महाराष्ट्र में राजनैतिक संकट पैदा हो गया था और यह तभी थमा जब शरद पवार ने अपनी पार्टी की इस बगावत को नाकाम करने के लिए पूरा जोर लगाया और शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार का गठन सुनिश्चित किया.
सेना को केवल दो महत्वपूर्ण विभाग मिले—उद्योग और शहरी विकास, जो इसे शहरी क्षेत्रों में नागरिक निकायों को नियंत्रित करने का अधिकार देता है—जबकि राजस्व, बिजली और स्कूली शिक्षा जैसे अहम विभाग कांग्रेस के खाते में चले गए. अपनी धर्मनिरपेक्ष साख को मजबूत करते हुए ठाकरे, हसन मुशरिफ, नवाब मलिक, असलम शेख और अब्दुल सत्तार, चार मुस्लिमों को मंत्रिमंडल में शामिल करने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री हैं.
अब तक के अपने एक महीने के कार्यकाल में, ठाकरे ने सहयोगी दलों को असहज होने का कोई मौका नहीं दिया है. अपने सहयोगियों के सुर में सुर मिलाते हुए उन्होंने बिना पर्याप्त होमवर्क के 21 दिसंबर को किसानों के लिए ऋण माफी की घोषणा कर दी. वैसे एक सप्ताह बाद, यह स्पष्ट हो गया कि ठाकरे की योजना के पात्र सिर्फ वे किसान होंगे जिनकी कुल ऋण राशि 2 लाख रुपए तक हो. इसके अलावा, यह बकाया ऋण और ब्याज 1 जुलाई, 2015 से 30 सितंबर, 2019 की अवधि के लिए होना चाहिए. अगर 31 मार्च, 2020 से पहले ऋण राशि का पुनर्गठन किया जाता है, तो इस योजना का पात्र होने के लिए नई राशि 2 लाख रुपए से कम हो जाएगी.
पिछली भाजपा-शिवसेना सरकार ने ऋण माफी की जो योजना लागू की थी उसमें ऋण की रकम चाहे कुछ भी हो, उस ऋण के लिए 1.5 लाख रुपए तक की माफी का प्रावधान किया गया था. राज्य भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील का कहना है कि नई योजना से बहुत ज्यादा किसानों को लाभ नहीं होने वाला क्योंकि 2001 और 2016 के बीच ऋण तो पहले ही माफ हो गए थे. किसान नेता विजय जवांधिया ने कहा कि ठाकरे ने पहले ऋण माफी के साथ कोई शर्त नहीं रखी थी पर बाद में पलट गए हैं.
ठाकरे यह नहीं बता सके कि उनकी योजना से कुल कितने किसानों को लाभ होगा. उन्होंने कहा, ''हमने किसानों को कर्ज मुक्त बनाने का अपना वादा पूरा किया है.'' हालांकि, वित्त मंत्री जयंत पाटील का दावा है कि नई योजना फड़णवीस सरकार की लागू की गई 34,000 करोड़ रुपए की माफी से बड़ी होगी.
ठाकरे ने कांग्रेस-एनसीपी की चीनी मिलों और कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) जैसी सहकारी संस्थाओं से राजनैतिक प्रतिनिधियों को हटाने की मांग को भी स्वीकार कर लिया है, जो ज्यादातर कांग्रेस और एनसीपी के नियंत्रण में हैं. मुख्यमंत्री ने नगर निगमों में कई वार्ड प्रतिनिधि व्यवस्था को छोडऩे की मांग पर भी सहमति दी और एक वार्ड-एक प्रतिनिधि व्यवस्था को बहाल किया.
ठाकरे का कहना है कि तीनों सहयोगी एक-दूसरे को स्वीकार कर चुके हैं. उन्होंने इंडिया टुडे के साथ एक अनौपचारिक बातचीत में कहा, ''मुझे तीनों दलों के कार्यकर्ताओं को आराम से एक-दूसरे के साथ मस्ती करते हुए देखकर खुशी हो रही है. इससे पता चलता है कि हमारी सरकार अपना पूर्ण कार्यकाल पूरा करेगी.'' हालांकि फड़णवीस, जो विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं, इससे असहमत हैं. वे कहते हैं, ''ऑटो-रिक्शा सरकार एक वर्ष के भीतर अपने वजन के नीचे दबकर खत्म हो जाएगी.'' वे सरकार पर किसानों के साथ धोखा करने का आरोप भी लगाते हैं. फड़णवीस कहते हैं, ''अक्तूबर में बेमौसम बारिश से
प्रभावित लोगों को इस कर्जमाफी योजना से पूरी तरह से बाहर कर दिया गया है.''
लेकिन एक अन्य भाजपा नेता भविष्यवाणी करते हैं कि सरकार अपने पांच साल पूरे करेगी. उन्हें लगता है कि सत्ता ने कांग्रेस और एनसीपी को महाराष्ट्र में एक नया जीवन दिया है और वे इस सरकार को जारी रखने के लिए बेताब होंगे. वे कहते हैं, ''उद्धवजी सरकार बचाने में तो सक्षम हो सकते हैं, पर भविष्य में अपने मूल मतदाताओं को बचाने में सक्षम नहीं होंगे.''
एक भाजपा नेता का कहना है कि महाराष्ट्र सरकार को उसके सहयोगी दल कभी नहीं गिराना चाहेंगे. पर शिवसेना के सामने भविष्य में अपने मूल समर्थक वोटरों को गंवा देने का खतरा है.
***