देश में कोविड-19 महामारी का केंद्र महाराष्ट्र बनने लगा तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की नेतृत्व क्षमता के लिए कड़ी परीक्षा की घड़ी, क्या वे चुनौती पर खरे उतर पाएंगे या अफसरशाहों पर ज्यादा निर्भरता उनके किए-कराए पर पानी फेर देगी?

जब लॉकडाउन खोलने का पहला चरण अनलॉक 1.0 शुरू हो रहा है, एक राज्य कोविड-19 के खिलाफ इस मुश्किल लड़ाई में देश को ऊपर उठा सकता है या पीछे धकेल सकता है और वह है महाराष्ट्र. देश का यह सबसे अमीर और दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य देश के सकल घरेलू उत्पाद में 15 फीसद और प्रत्यक्ष करों में 30 फीसद का योगदान देता है. सियासी तौर पर यह उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे अहम राज्य है और 48 सदस्य लोकसभा में भेजता है. मगर अब यह 2 जून तक 72,300 संक्रमितों और 2,465 मौतों के साथ देश के कोविड-19 के हॉटस्पॉट राज्यों की फेहरिस्त में सबसे ऊपर है.
देश में कोविड-19 के कुल 2,07,615 मरीजों में से 34.8 फीसद और कुल 5,815 मौतों में से 42 फीसद महाराष्ट्र के खाते में हैं. देश की वित्तीय राजधानी मुंबई राज्य में महामारी का केंद्र बनकर उभरी, जहां 2 जून को 43,492 मरीज और 1,417 मौतें दर्ज थीं. अगर अगले दो हफ्तों में कोविड के मामलों में भीषण बढ़ोतरी होती है, तो इसके न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश के लिए विनाशकारी मानवीय और आर्थिक नतीजे होंगे. महाराष्ट्र अब कोविड-19 के प्रकोप से लडऩे की देश की क्षमता को जांचने की अहम कसौटी बन गया है.
संकट की इस घड़ी में सबसे अहम और जिम्मेदार ओहदे पर हैं राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे. 59 वर्षीय ठाकरे की भी यह सबसे बड़ी परीक्षा है. राजनीति में उतरने को कभी अनिच्छुक रहे ठाकरे को घटनाक्रम ने पिछले साल नवंबर में अचानक उछालकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन कर दिया. 36 दिनों के सियासी नाटक और पर्दे के पीछे चले खेल के बाद उनकी पार्टी शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से नाता तोड़कर अपने पारंपरिक विरोधियों—राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस के साथ चुनाव बाद असामान्य गठबंधन कायम किया था.

ठाकरे की पार्टी हालांकि 1997 से ही एशिया के सबसे अमीर नगर निकाय बृहन्मुंबई नगर निगम पर काबिज है, लेकिन खुद उन्हें प्रशासनिक अनुभव नहीं है. अब वे एक ऐसी गठबंधन सरकार चला रहे हैं जिसके साथ तीन पूर्व मुख्यमंत्री—शरद पवार, पृथ्वीराज चव्हाण और अशोक चव्हाण—हैं और तीनों ने ही राज्य की तकदीर गढ़ी है. उनके मंत्रिमंडल के दर्जन भर मंत्रियों की खैर बात ही छोड़ दें जिनके पास 15 साल का प्रशासनक तजुर्बा है. इससे उन लोगों को जवाब मिल जाना चाहिए था जो इस मुश्किल वक्त में राज्य की नैया पार लगाने के लिए उनकी और उनके गठबंधन के भागीदारों की क्षमता पर शक कर रहे हैं. बदकिस्मती से अभी तक ऐसा नहीं हो सका.

राज्य में ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि शीर्ष ओहदा संभालने से पहले ठाकरे को राज्य स्तर का कोई प्रशासनिक तजुर्बा नहीं था. उनसे ठीक पहले 2014 से 2019 तक मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फड़णवीस ने मुख्यमंत्री बनने से पहले जो सबसे ऊंचा ओहदा संभाला था, वह नागपुर नगर निगम के मेयर का पद था. शपथ लेने के बाद ठाकरे ने अपनी अलहदा कार्यशैली का परिचय देकर मुख्यमंत्री कार्यालय से सत्ता का विकेंद्रीकरण कर दिया. तब फड़णवीस सहित उनके आलोचकों ने उन्हें ‘आरामतलब और ढीला-ढाला’ कहकर इसका मजाक उड़ाया था.
राकांपा के अजित पवार को उप-मुख्यमंत्री बनाया गया और ठाकरे ने गठबंधन साथियों को मंत्रिमंडल की 40 में से 30 कुर्सियां सौंप दीं. ठाकरे ने तय किया कि वे कोई बड़ा मंत्रालय अपने पास नहीं रखेंगे और पार्टी के हिस्से में आए मंत्रालय उन्होंने शिवसेना के दिग्गजों और अपने बेटे आदित्य ठाकरे को सौंप दिए. कोविड संकट की मार पडऩे से पहले ठाकरे राज्य मंत्रालय स्थित मुख्यमंत्री के दफ्तर में दिन में मुश्किल से पांच घंटों के लिए आते थे और ज्यादातर मातोश्री से ही काम करते थे, जहां से उनके पिता और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने पार्टी को राज्य की सियासी ताकत बनाया था. बताया जाता है कि उनकी पत्नी रश्मि राजनीति में सक्रिय दिलचस्पी लेती हैं और ऐसे में समर्थकों और विरोधियों दोनों, में चर्चा है कि ‘ठाकरे किचन कैबिनेट’ राज्य को चला रही है.
अनुभवहीनता आई सामने
ठाकरे के सत्ता संभालने के बमुश्किल तीन महीने बाद मार्च में छाया कोविड-19 संकट पहली बार के मुख्यमंत्री की कुव्वत और काबिलियत की अग्निपरीक्षा साबित हो रहा है. शुरुआत में ही उनकी प्रतिष्ठा पर उसकी आंच पडऩे लगी. अपनी पार्टी के प्रतीक दहाड़ते बाघ की बजाए ठाकरे हफ्तों तक महामारी से हकबकाए हिरण की तरह दिखाई दिए.
अपनी खनक गंवाने के डर से उन्होंने शरद पवार का वह प्रस्ताव ठुकरा दिया जिसमें उन्होंने राकांपा के अपने विश्वासपात्र तथा जल संसाधन मंत्री जयंत पाटील की अगुआई में कोविड-19 संचालन समिति बनाने को कहा था. यह खराब सियासी कदम साबित हुआ, क्योंकि बाद में दिग्गज मराठा नेता ने खुद को दूर कर लिया, वह भी ऐसे वक्त जब उनका मार्गदर्शन कोविड की चुनौती से निपटने में ठाकरे के हाथ ही मजबूत करता. अफवाहें तैरने लगीं कि राकांपा के एक हिस्से का मोहभंग हो चुका है और वह गठबंधन तोड़कर सरकार बनाने के लिए भाजपा से हाथ मिलाने का इच्छुक है—पवार ने इसका पुरजोर खंडन किया.

सत्तारूढ़ महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) में दरारें तब और चौड़ी होती मालूम दीं जब शिवसेना के दूसरे गठबंधन साथी कांग्रेस से भी कुछ आवाजें उठनी शुरू हुईं. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र में हम सरकार का समर्थन कर रहे हैं लेकिन हम प्रमुख निर्णायक नहीं हैं.’’ विपक्ष के नेता फड़णवीस ने गठबंधन में तालमेल नहीं होने का फायदा उठाने के लिए फौरन राज्यव्यापी महाराष्ट्र बचाओ अभियान छेड़ दिया और आरोप लगाया कि स्थिति ठाकरे के नियंत्रण में नहीं है.

वाकई पहले महीने और संकट के आधे दिनों में ठाकरे लडख़ड़ाते नजर आए. अपने मंत्रिमंडल में मौजूद भरपूर अनुभव का फायदा उठाना तो दूर—उन्होंने 2 जून तक मंत्रिमंडल की बैठक तक नहीं बुलाई थी—इसकी बजाए वे सलाह के लिए मुख्य सचिव अजय मेहता की अगुआई में बड़े अफसरशाहों पर निर्भर मालूम दिए. मीडिया के साथ हालिया बातचीत में अपनी कार्यशैली के बचाव में उन्होंने सवाल किया, ‘‘इसमें नुक्सान क्या है? क्या मैंने कोई गलत फैसला किया? मैं बॉलीवुड का हीरो तो नहीं, जिसे हर जगह दिखाई देना जरूरी हो. मैं खामोशी से काम करना पसंद करता हूं.’’ फड़णवीस ने फौरन कहा, ‘‘राजनैतिक नेतृत्व को अफसरशाहों की बुद्धिमता को दिशा देनी चाहिए. उद्धव जी इस मोर्चे पर नाकाम रहे.’’

ठाकरे के हक में यह कहना होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कोविड की चुनौती का सामना करने के लिए अगली कतार की अपनी टीम के तौर पर बड़े अफसरशाहों और विशेषज्ञों के 11 उच्च अधिकार प्राप्त समूह बनाए. लेकिन जिस बात ने मुंबई को कोविड आपदा की कगार पर धकेल दिया, वह ठाकरे के भरोसेमंद अफसरशाहों के बीच छिड़ी लड़ाई थी. मुंबई को महामारी का मुकाबला कैसे करना चाहिए, इस बात को लेकर तब बीएमसी के कमिशनर और काबिल मगर जिद्दी अफसर प्रवीण परदेशी और मुख्य सचिव मेहता के बीच ठन गई. नतीजा यह हुआ कि अप्रैल में मुंबई में संक्रमण की दर 7 से बढ़कर 18 फीसद हो गई और मौतें 1 अप्रैल को 16 से छलांग लगाकर 15 मई को 1,068 पर पहुंच गईं.

जब कोविड-19 के मामले न केवल मुंबई बल्कि पूरे राज्य में भीषण तेजी से बढ़ रहे थे, ठाकरे मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी बचाने की खातिर विधान परिषद में चुने जाने को लेकर ज्यादा चिंतित मालूम देते थे. संविधान के मुताबिक, मंत्री का शपथ लेने के बाद छह महीने के भीतर विधायक चुना जाना जरूरी है, तभी वह पद पर बना रह सकता है. ठाकरे को 27 मई तक ऐसा करना था. विधान परिषद की नौ सीटें खाली थीं लेकिन चुनाव आयोग महामारी के बीच चुनाव कराने के मूड में नहीं था.
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी विधान परिषद की दो खाली सीटों में से एक पर ठाकरे को मनोनीत करने की महाराष्ट्र मंत्रिमंडल की सिफारिश ठुकरा चुके थे. नाउम्मीद ठाकरे ने 29 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया और उनसे इस मामले को देखने की गुजारिश की. अगले दिन कोश्यारी ने नौ खाली सीटों पर चुनाव कराने के अनुरोध के लिए चुनाव आयोग को पत्र लिखा. आखिरकार ठाकरे 21 मई को निर्विरोध चुने गए. कोई नहीं जानता कि मोदी और ठाकरे के बीच क्या बात हुई लेकिन तभी से मुख्यमंत्री बिजली की-सी हरकत में आ गए.
कोविड जैसी विशाल चुनौती
ठाकरे या राज्य प्रशासन से किसी तरह के चमत्कार की उम्मीद किसी को न थी, खासकर इसलिए कि महाराष्ट्र, विशेष रूप से इसकी राजधानी मुंबई, कोविड-19 के ऐसे टाइम बम पर बैठी है जिसकी घड़ी चालू हो चुकी थी और कभी भी विस्फोट हो सकता था. मुंबई की 300 से अधिक झुग्गी बस्तियों में 80 लाख लोग या पूरे शहर की 45 प्रतिशत आबादी रहती है. इसकी सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती धारावी के मात्र 2.1 वर्ग किलोमीटर के इलाके में 7,50,000 लोग रहते हैं. बहुत तंग घरों में (कुछ तो महज 8 फुट&10 फुट के आकार के हैं) में कई-कई लोग रहते हैं.
ऐसे में ‘सामाजिक दूरी’ का पालन लगभग असंभव है. महाराष्ट्र में अर्थव्यवस्था बहाली के लिए राज्य सरकार के टास्क फोर्स के सदस्य अर्थशास्त्री अजीत रानाडे कहते हैं, ‘‘महामारी से निपटने के लिए मुंबई की तुलना दिल्ली के साथ करना अनुचित है, क्योंकि मुंबई का क्षेत्रफल दिल्ली के क्षेत्रफल का दसवां हिस्सा मात्र है.’’ मुंबई महानगर क्षेत्र में 6,355 वर्ग किलोमीटर इलाके में 3 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं जबकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 54,984 वर्ग किलोमीटर इलाके में 4.6 करोड़ लोग रहते हैं. राणाडे कहते हैं, ‘‘इस लिहाज से मुंबई की तुलना न्यूयॉर्क से करना बेहतर है.’’ राज्य सरकार के सामने चुनौतियों के बारे में उन्होंने कहा कि अमेरिका जैसे देश में, जहां स्वास्थ्य सेवाएं बहुत उन्नत हैं, संक्रमण के मामले और मौतों की संख्या कहीं अधिक रही है.
राजनैतिक टिप्पणीकार सुधींद्र कुलकर्णी का भी कहना है कि नाकाफी सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे के लिए ठाकरे को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले उन्हें केवल छह महीने हुए हैं. उनके अनुसार, तीन दलों की गठबंधन सरकार को इस सबसे बड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है वह भी उसके गठन के तुरंत बाद. वे कहते हैं, ‘‘जिस राजनैतिक अनिश्चितता का सामना उन्होंने किया और स्वास्थ्य इंतजामों पर जिस तरह का तनाव है, जिसे पर्याप्त दुरुस्त रखना पिछली सरकारों की जिक्वमेदारी थी, उसे देखते हुए मैं ठाकरे को बेहतर अंक दूंगा.’’
कुछ बाहरी वजहें यकीनन सरकार के नियंत्रण से परे थीं और महाराष्ट्र में वायरस के प्रसार में उनकी भूमिका प्रमुख है. 22 फरवरी से 23 मार्च के बीच मुंबई के छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 1,50,000 अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के उतरने की ही बात ले लें. ठाकरे ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि उसने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की उचित जांच नहीं की और राज्य को तैयारी के लिए समय दिए बिना लॉकडाउन की घोषणा कर दी. वे कहते हैं, ‘‘अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जांच के तरीके में बड़ी खामी थी. बुखार होने पर हर कोई पैरासिटामोल ले लेता है. हवाई अड्डे पर केवल बुखार की जांच करना पर्याप्त नहीं था.’’ रानाडे इससे सहमत हैं, ‘‘हमें शुरुआत में हवाई अड्डों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था.’’
हालांकि, राज्य सरकार के कई फैसलों में खराब कार्यान्वयन देखा गया. उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार ने 21 मार्च को घोषणा की थी कि गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से तीन महीने का राशन दिया जाएगा. हालांकि, यह निर्णय 24 अप्रैल को जाकर लागू हुआ. सरकार मुंबई के कंटेनमेंट जोन में भी आवश्यक आपूर्ति प्रदान करने में नाकाम रही.
मातोश्री से चंद कदम की दूरी पर बांद्रा (पूर्वी) में रहने वाले लोगों का कहना है कि उन्हें दो महीने से ताजा सब्जियां नहीं मिली हैं. स्थानीय निवासी 46 वर्षीय प्रकाश मोरे कहते हैं, ‘‘हम ऑनलाइन दूध खरीदते हैं, लेकिन ताजा सब्जियां दूर का सपना हैं.’’ सरकार ने केंद्रीकृत सब्जी स्टॉल चलाने की व्यवस्था की जबकि उन्हें हर क्षेत्र में फैला होना चाहिए था.
अंतत: संभाली कमान
मुंबई में महामारी के बढ़ते प्रकोप को लेकर सरकार की आलोचना और अपने मुख्यमंत्री पद को लेकर पूरी तरह आश्वस्त होने के साथ, ठाकरे ने तेजी से काम शुरू किया. 8 मई को, उन्होंने 1985 बैच के आइएएस अफसर और बीएमसी आयुक्त परदेसी को हटाकर उनकी जगह 1987 बैच के जूनियर अधिकारी आइ.एस. चहल को जिम्मेदारी दी. चहल ने इस चुनौती से निपटने के लिए कुछ फौरी फैसले किए. उबर को भी साथ लिया गया और उसके प्लेटफॉर्म पर 456 एंबुलेंस उपलब्ध करवाए गए (देखें, मुंबई ने दिखाई राह). इसके बाद ठाकरे ने अपना ध्यान शहर और राज्य के बाकी हिस्सों में अस्पतालों में बेड की कमी को दूर करने पर लगाया.

12 करोड़ की आबादी के लिए राज्य सरकार और निगम के अस्पतालों में उपलब्ध केवल 69,000 बिस्तर (अप्रैल के अंत तक) थे, जिनमें 10,000 कोविड रोगियों के लिए आरक्षित थे. कोविड के मामलों की संख्या 1,454 मौतों के साथ 41,000 को पार कर गई थी और संक्रमण के इजाफे की रफ्तार के थमने के कोई संकेत नहीं दिखते थे. मीडिया में दिखाए एक वीडियो में एक प्रमुख सरकारी अस्पताल में कोविड वार्ड दिखाया गया, जहां न केवल क्षमता से अधिक रोगी रखे गए थे, बल्कि जहां मरीजों का इलाज हो रहा था, वहीं बगल में लाशें भी पड़ी थीं.

मई के मध्य में, ठाकरे ने मुंबई में निजी अस्पतालों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के साथ एक जरूरी वीडियो कॉन्फ्रेंस किया. कई प्रमुख निजी अस्पताल बंद थे क्योंकि महामारी के कारण उनके कर्मचारियों की संख्या बहुत कम हो गई थी. मीडिया में निजी अस्पतालों के कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए बहुत ज्यादा फीस वसूलने की ढेरों कहानियां चल रही थीं.
बैठक से कुछ घंटे पहले, दो शीर्ष नौकरशाहों—स्वास्थ्य सचिव डॉ. प्रदीप व्यास और मुफ्त चिकित्सा उपचार प्रदान करने वाली राज्य की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना (एमजेपीजेवाइ) के सीईओ डॉ. सुधाकर शिंदे—ने मुख्यमंत्री को एक अहम जानकारी दी. उन्होंने ऐसी सूची भेजी, जिसमें उन अस्पतालों की जानकारी थी जिनके पास भारी-भरकम नकद मुनाफा उपलब्ध था.

बैठक में, ठाकरे ने शुरू में मुख्य कार्यकारी अधिकारियों से अपील की कि वे अस्पतालों में कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए राज्य सरकार की दरों (निजी अस्पतालों द्वारा वसूली जा रही फीस का 10वां हिस्सा) को स्वीकार कर लें. जब अस्पतालों ने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, तो ठाकरे ने कुछ अस्पतालों के भारी-भरकम बैंक जमा को लेकर सवाल उठाए. इसके बाद सीईओ झुक गए.

सरकार ने 21 मई को निजी अस्पतालों में इलाज की दरों को कम करने के लिए एक अधिसूचना जारी की, जिस पर सभी अस्पतालों के सीईओ को सहमति जतानी पड़ी. सरकार ने पूरे राज्य के 37,000 अस्पतालों के 8,500 आइसीयू बेड सहित 9,00,000 से अधिक अस्पताल के बेड (निजी और सार्वजनिक) को अपने नियंत्रण में लिया.

इस बीच, ठाकरे ने तीन निर्णय लिए, 11 विशेषज्ञ डॉक्टरों की एक राज्य स्तरीय टास्क फोर्स का गठन, मौतों की ऑडिटिंग कराना और अस्पतालों को तैयार कराना. इसके परिणाम दिखने भी शुरू हुए. केईएम अस्पताल के पूर्व डीन डॉ. संजय ओक के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स ने उपचार और टेस्ट के लिए प्रोटोकॉल बनाए जिसमें विभिन्न प्रकार के रोगियों के इलाज के संबंध में दिशानिर्देश शामिल थे.
इसमें राज्य भर के डॉक्टरों को कोविड से जुड़े इलाज को लेकर उपयोगी सलाह दी गई. मौतों की ऑडिट ने उपचार में कमी को खोजने में मदद की, जिसमें पता चला कि लगभग 35 प्रतिशत मौतें मरीजों को गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराए जाने के कारण हुईं. रोगियों को उपचार के लिए समय रहते अस्पताल लेकर आने के लिए एक जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया, जिसने बड़ी मदद की. मध्य अप्रैल में महाराष्ट्र की मृत्यु दर 7.5 थी, वह 31 मई को घटकर 3.37 पर आ गई. मेहता कहते हैं, ‘‘बीमारी की गति कुछ थमी है. अगर हमने ये उपाय नहीं किए होते, तो मामलों की संख्या 5,50,000 तक पहुंच गई होती.’’
राज्य में कोविड रोगियों के इलाज के लिए अस्पताल में बिस्तरों की संख्या बढ़ाने के उपायों के भी नतीजे दिखने लगे हैं. महाराष्ट्र में अब 2,70,000 आइसोलेशन बेड हैं. इसने 1,600 स्थानों पर बिना लक्षणों और हल्के लक्षणों वाले रोगियों के लिए कोविड उपचार केंद्र (सीसीसी) बनाए गए हैं. राज्य में 277 जगहों पर कोविड अस्पताल भी हैं, जहां वेंटिलेटर और आइसीयू सुविधाएं उपलब्ध हैं. स्वास्थ्य सचिव डॉ. व्यास कहते हैं, ‘‘हमारे पास 24,345 ऑक्सीजन बेड हैं. ये 1,21,000 सक्रिय संक्रमण वाले रोगियों के लिए काफी हैं. 8,400 आइसीयू बिस्तर 8 4,000 सक्रिय संक्रमण के मामलों के लिए पर्याप्त हैं. 3,000 वेंटिलेटर भी हैं.’’ स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है कि राज्य में रोगियों के स्वस्थ होने की दर अप्रैल मध्य में 13 फीसद से अब 43 फीसद हो गई है.

महाराष्ट्र में कोविड-19 की जांच के लिए प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ाने में अच्छा काम हुआ है. मार्च में सिर्फ दो प्रयोगशालाएं थीं, जो 31 मई तक बढ़कर 77 हो चुकी हैं. ये प्रयोगशालाएं राज्य के 36 जिलों में 15 में बनाई गई हैं. 31 मई को अपने फेसबुक संबोधन में ठाकरे ने कहा कि प्रयोगशालाओं की संख्या जून के अंत तक 100 हो जाएगी. उत्साहजनक बात यह है कि 1 जून को राज्य में संक्रमण के 70,013 मामले थे जो अप्रैल के अंत में मुंबई और पुणे का दौरा करने वाली केंद्रीय टीम के अनुमान का आधा है. राज्य में मात्र सात दिनों में संक्रमण के मामले दोगुने हो रहे थे और इसके मद्देनजर केंद्रीय टीम का आकलन था कि मई के अंत तक महाराष्ट्र में 1,50,000 सक्रिय मामले हो सकते हैं. मुख्य सचिव मेहता कहते हैं, ‘‘मरीजों की संख्या, अनुमान की तुलना में बहुत कम है. इसका मतलब है कि मशीनरी काम कर रही है.’’

लड़ाई अभी लंबी
अभी केवल आधी जंग ही जीती गई है और स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है. 1 जून को, बीएमसी संचालित किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) अस्पताल के बाहर पचासेक साल का एक व्यन्न्ति फुटपाथ पर पांच दिनों से लावारिस पड़ा मिला. उसके बाएं हाथ में एक आइवी भी लगी थी लेकिन उसका कोई इलाज नहीं हो रहा था. इससे सरकार के इंतजामात और दावों पर सवालिया निशान लगे. उसी दिन, मुंबई के बाहरी इलाके मुंबई की एक 26 वर्षीया गर्भवती महिला आसमा मेहंदी के परिवार वाले उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस खोजते रहे लेकिन एंबुलेस नहीं मिली.
हारकर वे एक ऑटो-रिक्शा में अस्पताल के लिए चले लेकिन रास्ते में ही महिला की मृत्यु हो गई. इन मामलों पर बीएमसी के चहल ने दावा किया, ‘‘अस्पतालों ने हमें बताया कि वे सभी रोगियों को दाखिल करेंगे. कोई बिस्तर उपलब्ध नहीं होने की हालत में मरीज को बफर जोन में रखा जाएगा, लेकिन कोई इलाज से वंचित नहीं होगा.’’ संक्रमण के बढ़ते मामलों पर चहल कहते हैं, ‘‘हमें संख्या से डरना नहीं चाहिए. इलाज के अभाव में मरीज को सड़कों पर दम नहीं तोडऩे दिया जाना चाहिए.’’
मुंबई के अलावा, पुणे और मालेगांव जैसे शहर राज्य प्रशासन के लिए चिंता का प्रमुख क्षेत्र बन रहे हैं. पुणे राज्य के दूसरे सबसे बड़े हॉटस्पॉट के रूप में उभरा है और वहां कोविड रोगियों की संख्या 7,000 को छू गई है. लेकिन यहां भी स्वस्थ होने की दर 54.8 फीसद हो गई है, जबकि मृत्यु दर 15 अप्रैल के 10.03 फीसद से अब घटकर 4.8 फीसद हो गई है. पुणे नगर निगम (पीएमसी) के आयुन्न्त शेखर गायकवाड़ कहते हैं, ‘‘बेड या एंबुलेंस की कोई कमी नहीं है. पहले दिन से ही हमने निजी अस्पतालों के साथ करार करना शुरू कर दिया था और हल्के लक्षणों वाले रोगियों को स्थानांतरित करके आइसीयू बेड को खाली कर रहे हैं.’’ लेकिन ऐसे लंबे-चौड़े दावे अक्सर हकीकत से मेल नहीं खाते हैं.

उत्तर महाराष्ट्र के घनी आबादी वाले शहर मालेगांव में संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. नासिक जिले के कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट सूरज मंधारे कहते हैं, ‘‘मालेगांव में आबादी का घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 19,000 व्यक्ति है जो किसी औसत भारतीय शहर से चार गुना अधिक है.’’ मुंबई-नासिक राजमार्ग पर अपने गृहनगर लौटने के लिए भारी संख्या में पैदल चल पड़े मजदूरों ने भी शायद संक्रमण की संख्या में वृद्धि में योगदान किया. डिप्टी कलेक्टर नितिन मुंडावरे, जो मजदूर पुनर्वास के प्रभारी थे, कहते हैं कि जिले में आश्रयों की व्यवस्था की गई थी और प्रवासी श्रमिकों की यात्रा को बसों और ट्रेनों से सुविधाजनक बनाया गया था. वे कहते हैं, ‘‘हमने 29 आश्रय केंद्र शुरू किए और 70,000 फंसे हुए कामगारों को बसों और ट्रेनों में बैठाया.’’
हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री फड़णवीस का आरोप है कि विभिन्न सरकारी विभागों के बीच कोई तालमेल नहीं है और राज्य सरकार ने केंद्र से मिले 28,000 करोड़ रुपए के सहायता पैकेज का अच्छा उपयोग नहीं किया है. हालांकि परिवहन मंत्री अनिल परब इस आंकड़े को ‘काल्पनिक’ बताते हैं और कहते हैं कि केंद्र सरकार ने केवल 6,649 करोड़ रु. की मदद दी और इसका बेहतर उपयोग किया गया है. शिवसेना के लिए विशेष रूप से मुंबई चिंता का बड़ा कारण है. पार्टी विले पार्ले जोन के प्रमुख शशिकांत पाटकर की मृत्यु के बाद उसके कैडरों का मनोबल गिरा है. ठाकरे को अपनी पार्टी में फिर से जोश भरने पर ध्यान देने की जरूरत है.
आर्थिक चुनौतियां
कोविड-19 लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र और मुंबई को बड़ा आर्थिक झटका लगा. मुंबई के नरीमन पॉइंट, सेंट्रल मुंबई (वरली, परेल, लोअर परेल, प्रभादेवी और दादर), विकरोली, बांद्रा-कुर्ला कॉक्वप्लेक्स, अंधेरी, गोरेगांव और नवी मुंबई के कुछ हिस्सों के प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र लगभग बंद ही रहे. टाटा, आदित्य बिड़ला, महिंद्रा, गोदरेज, आरपीजी एंटरप्राइजेज, हिंदुजा और जेएसडब्ल्यू सहित देश के कुछ सबसे बड़े कॉर्पोरेट समूह मुंबई में स्थित हैं, जिनमें सभी ने लॉकडाउन के दौरान गैर-जरूरी सामान का उत्पादन बंद कर दिया. कंपनियों ने अपने प्रशासनिक तथा आइटी कार्य लोगों के लिए घर से काम का विकल्प देकर कराया.

महाराष्ट्र में डोलवी, तारापुर, वासिंद और कलमेश्वर में चार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट वाले जेएसडब्ल्यू स्टील के संयुक्त एमडी शेषगिरी राव कहते हैं, ‘‘कंपनियों का मुख्य उत्पादन कार्य शून्य हो गया था.’’ क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के.जोशी कहते हैं कि राहत की एकमात्र बात यह दिखती है कि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में महामारी का प्रभाव कम रहा है. इसलिए भले ही बड़े केंद्र प्रभावित हों, तकनीकी रूप से, ग्रामीण क्षेत्रों में इकाइयां खुल सकती हैं. हालांकि, परेशानी यह है कि उत्पादन क्षेत्र में कई इकाइयों केकाम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं. इनमें से कुछ इकाइयां रेड जोन में हैं, इसलिए उद्योग का कामकाज लगभग दो महीनों तक ठप ही रहा.
ठाकरे ने आर्थिक क्षेत्र की बहाली के लिए दो टास्क फोर्स बनाए—एक उप-मुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व में, जिसे लॉकडाउन को धीरे-धीरे करके हटाने का काम सौंपा गया है; दूसरी, वैज्ञानिक रघुनाथ माशेलकर, बैंकर दीपक पारेख और विजय केलकर तथा रानाडे जैसे अर्थशास्त्रियों की अगुआई वाली टीम, जो अर्थव्यवस्था पर महामारी के असर को कम करने के तरीकों पर काम कर रही है.

रानाडे राज्य की अर्थव्यवस्था को बहाल करने के लिए विकेंद्रीकृत और लचीले दृष्टिकोण की वकालत करते हैं. बड़े उत्पादन स्थलों पर सामाजिक दूरी, स्वच्छता, लोगों के शरीर के तापमान की जांच, उन्हें दस्ताने और मास्क प्रदान करना या श्रमिकों को आवास देने जैसे इंतजाम का काम कॉर्पोरेट पर छोड़ दिया जाना चाहिए. उनका कहना है, ‘‘उत्पादन क्षेत्र धीरे-धीरे खुलना चाहिए.’’ सेवा क्षेत्र को बहुत सावधानी के साथ और एक-एक करके खोलना होगा. मॉल, सिनेमा, स्पोट्र्स के बड़े आयोजनों (जैसे इंडियन प्रीमियर लीग) के लिए लॉकडाउन लागू रहे. होटल 20 फीसद कर्मचारियों के साथ शुरू हो सकते हैं. धीरे-धीरे शुरुआत की जरूरत है वरना जिस स्तर का आॢथक संकट खड़ा होगा, वह स्वास्थ्य सेवा के संकट को बहुत पीछे छोड़ देगा.’’
जानकारों का कहना है कि औद्योगिक इकाइयों में जान डालनेे के लिए राज्य और केंद्र सरकार को सभी लंबित बिलों का भुगतान करना शुरू करना चाहिए. सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों पर एमएसएमई क्षेत्र का 5 लाख करोड़ रुपए बकाया है. छोटे कारोबार को नकदी सहायता की जरूरत है क्योंकि जिन लोगों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा है, वे नए ऋण लेने की स्थिति में नहीं होंगे.
रिफंड सर्टिफिकेट देने के लिए सितंबर तक इंतजार करने की बजाए आयकर रिफंड को जल्दी दिया जाना चाहिए. जीएसटी रिफंड के मामले में भी यही किए जाने की जरूरत है. रानाडे कहते हैं, ‘‘इन्फ्रास्ट्रक्चर जल्दी शुरू हो तो अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्से तेजी से खुल सकेंगे. जो मांग अब तक दबी हुई थी, उसमें अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ ही तेजी आने की संभावना है.’’
जोशी को लगता है कि महाराष्ट्र को वायरस पर नियंत्रण के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों का प्रबंधन भी शुरू करना चाहिए. उनके मुताबिक, यह सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए और जागरूकता के जरिए किया जा सकता है. जाहिर है, इससे उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी, लेकिन यह आर्थिक गतिविधियों को पूरी तरह से बंद रखने से तो बेहतर है, ‘‘क्योंकि बंद रखने से तो यह कभी वापस नहीं खड़ा होने वाला.’’ पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण का कहना है कि राज्य और केंद्र सरकार को संशोधित योजनाओं के साथ फिर से बजट पेश करना चाहिए.
वे कहते हैं, ‘‘राज्य सरकार को अपने खर्चों को प्राथमिकता देने की जरूरत है. भले ही उद्योग चालू हो जाएं, लेकिन विलासिता की वस्तुओं की कोई मांग नहीं पैदा होने वाली.’’ उन्हें लगता है कि क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए सरकार को लोगों को नकद मदद पहुंचाने की जरूरत है. वे कहते हैं, ‘‘सरकार को करों में रियायत और उद्योग के लिए भूमि का किराया माफ करने जैसी लुभावनी पेशकश करनी चाहिए.’’
ठाकरे भली-भांति समझते हैं कि जितना जरूरी कोविड संक्रमण पर अंकुश लगाना है, उतना ही जरूरी है अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना. स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक की एक बात को उद्धृत करते हुए ठाकरे ने 31 मई को ‘पुन:आरंभ अभियान’ की घोषणा की. 3 जून से पहले चरण में, सुबह 5 बजे से शाम 7 बजे के बीच खुले सार्वजनिक जगहों पर साइकिल चलाने, जॉगिंग, दौडऩे जैसी शारीरिक गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति दी गई है. 5 जून से दूसरे चरण में, मॉल और बाजार परिसरों को छोड़कर सभी बाजारों को सुबह 9 से शाम 5 बजे के बीच खोलने की अनुमति दी गई है. 8 जून से तीसरे चरण में, सभी निजी कार्यालयों को 10 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ खोला जा सकता है.
हालांकि अभी स्कूल, कॉलेज, शैक्षिक प्रशिक्षण और कोचिंग संस्थान, मेट्रो, रेल, सिनेमा हॉल, थिएटर, जिम, स्विमिंग पूल और सभागार बंद रहेंगे. बेशक, ये अच्छे उपाय हैं लेकिन आने वाले महीनों में ठाकरे को लोगों के सहयोग के अलावा अपने कैबिनेट सहयोगियों और केंद्र की मदद लेने के लिए और भी अधिक मेहनत करनी होगी. वैसे, आम तौर पर शिवसेना की नीतियों के कट्टर आलोचक रहे कुलकर्णी इस आपदा में ठाकरे के प्रयासों के साथ खड़े दिखते हैं. वे कहते हैं, ‘‘सरकार बनाने के बाद ठाकरे समावेशी और कुशल हो गए हैं. वे जोशीले और बातचीत के लिए हमेशा तैयार दिखते हैं.’’ इससे यह आशा बंधती है कि राज्य में शायद जल्द ही फिर से सामान्य कामकाज शुरू हो सकेगा.
मुख्यमंत्री की मुख्य टीम
महाराष्ट्र के कोविड प्रबंधन थिंक-टैंक के प्रमुख सदस्य
अजय मेहता, मुख्य सचिव
1984 बैच के आइएएस अफसर की मुख्यमंत्री कार्यालय पर मजबूत पकड़ है. मेहता सितंबर 2019 में रिटायर हो गए थे लेकिन जून 2020 तक उनका कार्यकाल बढ़ाया गया. कोविड-19 के फैसलों के पीछे उन्हीं की भूमिका रही है, जैसे लॉकडाउन, स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्तगी, राज्य में डॉक्टरों के टास्क फोर्स का गठन, बीएमसी कमिशनर प्रवीण परदेशी का तबादला, सरकारी कर्मचारियों के वेतन में विलंब और शराब की होम डिलिवरी
राजेश टोपे, स्वास्थ्य मंत्री, महाराष्ट्र
राकांपा के इस नेता ने कोविड के शुरुआती दिनों में सीएसआर फंड के जरिए पीपीई की आपूर्ति का प्रबंध किया. उनके अधीन प्रदेश ने कोविड की टेस्टिंग लैब और सरकारी अस्पतालों में आइसीयू बेड की संख्या में बहुत इजाफा किया. मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके टोपे अपना दिन शुरू करने से पहले बॉक्वबे हॉस्पिटल में अपनी बीमार मां को देखने जाते हैं
एकनाथ शिंदे, पीडब्ल्यूडी मंत्री
ठाणे से इस शिवसेना नेता ने राज्य के तीसरे सबसे ज्यादा प्रभावित शहर के अस्पतालों में बिस्तरों की संक्चया बढ़वाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने निजी अस्पतालों का भी सहयोग लिया और वहां भी कोविड-19 के मरीजों के लिए बिस्तरों का इंतजाम कराया. शिंदे ने ठाणे में 150-बिस्तरों वाला एक पोर्टेबल न्न्लिनिक तैयार करने में मदद की
मनीषा म्हैस्कर, प्रमुख सचिव
मनीषा क्वहैस्कर को मुंबई के सरकारी और निगम अस्पतालों का काम देखने के लिए 8 अप्रैल को जब बीएमसी में नियुक्त किया गया तो इन अस्पतालों में कोविड के मरीजों के लिए केवल 1,900 बेड थे. 31 मई तक इन बेडों की संख्या बढ़कर 8,000 हो गई. 1992 बैच की आइएएस अधिकारी अपनी फेसबुक पोस्ट के माध्यम से लोगों को अस्पतालों में बेड की स्थिति पर ताजा जानकारी देती रहती हैं
आर.ए. राजीव, मुंबई मेट्रोपॉलिटन कमिशनर
1987 बैच के इस आइएएस अधिकारी ने मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) के मैदान में मात्र 16 दिन के भीतर देश का पहला 1,008 बिस्तरों वाला अस्थायी अस्पताल खड़ा कर दिया. यह अस्पताल 15 मई को बनकर तैयार हो गया था, और उसके आधे बिस्तरों पर ऑक्सीजन की सुविधा है. अब वे इसके नजदीक ही वेंटिलेटरों की सुविधा वाला एक अस्पताल तैयार करने में लगे हैं
इकबाल सिंह चहल, कमिशनर, बीएमसी
1987 बैच के आइएएस अधिकारी ने 8 मई को कार्यभार लेकर उबर के साथ एक अनुबंध करके 436 वाहनों को एंबुलेंस में तद्ब्रदील करा दिया, डायलिसिस की सुविधा को प्राथमिकता देने के लिए एक पोर्टल शुरू किया, ‘चेस द वायरस’ (वायरस का पीछा करो) कार्यक्रम की शुरुआत की जिसके तहत किसी कोविड के मरीज से संबंधित 15 लोगों को क्वारंटीन किया जाता है
अनिल परब, परिवहन मंत्री
उद्धव ठाकरे का दायां हाथ माने जाने वाले अनिल परब ने पांच लाख प्रवासी मजदूरों को रेलवे स्टेशनों तक पहुंचाने का प्रबंध किया, ताकि वे वहां पहुंचकर श्रमिक स्पेशल ट्रेन पकड़ सकें. उन्होंने राजस्थान के कोटा में फंसे 3,000 छात्रों को वापस लाने के लिए भी बसों का इंतजाम किया
डॉ. संजय ओक, प्रमुख, मेडिकल विशेषज्ञों की टास्क फोर्स
डॉ. ओक ने कोविड के मरीजों के इलाज के लिए एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) तैयार किया. उन्होंने गंभीर खतरे वाले मरीजों की पहचान करने के लिए पल्स ऑक्सीमीटर, जो ऑक्सीजन के स्तर की माप करता है, के इस्तेमाल पर जोर दिया जिसका काफी फायदा हुआ
शेखर गायकवाड़, पुणे के म्युनिसिपल कमिशनर
2002 बैच के इस आइएएस अधिकारी ने लॉकडाउन को प्रभावी ढंग से लागू कराया और कोविड-19 संक्रमण के ऌप्रसार को शहर के केवल 8 प्रतिशत भौगोलिक इलाके तक सीमित कर दिया. उन्होंने जिस तरह से विस्तृत कंटेनमेंट जोन का निर्माण किया, उससे मरीजों का पता लगाने में काफी मदद मिली
डॉ. सुधाकर शिंदे, सीईओ, महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना
डॉ. शिंदे ने महाराष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को स्वास्थ्य बीमा योजना के दायरे में लाने की योजना बनाई. 2007 बैच के आइआरएस अधिकारी ने कोविड के मरीजों के लिए निजी अस्पतालों में बेड की सुविधा दिलाने की योजना बनाने में मदद की
खूबी और खामी
ज्यादा बिस्तरों का इंतजाम और इलाज के खर्च की सीमा तय करना अच्छी खबर है लेकिन डॉक्टरों की कमी अभी भी चिंता का कारण
खूबी
आइसीयू बेड में बढ़ोतरी
मार्च में महाराष्ट्र सरकार के नियंत्रण में केवल 350 आइसीयू बेड थे. अब 53 निजी अस्पतालों में ही 8,000 आइसीयू बेड हैं
इलाज के खर्च की सीमा
निजी अस्पतालों में इलाज के लिए ज्यादा पैसा वसूले जाने की शिकायतों के बाद सरकार ने इलाज की दर तय कर दी—कोविड के सामान्य बेड के लिए 4,000 रु., ऑक्सीजन की सुविधा वाले बेड के लिए 7,000 रु. और वेंटिलेटर की सुविधा वाले बेड के लिए 9,000 रु.
सबके लिए बीमा
महाराष्ट्र 22 मई को देश का पहला राज्य बन गया जहां राज्य के प्रत्येक नागरिक को मुफ्त में स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा, चाहे उसकी आय कुछ भी हो. राज्य का स्थायी निवासी होने के प्रमाण पत्र के साथ कोई भी नागरिक 1,000 से ज्यादा निजी अस्पतालों में मुफ्त में इलाज करा सकता है
डाॅक्टरों का टास्क फोर्स
राज्य-स्तर पर 11 विशेषज्ञ डॉक्टरों के टास्क फोर्स ने इलाज के तरीके के मामले में एकरूपता दिलाई. मौतों की पड़ताल से इलाज में खामियों का पता लगाने में मदद मिली
लैब में इजाफा
महाराष्ट्र में 31 मई तक कोविड के 77 टेस्टिंग लैब तैयार हो गए थे जबकि मार्च में इनकी संख्या केवल दो थी
खामी
कंटेनमेंट जोन में गड़बडिय़ां
कंटेनमेंट जोन में लोगों को उनके घरों तक जरूरी सामान न पहुंचाए जाने से बाजारों में भीड़ होने लगी
टेस्ट के नतीजों में देरी
टेस्ट के नतीजे अब भी 48 घंटे से पहले नहीं मिल पा रहे हैं. कोविड का टेस्ट पॉजिटिव आए बिना किसी व्यक्ति को अस्पतालों में दाखिला नहीं होता
निजी क्लिनिक बंद
सरकार के प्रयासों के बावजूद निजी डॉक्टर सुरक्षा किटों के अभाव और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखे जाने का हवाला देकर अपना क्लिनिक खोलने से हिचक रहे हैं
स्वास्थ्यकर्मियों की कमी
ज्यादातर बड़े अस्पतालों में 25 फीसद डॉक्टर और नर्सें या तो बीमार हैं या क्वारंटीन में हैं जिससे स्वास्थ्यकर्मियों की कमी पड़ गई है. राज्य सरकार अतिरिक्त स्टाफ उपलब्ध कराने में नाकाम हो गई है
क्वारंटीन केंद्रों की खराब दशा
क्वारंटीन केंद्रों में रह रहे बहुत से लोगों ने साफ-सफाई में कमी और खाने के लिए पैसे लिए जाने की शिकायत की है
मुंबई ने दिखाई राह
ऑनलाइन डैशबोर्ड
हर आधे घंटे में अपडेट होने वाला यह डैशबोर्ड राज्य भर के 2,624 निजी और 6,000 सरकारी अस्पतालों में खाली बिस्तरों की संख्या बताता है
डायलिसिस के मरीजों को प्राथमिकता
कोविड के करीब 600 और 100 संदिग्ध मरीजों के लिए हर रोज डायलिसिस की सुविधा से मृत्यु दर में कमी आ सकती है. पंजीकरण के लिए एक अलग से पोर्टल बनाया गया है
एंबुलेंस बुकिंग
बीएमसी ने 456 एंबुलेंसों की बुकिंग के लिए उबर के साथ अनुबंध किया है. इनके ड्राइवर मोबाइल और पीपीई किटों से लैस होते हैं
वायरस का पीछा
झुग्गी बस्तियों और हॉटस्पॉट इलाकों में कोविड के हर मरीज से संबंधित 15 लोगों को सरकारी क्वारंटीन केंद्र में भेजा जाता है
सामुदायिक नजर
सामाजिक कार्यकर्ता कंटेनमेंट इलाकों में खाने की क्वालिटी और शौचालय की स्वच्छता पर नजर रखते हैं. बीएमसी के सभी 227 वार्डों में 7-8 लोगों का एक-एक वार रूम होगा
वेतन में वृद्धि
बीएमसी ने इंटर्नशिप कर रहे सभी डॉक्टरों का वेतन 11,000 रु. से बढ़ाकर प्रति माह 50,000 रु. और रेजिडेंट डॉक्टरों का वेतन 51,000 रु. से बढ़ाकर 61,000 रु. कर दिया है. विशेषज्ञ डॉक्टरों को प्रति माह 2 लाख रु. दिया जाएगा
अस्पताल प्रबंधन
सात सरकारी अस्पतालों में एक जूनियर आइएएस अधिकारी नियुक्त कर दिया गया है. वह प्रत्येक बेड के लिए एक यूनीक कोड तय कर देता है और डिस्चार्ज की नीति पर नजर रखता है
शव प्रबंधन
प्रत्येक अस्पताल में अलग से एक स्टाफ होता है ताकि कोविड के मरीज की मृत्यु के बाद उसके शव को आधे घंटे के भीतर पैक किया जा सके
—साथ में किरण डी तारे, एम जी अरुण और अदिति पै
फोटो मोंटाज: बंदीप सिंह
डिजिटल इमेजिंग: अमरजीत सिंह नागी
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