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गहलोत क्या उपचुनाव की परीक्षा में खरे उतरेंगे?

चार विधायकों के निधन के बाद खाली हुए सीटों पर उपचुनाव होने हैं और इनके नतीजे संकेत दे देंगे कि अशोक गहलोत के लिए तीसरा साल कैसा होगा.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (फोटोः चंद्रदीप कुमार)
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (फोटोः चंद्रदीप कुमार)
अपडेटेड 25 जनवरी , 2021

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की एक और परीक्षा होने जा रही है क्योंकि उनके राज्य में चार विधानसभा सीटों के उपचुनाव मार्च में होने हैं. पिछले साल पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के उनकी सरकार को गिराने के प्रयास को विफल करने के बाद गहलोत सरकार के दो साल के कामकाज पर यह एक तरह से जनादेश होगा. हालांकि भाजपा इस उपचुनाव में उन पर कोई हमला करने से नहीं चूकने वाली है. पायलट का प्रभाव भी इन चुनावों में दिख जाएगा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पिछले साल उनकी जगह लेने वाले गोविंद सिंह डोटासरा कितने असरदार हैं, इसका भी पता चल जाएगा.   

राजस्थान विधानसभा में 200 सदस्य हैं औऱ इनमें से कुछ विधायक यह मानते हैं कि 2001 से शुरू हुए नए विधानसभा भवन में कुछ तो अशुभ है क्योंकि कभी भी एक वक्त पर इसकी छत के नीचे सभी सदस्य नहीं बैठ सके हैं-इसका कोई तो कारण है. अक्तूबर 2020 के बाद से राज्य ने चार विधायक खो दिए हैं जिनमें से तीन कांग्रेस पार्टी के हैं. पार्टी के विधायकों की संख्या अब 104 है जिनमें बहुजन समाज पार्टी से आए 6 विधायक भी शामिल हैं. इनके कांग्रेस में शामिल होने के मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. हालांकि गहलोत सरकार को निर्दलीय और अन्य का पर्याप्त समर्थन हासिल है जिससे उनकी विधानसभा में ताकत 120 के पार निकल जाती है. 

पिछले साल अक्तूबर में भीलवाड़ा जिले के सहाड़ा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस विधायक कैलाश त्रिवेदी का निधन हो गया था. नवंबर में चूरू जिले के सुजानगढ़ से कांग्रेस विधायक भंवरलाल मेघवाल का निधन हो गया. इसके बाद राजसमंद से भाजपा विधायक किरण माहेश्वरी का निधन हुआ और फिर 20 जनवरी को उदयपुर के वल्लभनगर से कांग्रेस विधायक गजेंद्र सिंह शेखावत नहीं रहे.  

सुजानगढ़ को छोड़कर अन्य सभी उपचुनाव मेवाड़ क्षेत्र में होने हैं जहां कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर देखने को मिलती है. शेखावत, पायलट के नजदीकी थे और पिछले साल गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत का झंडा उठाने वालों में शामिल थे. पायलट कैंप हाइ कमान की तरफ से अजय माकन और के.सी. वेणुगोपाल के सामने राजनीतिक नियुक्तियों और कैबिनेट विस्तार की मांग उठा रहा है. लेकिन गहलोत और उनकी टीम उपचुनाव तक इसे टालना चाहती है ताकि इस अवसर को उन लोगों को पुरस्कृत करने में किया जा सके जो पार्टी प्रत्याशी की जीत में मददगार हैं.  

इस सबमें उपचुनाव के लिए प्रत्याशियों का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होगा क्योंकि मुख्यमंत्री और पायलट अपने-अपने नामों के पक्ष में लामबंदी करेंगे. जिन विधायकों के निधन से सीटें खाली हुई हैं उनके परिवार वालों को टिकट देने और सहानुभूति के वोट लेने का भी दबाव है.  

प्रत्याशी चुनने पर किसी भी तरह का विवाद सिर्फ कांग्रेस के ही हितों को चोट पहुंचाएगा.  

हालांकि विधानसभा चुनाव 2023 में होंगे और वे काफी दूर हैं लेकिन अगर इनमें कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहता है तो कांग्रेस के लिए ये झटका होगा और भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल जाएगी. इससे सत्ताधारी पार्टी में गुटबाजी और बढ़ जाएगी जिसका फायदा भाजपा उठाएगी. साथ ही मेवाड़ क्षेत्र के दिग्गज नेताओं की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी. इनमें कांग्रेस नेता और विधानसभा अध्यक्ष सी.पी. जोशी, नेता विपक्ष गुलाब चंद कटारिया, कैलाश चंद्र मेघवाल और भाजपा सांसद दिया कुमारी शामिल हैं.

अनुवाद- मनीष दीक्षित

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