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ईवीएम: बटन दबे इधर, वोट जाए उधर?

चुनाव अायोग ने मायावती के ईवीएम में छेड़छाड़ के अारोप को 'बेमानी करार दिया'.

भरोसा डिगा उत्तर प्रदेश के एक मतगणना केंद्र पर ले जाए जाते ईवीएम
भरोसा डिगा उत्तर प्रदेश के एक मतगणना केंद्र पर ले जाए जाते ईवीएम
अपडेटेड 27 मार्च , 2017
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत इतनी विशाल रही और बहुजन समाज पार्टी की हार इतनी शर्मनाक कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने यह मानने से ही इनकार कर दिया है कि यह नतीजा वास्तविक है. उन्होंने मुख्य निर्वाचन अधिकारी को लिखे एक पत्र में मतपत्रों के माध्यम से दोबारा चुनाव कराने की मांग कर डाली है. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, ''मुझे जो रिपोर्टें प्राप्त हुई हैं उनसे संदेह खड़ा हुआ है कि वोटिंग मशीनों के साथ छेड़छाड़ की गई है...ऐसा लगता है कि दूसरे दलों को पड़े वोटों को मशीनों ने दर्ज ही नहीं किया. यहां तक कि मुसलमानों के वोट भी भाजपा को गए हैं.'' उनका यह दावा चाहे कितना ही अतिरंजित लगे, लेकिन चुनावी हार में उनके भागीदार रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी इस बात को समर्थन मिल गया है.

यादव ने कहा, ''ईवीएम के बारे में अगर कोई सवाल उठाया गया है तो इसकी जांच होनी चाहिए. मैं भी इसकी पड़ताल करूंगा.'' निर्वाचन आयोग ने फौरन मायावती के दावों को 'बेमानी' करार दिया. इसके बावजूद आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने 14 मार्च को मांग उठाई कि अप्रैल में होने वाले दिल्ली के नगर निगम चुनाव में ईवीएम की जगह मतपत्रों का इस्तेमाल किया जाए. उनकी पार्टी पंजाब विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर पाने में नाकाम रही है. यह पहली बार नहीं है जब ईवीएम पर सवाल उठ रहे हैं.

फरवरी के अंत में नासिक में नगर निकाय चुनावों में ईवीएम की शिकायत के बाद हिंसा भड़क उठी थी. यहां स्थानीय भाजपा प्रमुख के बेटे की जीत हुई थी, जिस पर शिवसेना के प्रत्याशी का दावा था कि प्रत्येक प्रत्याशी को मिले मतों का योग कुल पड़े मतों से ज्यादा था. पुणे के येरवदा वार्ड में 15 प्रत्याशियों ने ऐसी ही शिकायत की. उनका कहना था कि कुल 33,289 वोट पड़े थे लेकिन गिनती में वोटों की संख्या 43,324 निकली. मुंबई में निर्दलीय उम्मीदवार श्रीकांत शिरसत को पश्चिमी क्षेत्र स्थित उनके आवास के करीब बूथ पर एक भी वोट नहीं मिले. उन्होंने कहा, ''मैंने खुद को तो वोट दिया था, मेरे परिवार और पड़ोसियों ने भी मुझे वोट दिया. फिर शून्य कैसे हो गया?''

इससे पहले 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस नेता तरुण गोगोई ने कहा था कि भाजपा ने एक ईवीएम से छेड़छाड़ की थी. उस साल 3 अप्रैल को जोरहाट में अनिवार्य मतदान अभ्यास के दौरान पाया गया था कि चाहे कोई भी बटन दबाया जाए, वोट भाजपा को ही जाते थे. सिर्फ भाजपा विरोधियों ने ही ईवीएम से छेड़छाड़ की बात नहीं की है. एल.के. आडवाणी ने 2009 में लोकसभा चुनाव में हार का दोष ईवीएम से छेड़छाड़ पर मढ़ा था. उन्होंने कहा था कि बैलट पेपर की ओर लौट जाना चाहिए.

अक्तूबर 2006 में नीदरलैंड ने ईवीएम पर प्रतिबंध लगाया था. तीन साल बाद आयरलैंड ने भी यही काम किया. इटली में भी ईवीएम प्रतिबंधित हैं और जर्मनी की सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया है. अमेरिका में कैलिफोर्निया और अन्य प्रांतों ने बिना पेपर ट्रेल वाले ईवीएम को प्रतिबंधित किया है. वेनेजुएला, मकदुनिया और उक्रेन ने अपने-अपने यहां ईवीएम से मतदान को खत्म कर दिया था.

हैदराबाद से एक इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा विशेषज्ञ हरि प्रसाद को 2010 में गिरफ्तार किया गया था. आरोप था कि उसने एक ईवीएम चुराकर यह साबित किया था कि उससे छेड़छाड़ की जा सकती है. सुब्रह्मण्यम स्वामी उसे लेकर निर्वाचन आयोग के दफ्तर गए थे लेकिन उनकी शिकायतों को खारिज कर दिया गया. फिर स्वामी ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दायर की. 2012 में फैसला आया कि ईवीएम से छेड़छाड़ मुमकिन नहीं है. फैसले के बाद चुनाव आयोग ने पेपर ट्रेल को अनिवार्य कर दिया जिसे ''वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल'' (वीवीपैट) कहते हैं. मतदाता कागज पर प्रिंट से यह जांच सकता है कि उसका वोट सही पड़ा है या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 2019 तक सभी ईवीएम में वीवीपैट की व्यवस्था हो और मोदी सरकार ने 5,000 करोड़ रु. आवंटित किए हैं. चुनाव आयोग इसका पालन शायद ही कर पाए, जो मायावती के लिए निराशाजनक होगा.
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