महोबा के कबरई कस्बा के मोहल्ला जवाहरनगर निवासी क्रशर कारोबारी इंद्रकांत त्रिपाठी ने सात सितंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबोधित करते हुए एक वीडियो जारी किया. इसमें इंद्रकांत ने कहा, “व्यवसाय में उनके साझेदार बालकृष्ण द्विवेदी को महोबा के एसपी मणिलाल पाटीदार ने बुलाकर छह लाख प्रतिमाह देने को कहा. हर महीने धन न देने पर अनेक मुकदमे लगाने और हत्या की धमकी दी गई. इसके चलते भयवश जून और जुलाई में एसपी महोबा को छह-छह लाख रुपए दिए गए. बाद में कारोबार में घाटा होने से एसपी को और पैसा दे पाने में असमर्थता जताई. इसके बाद भी रुपए देने का दबाव डाला जा रहा है.” महोबा के पूर्व एसपी मणिलाल पाटीदार के खिलाफ इंद्रकांत त्रिपाठी का वीडियो वायरल होने के बाद पूरे जिले में हड़कंप मच गया. वीडियो वायरल होने के अगले ही दिन अज्ञात लोगों ने इंद्रकात पर गोली चला दी जो उनके गर्दन पर लगी. इंद्रकांत कानपुर के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे हैं. महोबा के कुछ स्थानीय नेताओं ने इंद्रकांत का वीडियो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक भेजा. मुख्यमंत्री ने गृह विभाग से इसकी जांच कराई. प्रारंभिक जांच में घटना सही पाई गई. 9 सितंबर को योगी आदित्यनाथ ने 2014 बैच के आइपीएस अधिकारी मणिलाल पाटीदार को निलंबित कर दिया. महोबा में पाटीदार की बतौर एसपी पहली पोस्टिंग थी.
भ्रष्टाचार के आरोप में पाटीदार का निलंबित करने से 24 घंटे पहले प्रयागराज में पुलिस विभाग के मुखिया अभिषेक दीक्षित पर मुख्यमंत्री योगी की गाज गिरी थी. प्रयागराज के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के रूप में महज 84 दिन बिताने के दौरान अभिषेक की शिकायतें सरकार के सामने पहुंचने लगी थीं. प्रयागराज के एसएसपी के रूप में पुलिस चौकियों पर तैनाती के लिए 50 दारोगाओं की पहली सूची पर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे थे. हद तो तब हुई जब घूरपुर में सरकारी जीप से बाजार में किसानों की सब्जी रौंदने के आरोप में मुख्यमंत्री के निर्देश पर निलंबित किए गए दारोगा सुमित आनंद को अरैल चौकी का प्रभारी बना दिया. इसके बाद थानेदारों की तैनाती पर भी सवाल खड़े हुए थे. एक पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने ट्वीट कर प्रयागराज पुलिस के अधिकारियों पर माफिया से मिलीभगत का आरोप लगाते हुए सवाल उठाए थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गृह विभाग की जांच के आधार पर अभिषेक को 8 सितंबर को निलंबित कर दिया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मार्च, 2017 को यूपी की सत्ता संभालते ही भ्रष्टाचार के खिलाफ “जीरो टॉलरेंस” को सरकारी की नीति घोषित की थी. इसके तहत प्रदेश में पहली बार भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को सेवा से बर्खास्त करने की नीति पर अमल करना शुरू किया गया. पिछले साढ़े तीन वर्षों में भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए अलग-अलग विभागों के 325 अफसरों और कर्मचारियों को जबरन रिटायर किया जा चुका है. इसके अलावा 450 अधिकारियों और कर्मचारियों पर निलंबन और डिमोशन की कार्रवाई की गई है. पिछले वर्ष नवंबर में योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करते हुए प्रांतीय पुलिस सेवा (पीपीएस) अधिकारियों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए प्रांतीय पुलिस सेवा (पीपीएस) के सात अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्त थी. भ्रष्ट अफसरों की पहचान के लिए बनी विभागीय स्क्रीनिंग कमेटी ने भ्रष्टाचार और अक्षमता के आरोपों के आधार पर इन अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की संस्तुति की थी.
सरकारी सेवाओं में दक्षता सुनिश्चित करने के लिए प्रान्तीय सेवा संवर्ग के सात पुलिस उपाधीक्षकों (जिनकी उम्र 31-03-2019 को 50 वर्ष अथवा इससे अधिक थी) को अनिवार्य सेवानिवृत्त दी गई थी. यूपी में यह पहला मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में एक साथ पुलिस अधिकारियों को जबरन रिटायर किया गया हो. इन अफसरों के विरुद्ध लघु दंड, वृहद दंड, अर्थदंड, परिनिन्दा, सत्यनिष्ठा अप्रमाणित किए जाने, वेतनवृद्धि रोके जाने और वेतनमान निम्न स्तर पर किए जाने जैसी कार्रवाई पूर्व में ही हो चुकी थी. इसके साथ ही इन अफसरों की उम्र 31 मार्च 2019 को 50 वर्ष या इससे अधिक हो चुकी थी. यूपी के अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार बताते हैं, “भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति है. जो भी इसमें लिप्त पाया जाएगा उसपर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी चाहे वह अधिकारी हो या कर्मचारी.”
गाजीपुर में गंगा नदी के किनारे जमीनों पर हो रहे अवैध कब्जों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे प्रेम प्रकाश बताते हैं, "सरकारी अफसरों पर अतिनिर्भरता से भ्रष्टाचार के ज्यादातर मामले दब जा रहे हैं. सरकार के पास ऐसा कोई प्रभावी तंत्र नहीं है कि जनता सीधे भ्रष्टाचार की शिकायत कर राहत पा सके." प्रेमप्रकाश बताते हैं कि भ्रष्टाचार के उन्हीं मामलों पर कार्रवाई हो रही है जिनकी जानकारी किसी भी तरीके से सीधे मुख्यमंत्री तक पहुंच रही है. प्रेमप्रकाश के मुताबिक, जिले के अधिकारी अपने स्तर पर भ्रष्टाचार को रोकने में विफल साबित हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश सचिवालय में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, “स्थानीय स्तर पर सरकारी कर्मचारियों और संस्थाओं से जुड़े जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत आम जनता मुख्यमंत्री के ऐंटी करप्शन पोर्टल पर कर सकती है. इस पोर्टल पर आने वाले शिकायतों का मुख्यमंत्री कार्यालय सीधे मॉनीटरिंग कर रहा है. कई मामलों में विभाग या फील्ड स्तर पर मामलों में लीपापोती की कोशिश हुई लेकिन उसे फिर कार्रवाई के लिए भेजा गया. इस जांच में दोषी पाए गए अधिकारी और कर्मचारी दंडित हुए हैं.”
इन विभागों में इतने भ्रष्ट अफसरों पर हुई कार्रवाई
ऊर्जा विभाग—169
गृह विभाग—51
परिवहन विभाग—37
राजस्व विभाग----36
बेसिक शिक्षा—26
पंचायतीराज—25
पीडब्ल्यूडी—18
श्रम विभाग—16
संस्थागत वित्त विभाग—16
कमर्शियल टैक्स विभाग—16
मनोरंजन कर विभाग—16
ग्राम्य विकास विभाग—15
वन विभाग—11
***