scorecardresearch

राजस्थान: इस बार किस ओर बहेगी बयार?

भारतीय जनता पार्टी के नेता शुरुआती छह महीनों के दौरान मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए आपसी सिरफुटौव्वल करते रहेंगे, बगैर यह समझे कि सरकार बनाने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि उनके पास विधायकों की पर्याप्त संख्या.

अशोक गहलोत
अशोक गहलोत
अपडेटेड 16 जनवरी , 2013

भारतीय जनता पार्टी के नेता शुरुआती छह महीनों के दौरान मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिए आपसी सिरफुटौव्वल करते रहेंगे, बगैर यह समझे कि सरकार बनाने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि उनके पास विधायकों की पर्याप्त संख्या. साल के दूसरे हिस्से में यह नजारा होगा कि नेता अपने अधिकतम समर्थकों को टिकट दिलवाने के लिए जुटे रहेंगे, बगैर यह तय किए कि टिकट पाने की इकलौती कसौटी चुनाव जीतने की उनकी क्षमता होनी चाहिए.

जनवरी में मुख्यमंत्री पद के स्वयंभू दावेदार बीजेपी के गुलाबचंद कटारिया आदिवासी इलाकों में अपनी यात्रा निकालेंगे ताकि टिकट दिलवाने के लिए अपने समर्थकों के हाथ मजबूत कर सकें. इसके काफी बाद वसुंधरा राजे अपना चुनाव प्रचार अभियान शुरू करेंगी. आरएसएस पूरे मामले में अनावश्यक दखल देकर सबका खेल बिगाडऩे में लगा रहेगा.

संघ असहमतियों को तो जगह दे देगा, लेकिन इससे हुए नुकसान की जिम्मेदारी को उठाने के लिए कतई तैयार नहीं होगा. साल के दूसरे हिस्से में वसुंधरा राजे तक उनके विरोधियों की पहुंच आसान हो चुकी होगी और उनकी समझदारी में भी इजाफा होगा.Gehlot

कांग्रेस के लिए अगला चुनाव जीतना कठिन चुनौती होगा. लिहाजा उसके भीतर टिकट को लेकर ज्यादा मारामारी शायद न हो. इसके बावजूद सी.पी. जोशी, भंवर जितेंद्र सिंह और सचिन पायलट अपने समर्थकों को ज्यादा-से-ज्यादा टिकट दिलवाने का प्रयास करेंगे और सबसे बड़ा हिस्सा ले जाएंगे.

अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सोनिया गांधी की शरण में जाना पड़ सकता है. जयपुर में कांग्रेस का जो राष्ट्रीय अधिवेशन होने वाला है, उसी को देखकर समझ आता है कि कांग्रेस राजस्थान के विधानसभा चुनाव को कितनी अहमियत दे रही है. गहलोत की पूरी कोशिश होगी कि अधिवेशन के दौरान न तो उनके विरोधी और न मीडिया उनके खिलाफ  किसी भी खबर को प्रचारित-प्रसारित करे. इस दौरान कोई भी बड़ी आपराधिक घटना, किसी घोटाले का खुलासा या फिर कोई आपदा उनकी छवि को नुकसान पहुंचा सकती है.

राज्य के लिए मानसून इस बार निर्णायक साबित होगा. अगर बारिश अच्छी हुई तो कांग्रेस की कुछ सीटों में इजाफा हो सकता है. अगर सूखा पड़ा तो सूखा राहत के नाम पर सत्तारूढ़ कांग्रेस और आला अधिकारियों को पैसे काटने का मौका हाथ लग जाएगा.gehlot

इससे बीजेपी के दो अहम चुनावी मुद्दे मजबूत होकर उभरेंगे: भ्रष्टाचार और गहलोत सरकार की नाकामी. गहलोत को राजे से जितना डर बढ़ता जाएगा, वे अपने हमलों में और तीखे होते जाएंगे. चूंकि बीजेपी के कई नेताओं को गहलोत ने फायदा पहुंचाया है और इस तरह भ्रष्टाचार के मामलों पर उनका मुंह बंद रखा है, इसलिए प्रतिक्रिया में वे गहलोत पर सीधे हमले से बचेंगे. इसकी बजाए वे राजे को सकारात्मक बने रहने की सलाह देंगे. हालांकि राजे राज्य के लिए सकारात्मक और गहलोत के लिए नुकसानदायक रणनीति का संतुलन साध कर इन नेताओं को निराश ही करेंगी.

इस साल बीजेपी नेता राजेंद्र सिंह राठौड़ की राजनीतिक किस्मत का फैसला होना है, जिनके ऊपर दारा सिंह की हिरासत में हत्या का आरोप है. इसी साल जलमहल परियोजना, भ्रष्ट कारोबारियों-नेताओं की किस्मत भी तय होगी, जो इस महालूट में शामिल रहे हैं. भ्रष्टाचार के कई और मामले सामने आने बाकी हैं, जिनका खुलासा हुआ तो भी उसमें बीजेपी के नेताओं का कोई हाथ नहीं होगा.

इस बार विधानसभा चुनाव दिसंबर में होने हैं और पिछली बार की 200 में से 96 सीटों पर पिछला प्रदर्शन दोहराना गहलोत के लिए पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगा. हालांकि बीजेपी अगर अपने अति-आत्मविश्वास और आपसी फूट में ही उलझी रही तो फिर मुद्दा यह होगा कि क्या गहलोत वैसा ही प्रदर्शन कर सकेंगे, जैसा मनमोहन सिंह ने 2009 में किया था? बीजेपी अगर जल्द-से-जल्द एक नेता वसुंधरा राजे की छत्रछाया में राजस्थान केंद्रित अपनी रणनीति बनाने में कामयाब रही, तभी वह जीतने की उम्मीद कर सकती है.

कटारिया जैसे नेताओं का इस्तेमाल उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों में पार्टी के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें लाने के लिए किया जा सकता है. बंद दरवाजों में गहलोत के साथ साजिशें रचने वालों को उसे बाहर का रास्ता दिखाया होगा.

चाहे क्रिकेट हो या कोई अन्य खेल, कांग्रेसियों की आपसी लड़ाइयों का असर सब पर पड़ेगा और राज्य का प्रदर्शन बदतर बना रह सकता है. इसी को देखकर समझ् में आता है कि कांग्रेस राजस्थान के विधानसभा चुनाव को कितनी अहमियत दे रही है.

Advertisement
Advertisement