बिहार: सिर्फ 2.5 फीसद वोटों से होगा बड़ा उलटफेर, क्यों चिराग बने नीतीश की मजबूरी?
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में RJD को सबसे ज्यादा 75 सीटों पर जीत मिली. वहीं, 74 सीटों पर जीत हासिल कर BJP दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी

16 नवंबर 2020 को नीतीश कुमार ने छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनकी पार्टी JDU को 15.39 फीसद वोट शेयर के साथ सिर्फ 43 सीटों पर जीत मिली थी. इसके बावजूद BJP के समर्थन से वे सरकार बनाने में सफल रहे.
हालांकि, 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2020 में JDU का वोट शेयर करीब 1.44 फीसद घटा और उन्हें 28 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा.
ऐसे में पिछले चुनावों के डेटा के जरिए समझते हैं कि इस बार वोट शेयर बदलने से JDU को कितनी सीटों का फायदा या नुकसान हो सकता है? पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के जरिए चार संभावनाओं को आसान भाषा में समझिए...
1. पहली संभावना : 2.5 फीसद वोट के उलटफेर से JDU को 23 और RJD को 27 सीटों पर खतरा
2020 विधानसभा चुनाव में JDU को 23 सीटों पर 5 फीसद या उससे कम मार्जिन से जीत मिली थी. इनमें से ज्यादातर सीटों पर JDU की महागठबंधन के उम्मीदवारों से सीधी टक्कर थी.
अगर इस बार इन सीटों पर महागठबंधन 2.5 फीसद वोट शेयर अपने पाले में कर लेता है तो वह वोट JDU के हिस्से से कटेगा (यहां ये मानकर चला जा रहा है कि इन सीटों पर JDU के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ेंगे). ये सीटें महागठबंधन के पाले में आ सकती हैं. हालांकि, यह संभावना RJD-कांग्रेस और महागठबंधन के दूसरे दलों के परफॉर्मेंस पर भी निर्भर करेगी.
इसी तरह RJD को भी पिछली बार 27 सीटों पर 5 फीसद या उससे कम मार्जिन से जीत मिली थी. इनमें से 17 सीटों पर NDA उम्मीदवारों से RJD की सीधी टक्कर थी. इसके अलावा, 10 सीटों पर LJP और निर्दलीय उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे.
ऐसे में साफ है कि अगर RJD की जीती हुई इन सीटों पर NDA 2.5 फीसद वोट शेयर अपने पाले में कर लेता है तो वह वोट RJD के हिस्से से कटेगा. इस तरह ये सीटें NDA के हिस्से में आ सकती हैं.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई का कहना है कि इस बार बिहार चुनाव में 2.5 फीसद वोटों का उलटफेर होना कोई बड़ी बात नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार काफी ज्यादा संभावना है कि चिराग पासवान NDA के साथ चुनाव लड़ेंगे.
वहीं. प्रशांत किशोर भी इस बार के चुनाव में एक फैक्टर हैं. शाहाबाद, मगध, सीमांचल में प्रशांत किशोर के पक्ष में वोटिंग प्रतिशत अच्छा रहने का अनुमान है. ऐसे में इस बार 2.5 फीसद वोटों का उलटफेर होना कोई बड़ी बात नहीं है. इसका फायदा उसे ही मिलेगा जो आखिरी समय में इन वोटरों को अपने पाले में कर सकेंगे.
2. दूसरी संभावना: 25 निर्णायक सीटें जिनकी वजह से चिराग को साधना नीतीश की मजबूरी
2020 विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी LJP को वाम दलों और VIP से ज्यादा वोट हासिल हुआ था. पिछली बार LJP राज्य की 134 सीटों पर चुनाव लड़ी थी.
LJP ने BJP उम्मीदवारों वाले सीट पर एक या दो ही उम्मीदवार उतारे, जबकि ज्यादातर उम्मीदवार JDU के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे.
भले ही सिर्फ एक सीट पर चिराग की पार्टी को जीत मिली हो, लेकिन करीब 25 सीटों पर LJP ने JDU को हराने में अहम भूमिका निभाई है. इन सीटों पर चिराग की पार्टी LJP को जीत के अंतर से ज्यादा वोट मिले.
सिर्फ JDU ही नहीं LJP ने NDA की ही मुकेश सहनी की पार्टी विकाशील इंसान पार्टी (VIP) को भी चार सीटों पर अच्छी चोट पहुंचाई. चिराग BJP के खिलाफ ज्यादातर सीटों पर नहीं लड़े इसलिए उन्होंने 1 ही सीट पर उसका खेल खराब किया.
इसी तरह 12 सीटों पर पिछली बार चिराग ने RJD को हरवाया था. चिराग ने महागठबंधन का भी नुकसान किया लेकिन NDA जितने बड़े जख्म नहीं दिए. NDA में भी सबसे ज्यादा नुकसान JDU को हुआ था, इसलिए इस बार चिराग को साधना BJP ही नहीं बल्कि JDU की भी मजबूरी है.
3. तीसरी संभावना: 10 से 15 फीसद वोट लाकर प्रशांत किशोर बन सकते हैं किंग मेकर
एक इंटरव्यू में राजनीतिक विश्लेषक अशीष रंजन ने बताया कि बिहार की राजनीति हमेशा द्विध्रुवीय रही है. जहां 75 से 80 फीसद वोट NDA और महागठबंधन को मिलते रहे हैं. बाकी 20 फीसद वोट असंतुष्ट युवा, मध्यम वर्ग और निचली जातियों के हैं. ये अलग-अलग दलों या उम्मीदवारों के हिस्से में जाते रहे हैं.
अब यही 20 फीसद वोट जन सुराज के पक्ष में जा सकता है. प्रशांत किशोर की पार्टी ने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है, जो वोटों को बांट सकता है. खासकर JDU और RJD के वोट प्रशांत किशोर की तरफ खिसक सकते हैं. अगर जन सुराज को 10 से 15 फीसद वोट मिलते हैं, तो वह किंगमेकर बन सकती है.
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई का कहना है कि प्रशांत किशोर अगर 5 फीसद वोट भी हासिल कर लेते हैं, तो इससे चुनाव परिणाम में बड़ा हेरफेर हो सकता है.
4. चौथी संभावना: बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों का फ्लोटिंग वोट पर हो सकता है असर
राजनीतिक विश्लेषक और ‘24 अकबर रोड’ किताब के लेखक रशीद किदवई के मुताबिक, 2014 के बाद से अब तक ज्यादातर सीटों पर BJP बड़े मार्जिन से चुनाव जीतती रही है. ऐसे में कम मार्जिन से जीत हार वाली सीटें काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. फ्लोटिंग वोट हर जगह होता है. सिर्फ जगह के हिसाब से इसका स्वरूप बदल जाता है.
बिहार में भी एक तबके का वोट हमेशा जाति, धर्म, समुदाय आदि के आधार पर होता है. जबकि एक तबका ऐसा होता है जो फ्लोटिंग वोट होता है.
ये आखिरी वक्त में तय करते हैं किसे वोट देना है. ये कम मार्जिन वाले सीट पर उलट-फेर करने में अहम भूमिका निभाते हैं. अब देखने वाली बात यह है कि इस वोट को कौन सी पार्टी अपने पाले में करती है. इस बार प्रशांत किशोर की नजर भी इस वोट बैंक पर है. जिस तरह वह बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठा रहे हैं. अगर इससे एक से दो फीसद वोट में भी उलटफेर हुआ तो चुनाव परिणाम हैरान करने वाला हो सकता है.
ग्राफिक्स: नीलिमा सचान
बिहार चुनाव पर इंडिया टुडे हिंदी की ये डेटा स्टोरी भी पढ़िए-
बिहार: हर आदमी पर 24 हजार रु. से ज्यादा का कर्ज, अब हजारों करोड़ की चुनावी स्कीमों का क्या होगा असर?
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के मुताबिक, मार्च 2024 में बिहार पर कुल कर्ज 3.19 लाख करोड़ रुपए था, जो अब और बढ़ गया होगा. ऐसे में चुनाव से पहले फ्रीबीज के ऐलान से यहां की अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा? यहां क्लिक कर पूरी स्टोरी पढ़िए.
बिहार का 'शोक' कहलाने वाली कोसी को नीतीश की लाइफलाइन क्यों माना जाता है?
कोसी नदी क्षेत्र के 12 विधानसभा सीटों पर अति पिछड़ा वर्ग यानी EBC की आबादी अच्छी खासी है. इनमें से 11 विधानसभा सीटों पर 2020 में नीतीश कुमार की JDU और BJP को जीत हासिल हुई थी. यहां क्लिक कर पूरी स्टोरी पढ़िए.
बिहार: महागठबंधन ने EBC से किए 10 वादे, क्या नीतीश के वोटबैंक में लगेगी सेंध?
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के वादों को गेमचेंजर माना जा रहा है. अति पिछड़ा वर्ग (EBC) बिहार का एक प्रमुख सामाजिक समूह है, जिसे नीतीश कुमार की JDU का मुख्य वोटबैंक माना जाता है. इस बार चुनाव से पहले विपक्ष नीतीश कुमार के इसी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है. कांग्रेस EBC को अपना मतदाता आधार बनाकर बिहार के चुनावी समीकरणों को बदलना चाहती है. पूरी स्टोरी यहां क्लिक कर पढ़िए