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हिचकिचाहट छोड़े संघ: सूर्यकांत केलकर

बीजेपी में क्षमता देखकर काम कम ही दिया जाता है, संगठन की ओट में छुप जाती है कमी.

अपडेटेड 8 जून , 2015

समाचार पत्रों ने पिछले एक साल के मोदी सरकार के शासन को ठीक-ठाक ही कहा है. इसकी वजह यह है कि बीजेपी पिछले कई वर्षों से कांग्रेस की 'बी' टीम बनने में लगी हुई थी. इसी से परेशान होकर बीजेपी के पूर्व महामंत्री गोविंदाचार्य ने बीजेपी की चाल, चरित्र, चेहरा बदलने की बात कही थी. लेकिन अब जो बीजेपी और देश के शासन में बदलाव दिख रहा है, वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सोच पर आधारित है. इन दोनों के विचार-व्यवहार से हानि ही होगी, ऐसा कहना सही नहीं है. एक साल में मंत्रियों का मंत्रालय में बैठना, अधिकारियों-कर्मचारियों का समय पर आना, स्वच्छता का संदेश जैसी कुछ अच्छी बातें हुई हैं तो आम जनता की बेरोजगारी, महंगाई जैसी समस्याएं यथावत हैं. इसलिए लोग कह रहे हैं कि बहुत-सी चीजों पर अभी कुछ हुआ ही नहीं है. फिर भी विविध समस्याओं पर मोदी सरकार काम करती हुई नजर आई है. यूपीए सरकार जिस बॉर्डर लैंड एग्रीमेंट बिल को संसद से पारित कराने में हिचकिचाती रही, मोदी सरकार ने उसे सर्वसम्मति से संसद में पारित करा लिया. लेकिन जब हम लोगों को बांग्लादेशी घुसपैठ पर हुए इस काम को बताते हैं तो सामान्य लोगों को इस बारे में पता ही नहीं है.

यह भी सच है कि इस एक साल में दिल्ली की हार ने पार्टी में हताशा पैदा की तो भूमि अधिग्रहण के मसले पर कांग्रेस ने विरोधी माहौल बना दिया. अगर इस बिल के मसले पर सरकार ने विचार की प्रक्रिया को व्यापक किया होता तो शायद इतना विरोध नहीं झेलना पड़ता. शुरुआत में संघ परिवार से जुड़े संगठनों से भी बातचीत नहीं की गई, इसलिए परिवार से भी विरोध का सामना करना पड़ा. बाद में विषय से जुड़े संगठनों को बुलाकर बात की गई और उनके सुझावों को बिल में शामिल किया गया तो संघ का विरोध कमजोर हुआ.

राष्ट्रवादी ताकतों को ऐसा लगता था कि मोदी सरकार बनने से राष्ट्रवाद मजबूत होगा, लेकिन एक साल में वैसा होता हुआ नहीं दिखा. कोर मुद्दे को लेकर रुख में हिचकिचाहट से मुझे लगता है कि सत्ता में बैठने के बाद एक 'सेक्युलरी' जो अंग्रेजों से कांग्रेस को और कांग्रेस से विरासत में 'सत्ताधारी' बीजेपी को मिली है. सत्ता में आने के बाद यह विचार ज्यादा हावी हो जाता है. जिस तरह कभी समाजवाद शब्द का आतंक था, उसी तरह आज सेक्युलरिज्म शब्द का चल रहा है. मेरा मनना है कि संघ परिवार को सही बातों के लिए सरकार पर अवश्य दबाव डालना चाहिए और सरकार को भी बिना किसी हिचकिचाहट के अपना काम डटकर करना चाहिए. मैं समझता हूं कि मोदी में हिचकिचाहट छोड़कर काम करने का माद्दा है.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी का नेतृत्व संगठन के माध्यम से उभरकर आता है. किसी व्यक्ति में कुछ कमियां हैं तो संगठन की वजह से ढक जाती है और उस कमी के बावजूद व्यक्ति को आगे बढ़ाया जाता है. क्षमता के आधार पर बीजेपी में पद मिलता है, ऐसा कम ही होता है, जबकि अन्य दलों में क्षमता देखकर काम दिया जाता है और उनका प्रमुख भी स्वयं की क्षमता से खड़ा हुआ है. मसलन, मायावती, मुलायम सिंह यादव, अजित सिंह अपने आभामंडल की वजह से खड़े हुए. इसलिए वे चाहे किसी को निकाल सकते हैं या रख सकते हैं. यानी बीजेपी के संगठन में व्यन्न्ति अपने व्यक्तित्व के कारण नहीं, संगठन के कारण बड़ा बन जाता है, इसलिए कई बार वह अधिकारियों के हाथ का खिलौना बन जाता है. इसलिए सरकार को चाहिए कि वह विषयों पर परिवार के संबंधित संगठनों से चर्चा जरूर करे. एक व्यक्ति जब करिश्मा दिखा देता है तो उसके प्रशंसकों की तादाद स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है, लेकिन वाजपेयी सरकार के समय संगठनों की नहीं सुनने की वजह से ही टकराव की नौबत बनी थी, जबकि अभी सरकार इस मामले में सजग है.

(सूर्यकांत केलकर, संघ के पूर्व प्रचारक और भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक हैं)

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