अर्थातः कसौटियों की कसौटी
भारत का अल्पविकसित बॉन्ड बाजार इस सुधार का इंतजार लंबे वक्त से कर रहा था. फायदों की सूची छोटी नहीं है.

अगर आप भारत की सरकार को जिद्दी, नकचढ़ा और लापरवाह बच्चा मान लें तो यह बच्चा अब दुनिया के सबसे सख्त स्कूल में भर्ती होने जा रहा है. 2022 की शुरुआत में भारत सरकार के बॉन्ड ग्लोबल बॉन्ड इंडेक्स का हिस्सा हो जाएंगे. यह 1993 में भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों के प्रवेश से कम क्रांतिकारी नहीं है, जिनके आने से शेयर बाजार की सूरत, सीरत और तबियत पूरी तरह बदल गई.
ग्लोबल बॉन्ड बाजार सरकारों का कमांडो ट्रेनिंग स्कूल है. सरकारों लिए यह बाजार इतना बेमुरव्वत क्यों है, इसके लिए हमें जेम्स कार्वाइल से मिलना होगा. बिल क्लिंटन को राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचाने वाले दुनिया के सबसे मशहूर राजनैतिक और चुनावी रणनीतिकार (प्रशांत किशोर के पेशे के स्टीव जॉब्स), कार्वाइल अब 76 साल के हो चले हैं.
उन्होंने कहा था कि पहले मैं पोप या कि बेसबाल हिटर के तौर पर पुनर्जन्म लेना चाहता था लेकिन अब मैं बॉन्ड मार्केट के तौर पर वापस आना चाहूंगा, जो सरकारों को हमेशा डराता रहता है.
कार्वाइल बजा फरमाते हैं. इस स्कूल में बने रहने के लिए सरकारों को बुरी आदतें छोड़नी होती हैं. इस दिशा में पहला कदम बीते साल बजट में उठाया गया था जब सरकारी बॉन्ड और ट्रेजरी बिल में विदेशी निवेशकों के निवेश को खोल (फुली एक्ससेबल रूट) दिया गया.
भारत में सरकारी बॉन्ड का बाजार करीब एक ट्रिलियन डॉलर का है.
अधिकांश निवेश सरकारी बैंकों (38%), सरकारी बीमा कंपनियां (25%), रिजर्व बैंक (16%), म्युचुअल फंड आदि, अन्य निवेशक (13%) प्रॉविडेंट फंड (4%) और कोऑपरेटिव (2%) का है. विदेशी निवेशक केवल दो फीसद हिस्सा रखते हैं.
भारत के सरकार के बॉन्ड को ग्लोबल सूचकांकों में शामिल कराने का रास्ता यूरोक्लियर (अंतरराष्ट्रीय क्लियरिंग हाउस डिपॉजिटरी) की मंजूरी यानी ग्लोबल सेटलमेंट नियमों के भारतीय बॉन्डों के प्रवेश से होकर जाता है. मोर्गन स्टेनले की एक ताजा रिपोर्ट बता रही है कि भारत सरकार के बॉन्ड को जेपीएम जीबीआइ-ईएम ग्लोबल डाइवर्सिफाइड इंडेक्स और ब्लूमबर्ग ग्लोबल एग्रीगेट इंडेक्स में जगह मिलेगी. प्रवेश का ऐलान अगले साल की पहली तिमाही में संभव है.
इन सूचकांकों के जरिए विदेशी निवेशक सरकारी बॉन्ड खरीद सकेंगे. ऊंचे ब्याज दर के कारण भारत का बाजार खासा आकर्षक है. मोर्गन का मानना है कि 2022 में करीब 40 अरब डॉलर की अतिरिक्त विदेशी पूंजी भारत आ सकती है. आगे भी सालाना करीब 18-20 अरब डॉलर आते रहेंगे.
2031 तक सरकारी बॉन्ड बाजार में विदेशी निवेशक करीब 9 फीसद (वर्तमान 2%) का हिस्सा से ले सकते हैं, जिसका मूल्य 190 अरब डॉलर होगा.
भारत का अल्पविकसित बॉन्ड बाजार इस सुधार का इंतजार लंबे वक्त से कर रहा था. फायदों की सूची छोटी नहीं है.
■ यह विदेशी निवेश सरकार के कर्ज कार्यक्रम का हिस्सा होगा, इसलिए सरकार के पास बजट बढ़ाने और घरेलू बैंकों के कर्ज को सीमित करने का विकल्प होगा
■ इसके बाद सरकारें निवेश बढ़ाने और टैक्स कम करने का विकल्प चुन सकती हैं
■ यह पूंजी बाजार में आकर ब्याज दरें कम रखने में मदद करेगी.
■ रुपए में क्रमश: मजबूती व स्थिरता आने की संभावना है, जिसकी वजह यही पूंजी होगी जो विदेशी मुद्रा भंडार में आएगी
■ सरकारी बॉन्ड बाजार में विदेशी सक्रियता के सहारे घरेलू कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार में निवेश बढ़ेगा
■ शेयर बाजार पहले ही विदेशी निवेशकों से गुलजार है, बॉन्ड बाजार में बढ़ी साख इसे और ताकत देगी. भारत को संप्रभु रेटिंग अब बेहतर हो सकती है जो कबाड़ दर्जे से (जंक) से बस एक पायदान ऊपर है
लेकिन डायनासोरी सरकारी खर्च के लिए कर्ज देने वाला बॉन्ड मार्केट सरकारों की हेकड़ी छुड़ा देता है. यह कड़ा अनुशासन मांगता है. लापरवाही व कुप्रबंध पर आग बबूला निवेशक, बॉन्ड बेचने लगते हैं.
यही वजह है कि ग्लोबल इंडेक्स में भारत सरकार के बॉन्ड का प्रवेश, मौद्रिक और राजकोषीय व्यवस्था का नया प्रस्थान बिंदु है. यह बदलाव सरकार व बैंकों की आदतें हमेशा के लिए बदल देगा. अब सरकार को...
● महंगाई थाम कर रखनी होगी. खासतौर पर महंगा कच्चा तेल और जिंस सबसे बड़ी कमजोरी हैं. बॉन्ड ईल्ड और महंगाई के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. अगर महंगाई बढ़ी तो बॉन्ड निवेशक भड़केंगे
● टैक्स के नियम मौसम तरह नहीं बदलने होंगे. सरकारी बॉन्ड में विदेशी निवेश को लेकर टैक्स अनिश्चितता सबसे बड़ी उलझन है
● घाटे पर काबू रखकर अर्थव्यवस्था में तेज विकास दर बनाए रखनी होगी
शेयर बाजार के मिजाज की अनदेखी हो सकती है लेकिन बॉन्ड बाजार सीधे देश की संप्रभु साख का पैमाना है, यहां सरकार का कर्ज बिकता है, यह भड़कता है तो बड़े-बड़े देशों को लेने के देने पड़ जाते हैं.
कम महंगाई, तेज विकास दर, सरकारी खर्च और घाटे में कमी, बॉन्ड बाजार भी वही मांगेगा जो भारत के आम लोगों को भी चाहिए. बस फर्क यह है कि लोग अक्सर ठगे जाने पर मन मसोस कर रह जाते हैं लेकिन बॉन्ड निवेशक सरकारों को माफ नहीं करते.
भारत सरकार दुनिया के सबसे सख्त निवेशकों के स्कूल में भर्ती होने जा रही है.