आवरण कथाः आपकी नौकरी कितनी सुरक्षित?
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर असर का आकलन करने के लिए, हमने कई उद्यमियों, अधिकारियों, उद्योग प्रतिनिधियों और कर्मचारियों से बात की. जो तस्वीर उभरती है, वह गहरे संकट और रोजगार की अनिश्चितताओं से भरी है.

दिल्ली के 30 वर्षीय उबर कैब चालक शशि कुमार के लिए एक कार की मिल्कियत और महीने की 15,000-20,000 रुपए की कमाई उम्मीद से अधिक संतोषजनक थी. यह उनकी अब तक की कमाई से ज्यादा थी. इससे वे तीन लोगों का अपना परिवार पाल रहे थे. अगर जरूरत और ख्वाहिश हो तो ज्यादा पैसे कमाने का विकल्प भी उनके पास था: कुछ घंटे ज्यादा टैक्सी चलाकर कमाई बढ़ा सकते थे.
हालांकि, इस मार्च में शशि कुमार की जिंदगी ठहर गई. समूचे देश पर कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा मंडराने लगा. घर में घिरे रहने से उनकी कमाई अचानक रुक गई, जरूरी खर्चों के लिए वे एक स्थानीय साहूकार पर निर्भर हो गए. कर्ज का मोटा हिस्सा कार के लिए एक गैर-बैंकिंग कंपनी के लोन की ईएमआइ में जाता है. वे कहते हैं, ''उबर ने कहा कि मुझे माल डिलिवरी ड्यूटी दे दी जाएगी, लेकिन यह नहीं हो सका. आने-जाने के लिए पुलिस का पास हासिल करना बहुत मुश्किल है.'' उन्हें राज्य सरकार से 20 किलो गेहूं मुफ्त मिला है, लेकिन यह काफी नहीं है.
शशि कुमार देश की अर्थव्यवस्था के उस उभरते क्षेत्र में अपनी आजीविका कमाते हैं, जिसमें लाखों अर्ध-कुशल श्रमिक, जैसे ड्राइवर और डिलिवरी एजेंट, कम पूंजी वाले धंधों में काम करते हैं, जहां सामाजिक सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं है. वे उन करोड़ों कामगारों में एक हैं, जिन पर देश में कोविड-19 के प्रकोप की रोकथाम के लिए 25 मार्च से किए गए लॉकडाउन की सबसे बुरी मार पड़ी है. यकीनन, 35 दिनों के लॉकडाउन में स्वास्थ्य के आंकड़ों से पता चलता है कि नॉवेल कोरोना वायरस का संक्रमण धीमा रहा है.
हालांकि हर मौत किसी परिवार के लिए त्रासदी है, फिर भी 1.3 अरब से अधिक आबादी वाले देश में इस वायरस से 29 अप्रैल तक 1,008 लोगों की ही जान गई थी, जो अमेरिका की 59,284 मौतों की तुलना में काफी कम है. इस भीषण लॉकडाउन का लोगों के जीवन पर अंतिम परिणाम क्या होगा, हम इसके बारे में पक्के तौर पर नहीं कह सकते. लेकिन इतना तो हम शर्तिया जानते हैं कि यह शशि कुमार जैसे लोगों की आजीविका पर कहर की तरह टूटा है.
निजी शोध संगठन, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआइई) का अनुमान है कि लॉकडाउन के एक महीने में 12 करोड़ लोगों का रोजगार खत्म हो चुका है. देश में कार्यरत कुल 40.6 करोड़ लोगों में सिर्फ 20 फीसद या 8.12 करोड़ लोग ही 'वेतनभोगी' श्रेणी में आते हैं. हालांकि महामारी की मार से वे भी नहीं बचेंगे, लेकिन बाकी 32.48 करोड़ लोगों का भविष्य तो अंधकारमय है जो दिहाड़ी मजदूरी, छोटे काम-धंधे करके गुजारा करते हैं या छोटे किसान हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन के फौरन बाद और फिर महीने भर बाद दो बार टीवी पर अपने संबोधनों में उद्योगपतियों और कारोबारियों से अपील की कि वे छंटनी न करें और लॉकडाउन के दौरान पूरा वेतन दें. कथित तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय छंटनी और वेतन कटौती की खबरों पर भी नजर रख रहा है. 29 मार्च को, केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने निर्देश जारी किया, जिसमें प्रधानमंत्री की अपील को दोहराया गया था. लुधियाना हैंडटुल्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली, लेकिन 27 अप्रैल को शीर्ष अदालत याचिका पर सुनवाई को तो राजी हुई लेकिन गृह मंत्रालय के निर्देश के खिलाफ अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया.
देशभर से जानकारियां आ रही हैं कि कंपनियां छंटनी और वेतन कटौती कर रही हैं. उद्योग संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) के 200 सीईओ के बीच ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक, 52 फीसद ने अपने कारोबार में नौकरी घटने की आशंका जताई. मसलन, सलाहकार फर्म केपीएमजी के 1 अप्रैल को जारी रिपोर्ट में पर्यटन और आतिथ्य क्षेत्र में लगभग 3.8 करोड़ नौकरियों के नुक्सान की आशंका जताई गई है, जो इस क्षेत्र में सीधे रोजगार पाने वाले 4.27 करोड़ लोगों का तकरीबन 89 प्रतिशत है.
पर्यटन उद्योग के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाले वैश्विक मंच वर्ल्ड ट्रेवल ऐंड टूरिज्म काउंसिल ने भारत के पर्यटन क्षेत्र में 90 लाख नौकरियों के नुक्सान का अनुमान लगाया है. फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (एफआइईओ) का अनुमान है कि भारत के निर्यात क्षेत्र में 1.5 करोड़ से अधिक नौकरियां जा सकती हैं क्योंकि सभी ऑर्डर रद्द हो गए और इकाइयां कर्ज चुकाने में असमर्थ हैं. सीएमआइई का अनुमान है कि मध्य मार्च में बेरोजगारी दर 6.7 फीसद से अप्रैल के पहले हफ्ते में बढ़कर 23 फीसद हो गई.
अर्थव्यवस्था की वृद्घि दर पहले ही 10 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर थी, महामारी के लिए किए गए लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था और गहरे गोता लगा जाएगी. कोविड-19 के प्रकोप के पहले आंकी गई मोटे तौर पर 5 फीसद की वृद्धि दर, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के 14 अप्रैल के एक आकलन के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में घटकर मात्र 1.5 प्रतिशत हो जा सकती है. यह आकलन भी बहुत आशावादी है क्योंकि मैककिंसे जैसे सलाहकार फर्मों ने तो नकारात्मक वृद्घि दर की आशंका जताई है. वजह यह कि 170 'हॉटस्पॉट' में लॉकडाउन 3 मई से आगे बढ़ाई जा सकती है.
आखिर हॉटस्पाट उन्हीं राज्यों में बना हुआ है जिनका देश की अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान है. मसलन, महाराष्ट्र, दिल्ली और तमिलनाडु का देश की जीडीपी में मिलजुला योगदान 30 फीसद है. यही वजह है कि 20 अप्रैल से हॉटस्पॉट से बाहर के क्षेत्रों में कारोबार खोलने की सरकारी इजाजत पर खास उत्साह नहीं दिखा. सभी बड़े उपभोक्ता बाजार बंद हैं, और कोई भी उत्पादनकर्ता तैयार माल का ढेर क्यों खड़ा करना चाहेगा, जो बिक न सके.
फिर कच्चे माल की आपूर्ति और मजदूरों की कमी के साथ-साथ यह सरकारी फरमान भी है कि कोई कर्मचारी संक्रमण का शिकार हुआ तो आपराधिक मुकदमा दर्ज होगा. इससे कंपनियां अपने फाटक बंद रखने पर ही मजबूर हुईं. एग्जीक्यूटिव भर्ती फर्म टीमलीज के सह-संस्थापक मनीष सभरवाल कहते हैं, ''कोविड-19 की सुरंग से बाहर की रोशनी नहीं दिख रही. हम तो यह भी नहीं जानते हैं कि हम महामारी की शुरुआत, मध्य या अंत में हैं.''
सबसे बुरी तरह प्रभावित तो विमानन, पर्यटन और आतिथ्य जैसे क्षेत्रों के अलावा 'गैर-जरूरी' वस्तुओं और लकदक खुदरा क्षेत्र है. हालांकि सीएमआइई के एमडी और सीईओ महेश व्यास ऐसा कोई फर्क नहीं देखते. वे कहते हैं, ''यह तो शून्य से 35 डिग्री और 40 डिग्री नीचे के तापमान के माहौल में फर्क देखने जैसा है. दोनों आपको जमा देते हैं और फर्क कोई मायने रखता है.'' मसलन, लॉकडाउन के एक सप्ताह बाद मार्च में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में 18 फीसद की गिरावट आई, जबकि बिजली की मांग 8.8 फीसद घट गई.
व्यास कहते हैं, ''याद रखें कि इन दोनों उद्योगों को लॉकडाउन से छूट थी. अगर हवाई जहाज का एक स्क्रू भी ढीला होता है तो वह उड़ नहीं सकता है.'' लॉकडाउन के दौरान सीएमआइई के सर्वेक्षण में लगभग 45 फीसद परिवारों ने कहा कि उनकी स्थिति एक साल पहले की तुलना में खराब है. सबसे चिंता की बात श्रम हिस्सेदारी की दर में गिरावट है. यह नोटबंदी से पहले 47-48 फीसद थी लेकिन नवंबर 2016 की नोटबंदी के बाद 45-46 फीसद हो गई और 2017 में माल व सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद 42-43 फीसद पर पहुंच गई और अब लॉकडाउन के छह सप्ताह के बाद 35.5 फीसद पर आ गई है.
अर्थव्यवस्था का संकट जैसे-जैसे गहराता जा रहा है, छंटनी और वेतन कटौती भी बढ़ती जाएगी. बहुत कम संगठनों में लगातार लॉकडाउन और आर्थिक अनिश्चितता को झेलने की स्थिति है.
सभरवाल कहते हैं कि देश में केवल 19,500 कंपनियों के पास 10 करोड़ रुपए से अधिक की पूंजी है और हमारे 6.3 करोड़ उद्यमों में से केवल 1.2 करोड़ या मोटे तौर पर 19 प्रतिशत ही जीएसटी के लिए पंजीकृत हैं.
कंपनियों की कुल लागत का 30 से 50 प्रतिशत वेतन में जाता है, जो कारोबार के हिसाब से तय होता है. लॉकडाउन हटा लिया जाए, तब भी किसी को नहीं पता कि आर्थिक गतिविधियां कब ठीक-ठाक शुरू हो पाएंगी और कब पर्याप्त नकदी का प्रवाह हो पाएगा. तब तक, कंपनियों के पास कुछ स्टाफ को कम करने, वेतन में कटौती या दोनों ही रास्ते अपनाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा.
अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर असर का आकलन करने के लिए, हमने कई उद्यमियों, अधिकारियों, उद्योग प्रतिनिधियों और कर्मचारियों से बात की. जो तस्वीर उभरती है, वह गहरे संकट और रोजगार की अनिश्चितताओं से भरी है.
वाहन उद्योग: ढलान पर गाड़ी
जनवरी से मार्च के बीच चीन से करीब 4.7 अरब डॉलर (35,720 करोड़ रुपए) का आयात रुक जाने से कोविड-19 से सबसे पहले कार पर ही मार पड़ी.
जब तक बीमारी वुहान तक सीमित की गई और चीन से आपूर्ति फिर शुरू हुई कि भारत में लॉकडाउन शुरू हो गया. कार निर्माता पहले ही मार्च में बिक्री में 45 फीसद की वार्षिक गिरावट से जूझ रहे थे, लेकिन संपूर्ण लॉकडाउन ने गंभीर खतरा पैदा कर दिया जबकि यह उद्योग 4.4 करोड़ लोगों को रोजगार देता है और जीडीपी में उसका योगदान 9.4 फीसद है.
सीआइआइ के अध्यक्ष तथा टोयोटा किर्लोस्कर मोटर के एमडी विक्रम किर्लोस्कर ने कहा कि चाहे लॉकडाउन 3 मई को खत्म हो जाए, लेकिन उत्पादन सुचारू रूप से शुरू होने में 3-4 महीने लग जाएंगे, क्योंकि हमें 100 फीसद तैयार वाहन बनाना होता है, न कि 99.9 फीसद.''
आपूर्ति शृंखला बाधित हो गई है, और नकदी का प्रवाह लगभग खत्म है, इसलिए ऑटो पाटर्स निर्माताओं, सर्विस सेंटर और डीलरों के लिए कर्मचारियों को अप्रैल के वेतन का भुगतान करना मुश्किल हो रहा है. क्रिसिल के अध्ययन से पता चलता है कि संक्रमण की आशंका के आधार पर जिन जिलों को 'उच्च आशंका' और 'अति उच्च आशंका' वाले जिले में वर्गीकृत किया गया है, उन्हीं जिलों में देश में दोपहिया वाहनों की बिक्री 56 फीसद और कार की बिक्री 68 प्रतिशत होती रही है.
3 मई को लॉकडाउन खुल भी जाता है तब भी 50 फीसद कार की बिक्री मुश्किल होगी. पुणे स्थित बजाज ऑटो ने सभी कर्मचारियों के लिए 10 फीसद वेतन कटौती का प्रस्ताव किया है, जबकि एमडी राजीव बजाज ने 3 मई तक विस्तारित लॉकडाउन अवधि के लिए अपने वेतन में 100 प्रतिशत कटौती की है. उद्योग के लोगों का अनुमान है कि कुल 4.4 करोड़ कर्मचारियों में एक-तिहाई, या मोटे तौर पर 1.4 करोड़ ठेका मजदूर हैं, जिनकी नौकरी जा सकती है क्योंकि कारखानों के शुरू होने के बाद भी उत्पादन का स्तर कम रहेगा.
किर्लोस्कर कहते हैं, ''हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि लोगों की छंटनी न करनी पड़े. हमने उनके कौशल को उभारने में बहुत निवेश किया है. यह फैसला बहुत कठिन होगा.'' गाडिय़ों के पुर्जों की बड़ी कंपनी ल्युमैक्स इंडस्ट्रीज के एमडी और इंडियन ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (एसीएमए) के अध्यक्ष दीपक जैन कहते हैं कि चाहे उद्योग शुरू हो जाएं और बिक्री धीरे-धीरे बढ़ती हुई वापस लॉकडाउन के पूर्व के स्तर पर पहुंच जाए, फिर भी वेतन और नौकरियों में कटौती हो सकती है. सिर्फ ऑटो कंपोनेंट सेक्टर में लगभग पचास लाख लोग काम करते हैं. डीलरशिप, जिनकी संख्या 15,000 और 17,000 के बीच है, उनमें से 1,700 से अधिक बंद हो सकते हैं. उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, डीलरशिप व्यवसाय से करीब 3,400 नौकरियों तुरंत खत्म हो सकती हैं.
विमानन: थम गई उड़ानें
14 अप्रैल को सभी तरह के हवाई परिवहन पर प्रतिबंध लगने के काफी पहले से ही एयरलाइन क्षेत्र अधर में है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय उड़ानें उससे पहले ही कैंसिल होने लगी थीं. इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अनुसार, भारत में यात्री सेवा की मांग में 36 फीसद की गिरावट आ सकती है और यात्री राजस्व में 8.8 अरब डॉलर (लगभग 66,880 करोड़ रुपए) की कमी हो सकती है, जो विमानन पर निर्भर क्षेत्रों सहित कुल 20 लाख से अधिक नौकरियों को खतरे में डालेगा.
एयरलाइंस को नकदी संकट का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि इंडिगो एयरलाइंस के अलावा, किसी के पास पर्याप्त नकदी भंडार नहीं है. 30 अप्रैल को, स्पाइसजेट ने कहा कि वह अपने 92 फीसद कर्मचारियों को वेतन का भुगतान थोड़ा-थोड़ा करके कई हिस्सों में करेगा, जो ''काम के घंटों के अनुसार, मूल सीमा को बनाए रखते हुए होगा.''
हालांकि इस समय में उसने 'नौकरियों में कोई कटौती नहीं करने' की बात भी कही. इंडिगो ने लॉकडाउन की शुरुआत में घोषणा की थी कि वह कर्मचारियों के वेतन में 25 फीसद कटौती करेगा, लेकिन 24 अप्रैल को इस फैसले को वापस ले लिया गया. दक्षिण एशिया, सेंटर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (सीएपीए) दक्षिण एशिया के सीईओ और निदेशक कपिल कौल का कहना है, विमानन क्षेत्र के लगभग 60,000 प्रत्यक्ष रोजगार में से 25,000 प्रभावित हो सकते हैं. व्यवसाय के लिए क्षेत्र के फिर से खुलने के बाद भी, व्यापार और सामान्य यात्राएं दोनों के कई महीनों तक कम रहने की संभावना है, जबकि सामाजिक दूरी के मानदंडों का मतलब होगा कि एयरलाइन कंपनियों को उड़ान में यात्रियों की संख्या कम करनी होगी, जिससे कमाई प्रभावित होगी.
रियल एस्टेट: दरकता आधार
जायदाद क्षेत्र लगभग पिछले तीन वर्षों से दयनीय स्थिति में था. मांग बहुत कम हो गई थी, जिससे अनबिके घरों की संख्या काफी है. कई डेवलपरों ने ऋण भुगतान में चूक की थी और एनबीएफसी संकट के बिगडऩे से उनके पास नकदी की जबरदस्त किल्लत हो गई, जिसके परिणामस्वरूप कर्ज में वृद्धि हुई और अचल संपत्ति फर्मों के वित्त पर और दबाव आया. कोविड-19 के बाद लोग अपनी नौकरियों और वेतन को लेकर अनिश्चिय में फंस गए इसलिए उन्होंने घरों की खरीद की योजना स्थगित कर दी है जिससे संभावित ग्राहकों की संख्या और घटी है. इसके अलावा, संभावित खरीदारों का घरों का व्यक्तिगत स्तर पर देख-परख भी लॉकडाउन के दौरान रुक गई है. प्रॉपर्टी कंसल्टेंट एनारॉक के अनुसार, देश के शीर्ष सात शहरों में मार्च के आखिर तक 6,44,000 से अधिक अनबिके मकान थे.
इनमें 35,200 मकान, जिनकी कीमत 37,550 करोड़ रुपए है, मुंबई और पुणे में है जो बीमारी के प्रमुख केंद्र बने हुए हैं. प्रॉपर्टी कंसल्टेंट फर्म नाइट फ्रैंक इंडिया के कार्यकारी निदेशक, गुलाम जिया कहते हैं, ''मुंबई जैसे शहर महामारी का खामियाजा भुगतते हैं क्योंकि घनी बस्तियों में सामाजिक दूरी को बनाए रखने की गुंजाइश नहीं होती है.'' लॉकडाउन ने रियल्टी निवेशकों के लिए मुंबई में आवासीय और वाणिज्यिक रियल एस्टेट पर चोट की है. इसके अलावा, जैसे ही महाराष्ट्र लॉकडाउन को हटाएगा, शहर के लाखों प्रवासी मजदूर अन्य राज्यों के अपने गांव वापस जाना चाहेंगे. जिया का कहना है कि वे कब लौटेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है. निर्माण क्षेत्र के 4.4 करोड़ कार्यबल का 80 प्रतिशत, प्रवासी श्रमिकों का है. अचल संपत्ति क्षेत्र में कुल मिलाकर 5.2 करोड़ लोग कार्यरत हैं, जिनमें से 4.1 करोड़ नौकरियों पर पहले ही असर पड़ चुका है. एक कंसल्टेंट कहते हैं. ''यह इस क्षेत्र के लिए मौत जैसी स्थिति है. हमें इसके पुनर्जन्म की प्रतीक्षा करनी होगी.''
पर्यटन और आतिथ्य: सन्नाटा पसरा
रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स की भारतीय होटल उद्योग पर एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जनवरी और फरवरी में कारोबार में 50 फीसद के नुक्सान के कारण इस क्षेत्र को 2019-20 में 1.25 लाख करोड़ रुपए के नुक्सान की आशंका है. सामाजिक दूरी मानदंडों की सख्ती के साथ, यह संकट इस क्षेत्र के कारोबार के नियमों को भी बदल देगा. होटल या एयरलाइंस को अपनी पूरी क्षमता के साथ फिर चलने में लंबा वक्त लग सकता है. इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स का कहना है कि बड़े पैमाने पर ट्रैवल बुकिंग कैंसिल होने से सेक्टर को 85,000 करोड़ रुपए का नुक्सान होगा. लॉकडाउन हटाए जाने के बाद भी देश से बाहर और विदेश से भारत की यात्रा अपने सर्वकालिक न्यूनतम स्तर पर होगी. उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि संकट 9/11 या 2008 के वित्तीय मंदी से बड़ा है.
एमएसएमई: छोटा सबसे बेहाल
एमएसएमई (कुटीर, छोटे और मझोले उद्यम) क्षेत्र अर्थव्यवस्था की प्राणवायु है, जहां 12 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है और जो भारत के उत्पादन में 33.4 प्रतिशत का योगदान देता है. देश का 45 प्रतिशत निर्यात भी इसी क्षेत्र से होता है. यही क्षेत्र सबसे अधिक असुरक्षित भी है. यह मुख्य रूप से अपने दैनिक मांगों पर आश्रित है और मांग में गिरावट का सामना करते हुए अपना अस्तित्व बचाए रखने में यह असमर्थ है. संकट की अवधि का सामना करने के लिए उसके पास न्यूनतम भंडार है. अखिल भारतीय उत्पादक संगठन (एआइएमओ) के अनुमान के अनुसार, अगर लॉकडाउन 4-8 सप्ताह से अधिक चलता है तो 2.2 करोड़ से लेकर 5.1 करोड़ तक रोजगार पर खतरा होगा.
फिर मांग टूटने और खर्च के बढ़ते बोझ के कारण आर्थिक गतिविधियों में कमी आएगी. अमेरिका और ब्रिटेन के प्रमुख निर्यात बाजार बंद हैं. कपड़ा कंपनियां तैयार ऑर्डर लेकर बैठी हैं. बाजार जिस स्तर से फैशन-संवेदनशील है उसे देखते हुए गर्मी के मौसम के खत्म होने तक, अधिकांश मौजूदा स्टॉक, डेड स्टॉक हो सकते हैं. टेक्सटाइल कंपनियों सहित ज्यादातर एमएसएमई के पास बमुश्किल एक महीने तक कामकाज चलाने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध रहता है. कम वेतन वाले कर्मचारियों की छंटनी शायद शुरू हो चुकी है.
इन्फोटेक: लौटेगा संकट का दौर
नैसकॉम या नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐंड सर्विस कंपनीज की सीनियर वीपी और मुख्य रणनीति अधिकारी संगीता गुप्ता कहती हैं, ''किसी को भी पता नहीं है कि क्या होने वाला है.'' देश का आइटी क्षेत्र 40 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार और 1 करोड़ को अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है. यही वह उद्योग है जिसने भारत को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करके रखा है और यह भारत और विदेशों से प्रतिभाओं को आकर्षित करता है. इस क्षेत्र ने लॉकडाउन के बाद वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) संस्कृति को अपनाकर अधिकांश घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ग्राहक प्रतिबद्धताओं को पूरा करना जारी रखा.
गुप्ता कहती हैं कि फुर्तीले डिजिटल संगठनों का तेजी से अनुकूलन हुआ; अधिकांश बड़ी आइटी फर्मों में काम करने वाले लगभग 92-93 प्रतिशत कर्मचारी, कुछ के तो 100 प्रतिशत भी घरों से काम कर रहे हैं. टीसीएस ने घोषणा की है कि चीजें सामान्य होने पर भी, उसके 4,50,000 कर्मचारियों में से 75 प्रतिशत स्थायी रूप से घर या कहीं से भी काम करेंगे. अगले दो वर्षों में यह बदलाव होगा. लेकिन छोटे फर्मों के लिए कहानी अलग हो सकती है. सौभाग्य से, लगभग 90 प्रतिशत आइटी कार्यबल बड़ी कंपनियों के साथ कार्यरत हैं. हर कंपनी तर्कसंगत लागत और नए क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां वे अपने लिए अवसर तलाश सकते हैं.
अच्छी खबर यह है कि बड़ी आइटी कंपनियां छंटनी नहीं कर रही हैं. हालांकि, इस साल वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी. टेक महिंद्रा के सीईओ सी.पी. गुरनानी कहते हैं कि काम के नए प्रारूप ने उन्हें बड़े कर्मचारी आधार के साथ सीधे संपर्क में रखा है. कंपनी का वरिष्ठ प्रबंधन इस साल वर्ष के लिए अपने वेतन में से बड़ी तिलांजलि दे रहा है. वे कहते हैं, ''हमने तय किया है कि हम जो भी कदम उठाएंगे, उसकी शुरुआत ऊपर से होगी. जो लोग प्रति वर्ष 3.5 लाख-4 लाख रुपए से कम वेतन पाते हैं, उनके वेतन में कोई कटौती नहीं होगी. यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि जब तक हम अपने दुश्मन कोविड-19 पर फतह हासिल करते हैं तब तब बाजार की क्या स्थिति होती है.''
रत्न और आभूषण: चमक फीकी
46 लाख से ज्यादा कामगारों को रोजगार देने वाले रत्न और आभूषण क्षेत्र में 10-12 प्रतिशत रोजगार घट सकते हैं. उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जयपुर और दूसरी जगहों पर इकाइयां कुछ प्रतिबंधों के साथ खुलने लगी हैं, सामान्य धारणा यही है कि नियोक्ता अप्रैल माह के कुल वेतन का 70 प्रतिशत ही देंगे. मुंबई में अगस्त और सितंबर में होने वाले दो बड़ी आभूषण प्रदर्शनियों के रद्द हो जाने की आशंका है.
खुदरा: कोई खरीदार नहीं
उद्योग का अनुमान है कि चार से छह करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले भारतीय खुदरा क्षेत्र में लगभग 1.1 करोड़ अवसर खत्म होंगे. आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन और आपूर्ति बाधाओं के बावजूद जारी रहा है, लेकिन आवश्यक वस्तुओं से इतर श्रेणियों की वस्तुओं का उत्पादन शुरू करना कठिन होगा क्योंकि आपूर्ति शृंखलाएं टूटी पड़ी हैं और प्रवासी मजदूरों को वापस कारखानों में लाना एक चुनौती होगी. लोग माल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में जाने से बचते रहेंगे. मांग पहले से टूट रही थी और अब ऊंची कीमत वाले उत्पादों के ग्राहक कम होंगे.
बहुत-से लोग मौजूदा संकट को 2008 की मंदी से भी बुरी स्थिति के रूप में देखते हैं. कोई यह भी अनुमान नहीं लगा पा रहा है कि यह संकट कितने दिनों तक चलेगा क्योंकि बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि रोग का प्रकोप कैसा रहता है और देश का स्वास्थ्य ढांचा इससे कैसे पार पाएगा. इस बीच, उद्योग जगत सरकार की ओर देख रहा है कि वह कारोबार और नौकरियों को बचाने के लिए कुछ नीतिगत उपायों की घोषणा करे. अमेरिकी संसद ने 23 अप्रैल को 484 अरब डॉलर के पैकेज की घोषणा की जबकि महामारी फैलने के बाद से वहां लगभग 2.6 करोड़ लोगों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए दावे किए हैं.
विशेषज्ञों की नजर में इसकी तुलना में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का 27 मार्च 1.7 लाख करोड़ रु. का पैकेज बेहद नाकाफी है. विशेषज्ञों की चेतावनी है कि प्रभावी आर्थिक राहत नहीं दी गई तो महामारी से लडऩे के प्रयास में आजीविका टूटने का असर ज्यादा घातक हो सकता है. इन विशेषज्ञों ने कारोबार के लिए 10 लाख करोड़ रु. के पैकेज की जरूरत बताई है जो देश की 200 लाख करोड़ रु. की अर्थव्यवस्था का पांच प्रतिशत है.
उड्डयन क्षेत्र ने ऋणों की वसूली पर रोक, एयरपोर्ट और ईंधन शुल्कों को खत्म करने तथा एविएशन टर्बाइन ईंधन को जीएसटी व्यवस्था के अधीन करने की मांग की है. वाहन उद्योग चाहता है कि सरकार मांग पैदा करने के लिए कर घटाए और ऋणों को सस्ता बनाए. सरकार से यह उम्मीद भी की जा रही है कि वह बैंकों से कर्ज लेने वाली फर्मों को बॉन्ड देकर सहयोग करे जबकि छोटी इकाइयां और डीलर चाहते हैं कि उनके बैंक ऋणों पर स्थगन मिले. रियल एस्टेट क्षेत्र चाहता है कि प्रोत्साहन दिया जाए और रियल एस्टेट रेगुलेटरी ऐक्ट (रेरा) के पालन में अधिकतम छह महीने तक छूट दी जाए, जिससे मांग पैदा हो और रियल एस्टेट परियोजनाओं के लिए नीची रेपो दर आधारित ऋण दरें तय करे.
यात्रा और पर्यटन सेवाओं से जुड़ा समूह जीएसटी से कुछ समय की छूट के साथ ही अगले वर्ष तक के लिए सभी बिजली दरों और संपत्ति तथा उत्पाद करों से मुक्ति के साथ नीची ब्याज दरों पर कार्यशील पूंजी की मांग कर रहा है. कपड़ा क्षेत्र चाहता है कि कर व्यवस्था के पालन की समयसीमा बढ़ाई जाए, ज्यादा ऋण समर्थन मिले, बिजली की दरों और ऐसे दूसरे प्रभारों से मुक्ति मिले. खुदरा क्षेत्र की अपेक्षा है कि सावधि ऋणों पर किस्तों तथा ब्याज के भुगतान पर 270 दिनों के स्थगन को आगे बढ़ाया जाए, जीएसटी से मुक्ति दी जाए और गैर-आवश्यक श्रेणी के उत्पादनों की अनुमति तेजी से प्रदान की जाए. क्षेत्र को बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संगठनों से ज्यादा ऋणों की भी अपेक्षा है. कुटीर, छोटी और मझोली इकाइयों के क्षेत्र को मजदूरी के भुगतान के लिए सरकारी सहयोग, विद्युत दरों से मुक्ति और कर्ज को एनपीए घोषित किए जाने से राहत पाने की चाह है.
भविष्य का कार्यस्थल
कोविड-19 ने कार्यस्थल पर बदलावों को बहुत तेज गति से आगे बढ़ा दिया है जो कारोबार करने और उन्हें चलाने के तौर-तरीकों पर प्रभाव डालेंगे. लचीली कार्य-निष्पादन व्यवस्थाएं, बंटे हुए कार्यस्थान, कम यात्राएं और मेल-मुलाकातें, कार्यस्थल पर अनियमित उपस्थिति और छोटे-छोटे कार्यालय नए मानक होंगे. बड़ी निर्माण इकाइयों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और रोबोटिक्स जैसी नवीनतम तकनीकों को जगह मिलने के आसार बनेंगे. प्रवासी मजदूरों के शहर छोड़ जाने के कारण अर्ध-कुशल मजदूरों की मजदूरी बढ़ सकती है. शहरों में काम बंद होने से खाली हुई श्रमशक्ति परिवहन, बिक्री या ग्राहक सेवा के क्षेत्रों में खप सकती है. अनियमित अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ सकती है जिसमें कामगारों को ठेके पर रखा जाता है और रोजगार की सुरक्षा कम होती है क्योंकि कंपनियां लागत कम करने के रास्ते तलाशेंगी.
हालांकि, मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन समूह के अध्यक्ष टी.वी. मोहनदास पै का मानना है कि इसका उजला पक्ष यह होगा कि उत्पादकता बढ़ेगी. संगठनों को छोटा किया जाएगा ताकि उन्हें कार्यकुशल, तीव्र और गतिमान बनाया जा सके. उनका कहना है, ''किसी बिक्री के लिए ग्राहक से मुलाकात फोन पर हो सकती है और सेल्समैन तीन ग्राहकों से मुलाकात करने के समय में 10 ग्राहकों से बात कर सकता है तो इसके परिणाम सकारात्मक ही होंगे.'' देश जब नई योजनाओं और तरीकों की तलाश में लगा होगा तब विध्वंसकारी विचारों के साथ शुरू होने वाले स्टार्ट-अप भारी लाभ की स्थिति में हो सकते हैं. बड़ी पूंजी आसानी से नहीं आएगी लेकिन भारत निवेश के पसंदीदा स्थान के रूप में उभरेगा. विशेषज्ञों का कहना है कि ई—कॉमर्स, ई-हेल्थ, शिक्षा और मनोरंजन को गति मिलेगी.
लेकिन फिलहाल शेष विश्व की ही तरह भारत भी अनिश्चितता से जूझ रहा है. लालफीताशाही और कारोबार के लिए ढेरों अनुमतियों की मजबूरी भी भारत का संकट बड़ा बनाते हैं. लेकिन चीन के प्रति बढ़ी शंकाओं का लाभ भारत को मिल सकता है. टीमलीज के सभरवाल कहते हैं, ''नीतिगत और दीर्घकालिक ढांचागत सुधारों की ओर बढऩा चाहिए.'' कोरोना महामारी से लड़ाई के दौरान भारत को उन अवसरों को नहीं खोना चाहिए जो इस दुर्दशा के साथ पैदा हुए हैं. —साथ में, अनिलेश एस. महाजन, रोहित परिहार और अमिताभ श्रीवास्तव
अनौपचारिक क्षेत्र का दर्द
महामारी के प्रकोप से कारखाने और रोजगार के अन्य रास्ते बंद हुए तो लाखों प्रवासी मजदूर मार्च महीने में पूरे देश से अपने पैतृक गांवों और कस्बों की ओर चल पड़े थे. पस्त अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की सरकार की कोशिशों में यह एक बड़ी चुनौती बनने वाली है. जुलाई 2019 में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, लगभग 93 फीसद कार्यबल 'अनौपचारिक' है.
बिहार के नवादा जिले के हिसुआ के 25 वर्षीय सोनू यादव दिल्ली के छतरपुर में गत्ते के बक्से बनाने वाले कारखाने में काम करते थे. वे हर महीने लगभग 11,000 रुपए कमाते थे. 20 मार्च को कारखाना बंद हो गया, तो सोनू और बिहार और उत्तर प्रदेश के करीब 100 मजदूरों से चले जाने को कह दिया गया. सोनू कहते हैं, ''हमने एक हफ्ते तक इस उम्मीद में इंतजार किया कि काम फिर से शुरू होगा.'' लेकिन अपनी बचत के लगातार घटने और लॉकडाउन के दौरान फैक्ट्री के वेतन देने से साफ इनकार करने के कारण सोनू ने घर जाने का फैसला किया. वे उत्तर प्रदेश की सीमा पर पहुंचे, जहां से पुलिस ने उन्हें एक ट्रक में बिठा दिया, जो उन्हें उनके गृह नगर तक ले गया.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि कोविड-19 संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत करीब 40 करोड़ मजदूर भयंकर गरीबी के दलदल में फंस जाएंगे. लॉकडाउन की मार से राहत दिलाने के लिए सरकार ने 27 मार्च को गरीबों के लिए 1.7 लाख करोड़ रु. के पैकेज की घोषणा की. राहत घोषणाओं में तीन महीने का राशन, रसोई गैस और प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण शामिल थे.
प्रवासी श्रमिकों को उनके पुराने रोजगार के लिए शहरों में लौटने में महीनों लग सकता है. फिर से शुरू करने की कोशिश कर रहे कल-कारखानों के लिए मजदूरों का गंभीर संकट पैदा हो सकता है. जब सीआइआइ की पंजाब इकाई के अध्यक्ष राहुल आहूजा को अपने चार ऑटो स्पेयर पाट्र्स कारखानों को फिर से शुरू करने की अनुमति मिली, तो प्रशासन ने उनके 1,000 कर्मचारियों में से 350 को काम करने की अनुमति दी, लेकिन 200 ही उपलब्ध थे. पंजाब में लगभग 30 लाख प्रवासी कामगार काम करते हैं.
अर्थशास्त्री अरुण कुमार स्थिति को 'युद्ध से भी बदतर' मानते हैं. वे कहते हैं, ''युद्ध के दौरान, कारखाने पूरी क्षमता से चलते हैं और अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार वाली स्थिति रहती है. आज, आपूर्ति और मांग दोनों ध्वस्त हो गए हैं.''
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