मिलिंद देवड़ा के जाने से कांग्रेस को कितना राजनीतिक तो कितना आर्थिक नुकसान?
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के एक बड़े नेता मिलिंद देवड़ा पार्टी छोड़कर एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना में शामिल हो गए हैं

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के एक बड़े नेता मिलिंद देवड़ा पार्टी छोड़कर एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना में शामिल हो गए हैं. हालांकि, उनके पार्टी छोड़कर जाने के कयास लंबे समय से लग रहे थे, लेकिन 14 जनवरी को यह आधिकारिक हो गया.
इस्तीफे के बाद इंडिया टुडे के सहयोगी चैनल आज तक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपनी विचारधारा और नीतियों से दूर जा चुकी है इसलिए पार्टी छोड़ने का फैसला लिया. हालांकि, जानकारों का मानना है कि पार्टी छोड़ने के पीछे की असली वजह मुंबई दक्षिण की लोकसभा सीट है.
यहां से उन्हें इस बार कांग्रेस का टिकट न मिल पाने की बात कही जा रही थी, जबकि यह देवड़ा की पारिवारिक सीट मानी जाती है. लेकिन 'टीम राहुल' का मेंबर माने जाने वाले इस नेता ने अब कांग्रेस छोड़ दी है तो ऐसे में यह पार्टी के लिए छोटा या बड़ा झटका तो है ही. इससे देवड़ा को क्या मिल सकता है और कांग्रेस को कितना नुकसान हो सकता है, ये समझने के लिए हमने महाराष्ट्र कवर करने वाले इंडिया टुडे के ही रिपोर्टर ऋत्विक भालेकर से बात की. उन्होंने मिलिंद देवड़ा के कांग्रेस छोड़ने के पीछे दो कारण होने की ओर इशारा किया-
1. कांग्रेस में कम होता प्रभाव: मिलिंद देवड़ा की राजनैतिक विरासत काफी बड़ी रही है. वे मुरली देवड़ा के बेटे हैं. ऋत्विक बताते हैं कि फिल्मों में दिखने वाले मुंबई के मरीन ड्राइव और ओबेरॉय होटल के चौक का नाम ही 'मुरली देवड़ा चौक' है. उनके सभी नेताओं से अच्छे संबंध थे. मिलिंद भी मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे, लेकिन जब से 2014 से कांग्रेस ढलान पर जाने लगी तो वे सत्ता से दूर हो गए. तब से उनके पास कोई पद नहीं है. वे मुंबई कांग्रेस के प्रमुख बने, लेकिन फिर अचानक हटना पड़ा. उनके बाद संजय निरुपम और फिर भाई जगताप को ये पद मिला. अब वर्षा गायकवाड़ मुंबई कांग्रेस चीफ हैं.
ऋत्विक कहते हैं, "भाई जगताप जब तक थे, तब तक उन्हें मिलिंद देवड़ा का आदमी माना जाता था. मिलिंद को लगता था कि मुंबई कांग्रेस में अपनी पकड़ है, लेकिन जब वर्षा गायकवाड़ को अध्यक्ष बनाया गया तो उन्हें लगा कि यहां से भी उनकी पकड़ अब ढीली हो रही है और केंद्रीय नेतृत्व उन्हें दरकिनार कर रहा है."
2. लोकसभा सीट पर नजर: वे पहली बार 2004 में 50.3% वोट शेयर के साथ चुनाव जीतकर लोकसभा सांसद बने थे. 2009 में, उन्होंने 42.5% वोटों के साथ मुंबई दक्षिण सीट दोबारा जीती. लेकिन इसके बाद से वो इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाए. 2014 में मोदी लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और 2019 के चुनावों में भी वही कहानी रही.
लेकिन अब मिलिंद चाहते हैं कि चूंकि वे इस सीट से 10 साल पहले चुनकर आए हैं, तो फिर से उन्हें मुंबई साउथ से ही टिकट मिले. लेकिन कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच गठबंधन में ये सीट कांग्रेस के खाते में आती नहीं दिख रही थी. शिवसेना (उद्धव गुट) के अरविंद सावंत यहां से मौजूदा सांसद हैं और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. उन्होंने पिछले चुनाव में मिलिंद को ही बड़े अंतर से हराया था, इसलिए उनके लिए यह सीट छोड़ना मुश्किल होगा.
अब शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) में जाने के बाद उन्हें उम्मीद है कि या तो इस सीट से उन्हें चुनाव लड़ाया जाएगा और नहीं तो राज्यसभा भेजा जाएगा. चूंकि शिंदे गुट की शिवसेना को ही असली शिवसेना का दर्जा मिला है तो संभव है कि राज्यसभा चुनावों में वे बाकी विधायकों के वोटों का भी दावा करेंगे. इस तरह से मिलिंद के पास संसद जाने के दो रास्ते हैं. जानकारों की मानें तो मुकेश अंबानी भी चाहते हैं कि इस बार मिलिंद किसी तरह सांसद बनें.
कांग्रेस को क्या नुकसान हो सकता है?
आर्थिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं: धीरूभाई अंबानी जब शुरुआत में मुंबई आए थे तो उन्हें मुरली देवड़ा ने ही आसरा दिया था. ऋत्विक कहते हैं कि देवड़ा परिवार के धीरूभाई पर बहुत उपकार हैं, इसलिए अंबानी उन्हें काफी मानते हैं. दोनों काफी करीबी परिवार हैं. इससे पहले भी चुनावों में उन्हें अंबानी का समर्थन रहा है. इसके अलावा मिलिंद के पिता मुरली देवड़ा की मुंबई के हीरा व्यापारियों पर अच्छी खासी पकड़ थी.
इन सब का निचोड़ ये है कि मिलिंद की उद्योगपतियों के बीच अच्छी पकड़ है और वे कांग्रेस के लिए फंड जुटाने में काफी मददगार थे. दिसंबर 2023 में, उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) का संयुक्त कोषाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था. अब कांग्रेस के लिए मुंबई में फंड की समस्या खड़ी हो सकती है और मुंबई कांग्रेस की प्रमुख वर्षा गायकवाड़ के लिए यही सबसे बड़ी चुनौती होगी.
और लोगों के पार्टी छोड़ने की संभावना: देवड़ा मास लीडर नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस के भीतर, खासकर दक्षिण मुंबई में उनका काफी दबदबा है. इस क्षेत्र के विधायकों, नेताओं और उद्योगपतियों की देवड़ा के प्रति निष्ठा रही है. उनके बाद और भी लोग पार्टी छोड़ने के लिए प्रेरित हो सकते हैं, जिससे कांग्रेस को काफी नुकसान हो सकता है. माना जा रहा है कि मुंबई नगर निगम के कम से कम 10 पूर्व नेता और दक्षिण मुंबई के कई नेता सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल हो सकते हैं.
मारवाड़ी-गुजराती चेहरा: व्यापारिक घरानों के नजदीकी और महानगरीय नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के बावजूद, देवड़ा 2014 में मोदी लहर के दौरान अपनी सीट नहीं बचा सके थे, लेकिन बावजूद इसके वे कांग्रेस के लिए मजबूत कड़ी थे. मारवाड़ी और गुजराती दोनों समुदायों में उनकी पकड़ है. मुंबई जैसे महानगरीय शहर में बड़े पैमाने पर उनकी बातें मानी जाती हैं. मुंबई दक्षिण सीट पर मराठी और मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है. पिछले दो चुनावों में उन्होंने शिवसेना को वोट दिया था. हो सकता है कि इसी के चलते बीजेपी के बजाय उन्होंने शिवसेना (शिंदे गुट) में शामिल होने का फैसला किया.