स्वप्नकल्पा बणिक, 19 वर्ष
मनोविज्ञान की छात्रा,
द्वतीय वर्ष, गोखले कॉलेज,
कोलकाता
एक साल से ज्यादा समय तक दोस्ताना रखने के बाद स्वप्नकल्पा ने हाल ही में अपने बॉयफ्रेंड से रिश्ता तोड़ लिया. पिछले कुछ समय से उनके बीच मनमुटाव चल रहा था लेकिन लॉकडाउन ने उन्हें अपने रिश्ते को लेकर ज्यादा प्रगतिवादी नजरिए से सोचने-विचारने का मौका दे दिया. अवसाद और बॉर्डरलाइन पर्सनालिटी डिसऑर्डर की शिकार स्वप्नकल्पा पल में खुश तो दूसरे पल दुखी हो जाती हैं.
और अब कोरोना ने जिस तरह से पढ़ाई-लिखाई और जिंदगी के दूसरे प्लान बिगाड़े हैं, उससे उनकी यह समस्या और बढ़ गई है. ऐसे में रिलेशनशिप का खत्म होना उनके लिए अवसाद को उफान पर ले जाने वाला हो सकता था. लेकिन उन्होंने मन बनाया और बिना किसी पछतावे के रिश्ते से बाहर आ गईं.
वे कहती हैं, ‘‘ऐसे कठिन मौकों पर रिश्तों का भी इम्तिहान होता है. उसी ने मुझे रिश्तों की जमीन परखने का मौका दे दिया. हमारी दोस्ती बहुत-से लोगों से रहती है क्योंकि हम रोज उनसे मिलते हैं. लेकिन इस महामारी जैसे हालात ने हमें महसूस कराया कि सही मायनों में हम किससे कनेक्ट करते हैं. मैं कुछ लोगों के नजदीक आई तो कुछ छूटे भी.’’
स्वप्नकल्पा खुद को खुशकिस्मत मानती हैं कि वे अवसाद का इलाज कराने और मनोचिकित्सकों की सेवा ले पाने में सक्षम हैं. दूसरी ओर, लोगों का दोहरापन उन्हें चौंकाता भी है. वे कहती हैं, ''एक सेलेब्रिटी की मौत पर कितने लोग झूठे टेसुए टपका रहे थे. इस तरह के तमाम लोगों को अपने ही मित्र-दोस्तों के मानसिक स्वास्थ्य की कभी कोई फिकर न हुई. कभी भूलकर भी उन्होंने उनका हाल न पूछा. अचानक उन्हीं लोगों के हृदय में मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के प्रति सहानुभूति का ऐसा ज्वार उमडऩे लगा, उनका कलेजा भर आया. मुझे इस तरह के दोगलेपन से बहुत चिढ़ होती है.’’
—रोमिता दत्ता
‘‘असल में यही ऐसे मौके हैं जब हम समझ पाते हैं कि सही मायनों में कौन हमसे जुड़े हुए हैं’’

