‘‘वे झूठे हैं जो कहते हैं कि उन जैसा नहीं बनना चाहते’’
नाम, शोहरत, दौलत जैसी जिन बातों को हम सफल करियर का स्वरूप मानते हैं, सब कुछ वे बहुत पहले हासिल कर चुके हैं. अब, वे अपने जन्म को अर्थपूर्ण बना रहे है.

अमिताभ बच्चन@80
जूही चतुर्वेदी
बच्चन जी साधु हैं...एक संत. वे उन पात्रों तक की यात्रा करते हैं और उन अंशों को वैसे ही जीते हैं, जैसे हम अपने घरों में रहते हैं ... फिर भी, वे उन जगहों पर टिके नहीं रहते. फिल्म-दर-फिल्म, चरित्र-दर-चरित्र, वे मुक्ति की तलाश में लगातार उस...तीव्र (शूबाइट), विपुल (पिंक), चमकदार (पीकू) और उल्लासपूर्ण (गुलाबो सिताबो) सत्य की तलाश में लगे रहते हैं जो उनकी पिछली पहचान को खत्म कर उन्हें पहले से ज्यादा मुक्त करता रहता है.
वे ऐसे व्यक्ति जैसे लगते हैं जिसने अपना सब कुछ त्यागकर केवल अपनी कला बचा ली हो. 'भाश्कोर (भाष्कर) बनर्जी’ कोई ऐसी परियोजना नहीं है जिसे उन्होंने किसी प्रेरणा के कारण या काम पाने के लिए स्वीकार किया हो; सिनेमा को परिभाषित करने वाली शानदार जीवन-यात्रा के बाद उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं थी.
वे जो कर रहे हैं वह शायद खुद को और जिस दुनिया का वे हिस्सा हैं उसे बिल्कुल नए तरीके से समझ पाने के लिए कर रहे हैं... और इतनी गहनता से कर रहे हैं कि वे अब तक के बच्चन को हमेशा के लिए पीछे छोड़ सकते हैं.
चुन्नन मिर्जा (गुलाबो सिताबो) की भूमिका निभाते हुए, वे शायद अपने भीतर के उस बिगडै़ल को बाहर निकाल रहे होते हैं जो हम सब में होता है. उनका तरीका, उनका अपनी लाइनों का पूर्वाभ्यास करना, उनका अनुशासन... वगैरह के बारे में हम सभी जानते हैं. हम जो नहीं समझ पाते, वह यह है कि हर बार जब वे ऐसा करते हैं, तो हम सभी के लिए एक सबक छोड़ते हैं. वे सब झूठ बोल रहे होते हैं जो कहते हैं कि वे उनके जैसा नहीं बनना चाहते.
बच्चन के ब्रह्मांड में कोई दिखावा नहीं है, और ज्यादा हासिल कर लेने की कोई जल्दी नहीं है. इसके बजाय यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदर्भ या रेडी रेकनर जैसा है जिससे जाना जा सकता है कि कलाकार कैसे बनना है. नाम, शोहरत, दौलत जैसी जिन बातों को हम सफल करियर का स्वरूप मानते हैं, सब कुछ वे बहुत पहले हासिल कर चुके हैं. अब, वे अपने जन्म को अर्थपूर्ण बना रहे है.
(जूही चतुर्वेदी पीकू और गुलाबो सिताबो की लेखिका हैं.)