परिधि हरीश दोशी, 21 वर्ष
क्रॉसफिट की एथलीट और सहायक कोच, मुंबई
परिधि दोशी ने अपनी सारी योजनाएं का खाका तैयार कर लिया था. वे नरसी मोंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (एनएमआइएमएस) में अपनी फाइनल परीक्षा देने वाली थीं, सांस्कृतिक दिवस के आयोजन में शामिल होतीं, फिर पास होकर फेयरवेल में शिरकत करतीं और उसके बाद जून के आखिरी हफ्ते में वे एक महीने की लंबी छुट्टियों पर अमेरिका निकल जातीं.
और यह पिछले तीन साल में उनकी पहली छुट्टी होती. वहां से लौटने के बाद वे क्रॉसफिट कोच बनने के लिए सर्टिफिकेट कोर्स में दाखिला लेतीं. यह लंबी-चौड़ी योजना बनाते वक्त कोविड के बारे में तो उन्होंने किसी मोड़ पर सोचा ही नहीं था.
एनएमआइएमएस ने परीक्षाएं टाल दीं और स्वाभाविक तौर पर आगे के सारे कार्यक्रम भी टल गए. दोशी और उनके सहपाठियों को छठे सेमेस्टर के इंटरनल मार्क्स के आधार पर फाइनल परीक्षा के अंक दे दिए गए हैं. दोशी कहती हैं, ‘‘मुझे सचमुच बहुत बुरा लगा. मुझे लगा ही नहीं कि मैंने भारत के सबसे कठिन मैनेजमेंट कॉलेजों में से एक से डिग्री हासिल की है.’’
उन्हें इस परिस्थिति से तालमेल बिठाने में पूरा एक पखवाड़ा लग गया. अमेरिका में छुट्टी बिताने की योजना तो गई अब एक तरफ. उधर कोर्स कराने के लिए अधिकृत बॉक्स—क्रॉसफिट की भाषा में जिम—भी बंद पड़े हैं.
देश के टॉप 10 क्रॉसफिट एथलीटों में से एक दोशी अपनी योजना को नए ढंग से आकार दे रही हैं. अपने बॉक्स से कुछेक उपकरण लेकर दोशी घर पर ही वर्कआउट कर रही हैं. भले इसके लिए कॉरिडोर में ही उछलकूद करनी पड़े, जिससे कि उनके क्रलैट के नीचे रहने वाले लोग चिढ़ न जाएं. वे कहती हैं, ‘‘मुझे क्रॉसफिट बहुत पसंद है. यह अनुशासन मुझे ऊर्जावान बनाए रखता है. हम सभी रोज डिजिटली एक साथ वक्त बिताते हैं, यहां हम पसीना बहाते हैं, हंसते हैं और लगातार साथ जुड़े रहते हैं.’’
फिर भी, ऐसे भी दिन होते हैं जब वे किसी से बात किए बिना बस बिस्तर में घुसे रहना चाहती हैं. इस दौरान वे अपने माता-पिता से भी बात नहीं करना चाहतीं, जिनके साथ उन्होंने लॉकडाउन से कुछ दिन पहले ही रहना शुरू किया है. वे डेढ़ साल से किराए पर फ्लैट लेकर रह रही थीं.
बकौल दोशी, ‘‘मैं टूट गई हूं और मुझे जो महसूस होता है उसके बारे में खूब बात करने लगी हूं. यह ढोंग करने छिपाने के बोझ को कम कर देता है.’’ दूसरों को वर्चुअल प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया से भी उन्हें मदद मिली है. ''लोगों को बेहतर बनने में मदद करने और उन्हें खुद के बारे में अच्छा महसूस करवाने में बहुत अच्छा लगता है.’’
—सुहानी सिंह
''मैं बुरी तरह से टूट गई और इस बारे में मैंने जो महसूस किया, उस पर खुलकर बोलती रही हूं. इससे मन का बोझ उतारने में मदद मिली’’

