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अखि‍लेश की छिपी रणनीति है कांग्रेस की पसंद वाली सीटों पर सपा उम्मीदवार उतारना

सपा और कांग्रेस के बीच विवाद की वजह बनी हुई हैं लोकसभा की 6 से 8 सीटें. सपा कांग्रेस नेताओं के नाराजगी भरे बयानों को नजरअंदाज करके आगे भी कांग्रेस के दावे वाली कुछ लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है

अखिलेश यादव (फाइल फोटो)
अखिलेश यादव (फाइल फोटो)
अपडेटेड 5 फ़रवरी , 2024

लखीमपुरी खीरी के कद्दावर नेता और पूर्व सांसद रवि वर्मा 6 नवंबर 2023 को अपनी बेटी पूर्वी वर्मा के साथ सपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए थे. पूर्वी वर्मा खीरी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थीं. इस दौरान सपा और कांग्रेस के बीच खीरी लोकसभा सीट पर ‘इंडिया’ गठबंधन के उम्मीदवार का नाम फाइनल होने के बाद सपा ने इस सीट से उत्कर्ष वर्मा को टिकट थमा दिया.

वहीं कांग्रेस के पुराने नेता मानकर चल रहे थे कि सलमान खुर्शीद को फर्रुखाबाद लोकसभा सीट मिल ही जाएगी. यह उनकी पुश्तैनी सीट रही है. हलांकि पिछले दो लोकसभा चुनाव में वे फर्रुखाबाद पर अपनी जमानत भी नहीं बचा सके थे. फर्रुखाबाद से सपा ने कैंसर सर्जन डा. नवल किशोर शाक्य को उतारकर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर सलमान खुर्शीद को तगड़ा झटका दे दिया.

खीरी, फर्रुखाबाद, संभल, फैजाबाद, लखनऊ और धौरहरा वे लोकसभा सीटें हैं जिनपर कांग्रेस भी पूरी गंभीरता से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 30 जनवरी को लोकसभा चुनाव के लिए 16 उम्मीवारों की सूची जारी की है. इनमें वे सीटें भी शामिल हैं जिन पर कांग्रेस भी चुनाव लड़ने की तैयारी की रही थी. सपा ने जिन लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं उनमें संभल, मैनपुरी, फिरोजाबाद, एटा, फर्रुखाबाद, बांदा, बदायुं, धौरहरा, खीरी, उन्नाव, गोरखपुर, लखनऊ, अकबरपुर, फैजाबाद, आंबेडकरनगर और बस्ती शामिल हैं.

इस तरह उत्तर प्रदेश में लगभग आधा दर्जन के आसपास लोकसभा सीटें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच विवाद का कारण बनी हुई हैं, हालांकि दोनों दलों के बीच लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे पर बातचीत जारी है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि लोकसभा सीटों पर दोनों दलों के दावों-प्रतिदावों के बावजूद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेता उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के साझेदार के रूप में तालमेल बिठाने की हर संभव कोशि‍श में जुटे हैं.

सपा से लोकसभा सीटों पर गठबंधन के लिए बात कर रही पांच सदस्यीय कांग्रेस कमेटी ने इस बारे में जानकारी देने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से 3 फरवरी को मुलाकात की थी. पार्टी नेता स्वीकार रहे हैं कि सपा और कांग्रेस के बीच बैठकों में जो दावा किया जा रहा है और जो हो रहा है, उसके बीच तालमेल की कमी है. शुरुआती बातचीत में कांग्रेस ने यूपी की 25 लोकसभा सीटों पर अपना दावा ठोका था लेकिन बाद में यह संख्या कुछ कम भी हुई थी.

कांग्रेस लखीमपुर खीरी, कानपुर और कुछ अन्य सहित छह से आठ लोकसभा सीटों पर अपना दावा ठोक रही है. एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता बताते हैं “सपा हमें वे लोकसभा सीटें दे रही है जो हमने मांगी ही नहीं. जिनपर कांग्रेस चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी उन लोकसभा सीटों पर सपा ने बिना अपने गठबंधन सहयोगी को बताए उम्मीदवार घोषित कर दिए.” समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने हाल ही में घोषणा की थी कि उनकी पार्टी ने कांग्रेस के लिए 11 सीटें अलग रखी हैं. बाद में सपा ने 16 लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा की. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि लोकसभा सीटों को लेकर सपा की घोषणा एकतरफा थी.

राजनीतिक विश्लेषक सपा द्वारा कांग्रेस के दावे वाली लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने को दबाव बनाने की रणनीति मान रहे हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर राजेश्वर कुमार बताते हैं, “जिस तरह कांग्रेस सपा पर दबाव बनाने के लिए बसपा से गठबंधन करने का शिगूफा छोड़ रही है उसी के काउंटर के रूप में सपा ने उन लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए जिन्हें कांग्रेस अपना मान रही थी. अखिलेश यादव ने यह सोची-समझी रणनीति के तहत किया है. अगर कांग्रेस वाकई में बसपा से कोई गठबंधन की तैयारी कर रही है तो वह सपा का विरोध करेगी और यह प्रचारित करेगी कि सपा गठबंधन धर्म नहीं निभा रही. अगर कांग्रेस बसपा के साथ नहीं है तो वह सीटों के बंटवारे पर लचीला रुख अपनाएगी. इसके बाद सपा भी कुछ घोषित सीटों को कांग्रेस को सौंपकर गठबंधन को आगे बढ़ाएगी.”

कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के नेताओं को राहुल गांधी के नेतृत्व वाली भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है, जो 14 फरवरी को बिहार से उत्तर प्रदेश में प्रवेश करेगी. सपा नेताओं के रुख से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि वे राहुल गांधी की यात्रा से दूर ही रहेंगे. उधर सपा कांग्रेस नेताओं के नाराजगी भरे बयानों को नजरअंदाज करके आगे भी कांग्रेस के दावे वाली कुछ लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है. कुल मिलाकर लोकसभा  चुनाव से पहले दोनों पार्टियों की दोस्ती के बीच अभी और भी बाधाएं आनी हैं.

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