‘‘मानो कोई अनुशासन की संस्था हो’’
खुदा गवाह है! वक्त की पाबंदी, पेशेवाराना रवैया, अनुशासन, सभी की परिभाषा अमिताभ से निकलती है.

अमिताभ बच्चन@80
शत्रुघ्न सिन्हा
वक्त तड़के चार बजे का हो चला था, मगर कुछ लोग बाकी थे, जिनमें पार्टी में डांस करने की ऊर्जा बची थी. अमिताभ बच्चन और मैं उन लोगों में थे, जिनके पांव अभी हिल रहे थे. मुंबई के एक होटल में उनके भाई की शादी की पार्टी थी. अचानक मैंने पाया कि अमिताभ गायब हैं.
मुझे दोपहर में मनोज कुमार जी का कॉल आया: ''कैसा दोस्त है यार तुम्हारा.’’ उनकी आवाज में तारीफ और अचरज दोनों घुली-मिली थी. पता चला, अमिताभ पनवेल में शूटिंग के लोकेशन पर सुबह 7 बजे पहुंच चुके थे, जो गाड़ी से 90 मिनट के फासले से कम न था.
फिल्म के निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार ने सोचा था कि वे सेट पर किसी और से पहले पहुंचेंगे. लेकिन उन्होंने पाया कि तरोताजा, एकदम तैयार अमिताभ उनका इंतजार कर रहे थे, जबकि शिफ्ट शुरू होने में समय बाकी था. कोई नहीं जानता कि कहां अमिताभ नहाए, कब कपड़े बदले और कैसे निर्देशक से पहले ही पहुंच गए.
मुझे काला पत्थर के एक शॉट के बारे में अच्छी तरह से याद है. अमिताभ और मुझे अपने कंधों पर फावड़ा लेकर एक-दूसरे की ओर आंखों में गुस्सा लिए आना था. यह उगते सूरज के साथ फिल्माना था.
मेरे जैसे आदमी के लिए, यश चोपड़ा को कहना पड़ा कि शॉट के लिए सुबह जल्दी उठ जाना और मैंने हां कहा था. लेकिन अमिताभ तो कैमरामैन के पहुंचने के पहले ही मौके पर मौजूद थे: ''चलिए मैं तैयार हूं.’’
खुदा गवाह है! वक्त की पाबंदी, पेशेवाराना रवैया, अनुशासन, सभी की परिभाषा अमिताभ से निकलती है. वे हमेशा परफेक्शन की तलाश में रहते हैं, मानो अपने भीतर अनुशासन को जब्त किए कोई सुपरह्यूमन हो.
इसी से पता चलता है कि वे जो आज हैं, वह क्यों हैं. किसी नए ऐक्टर या जीवन में कुछ बड़ा करने की ख्वाहिश रखने वाले हर किसी को, अमिताभ की कहानी में कुछ सीखने के लिए है. अगर अमिताभ आज अमिताभ बच्चन हैं, तो इसलिए कि वे अपने किए सभी कामों का संपूर्ण योग हैं.
मेरा साफ-साफ मानना है कि सदाबहार युवा अमिताभ एक संस्था हैं. मैंने इसके पहले सिर्फ सत्यजित राय और दिलीप कुमार को संस्था कहा है.
अमिताभ एक प्रेरणा भी हैं, क्योंकि उन्होंने हर वह समस्या झेली है, जो किसी सामान्य आदमी की जिंदगी में आती हैं—मेडिकल इमरजेंसी, वित्तीय संकट, पेशेवर चुनौतियां और मुश्किल जज्बाती मौके. कुली फिल्म के हादसे के बाद ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्हें देखना बड़ा तकलीफदेह था. उससे उबर कर जिंदगी में पूरे दमखम से लौटने के लिए साहस और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है.
अमिताभ के साथ मेरी कुछ बहुत सुंदर यादें हैं. मैं उनसे पहली दफा महमूद भाई के घर पर मिला. एक लंबा, प्यारा-सा इनसान, मुझे वह फौरन भा गया. महमूद भाई के छोटे भाई अनवर और अमिताभ अक्सर मेरे बांद्रा के फ्लैट पर आया करते थे. जल्दी ही मैं और अमिताभ अच्छे दोस्त बन गए, साथ-साथ क्लब और डिस्को में डांस करने जाने लगे, और मैं हमेशा उनका डांस देख दंग रह जाता था.
हमारी दोस्ती कुछ दूसरी वजहों से भी बढ़ती गई. हम दोनों हिंदी पट्टी के थे—मैं बिहार का और वे उत्तर प्रदेश के—और दोनों को ही बेसहारा माना जाता था. दोनों अपनी मेहनत के बल पर कायम थे और उसी चित्रांश समुदाय से. हम दोनों एक-दूसरे के सेंस ऑफ ह्यूमर के कायल थे.
कुछ अजीब-सी वजहें भी थीं. बस हमारे नाम चिट्ठियां ही गिन लीजिए—दोनों को 15-15. हम इन सबको काफी तवज्जो देते थे. हमने कई साल तक एक ही सेक्रेटरी पवन कुमार को रखा, और दो बॉलीवुड सितारों के लिए अजूबा था. लेकिन हमारी दोस्ती थी ही ऐसी.
अमिताभ बॉलीवुड में मुझसे थोड़ा जूनियर थे, मगर स्टारडम में वे मुझसे काफी, काफी ऊंचे पहुंचे. फिर, वे सुपरस्टारडम पर पहुंचे. हम दोस्त बने रहे, कई फिल्में शान, नसीब, दोस्ताना और काला पत्थर साथ-साथ कीं. और मैं उनकी कई फिल्मों में साथ काम करने वाला था, मसलन, शोले, दीवार, वगैरह. इसी तरह, मैंने सुना कि अमिताभ कालीचरण में काम करना चाहते हैं, मगर आखिरकार इसमें मौका मुझे ही मिला.
हमारे रिश्ते में कुछ ऊंच-नीच भी हुआ, और आप उसे हमारे स्टारडम की मूर्खता और जवानी की आजादख्याली कह सकते हैं, जिससे कई लोगों को हमारे बारे में अटकलें लगाने का मौका मिला कि कौन भारी पड़ गया काला पत्थर में और कौन छा गया. लेकिन मुझे साफ-साफ याद है कि हमारे बीच हमेशा खांटी गर्मजोशी बनी रही.
अमिताभ सेट पर आते तो एक तरह का आदर और डर का माहौल छा जाता. हालांकि उनका व्यवहार दोस्ताना था, और मेकअप रूम में ठहाके गूंजते रहते थे, मगर वे हमेशा गरिमा बनाए रखते थे. सेट पर, मेरा अंदाजा है, वे अकेले रहना पसंद करते, शायद काम के प्रति फोकस करने की खातिर.
कभी-कभार वे बुलंदी पर निपट अकेले आदमी लगते थे. वे अक्सर लंबे डायलॉग याद कर लेने की मेरी काबिलियत की तारीफ किया करते थे, और मैं उनके बारे में सोचता हूं तो मैं हमेशा घर से तैयार होकर आने का उनका कायल था. वे अपनी कार, या वैनिटी वैन में ही फिल्म के चरित्र में गिरफ्तार हो जाया करते थे. काम के प्रति उनकी निष्ठा लाजवाब थी. और वह अभी भी वैसी ही है.
मैं उन्हें फिल्म इंडस्ट्री के उन कुछ लोगों में पाता हूं, जिनकी भाषा पर पूरी पकड़ है. अच्छे वक्ता हैं, पढ़े-लिखे हैं और असली बुद्धिजीवी हैं. हालांकि कई बार, कुछ लोगों को वे बनावटी लग सकते हैं, मगर वे निपट स्वाभाविक व्यक्ति और मेहनत से बने हैं. मेरी तरह उनका सबसे बड़ा किला उनका आत्मविश्वास और अपनी काबिलियत पर अटूट भरोसा है. हम दोस्त हैं और हमेशा बने रहेंगे. मेरे मन में उनके प्रति काफी आदर है.
सिन्हा नसीब, दोस्ताना और काला पत्थर में बच्चन के सह-अभिनेता रहे हैं
(अमिताभ श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित)