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सत्‍य साईं बाबा के चरणों में झुका संसार

भगवान न तो मरते हैं. न ही वे अपने भक्तों को रोता बिलखता छोड़कर लुप्त हो जाते हैं. श्री सत्य साईं बाबा स्वघोषित तौर पर भगवान थे, बिल्कुल उन लोगों की तरह जो उनके दर्शन के लिए उनके 'प्रशांति निलयम्‌' के बाहर पंक्तिबद्ध होकर खड़े रहते थे.

अपडेटेड 4 मई , 2011

भगवान न तो मरते हैं. न ही वे अपने भक्तों को रोता बिलखता छोड़कर लुप्त हो जाते हैं. श्री सत्य साईं बाबा स्वघोषित तौर पर भगवान थे, बिल्कुल उन लोगों की तरह जो उनके दर्शन के लिए उनके 'प्रशांति निलयम्‌' के बाहर पंक्तिबद्ध होकर खड़े रहते थे.

लेकिन उनमें और उनके आभामंडल से अभिभूत लोगों के बीच अंतर यह था कि वे जानते थे कि वे भगवान हैं, जबकि बाकी लोग यह नहीं जानते थे. आंध्र प्रदेश में बाबा के शहर पुट्टपर्थी में, जहां ईसाई धर्मगुरु पोप के वैटिकन की तरह श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, ईस्टर के रविवार को जब उन्होंने 85 साल की उम्र में अपनी आखिरी सांस ली, तो उनके भक्तों ने इसे उनकी मृत्यु नहीं माना.

यह पूर्ण विराम नहीं बल्कि अवतारों के ब्रह्मांडीय चक्र में एक अर्धविराम था. यह सिर्फ देह का त्याग था. हालांकि इस जगत से अपने प्रस्थान का जो समय उन्होंने स्वयं निर्धारित किया था, उसका वे पालन नहीं कर पाए. बाबा के महत्वपूर्ण अंग निर्धारित समय से 11 साल पहले ही जवाब दे गए. जिस दिन ईसा मसीह फिर से जीवित हुए थे, उसी दिन दुनिया के सबसे लोकप्रिय और सबसे धनी धर्मोपदेशक ने उस मंच को छोड़ दिया, जिस पर वे करीब सात दशकों से विराजमान थे.

वे अपनी दुर्लभ चुंबकीय शक्ति से गरीबों, अमीरों, राजनीतिकों, अरबपतियों और फिल्मी सितारों को अपने चरणों में झुकाते आ रहे थे. शांति और प्रेम बांटने वाले सर्वोच्च गुरु व भगवान, और लाखों भक्तों के लिए उनके सबसे अच्छे मित्र अब नहीं रहे. लेकिन उनका आभामंडल बरकरार है. और उनके करिश्मे के बल पर बना उनका विशाल साम्राज्‍य भी.

मनुष्य को आध्यात्मिक शांति उपलब्ध कराने  के बाजार में हर दूसरे गुरु की तरह सत्य साईं बाबा की किंवदंती का पहला वाक्य स्वयं बाबा ने ही लिखा था. इसकी शुरुआत 85 साल पहले नवंबर के महीने में पुट्टपर्थी गांव से हुई, जहां सत्यनारायण राजू का जन्म कुछ विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियों के साथ हुआ था. वे वयस्क होने से पहले ही गुरु बन गए थे और 14 साल की उम्र में उन्हें एहसास हुआ कि वे कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि शिरडी के साईं बाबा (1835-1918) के अवतार हैं. यह उस व्यक्तिके जीवन की शुरुआत थी, जिसकी कीर्ति पुट्टपर्थी से आगे बहुत दूर दूर तक फैलने वाली थी.

उनके घने घुंघराले बाल वैसे ही सबसे अलग दिखते थे जैसे कि नारंगी रंग के उनके वस्त्र. बाबा ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को सामाजिक कार्यों से जोड़ा. दुखहर्ता, उपदेशक और चमत्कारों से परोपकार करने वाले बाबा ने किसी धर्म विशेष का अनुसरण नहीं किया बल्कि अपने उपदेशों में मानवता के पांच स्तंभों पर जोर दिया-सत्य, नैतिक आचरण, शांति, प्रेम और अहिंसा.

अंत में, ये चमत्कार ही हैं जो भगवानों और साधुसंतों के प्रति लोगों की आस्था को बनाए रखते हैं. साईं बाबा ने हवा से राख और स्विस घड़ियां पैदा करने के चमत्कार दिखाने से कहीं ज्‍यादा सामाजिक काम किए. स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल के क्षेत्र में उनका योगदान हमेशा बना रहने वाला चमत्कार है, जो हजारों लोगों के जीवन को सुखमय बना रहा है.

फिर भी बाबा के आलोचक प्रगतिशील लोग उन पर तरहतरह के आरोप लगाते हैं और उनके चमत्कारों को हाथों की सफाई बताते हैं. जो भी हो, विवाद उनके करिश्मे को जरा भी कम नहीं कर पाए. रविवार के दिनजब वे आस्था के 8 अरब डॉलर वाले साम्राज्‍य से विदा हुए तब तक सत्य साईं बाबा ने वह सब हासिल कर लिया था जो दूसरे बाबाओं के लिए मुश्किल है- उन्होंने आध्यात्मिकता और सामाजिकता के बीच में सराहनीय संतुलन बनाया था.
जीवन यात्रा
1926: 23 नवंबर को पुट्टपर्थी में जन्म. पिता पेडवेंकप्पा राजू और माता ईश्वरम्मा ने नाम रखा सत्यनारायण राजू.
1940: 20 अक्तूबर को अपनी भाभी को बताया कि वे शिरडी के साईं बाबा के अवतार हैं और अपना नाम सत्य साईं बाबा रखा.
1950: अपने 25वें जन्मदिन, 23 नवंबर को पुट्टपर्थी में अपने प्रशांति निलयम आश्रमका उद्‌घाटन किया.
1954: पुट्टपर्थी में 12 बिस्तरों वाले अस्पताल की स्थापना की.
1963: 6 जुलाई को साईं बाबा ने घोषणा की कि उनके अगले अवतार प्रेम साईं का जन्म कर्नाटक के मांड्‌या जिले में होगा.
1968: अनंतपुर में लड़कियों के एक कॉलेज की स्थापना की. 29 जून को अपनी पहली और एकमात्र विदेश यात्रा युगांडा की की, प्रेम का दीप जलाने के लिए.
1972: श्री सत्य साईं सेंट्रल ट्रस्ट की स्थापना की. यह परमार्थ ट्रस्ट है जो सामाजिक कल्याण की परियोजनाएं हाथ में लेता है.
1976: बंगलुरू में अस्पताल की स्थापना की.
1978: पुट्टपर्थी में लड़कों के लिए कॉलेज की स्थापना की.
1981: श्री सत्य साईं इंस्टीट्‌यूट फॉर हायर लर्निंग की स्थापना की, जो कि डीम्ड विश्वविद्यालय है.
1991: 220 बिस्तरों वाले सत्य साईं इंस्टीट्‌यूट फॉर हायर मेडिकल साइंसेज की स्थापना की.
1993: प्रशांति निलयम में बाबा के शयनकक्ष में चार लोग घुस आए, जिन्हें मार डाला गया. यह मामला अभी तक एक पहेली बना हुआ है.
1995: अनंतपुर पेयजल परियोजना की शुरुआत की.
1999: पेयजल की समस्याओं को सुलझने के उनकेप्रयासों के लिए डाक व तार विभाग ने  एक टिकट जारी किया.
2000: अपने अमृत महोत्सव कार्यक्रमों के तहत चैतन्य ज्‍योति  विश्व धर्म संग्रहालय का उदघाटन किया.
2001: मेडक और महबूबनगर जल परियोजाएं शुरू की. बंगलुरू के व्हाइटफील्ड में 333 बिस्तरों वाले अस्पताल की स्थापना की. डिजिटल रेडियो नेटवर्क रेडियो साईं ग्लोबल हारमनी का उद्‌घाटन किया.
2002: चेन्नै जल परियोजना शुरू की.
2007: पूर्वी तथा पश्चिमी गोदावरी जल परियोजनाएं शुरू की.
2009: सत्य साईं विश्वविद्यालय परिसर के निर्माण का उद्‌घाटन किया.
2010: अपना 85वां जन्मदिन मनाया.
2011: 24 अप्रैल को श्री सत्य साईं इंस्टीट्‌यूट ऑफ हायर मेडिकल साइंसेज में निधन हुआ.

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