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देश का मिजाजः राहुल में नई चमक मोदी का जादू फीका

टीम मोदी के कुछ कर पाने की क्षमता से लोगों का मोहभंग राहुल गांधी की छवि मजबूत कर रहा है. प्रधानमंत्री मोदी के प्रबल प्रतिद्वंद्वी के रूप में कांग्रेस उपाध्यक्ष की लोकप्रियता बढ़ रही है. इंडिया टुडे  का पिछला सर्वेक्षण मोदी के लिए अगर चेतावनी था तो हालिया सर्वेक्षण के नतीजे कह रहे हैं कि बहुत देर हो जाए, इससे पहले उन्हें अपनी खोई हुई जमीन वापस पानी होगी.

अपडेटेड 23 फ़रवरी , 2016

नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की छवि की अदला-बदली जितनी स्पष्ट आज है, कभी नहीं थी. प्रचारक मोदी 60 साल के सुस्त कांग्रेसी राज को पलटने का वादा करके सुधारों का प्रतीक बने थे. उन्होंने अपनी भाषण कला, चमकदार नारों, 3डी पाइरो-तकनीक वगैरह से देश को चमत्कृत कर दिया था और देश की आकांक्षाओं को आकाश में पहुंचा दिया था. नतीजाः देश की जनता ने उन्हें निर्णायक बहुमत दिलाया-25 साल में पहली बार-जिससे बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को लोकसभा में मई 2014 के आम चुनावों में 335 सीटें हासिल हुईं.

अब तक हालांकि बतौर प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक सिर्फ बहलाया है. उन्होंने संरक्षणवादी जामे के भीतर आर्थिक निरंतरतावाद की एक ऐसी नीति अपनाई जिससे उनकी चाल घिसती गई और जमीन विपक्ष की ओर खिसक चुकी है. पिछले साल बिहार और दिल्ली में उनकी पार्टी की चुनावी हार के बाद उनकी अपराजेयता जाती रही और यह छवि भी धूमिल हो गई. अब धीरे-धीरे उनके बारे में भी यह धारणा पनप रही है कि हर आने वाला एक न एक दिन जाता ही है क्योंकि वे नेता के नेता ही रह गए, राजनेता कभी नहीं बन सके.
  हालिया इंडिया टुडे ग्रुप-कर्वी इनसाइट्स देश का मिजाज जनमत सर्वेक्षण के नतीजे टीम मोदी से इसी मोहभंग का अक्स दिखाते हैं. उनकी निजी लोकप्रियता अब भी काफी ज्यादा है लेकिन आज चुनाव हो गए, तो एनडीए को सिर्फ 286 सीटें आएंगी. प्रधानमंत्री के लिए बस इतनी सी राहत है कि पिछले अगस्त में हुए ऐसे ही सर्वेक्षण से स्थिति कुछ ज्यादा बिगड़ी नहीं है, हालांकि यह तथ्य गौर तलब है कि इसमें कोई बेहतरी नहीं हुई है और उनका बहुमत बस सीमारेखा पर ही है.

इसके उलट राहुल को 2014 में डूबता सितारा माना जा रहा था जो एक असंभव-सी चीज का बचाव करने में जुटे थे (यूपीए-2 के खराब प्रदर्शन का), जनता से जुडऩे का संघर्ष कर रहे थे और खानदानी किस्सों से आगे बढ़कर कोई व्यापक आख्यान नहीं रच पा रहे थे. मोदी को काम करने वाला शख्स माना गया था तो राहुल की छवि एक हकलाने और लटपटाने वाले स्वप्नजीवी की बन चुकी थी. नतीजा यह हुआ कि संसद में कांग्रेस 44 सीटों के साथ तकरीबन जमींदोज हो गई-यह देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी का आजादी के बाद अब तक का सबसे खराब आंकड़ा था.
  आज विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल का कायाकल्प हो चुका है. वे अपने खोल से बाहर निकल चुके हैं और जहां कहीं कुछ भी हो रहा है, वे वहां पाए जा रहे हैं. वे आपकी आंख में आंख डालकर लोकप्रिय नारे गढ़ रहे हैं जैसे “सूट-बूट की सरकार, जिसने मोदी सरकार को पीछे हटने पर मजबूर किया है. राहुल ने खुद को गरीबों और वंचितों के रक्षक की तरह पेश किया है और वे सहिष्णुता तथा उदारता की आवाज भी बने हैं. मोदी को उनके आलोचक अगर सिर्फ  भाषणबाज मान रहे हैं, तो उनके उलट राहुल निरंतर सक्रिय हैं, जहां मौका मिल रहा है वहां खट से पहुंच जा रहे हैं और सरोकारों का झंडा थाम ले रहे हैं. उन्होंने जैसे राज्यसभा के कांग्रेसी बहुमत का दोहन संसद में मोदी सरकार की हरकतों को रोकने में कामयाबी के साथ किया है, यह एक वजह है कि प्रधानमंत्री की चाल इतनी सुस्त क्यों पड़ गई है.

देश का मिजाज जनमत सर्वेक्षण दिखाता है कि राहुल का यह नया जोश और जज्बा उन्हें लाभ दे रहा है. आज चुनाव हो गए तो कांग्रेस की अगुआई वाला यूपीए 2015 की 59 सीटों से बढ़कर 110 पर पहुंच जाएगा. यह चलन लगातार ऊपर की ओर है क्योंकि अगस्त में किए गए जनमत सर्वेक्षण में उसे 81 सीटें मिल रही थीं. अहम यह भी है कि पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले राहुल की लोकप्रियता में 14 फीसदी का इजाफा हुआ है और वे मोदी का विकल्प बनकर उभरे हैं. अगस्त में वे 8 फीसदी पर थे लेकिन आज 22 फीसदी पर हैं.

मोदी अब भी हालांकि 40 फीसदी के साथ सबसे लोकप्रिय हैं और प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त माने जा रहे हैं, लेकिन राहुल के बढ़ते अंक दिखाते हैं कि बीजेपी के लिए अब चिंता करने का वक्त आ गया है. पिछले साल इस मामले में मोदी को चुनौती देने वाले अरविंद केजरीवाल फिलहाल तीसरे पायदान पर सरक चुके हैं. अहम आर्थिक मुद्दों पर मोदी सरकार की नाकामी भी राहुल को लाभ दे रही है. मतदाता बढ़ती कीमतों को सबसे बड़ी चिंता मान रहे हैं जो खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों को काबू में न कर पाने की एनडीए की मजबूरी को दर्शा रहा है.

 मोदी के चुनावी वादों पर जनता हताश हुई है. अच्छे दिनों के बारे में 53 फीसदी लोगों का ख्याल है कि अब भी स्थिति जस की तस है. विदेश से काला धन वापस लाने के बारे में 53 फीसदी लोग मानते हैं कि वे नाकाम रहे हैं. प्रधानमंत्री के इस दावे पर कि अब तक कोई बड़ा घोटाला नहीं हुआ है या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है, आम धारणा यह है कि उनकी सरकार ने भ्रष्टाचार को कम करने का कोई खास प्रयास नहीं किया. शायद मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले और ललित मोदी कांड से निबटने के सरकार के तरीके ने भी इस धारणा को बल देने का काम किया है.

 मोदी के लिए अच्छी बात यह है कि बीजेपी के भीतर उनका वर्चस्व अब तक कायम है क्योंकि 61 फीसदी लोगों का अब भी मानना है कि लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह या अरुण जेटली के मुकाबले वे बेहतर प्रधानमंत्री हो सकते हैं. इन नेताओं की रेटिंग दो अंकों में भी नहीं है. इसके अलावा 58 फीसदी लोग प्रधानमंत्री के बतौर पर उनके अपने प्रदर्शन को बेहतरीन या अच्छा मानते हैं जबकि 69 फीसदी लोग उन्हें मजबूत नेता मानते हैं.

इंडिया टुडे  का पिछला सर्वेक्षण मोदी के लिए अगर चेतावनी था तो हालिया सर्वेक्षण के नतीजे कह रहे हैं कि बहुत देर हो जाए, इससे पहले उन्हें अपनी खोई हुई जमीन वापस पानी होगी. उनके प्रमुख अभियान जैसे स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्टार्ट-अप इंडिया वगैरह सभी सराहनीय हैं लेकिन इनके फल मिलने में बहुत वक्त लगेगा.
 प्रधानमंत्री को अब कुछ कठोर आर्थिक फैसले लेने की जरूरत है. इसके लिए वे आगामी बजट का इस्तेमाल कर सकते हैं ताकि खेती समेत सभी अहम क्षेत्रों में कुछ दीर्घकालिक संरचनागत बदलाव लाए जा सकें. उत्पादन क्षेत्र में उन्हें घाटा उठा रहे सार्वजनिक उद्यमों के विनिवेश पर जोर देना होगा, वृद्धि तेज करने के लिए विदेशी निवेश पर लगे प्रतिबंधों को दूर करना होगा और ऊर्जा की कीमतों को विनियमित करना होगा. मोदी को जन धन योजना के जरिए गरीबों के लिए सुरक्षा कवच तैयार करना होगा.

















बीजेपी को कट्टर हिंदुत्ववादी तत्वों पर लगाम कसनी होगी और विकास के एजेंडे को पटरी पर उतारने से रोकना होगा. असम को छोड़ दें तो वैसे भी पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में बीजेपी कोई खास प्रदर्शन करने नहीं जा रही है. इसीलिए प्रधानमंत्री को राज्यों में टांग फंसाने की बजाए सुधारों की राह पर आगे बढऩा चाहिए.

जहां तक राहुल की बात है, तो देश अब उन्हें गंभीरता से लेने लगा है और मोदी का इकलौता विकल्प मानकर चल रहा है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने अपनी संकोची छवि को झाड़ते हुए जबरदस्त वापसी की है. विपक्ष के नेता की भूमिका में उन्होंने भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दे पर मोदी सरकार को करारा झटका दिया है. लेकिन इंडिया टुडे का सर्वेक्षण दिखाता है, संसद को बाधित करने की कवायद को लोग ठीक नहीं मानते हैं और इसे “न खेलूंगा, न खेलने दूंगा” वाली प्रवृत्ति मानते हैं.
मोदी की राह रोकना एक अच्छी रणनीति हो सकती है, लेकिन राहुल को अब ऐसी रणनीति पर काम करना होगा जो कांग्रेस को बीजेपी का असली विकल्प बनाकर उभार सके.

सर्वेक्षण का तरीका
इंडिया टुडे ग्रुप के देश का मिजाज सर्वेक्षण को कर्वी इनसाइट्स लिमिटेड ने अंजाम दिया है. 19 राज्यों (आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) के 97 संसदीय क्षेत्रों में 13,576 इंटरव्यू किए गए.

प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में चार दिशाओं में आठ शुरुआती केंद्र बनाए गए थे और फिर राइट हैंड रूल का इस्तेमाल करते हुए लोगों को प्रश्नावली थमाई गई. देश का मिजाज सर्वेक्षण के लिए फील्ड वर्क को 24 जनवरी से 5 फरवरी के बीच अंजाम दिया गया. सर्वेक्षण में आए आंकड़ों की कई स्तर पर पड़ताल की गई. सभी इंटरव्यू को फेस टू फेस अंजाम दिया गया है. सर्वेक्षण को कर्वी इनसाइट्स के रंजीत छिब और दीक्षित चनाना के दिशा-निर्देशों के बीच किया गया.

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