इसी 16 मार्च को पवार परिवार के तीन सदस्यों ने अपने-अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स पर एक ही फोटो पोस्ट की. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार के भाइयों के पोतों—रोहित व पार्थ ने पवार की बेटी और अपनी बुआ सुप्रिया सुले के साथ अपनी फोटो शेयर की. एकता की इस तस्वीर का मकसद शायद परिवार में रार की उन चर्चाओं पर विराम लगाना था जो 11 मार्च को पार्टी प्रमुख के चुनाव मैदान से हटने की घोषणाओं के बाद उडऩे लगी थीं.
इससे पहले एनसीपी ने शरद पवार की इच्छा के विपरीत अजित पवार के बेटे पार्थ की मावल लोकसभा सीट से उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया था. सीनियर पवार हमेशा मानते रहे हैं कि वे परिवार के दो से ज्यादा सदस्यों को चुनाव मैदान में उतरने देने के इच्छुक नहीं हैं. पार्थ राजनीति में नए हैं लेकिन उन्हें रोहित पवार पर तरजीह दे दी गई जो 2017 से ही पुणे जिला परिषद के सदस्य हैं. लिहाजा एका दिखाते हुए रोहित ने तस्वीर साझा की और उस पर यह लिखा, ''हमेशा की तरह (सुले) आंटी हमारे यहां आईं और रात का खाना हम सबने मिलकर खाया.''
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि विकल्प कोई सहज नहीं था. पवार को अजित के दबाव के आगे झुकना पड़ा. जब ये चर्चाएं जोर पकडऩे लगीं कि पार्टी में अजित का दबदबा सुले से भी ज्यादा हो गया है तो सुले को इन चर्चाओं पर पानी डालने के लिए आगे आना पड़ा. पुणे में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, ''यह सब फिजूल की कयासबाजी है. हमारा परिवार एकजुट है.'' सुले ने उम्मीद जताई कि चुनाव में पार्थ का प्रदर्शन शानदार रहेगा.
हालांकि, सुले के इस बचाव के बावजूद इस प्रकरण ने लोगों का ध्यान शरद पवार के अपने वृहद परिवार के साथ रिश्तों पर डाल दिया है. उन्होंने अभी तक यह सुनिश्चित किया था कि अजित और सुप्रिया को छोड़कर पवार परिवार के बाकी सदस्य राजनैतिक गहमगहमी से दूर रहें. उन्होंने अपने भाई प्रताप और बड़े भाई अप्पासाहेब के बेटे रणजीत को वाइन के कारोबार में लगा दिया था.
रणजीत के भाई राजेंद्र एक निजी कंपनी बारामती एग्रो के प्रमुख हैं, जो कृषि व्यवसाय में अग्रणी है. राजेंद्र का पुणे के आसपास की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में दखल इस कदर है कि जब उनके बेटे 33 साल के रोहित ने 2017 में चुनावी राजनीति में उतरने की इच्छा जाहिर की तो पवार उसे रोक नहीं पाए. अब जबकि पार्थ को मावल सीट मिल गई है तो रोहित को बदले में अक्तूबर में विधानसभा चुनावों में करजत-जामखेड़ चुनाव क्षेत्र से उम्मीदवार बना दिया जाएगा.
कहा जाता है कि पवार का अपने दोनों भतीजों—दिवंगत बड़े भाई अनंतराव के दोनों बेटों—अजित और श्रीनिवास के साथ खट्टा-मीठा रिश्ता चलता रहा है. पवार को शुबहा था कि अजित आगे चलकर पार्टी पर कब्जा जमा सकते हैं, इसीलिए उन्होंने तय किया कि अजित को राज्य की राजनीति तक सीमित रखा जाए और सुले को दिल्ली में एनसपी के चेहरे के तौर पर पेश किया जाए.
जहां तक छोटे भाई प्रताप और उनके परिवार, खास तौर पर उनके मीडिया दिग्गज बेटे अभिजीत का सवाल है, शरद पवार ने उनसे हमेशा सुरक्षित दूरी बनाए रखी है. अभिजीत सकाल पेपर्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रमुख हैं जो सबसे बड़ा मराठी दैनिक सकाल और राज्य में तीसरा सबसे बड़ा मराठी टीवी चैनल साम टीवी चलाते हैं.
परिवार के भीतर यही एक व्यवसाय है जिसमें पवार का कोई सीधा दखल नहीं है. राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि अभिजीत भाजपा के नजदीक जा रहे हैं क्योंकि उनका मुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस से खास रिश्ता है. हालांकि सकाल ने कभी पवार की आलोचना नहीं की है लेकिन इस मीडिया ग्रुप ने कभी उन्हें एनसीपी के मंच के तौर पर अखबार का इस्तेमाल करने की भी इजाजत नहीं दी है.
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