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उम्मीद का एक दीया

एलएसआर, दिल्ली से राजनीति शास्त्र में बीए (ऑनर्स), दिव्यांगों के अधिकारों की प्रवक्ता होशियारपुर, पंजाब

प्रतिष्ठा देवेश्वर
प्रतिष्ठा देवेश्वर
अपडेटेड 6 अगस्त , 2020

प्रतिष्ठा देवेश्वर, 21 वर्ष

वे महज 13 साल की थीं जब अपने गृहनगर, पंजाब के होशियारपुर में एक हादसे के चलते गले से नीचे के उनके पूरे शरीर को लकवा मार गया. कई स्कूलों ने तो उनका दाखिला करने से ही मना कर दिया. ऐसे में प्रतिष्ठा को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था. उस दौर के अनुभवों को याद करते हुए वे कहती हैं, ''मुझे पता है कि उम्मीद से खाली होने और सकारात्मकता को हासिल कर पाने का संघर्ष क्या होता है.’’

आपको ऐसा लगेगा कि इस घटना ने जैसे आगे की चुनौतियों के लिए उन्हें तैयार कर दिया होगा. लेकिन जब कोविड का प्रकोप फैला और उच्च शिक्षा की उनकी योजनाओं पर एक बार फिर से अस्थायी तौर पर ही सही, बंदिश लगती दिखाई दी, तो उन्हें महसूस हुआ कि उस पुरानी दहशत ने उन्हें एक बार फिर जकड़ लिया है.

वे बताती हैं, ‘‘किसी को नहीं पता था कि आगे क्या होगा लेकिन हर किसी ने मान लिया था कि हम जैसी जिंदगी जीते आए हैं, वह खत्म हो चुकी है. लोग आपको ढाढस देने की कोशिश करते हैं लेकिन वह भरोसा आपके अंदर से आना चाहिए. वह मुश्किल है लेकिन उसी में ज्यादा ताकत है.’’

इन दुश्वारियों से जूझती प्रतिष्ठा ने विदेशों में विभिन्न मास्टर डिग्री कार्यक्रमों के लिए अर्जियां देनी जारी रखीं. जुलाई में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पब्लिक पॉलिसी प्रोग्राम में उनका आवेदन मंजूर कर लिया गया और प्रतिष्ठा इस प्रतिष्ठित संस्थान में व्हीलचेयर के जरिए शामिल होने वाली पहली भारतीय हो गईं.

प्रतिष्ठा का कहना है कि वे सिर्फ अपने लिए कामयाब नहीं होना चाहती हैं बल्कि वह उन लोगों को भी प्रेरणा देना चाहती हैं जो मुश्किलों से जूझ रहे हैं. उन्हीं के शब्दों में, ‘‘अगर कोई मेरी कहानी से प्रेरणा हासिल कर सकता है और यह मान सकता है कि अगर वह कर सकती है, तो मैं भी, तो समझ लीजिए, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी. मैंने बहुत सारा वक्त ऑनलाइन बिताया और उन लोगों तक पहुंचने की कोशिश करती रही जो हाशिए पर हैं या दिव्यांग हैं या फिर मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं.’’

एक बार वे अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लेंगी, तो उनका संकल्प है कि वे भारत लौट आएंगी और वंचितों के अधिकारों की अपनी लड़ाई जारी रखेंगी. उनका मानना है, ''हर चीज का एक समाधान है. आपमें बस चलते रहने का माद्दा होना चाहिए.’’ जाहिर है, वे खुद इसकी एक मिसाल हैं.

—सोनाली आचार्जी

‘‘लोग आपको भरोसा दिलाने की कोशिश करते हैं पर भरोसा आपके भीतर से पैदा होना चाहिए और वही ज्यादा मुश्किल है’’

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