इक्कीसवीं सदी में जब भूमि अधिग्रहण को लेकर हायतौबा मची हुई है, पश्चिम बंगाल के सिंगूर और उत्तर प्रदेश के भट्टा-पारसौल में किसान अपनी जमीन के लिए खूनी संघर्ष के रास्ते पर हैं, ऐसे में एक छोटा-सा राज्य छत्तीसगढ़ आधुनिक सुविधाओं से लैस ग्रीन और ईको फ्रेंडली थीम के साथ बिना किसी बड़े विवाद के नई राजधानी के सपने को साकार करने की दिशा में उड़ान भर चुका है.
हाल ही में 6 नवंबर को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों राज्य के नए मंत्रालय भवन के उद्घाटन के साथ शासन का काम नई राजधानी से शुरू हो चुका है. नई राजधानी में गुजरात के अहमदाबाद और गांधीनगर की तरह दो अलग-अलग शहर नहीं होंगे, बल्कि रायपुर का ही हिस्सा होगा जो पुराने शहर से महज 20 किमी दूर है. मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं, ''यह नया शहर नहीं बल्कि रायपुर का ही विस्तार है जो देश की सबसे बेहतर और 21वीं सदी की पहली बसाई गई राजधानी होगा, जहां हमने गांवों को उजाडऩे की बजाए उन्हें वहीं आधुनिक रूप देकर बसाया और एकमात्र राखी गांव को हटाकर दूसरी जगह बसाना पड़ा. ''
वर्ष 2000 में देश के मानचित्र पर उभरे तीन राज्यों में से सिर्फ छत्तीसगढ़ ने ही एक सुनियोजित और नई राजधानी बसाई है. पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय ही अंतराष्ट्रीय स्तर की कंपनियों से सलाह मंगवाई गई थी, जिसमें 9 में से 8 कंसल्टेंट्स ने मौजूदा स्थान को ही राजधानी के लिए सबसे उपयुक्त बताया, जहां सरकारी जमीन भी ज्यादा थी. इसके बाद दिल्ली की कंपनी सीईएस (कंसल्टिंग इंजीनियर सर्विसेज) की संकल्पना को आर्किटेक्ट्स के ज्यूरी पैनल से मंजूरी मिली. अब यह शहर सपनों से निकलकर हकीकत में आकार लेने की ओर है.
कुल 8,013 हैक्टेयर पर बस रही इस राजधानी का 20 फीसदी काम पूरा हो चुका है. मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि इस साल मार्च तक करीब 2,600-2,700 मकानों के तैयार होने के साथ बसाहट भी शुरू हो जाएगी. राजधानी बसाने का काम देख रही नोडल एजेंसी नया रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) के अध्यक्ष एन. बैजेंद्र कुमार कहते हैं, ''रिहाइश के हिसाब से यह देश का सबसे बेहतरीन शहर बनने जा रहा है और 2015 तक यहां कम-से-कम 2-3 लाख लोगों को बसाने का लक्ष्य है. ''
बुनियादी ढांचे के निर्माण को प्राथामिकता देते हुए हवाई अड्डा, सड़क मार्ग और रेल मार्ग से कनेक्टिविटी की गई है. नया शहर राष्ट्रीय राजमार्ग-6, 43 और बिलासपुर बाइपास से सटा हुआ है. हवाई अड्डा नई राजधानी से महज 7 किमी दूर है. 6 लेन और 4 लेन सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है. शहर में ट्रैफिक की समस्या न हो, इसलिए शुरुआत से ही बी.आर.टी.एस. की व्यवस्था रहेगी जो अप्रैल 2014 से शुरू होगी. रायपुर-विशाखापत्तनम रेल लाइन पर नया रायपुर रेलवे स्टेशन बन रहा है. शहर के विकास में वर्तमान और आगे की जरूरतों को ध्यान में रखा गया है. पहले चरण का तीन चौथाई काम पूरा होने पर दूसरे चरण में शहर के विस्तार का काम होगा, जिसमें सरकार 70 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र पर ही निर्माण को मंजूरी देगी. गौरतलब है कि एयरपोर्ट जोन की जमीन फ्रीज कर दी गई है.
मास्टर प्लान 2031 के मुताबिक, नया रायपुर की विकास योजना में 26.37 फीसदी जमीन आवासीय उपयोग के लिए रखी गई है, तो हरित और पर्यावरण के अनुकूल थीम पर बसाए जा रहे इस शहर में लगभग चौथाई से ज्यादा जमीन हरित क्षेत्र के लिए निर्धारित है. संचार सेवाओं की लाइन भूमिगत आप्टिकल फाइबर और आधुनिक उपकरणों के जरिए होगी.
पूरे शहर में वाइफाइ, ब्रॉडबैंड जैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी. शहर में ग्रीन और ईको फ्रेंडली तकनीकों पर खास जोर दिया गया है. फोन, बिजली, पानी की सारी लाइनें भूमिगत हैं और सड़कों के किनारे 6 मीटर की सर्विस लेन बनाई गई है. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल से हर समय पानी आपूर्ति की व्यवस्था होगी. जिंदल एक्वा कंपनी को इसकी जिम्मेदारी मिली है.
इस शहर की सबसे बड़ी खासियत है बिजली-पानी जैसी बुनियादी जरूरत की स्काडा (सुपरवाइजरी कंट्रोल ऐंड डाटा एक्विजिशन) सिस्टम से मॉनिटङ्क्षरग. एनआरडीए के सीईओ एस.एस. बजाज कहते हैं, ''हम सिटी को स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित कर रहे हैं, जिसमें मैनपॉवर कम और तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा हो. स्काडा के जरिए एक ही सेंटर से पूरे शहर की जानकारी मिल जाएगी. अगर कहीं कोई दिक्कत है तो उपभोक्ता को शिकायत करने की जरूरत नहीं होगी.
साथ ही मीटर रीडिंग के लिए कर्मचारी को घर-घर नहीं जाना होगा. '' जल प्रदाय योजना को इस तरह बनाया गया है कि 80 फीसदी पानी को ट्रीटमेंट के बाद, पीने को छोड़ दें तो बाकी कामों में फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है. जल आपूर्ति के लिए महानदी में टीला गांव के पास एनीकट तैयार किया जा रहा है. सीवरेज प्रबंधन के लिए शहर को 6 जोन में बांटा गया है तो बिजली की जरूरत को तीन चरणों में पूरा किया जाएगा.
इसमें गैर-पारंपरिक और वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों के अधिकतम इस्तेमाल की योजना है. इसमें कम-से-कम 10 फीसदी बिजली की आपूर्ति सौर ऊर्जा से होगी. मंत्रालय भवन की बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए उसके पास ही 1.2 मेगावाट का सोलर प्लांट लगाया गया है. ऊर्जा सचिव अमन सिंह कहते हैं, ''मंत्रालय एक ग्रीन बिल्डिंग है और यह देश की पहली इमारत होगी, जहां एक मेगावाट से ज्यादा का सोलर प्लांट लगा है. ''
नया रायपुर को भिलाई की तरह ही एजुकेशनल हब बनाने के मकसद से आइआइएम, ट्रिपल आइटी, एनआइआइटी, हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, आइटीएम यूनिवर्सिटी और प्रशासनिक अकादमी तैयार है. इसके अलावा शहर में सिर्फ सर्विस सेक्टर इंडस्ट्री को ही इजाजत दी जाएगी. स्वास्थ्य सेवा की सुविधा सभी 23 आवासीय सेक्टरों में होगी. इसके अलावा 350 बेड वाला वेदांता कैंसर अस्पताल, सत्यसाईं पुट्टïपार्थी का 200 बिस्तरों वाला हार्ट-न्यूरो का संजीवनी अस्पताल है, तो सरकार की ओर से 500 बिस्तरों वाला एक अत्याधुनिक मेडिकल कॉलेज बनेगा. शहर स्तर पर मनोरंजन के लिए 2,137 हैक्टेयर क्षेत्र चिन्हित है. शहर के दक्षिणी भाग में 222 हैक्टेयर में जंगल सफारी होगी तो 200 एकड़ में बोटैनिकल पार्क प्रस्तावित है. भविष्य की योजनाओं में आइ सेज, स्पोटर्स सिटी, गोल्फ कोर्स, लॉजिस्टिक्स हब, सीबीडी संग्रहालय, आर्ट गैलरी, एम्यूजमेंट पार्क, जेम्स और ज्वैलरी सेज का काम शुरू होने वाला है. एक विशेष क्षेत्र को मिलिट्री-पैरा मिलिट्री और पुलिस के लिए छावनी के तौर पर बसाया जा रहा है. सरकार की ओर से 96.12 हैक्टेयर में सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट बसाया जा रहा है, बैजैंद्र कुमार कहते हैं, ''यह रायपुर का मैनहटन बनेगा. '' उनके मुताबिक, ''शहर की योजना इस हिसाब से बनाई गई है कि यहां कोई धारावी न बने. ''
हालांकि नई राजधानी के सपने को जमीन पर उतारने की पहल करने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी कहते हैं, ''हम चाहते थे कि नई राजधानी में निर्माण कार्य विशेष वास्तुकला से हो, लेकिन अभी जो बनाया गया है, वहां महज कंक्रीट की माचिस की डिबिया खड़ी कर दी गई है. मैं इतना दुखी हूं कि इसे देखने भी नहीं जाता. अगली बार हमारी सत्ता आएगी तो इसे देखूंगा भी और सुधारूंगा भी. '' हालांकि मुख्यमंत्री रमन सिंह इसे आधुनिकता की मिसाल करार देते हैं. वे कहते हैं, ''खाका बन गया है, सभी चीजें उसके मुताबिक बन गई हैं. सरकार भले आए-जाए, ये चीजें स्थायी रहेंगी. सत्ता में कौन रहता है इससे फर्क नहीं पड़ता. '' वे आगे कहते हैं, ''दुनिया भर से जितने लोग आए, सबने नया रायपुर के बारे में यही कहा कि इससे बेहतर कल्पना नहीं हो सकती. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे देश के लिए मॉडल कहा है. '' हालांकि अब सरकार विधानसभा, राज्यपाल-मुख्यमंत्री निवास आदि को भव्य बनाने की बात कर रही है. लेकिन बैजैंद्र कुमार कहते हैं, ''हम आधुनिकता चाहते थे, भव्यता के नाम पर समरूपता नहीं. ''
शासन के काम में तेजी लाने के मकसद से नया रायपुर शहर के बीचोबीच राखी गांव में ही कैपिटल कॉम्प्लेक्स बनाया गया है और यहां मंत्रालय भवन के साथ 37 विभागाध्यक्षों के लिए विशाल भवन पूर्णता की ओर है. गौरतलब है कि अजीत जोगी के मुख्यमंत्री रहते कैपिटल कॉम्प्लेक्स के तौर पर चेरियापोता गांव को चुना गया था, जहां बंजर जमीन ज्यादा थी. लेकिन रमन सरकार ने कॉम्प्लेक्स को शहर के मध्य में बसाया. एनआरडीए के सीईओ एस.एस. बजाज कहते हैं, ''नई राजधानी को पहले कांग्रेस और फिर बीजेपी की सरकार से राजनैतिक मंजूरी मिली. जगह वही रही लेकिन बाद में सरकार ने चेरियापोता की बजाए शहर के मध्य स्थित राखी गांव को कैपिटल कॉम्प्लेक्स के लिए चुना. '' इस कॉम्पलेक्स का निर्माण पूरा होने को है, जबकि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम पूरी तरह से तैयार है. फिलहाल राज्य हाउसिंग बोर्ड ने सेक्टर 27 और 29 का विकास किया है और बाकी कुछ सेक्टरों में निजी डेवलपर्स को काम दिया गया है.
निश्चित रूप से नई राजधानी के तौर पर विकसित हो रहे इस क्षेत्र में जमीन की कीमतों में भारी उछाल आया है. जब सरकार ने 2006 में मास्टर प्लान बनाते हुए अधिग्रहण की योजना शुरू की तो जमीन की दर 50,000 रु. से 2 लाख रु. प्रति एकड़ थी, जो 2012 में बढ़कर 20 से 25 लाख रु. प्रति एकड़ हो चुकी है. रमन सरकार ने 2006 में किसानों को जमीन के बदले 5.90 लाख रु. प्रति एकड़ के हिसाब से दिए थे, जिसमें अब बदलाव करते हुए 2031 तक सालाना 15,000 रु. प्रति एकड़ के हिसाब से अतिरिक्त मुआवजा देने का फैसला किया गया है. सरकार ने किसानों को प्रति एकड़ निर्मित क्षेत्र के हिसाब से 400 वर्ग फुट का मकान भी देना तय किया है. हालांकि किसान मुआवजे से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. नया राखी गांव के किसान फनेंद्र कुमार साहू कहते हैं, ''सरकार ने हमें 5.90 लाख रु. प्रति एकड़ के हिसाब से कीमत दी, लेकिन वही जमीन निवेशकों को करोड़ों में बेची जा रही है. ''
साहू की तरह ही बाकी स्थानीय किसानों की समस्या यही है कि पुश्तैनी जमीन छिन जाने से खेती चौपट हो गई और बदले में सरकार की ओर से बनाकर जो मकान दिया गया है, वह बड़े परिवार के अनुकूल नहीं है, न ही उसकी गुणवत्ता सही है. वैसे बैजैंद्र कुमार कहते हैं, ''किसानों को हमने बेहतर पैकेज दिया है क्योंकि मैं यह मानता हूं कि आंसुओं पर शहर नहीं बसाया जा सकता. '' मूलत: केरल निवासी कुमार कहते हैं, ''रिटायर होकर मैं तो यहीं रहूंगा, केरल नहीं जाऊंगा. ''
जाहिर तौर पर शहर बसाने में कुछ असंतोष के सुर भी दिख रहे हैं, लेकिन एक छोटे-से राज्य ने महज 7 साल में खाली पड़ी जमीन से एक नई राजधानी के सपने को साकार कर लिया है.