नरेंद्र मोदी जब अपनी कैबिनेट गठन पर माथापच्ची कर रहे थे तो वे महाराष्ट्र को लेकर गंभीर दुविधा में थे—गोपीनाथ मुंडे को केंद्र में मंत्री बनाएं या फिर 4 महीने बाद राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव की कमान उन्हें सौंपें. लेकिन शपथ ग्रहण के आठवें दिन ही सड़क हादसे में मुंडे की आकस्मिक मौत ने मोदी और बीजेपी की पेशानी पर बल डाल दिए हैं.
एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री कहते हैं, ''मुंडे को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने की दिशा में तेजी से सोचा जा रहा था, पर निर्णय नहीं हुआ था.”
बीजेपी की चिंता की बड़ी वजह महाराष्ट्र में मुंडे के कद का कोई बड़ा नेता नहीं होना है. प्रमोद महाजन और मुंडे के बाद महाराष्ट्र में कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं, जो शरद पवार जैसी शख्सियत को चुनौती दे सके. मुंडे के बाद की पीढ़ी में देवेंद्र फड़णवीस, विनोद तावड़े और सुधीर मुनगंटीवार जैसे चेहरे हैं, लेकिन उनका कद उतना बड़ा नहीं है. नितिन गडकरी का कद बीजेपी में बढ़ा है, लेकिन उनकी छवि मुंडे-महाजन सरीखे समन्वयक की नहीं है.
मुंडे ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन का विस्तार कर उसे महायुती बनाया, जिसका लाभ लोकसभा चुनाव में मिला. गडकरी गुट एक समय राज ठाकरे को महत्व देने में लगा था. पर समन्वय की राजनीति के पहरुआ माने जाने वाले मुंडे ने आरपीआइ (अठावले), स्वाभिमानी संगठन, राष्ट्रीय समाज पक्ष जैसे छोटे गुटों को बीजेपी-शिवसेना गठजोड़ का हिस्सा बनाया. संघर्ष के रास्ते शिखर पर पहुंचे मुंडे की जगह भरना महाराष्ट्र बीजेपी ने लिए खासा मुश्किल होगा.
एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री कहते हैं, ''मुंडे को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने की दिशा में तेजी से सोचा जा रहा था, पर निर्णय नहीं हुआ था.”
बीजेपी की चिंता की बड़ी वजह महाराष्ट्र में मुंडे के कद का कोई बड़ा नेता नहीं होना है. प्रमोद महाजन और मुंडे के बाद महाराष्ट्र में कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं, जो शरद पवार जैसी शख्सियत को चुनौती दे सके. मुंडे के बाद की पीढ़ी में देवेंद्र फड़णवीस, विनोद तावड़े और सुधीर मुनगंटीवार जैसे चेहरे हैं, लेकिन उनका कद उतना बड़ा नहीं है. नितिन गडकरी का कद बीजेपी में बढ़ा है, लेकिन उनकी छवि मुंडे-महाजन सरीखे समन्वयक की नहीं है.
मुंडे ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन का विस्तार कर उसे महायुती बनाया, जिसका लाभ लोकसभा चुनाव में मिला. गडकरी गुट एक समय राज ठाकरे को महत्व देने में लगा था. पर समन्वय की राजनीति के पहरुआ माने जाने वाले मुंडे ने आरपीआइ (अठावले), स्वाभिमानी संगठन, राष्ट्रीय समाज पक्ष जैसे छोटे गुटों को बीजेपी-शिवसेना गठजोड़ का हिस्सा बनाया. संघर्ष के रास्ते शिखर पर पहुंचे मुंडे की जगह भरना महाराष्ट्र बीजेपी ने लिए खासा मुश्किल होगा.