
साक्षी मलिक भारत के लिए कुश्ती में ओलंपिक मेडल लाने वाली पहली महिला पहलवान के रूप में खेल की बुलंदियों तक पहुंचीं, लेकिन केवल कामयाबियां साक्षी की पूरी कहानी को बयां नहीं करतीं.
इस महिला पहलवान की कहानी दो साल में दो आंसुओं के बीच की पटकथा है. 2022 के बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में साक्षी ने फाइनल में 4-0 से पिछड़ने के बाद वापसी की और गोल्ड मेडल अपने नाम किया.
सबसे ऊंचे पायदान (पहले नंबर पर) पर खड़ी साक्षी ने मेडल लेते समय झुकाकर सबका अभिवादन किया और अगले ही पल जब राष्ट्रगान बजा, भारत का झंडा उठना शुरू हुआ तो सावधान की मुद्रा में खड़ी साक्षी की आखों से आंसुओं ने मानो बांध तोड़ दिया. देश का इतना सम्मान होता देख वो खुशी के आंसू रोक नहीं पाईं. इस पल को मीडिया के कैमरों ने भी खूब कैद किया.

लेकिन आंसू केवल खुशी के मौके पर नहीं निकलते. दुख और निराशा का भी इसमें उतना ही हिस्सा है. शायद उससे भी ज्यादा. जिन बृजभूषण सिंह के खिलाफ साक्षी मलिक लगभग एक साल से लड़ाई लड़ते हुए, पहलवानों के खिलाफ यौन शोषण के आरोपों में न्याय की मांग कर रही हैं, उन्हीं के करीबी संजय सिंह WFI चुनावों में अध्यक्ष चुन लिए गए. इससे निराश होकर उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही कुश्ती से संन्यास का ऐलान कर दिया. भावुक साक्षी ने अपने जूते टेबल पर रखे और रोते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस से दूर चली गईं. इसे भी मीडिया के कैमरों ने खूब कैद किया.
भारत के लिए महिला कुश्ती की जमीन तैयार करने वाली एक खिलाड़ी के करियर का अंत बेहद ही नाटकीय ढंग से हो गया.
रोहतक टू रियो
साक्षी मलिक हरियाणा के रोहतक जिले से आती हैं. हरियाणा उन राज्यों में से है जो खेलों को सबसे ज्यादा प्राथमिकता देता है, लेकिन खेलों में महिलाओं को सबसे कम. सानिया मिर्जा और दीपा करमाकर की तरह उनके परिवार से कोई खेल पृष्ठभूमि का नहीं था. पिता दिल्ली परिवहन निगम में बस कंडक्टर थे और मां सुदेश मलिक क्लिनिक में सुपरवाइजर थीं.
रोहतक के छोटू राम स्टेडियम के अखाड़े में 12 साल की उम्र में उन्होंने ट्रेनिंग लेनी शुरू की. गांव के परिवेश में परिवार को लोगों ने यहां तक कहा कि "कुश्ती में बेटी के कान फूले हुए फूलगोभी जैसे हो जाएंगे और शादी के लिए कोई अच्छा पति नहीं मिलेगा." लेकिन जैसा कि साक्षी बताती हैं, "परिवार कभी दबाव में नहीं आया और हमेशा मेरा साथ दिया."
रात के तीन बजे रोहतक में जश्न
रियो ओलंपिक के 11 दिन बीत चुके थे, कोई पदक नहीं आया था. टेनिस, शूटिंग और बैडमिंटन के स्टार खिलाड़ी हारकर बाहर हो चुके थे.
लेकिन साक्षी, उनके परिवार, उनके गांव और पूरे देश के लिए 2016 की तारीख 17 अगस्त को भुला पाना मुश्किल है. रात के करीब 3 बज रहे थे. देश सो रहा था, लेकिन हरियाणा का रोहतक जाग रहा था. साक्षी का परिवार TV पर नजरें गड़ाए बैठा था. अचानक से आतिशबाजियां होने लगीं. माता-पिता खुशी से झूमने लगे. मिठाईयां बंटने लगीं. 5-0 से पिछड़ने के बावजूद साक्षी ने वापसी की और किर्गिस्तान की पहलवान को हराकर भारत की झोली में ब्रॉन्ज मेडल डाल दिया था. साक्षी ओलंपिक कुश्ती में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं.

वही साक्षी मलिक जो 2016 ओलंपिक में WFI की पहली पसंद भी नहीं थी. रियो ओलंपिक के लिए 3 महिला पहलवानों ने क्वालीफाई किया था. कहा जाता है कि इनमें फेडरेशन की पहली पसंद गीता फोगाट थीं.
साक्षी किस पृष्ठभूमि से आईं, इससे ज्यादा महत्व उन्होंने इस बात को दिया कि उन्हें कहां पहुंचना है. एक ओलंपिक मेडल, 3 कॉमनवेल्थ गेम्स मेडल, 4 एशियन चैंपियनशिप मेडल, 2 कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप मेडल अपने नाम करके उन्होंने कुश्ती में आने वाली लड़कियों के लिए मिसाल कायम की.
भारत का सबसे बड़े खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड और अर्जुन अवॉर्ड, दोनों साक्षी ने अपनी मेहनत से अर्जित किए. मजबूती का प्रतीक माने जाने वाले खेल में साक्षी ने पूरी ताकत दिखाई और जहां भावनाएं जाहिर करने की बात आई, वहां आंसुओं को रोकने की कोशिश नहीं की. कहा जा सकता है कि उन्होंने इस किवदंती को ध्वस्त किया है जिसमें कहा जाता है- रोने वाले लोग कमजोर होते हैं.
'सम्मान की कुश्ती'
व्यक्तिग रूप से मैं पहली बार साक्षी मलिक से दिल्ली के पेसिफिक मॉल में मिला. 17 जनवरी 2023 की शाम उनसे मुलाकात हुई. बातचीत में वो बिलकुल सामान्य थीं. कोई अंदेशा नहीं लगा कि अगले दिन से क्या होने जा रहा है. अगले दिन दोपहर 12 बजे दफ्तर में बैठा था, अचानक टीवी पर खबर फ्लैश हुई- साक्षी मलिक समेत देश के बड़े पहलवान जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए हैं. यह सुनकर भरोसा नहीं हुआ. संपादक के इजाजत मांगकर मैं भी जंतर-मंतर ये कवर करने निकल पडा. उन्होंने WFI अध्यक्ष के खिलाफ जो आरोप लगाए वो पैरों तले जमीन खिस्काने वाले थे. साक्षी प्रदर्शन स्थल पर मिलीं और कहा- "देखिए कल हम पेसिफिक में थे, आज सड़क पर हैं. अब सम्मान की कुश्ती शुरू हुई है."

साक्षी की इस खेल से विदाई जिन परिस्थितियों में हुई, वो कुश्ती के ऊपर दाग की तरह देखा जा सकता है. कुश्ती को सम्मान दिलाने वाली साक्षी अपने सम्मान के लिए अब एक नए अखाड़े में हैं. संघर्षों के साथ ही उनकी कुश्ती शुरू हुई थी और संघर्षों के साथ ही खत्म हुई.