क्या जयंत चौधरी भी छोड़ेंगे 'इंडिया' गठबंधन! रालोद के बारे में ऐसी अटकलें क्यों लग रही हैं?
राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) अभी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है लेकिन बागपत के छपरौली में पार्टी संस्थापक अजित सिंह की प्रतिमा का लोकार्पण कार्यक्रम अचानक टालने के फैसले से पार्टी अध्यक्ष जयंत चौधरी को लेकर कयासबाजियों का दौर शुरू हो गया है

राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व होता है. कई बार किसी दल या राजनीतिक व्यक्ति का कोई एक फैसला कई अटकलों को जन्म देता है. राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी को लेकर कुछ अटकलें एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में तैरने लगी हैं.
रालोद ने पार्टी संस्थापक अजित सिंह की कर्मस्थली में बनकर तैयार खड़ी उनकी आदमकद प्रतिमा के लोकार्पण कार्यक्रम को अचानक स्थगित कर दिया है. इसके बाद से जयंत चौधरी और उनकी पार्टी को लेकर कई तरह की कयासबाजियां शुरू हो गई हैं.
दिवंगत अजित सिंह की जन्मतिथि 12 फरवरी को है. इस मौके पर पश्चिमी यूपी में बागपत जिले के छपरौली इलाके में स्थित विद्या मंदिर इंटर कालेज में अजित सिंह की 12 कुंतल वजन वाली आदमकद प्रतिमा का लोकार्पण किया जाना था. रालोद के नेता इस समारोह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान की शुरुआत करने के रूप में देख रहे थे. बड़ी संख्या में रालोद नेता पार्टी के संस्थापक अजित सिंह के जन्मदिन को यादगार बनाने में दिनरात एक किए हुए थे. लेकिन 5 फरवरी को अचानक कार्यक्रम को टालने के निर्णय से कार्यकर्ता न केवल निराश हैं बल्कि अजित सिंह के बेटे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के अगले कदम को लेकर कयासबाजी करने लगे हैं.
इससे पहले चार फरवरी को मथुरा में रालोद का युवा संसद कार्यक्रम भी खराब मौसम का कारण बताकर टाल दिया गया था. हालांकि रालोद प्रदेश मीडिया संयोजक सुनील रोहटा छपरौली में कार्यक्रम रद्द करने की वजह मूर्ति का ज्यादा वजनी होने को बताते हैं. रोहटा के मुताबिक चौधरी अजित सिंह जी की प्रतिमा का वजन अधिक होने के कारण मजबूत बेस स्ट्रक्चर की जरूरत है. खराब मौसम की वजह से मजबूत स्ट्रक्चर निर्माण में अधिक समय लग रहा है. इसके चलते कार्यक्रम को फिलहाल टाल दिया गया है.
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इससे पहले अपने जन्मदिन पर जयंत चौधरी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जिस तरह से तारीफों के पुल बांधे, उसने भी इंडिया गठबंधन की सहयोगी रालोद के बदले रुख की ओर संकेत कर दिया था. हुआ ये था कि उत्तर प्रदेश पुलिस में 60244 सिपाहियों की भर्ती निकली है. इसके लिए युवक निर्धारित उम्र सीमा में तीन साल छूट की मांग कर रहे थे. जयंत चौधरी की पार्टी रालोद भी युवाओं की मांग के समर्थन में थी.
जयंत चौधरी ने भी सोशल मीडिया पर अपनी इस मांग को उठाया था. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 26 दिसंबर को युवाओं की मांग मानते हुए सिपाही भर्ती के लिए निर्धारित उम्र सीमा में तीन साल की छूट देने का ऐलान कर दिया. इस फैसले के तुरंत बाद रालोद नेता ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा, “कल मेरा जन्मदिवस है और इससे अच्छा तोहफा नहीं मिल सकता! उत्तर प्रदेश में 60,244 सिपाही भर्ती में 3 साल की आयु सीमा बढ़ेगी ! योगी जी ने उचित निर्णय लिया है.”
जयंत चौधरी की पार्टी रालोद, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ विपक्षी इंडिया गठबंधन में शामिल है. योगी आदित्यनाथ की तारीफ करके उन्होंने इंडिया गठबंधन की रणनीति से इतर जाने की कयासबाजी को हवा दी. यूं तो वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में रालोद का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन हो चुका है लेकिन जयंत चौधरी की पार्टी अपनी राजनीतिक आस्थाएं लगातार बदलने के लिए भी जानी जाती है. रालोद का भगवा खेमे के साथ रिश्ता नरम-गरम जैसा रहा है. पार्टी की स्थापना वर्ष 1996 में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह ने जनता दल से अलग हुए गुट के रूप में की थी और वर्तमान में इसका नेतृत्व उनके बेटे जयंत चौधरी कर रहे हैं.
अजित सिंह ने वर्ष 1996 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीवार के रूप में बागपत लोकसभा सीट से चुनाव जीता लेकिन बाद में इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वर्ष 1997 के उपचुनाव में वे बागपत लोकसभा सीट से दोबारा चुने गए. वर्ष 1998 का लोकसभा चुनाव वे हार गए लेकिन इसके बाद वर्ष 1999, 2004 और 2009 में फिर से चुने गए. अजित सिंह वर्ष 2001 से 2003 तक, अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री थे. वर्ष 2011 में रालोद कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए में शामिल हुई और अजित सिंह दिसंबर 2011 से मई 2014 तक केंद्र सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहे.
हालांकि, 2014 के बाद से लोकसभा और विधानसभा चुनावों में रालोद का प्रभाव सीमित हो गया. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में रालोद ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में आठ सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा ने गठबंधन किया और रालोद अकेले चुनाव मैदान में उतरी. उसने 403 सदस्यीय सदन में 277 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल एक सीट जीती.
इसके बाद अजित सिंह ने सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से अपनी पुरानी कड़वाहट दूर की तो जयंत चौधरी भी अखिलेश यादव के नजदीक आए. इसके बाद सपा और रालोद के गठबंधन ने आकार लिया. दोनों पार्टियां पहली बार वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में एक साथ आईं. रालोद ने तब सपा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन के हिस्से के रूप में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. रालोद सभी तीन सीटें हार गई, जबकि सपा ने जिन 37 सीटों पर चुनाव लड़ा उनमें से पांच पर जीत हासिल की. बसपा जिन 38 सीटों पर चुनाव लड़ी उनमें से 10 सीटें जीतने में कामयाब रही.
वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों तक, बसपा सपा के साथ गठबंधन से बाहर हो गई. सपा ने रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. सपा ने विधानसभा चुनाव में अपने सबसे मजबूत प्रदर्शनों में से एक दर्ज किया और 2012 में सत्ता में आने के बाद से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, 347 सीटों में से 111 पर जीत हासिल की, रालोद ने 33 सीटों में से नौ पर जीत हासिल की. हालांकि, रालोद यूपी में राष्ट्रीय चुनावों में केवल एक मामूली खिलाड़ी रही है, जिसका वोट शेयर पिछले चार चुनावों में सबसे अधिक 2004 में 4.5 फीसद था.
रालोद ने 2014 के चुनाव में अपने सबसे खराब लोकसभा प्रदर्शनों में से एक देखा, जब पार्टी के आठ उम्मीदवारों के बीच केवल जयंत मथुरा में दूसरे स्थान पर रहे थे. उस साल अजित बागपत में तीसरे स्थान पर रहे और बाकी सभी पार्टी के उम्मीदवार चौथे स्थान पर रहे थे. वर्ष 2009 में, जब रालोद ने भाजपा से गठबंधन करके जिन सात लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से उसने पांच सीटें जीतीं, केवल एक उम्मीदवार दूसरे स्थान पर और एक तीसरे स्थान पर रहा था. यह लोकसभा चुनावों में रालोद का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. हाल के दिनों में कांग्रेस, सपा और रालोद के रिश्ते अच्छे नहीं दिखाई दे रहे हैं. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय सपा ने सीट-बंटवारे की प्रक्रिया को लेकर खुलकर नाखुशी जाहिर की थी, जब उसने कांग्रेस पर 'धोखा देने' का आरोप लगाया था. रालोद तब भी नाखुश थी जब पिछले साल राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उसे सिर्फ एक सीट दी थी.
सपा की सहयोगी के तौर पर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी रालोद के हिस्से में सात सीटें आई हैं. हालांकि इन सीटों की घोषणा तो नहीं हुई है लेकिन यह माना जा रहा है कि इनमें बागपत, कैराना, नगीना, बिजनौर, मेरठ या अमरोहा, हाथरस और मथुरा लोकसभा सीटें शामिल हैं. लेकिन सपा की ओर से कुछ शर्तें लगा देने से गठबंधन में अभी से दरार नजर आने लगी है. जानकारी के मुताबिक सपा ने कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर में प्रत्याशी अपना और निशान रालोद का रहने की शर्त रखी है. रालोद कैराना और बिजनौर पर तो राजी है, लेकिन मुजफ्फरनगर पर पेच फंस गया. रालोद ने ऐसी स्थिति में अपने हिस्से की सीटें बढ़ाने की बात रखी.
रालोद के मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर दावा न छोड़ने के वाजिब कारण भी हैं. यहां से पिछला चुनाव चौधरी अजित सिंह मात्र साढ़े छह हजार वोटों से भाजपा के संजीव बालियान से हारे थे. इस सीट के अंतर्गत आने वाली पांच विधानसभा सीटों में से दो बुढ़ाना और खतौली पर रालोद का कब्जा है. खतौली सीट रालोद ने उपचुनाव में जीती थी.
रालोद का अभी सपा के साथ तालमेल नहीं बन पा रहा है. दूसरी तरफ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने और अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में एक माहौल है. वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी महागठबंधन छोड़कर एनडीए में आ चुके हैं. इन सारी वजहों से रालोद को लेकर अटकलें लग रही हैं. भाजपा के वरिष्ठ नेता भी यह दावा करते हैं कि लोकसभा चुनाव में रालोद का सबसे अच्छा प्रदर्शन उनकी पार्टी के साथ ही दिखाई दिया है. हालांकि रालोद के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे इन सारी कयासबाजी को सिरे से खारिज करते हैं. दुबे कहते हैं, “रालोद के एनडीए में शामिल होने की अफवाह भाजपा की एक चाल है.” हालांकि इन अटकलों को लेकर जयंत चौधरी ने अबतक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है. अब सबकी नजरें उन पर ही टिकी हैं कि वे कब इस कुहासे को दूर करते हैं.