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अरविंद केजरीवाल गए विपश्यना करने, कैसी होती है सेंटर के अंदर की जिंदगी?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 20 से 30 दिसंबर तक विपश्यना में हैं. विपश्यना की इन दिनों खूब चर्चा है क्योंकि एक तो केजरीवाल हर साल विपश्यना सेंटर जाते हैं और दूसरा वे इस साल तब गए हैं, जब ED ने शराब नीति मामले में उन्हें दूसरी बार समन भेजा है 

अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)
अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)
अपडेटेड 21 दिसंबर , 2023

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 20 से 30 दिसंबर तक विपश्यना में हैं. इस ध्यान विधि की इन दिनों खूब चर्चा है क्योंकि एक तो केजरीवाल हर साल विपश्यना सेंटर जाते हैं और दूसरा, वे इस साल तब गए हैं, जब ED ने शराब नीति मामले में उन्हें दूसरी बार समन भेजा है. 

दौड़ती भागती जिंदगी में हर कोई थोड़ी-सी शांति और सुकून के कुछ पल चाहता है. खासकर तब जब मन तनाव में हो. इसके लिए कोई छुट्टियों पर पहाड़ों में चला जाता है, कोई अपने गांव हो आता है, तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दुनियाभर की चिंताओं से मुक्त होने के लिए विपश्यना सेंटर चले जाते हैं. अब विपश्यना सेंटर जाने का फायदा होता है या नहीं, इसका दावा तो हम नहीं कर सकते, लेकिन आपको ये जरूर बता सकते हैं कि इसके अंदर की जिंदगी कैसी होती है. 

कैसी होती है विपश्यना सेंटर की जिंदगी?

विपश्यना सेंटर में कोर्स का मुख्य उद्देश्य होता है व्यक्ति को देश-दुनिया की चीजों से दूर रखकर ध्यान के लिए प्रोत्साहित करना. इसे आत्‍म निरीक्षण और आत्‍म शुद्धि की बेहतरीन पद्धति माना गया है. दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे से हो जाती है और दिन में कम से कम 10 घंटे ध्यान में बैठना होता है. ये 10 घंटे लगातार नहीं होते, बल्कि चरणों में बंटे होते हैं. बीच-बीच में भोजन और आराम का समय भी मिलता है. भोजन एकदम सात्विक और हल्का दिया जाता है, और पहली बार शिविर में आए लोगों के अलावा बाकियों को रात का भोजन नहीं दिया जाता.

मोबाईल फोन पहले ही जमा हो जाते हैं और आप किसी से भी 10 दिनों तक बात नहीं कर सकते. ऐसी स्थिति में कुछ दिनों की कठिनाई के बाद चुप रहने की आदत पड़ जाना स्वभाविक है. कुल मिलाकर कहें तो ध्यान भटकाने वाली कोई भी चीज आपके आस-पास नहीं होती.

छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक विपश्यना सेंटर में 10 दिन का कोर्स करके आईं हिंदी साहित्य की छात्रा बरखा कहती हैं, "शुरुआत के कुछ दिन मेरे लिए कठिन थे. पूरी दिनचर्चा में ध्यान पर फोकस होता है, जो आम दिनों से एकदम अलग है. करीब 6 दिनों के बाद मुझे थोड़ा सुकून मिलने लगा और कम बोलने की आदत पड़ने लगी. पहले मुझे बिना सोचे-समझे ज्यादा बोलने की आदत थी. यहां व्यक्ति को किसी दूसरे इंसान से आई कॉन्टेक्ट करने से भी मना किया जाता है."

बरखा आगे बताती हैं कि नए साधकों को समूह में बिठाया जाता है, जबकि पुराने साधक अकेले साधना करते हैं. किसी से भी फिजिकल कॉन्टेक्ट की मनाही रहती है. विपश्यना की पूरी प्रक्रिया में कहीं भी धन खर्च नहीं होता.

इसके अलावा यहां 10 दिनों के लिए पूरी तरह से अहिंसा का पालन करना पड़ता है. साधकों से उम्मीद की जाती है कि वे मक्खी-मच्छर-चीटी तक किसी भी जीव-जंतु को चोट न पहुंचाएं.

 

विपश्यना की दिनचर्चा


भारत में विपश्यना का प्रसार

विपश्यना का इतिहास भारत में करीब 2 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है. माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने विपश्यना को एक प्रक्रिया के रूप में विकसित किया था लेकिन समय के साथ वह विलुप्त हो गई. मौजूदा समय की बात करें तो 1952 में म्यांमार के रंगून में सयाजी ऊ बा खिन नाम के एक व्यक्ति ने अंतरराष्ट्रीय विपश्यना ध्यान केंद्र की स्थापना की. इसी केंद्र से सत्यनारायण गोयनका ने 31 साल की उम्र में ट्रेनिंग ली. गोयनका 1969 में विपश्यना लेकर भारत आ गए और यहां शिविर लगाने शुरू कर दिए. धीरे-धीरे ये फैलता गया और अब इसके देश में कई सेंटर खुल चुके हैं. 2012 में गोयनका को उनके काम के लिए पद्मभूषण से सम्मानित भी किया गया.

आपके बता दें कि भारत में विपश्यना सेंटर डोनेशन पर चलते हैं. इसके पुराने साधक अपनी इच्छा अनुसार दान कर सकते हैं, लेकिन किसी से कोई फीस नहीं ली जाती.

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