scorecardresearch

बेसहारों का सहारा

मैं सिर्फ आवारा पशुओं को खिलाती ही नहीं बल्कि मैं सोशल मीडिया पर जीवों की भलाई के बारे में जागरूकता भी फैलाती हूं. इससे मुझे तनाव से दूर रहने में मदद मिलती है.

अनुष्ठा गुप्ता
अनुष्ठा गुप्ता
अपडेटेड 6 अगस्त , 2020

अनुष्ठा गुप्ता, 21वर्ष

बीबीए अंतिम वर्ष की छात्रा, जगन्नाथ इंटरनेशनल मैनेजमेंट स्कूल (जेआइएमएस), दिल्ली.

उनके सहपाठियों, उनकी सहेलियों की तरह ही अनुष्ठा की जिंदगी को भी कोविड ने अनिश्चितता की ओर धकेल दिया है. ''हमें नहीं पता कि परीक्षाएं कब होंगी या अगला अकादमिक सत्र कब शुरू होगा, और इसका शेड्यूल क्या होगा.’’ पर सनातन क्रिया और ध्यान जैसे उनके योगाभ्यासों ने उनकी मदद की, ‘‘इन क्रियाओं ने मुझे सेहतमंद और सकारात्मक बनाए रखा.’’

इन्हीं दिनों अनुष्ठा को जानवरों के प्रति अपने लगाव के बारे में भी पता चला. वे ध्यान फाउंडेशन नाम के एनजीओ से जुड़ी हैं जिसने उन्हें सिखाया कि खुद के आगे कैसे सोचना चाहिए. जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है, उन्होंने दिल्ली के प्रीत विहार में अपने घर के आसपास के सड़क के और गायों को खाना देना शुरू किया है.

वे बताती हैं, ''मैं सिर्फ आवारा पशुओं को खिलाती ही नहीं बल्कि मैं सोशल मीडिया पर जीवों की भलाई के बारे में जागरूकता भी फैलाती हूं. इससे मुझे तनाव से दूर रहने में मदद मिलती है और नकारात्मक विचारों के लिए समय नहीं बचता.’’

अनुष्ठा जिस वक्त बेजुबान जानवरों की मदद नहीं कर रही होतीं तब उनका समय अपने भीतर के विकास पर खर्च होता है. इसके अलावा वे अपने कंप्यूटर और संवाद कौशल को सुधारने की दिशा में भी काम कर रही हैं. वे अपने कॉलेज के रोटरैक्ट क्लब की भी शुक्रगुजार हैं. ''क्लब वाले मानसिक तनाव को लेकर प्रोसरों और मनोविज्ञानियों के सत्र आयोजित करते आए हैं. मेरे कई साथियों को वे सत्र बड़े कारगर लगे.’’ वे लोगों को नकारात्मक खबरों से बचने की भी सलाह देती हैं.

मित्रों-सहेलियों के बातचीत और गपबाजी से जी बहुत हल्का हो जाता है. और सोशल मीडिया पर तो वे दोस्तों के साथ लगातार संपर्क में हैं ही. इसके अलावा घर पर खाने में भी उन्होंने सकारात्मक पहलू खोज लिया है. उन्हीं के शब्दों में, ''घर के खाने से भी अच्छा-खासा बदलाव महसूस होता है. आपको पता ही नहीं चलता कि जंक फूड खा-खाकर आप उस पर कितने आश्रित हो चुके हैं.’’

—ऋद्धि काले

''गलियों के बेसहारा जानवरों को खिलाने से मैं तनावमुक्त रहती हूं. मेरे पास इतना समय ही नहीं होता कि नकारात्मक विचार आ पाएं’’.

Advertisement
Advertisement