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आदिवासियों के लिए बनी पीएम-जनमन योजना एक साल के लिए और क्यों बढ़ाई गई?

आदिवासियों के लिए बनी पीएम-जनमन योजना को वित्त वर्ष 2025-26 में पूरा हो जाना था लेकिन इसके तयशुदा लक्ष्य पूरे नहीं हुए

Tribal life in rural India (Photo : Anand Dutt)
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 5 दिसंबर , 2025

देश के दूरदराज के इलाकों में बसे 'विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों' (PVTG) तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने के लिए 2023 में शुरू हुई पीएम-जनमन योजना वित्त वर्ष 2025-26 तक के लिए ही थी. लेकिन इस योजना के तहत तय लक्ष्यों में से कई लक्ष्य पूरे नहीं हुए हैं. ऐसे में केंद्र सरकार इसे एक और वर्ष के लिए बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है. जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इस योजना को एक साल का विस्तार देने के प्रस्ताव पर सरकार में सहमति बन गई है और इसकी घोषणा कभी-भी हो सकती है.
 
केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम-जनमन) योजना की शुरुआत 15 नवंबर, 2023 को जनजातीय गौरव दिवस के दिन की थी. कहा जा रहा है कि भारत के 75 PVTG के जीवन बदलने का दावा करने वाली यह योजना अब मार्च 2027 तक चलेगी.  
 
PVTG उन आदिवासी समुदायों को कहा जाता है जो आबादी में काफी कम हैं. इनमें वैसे आदिवासी समुदायों को कवर किया जाता है जिनकी कुल आदिवासी आबादी में मात्र 0.5 फीसदी तक की हिस्सेदारी है. साथ ही जिनकी साक्षरता दर काफी कम है और स्वास्थ्य संकेतकों में भी स्थिति ठीक नहीं है और ये समुदाय अब भी पारंपरिक जीवनशैली पर निर्भर हैं. ये 75 समुदाय देशभर के 18 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में फैले हैं. इनमें अंडमान की ओंगे और मध्य प्रदेश के बैगा जैसे आदिवासी समुदायों को शामिल किया गया है.
 
पीएम जनमन योजना योजना का कुल बजट 24,000 करोड़ रुपये से अधिक का है. इस योजना के तहत PVTG के 22,000 से अधिक गांवों के विकास का लक्ष्य रखा गया है. सरकार इन गांवों में 10 बुनियादी कामों को अंजाम देना चाहती है- पक्का आवास, स्वच्छता, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़कें, दूरसंचार, बिजली, वित्तीय समावेशन और सामुदायिक विकास. इस योजना का क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से हो, इसके लिए केंद्र सरकार ने कुल नौ मंत्रालयों को शामिल किया है. इनमें ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और पंचायती राज जैसे मंत्रालय शामिल हैं.
 
योजना के मुख्य लक्ष्यों में आवास निर्माण एक प्रमुख लक्ष्य था. प्रत्येक लाभार्थी परिवार को 2.50 लाख रुपये की सहायता से पारंपरिक शैली में घर बनाने का प्रावधान था ताकि आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा जा सके. ऐसे 1.30 लाख घरों का निर्माण होना था. स्वास्थ्य के मोर्चे पर मोबाइल मेडिकल यूनिट्स और आशा कार्यकर्ताओं की तैनाती का लक्ष्य था. वहीं शिक्षा में आंगनबाड़ी केंद्रों के विस्तार की योजना बनाई गई थी.
 
सड़क और कनेक्टिविटी के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत तकरीबन 10,000 किलोमीटर सड़कें बनाने की योजना भी थी. दूरसंचार में 2,500 से अधिक मोबाइल टावर लगाने की बात इस योजना के तहत की गई थी. सरकार का दावा रहा है कि यह योजना न केवल बुनियादी जरूरतें पूरी करेगी बल्कि PVTG समुदायों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ेगी.
 
जनजातीय कार्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, ''आवास बनाने के साथ नल का जल पहुंचाने, घरों तक बिजली पहुंचाने और आंगनबाड़ी केंद्रों के विस्तार के मामले में तो अपेक्षित प्रगति हुई है लेकिन सड़क निर्माण और स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के मामले में आधे लक्ष्य ही पूरे हो पाए हैं. सभी लक्ष्यों को मिलाकर देखा जाए तो तकरीबन 40 फीसदी लक्ष्य अधूरे हैं. यही वजह है कि इस योजना को एक साल का समय विस्तार दिया जा रहा है.''
 
तो आखिर ये लक्ष्य समय पर क्यों नहीं पूरे हो सके? इसके जवाब में ये अधिकारी बताते हैं, ''इसके कई कारण है. सबसे बड़ी दिक्कत सड़कों के निर्माण में है क्योंकि अधिकांश कार्य दुर्गम इलाकों में होने हैं. घने जंगलों, नदियों और पहाड़ों के बीच बसे इन आदिवासी समुदायों के गांवों में सर्वे, भूमि अधिग्रहण और श्रमिकों की उपलब्धता को लेकर कई चुनौतियां हैं. सोलर पैनल लगाने को लेकर भी स्थानीय स्तर पर अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है क्योंकि जिन लोगों के पास कच्चे घर हैं, उनकी छतों पर सोलर पैनल नहीं लग पा रहे. इसलिए इस मद का तकरीबन 500 करोड़ रुपये खर्च नहीं हो पा रहा है.'' एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि नौ मंत्रालयों के बीच आपसी समन्वय की कमी भी इस योजना के क्रियान्वयन में देरी की वजह बन रही है.
 
इन चुनौतियों के बीच एक साल का विस्तार उन आदिवासी समुदायों के लिए राहत की बात है, जिन्होंने इस योजना से बड़ी उम्मीदें लगा ली हैं. जनजातीय कार्य मंत्रालय के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि इस योजना को विस्तार दिए जाने से संबंधित कैबिनेट नोट तैयार है और जल्द ही इसे कैबिनेट की मंजूरी मिलने की उम्मीद है.
 
मंत्रालय के एक अधिकारी ने ये भी बताया कि विभिन्न मंत्रालयों के पास इस योजना के तहत खर्च किया जाने वाला जो पैसा बचा है, उसे जनजातीय कार्य मंत्रालय को ट्रांसफर कराके खर्च कराने की व्यवस्था का सुझाव भी नई क्रियान्वयन नीति में दिया गया है ताकि विभिन्न मंत्रालयों में समन्वय में कमी से कोई दिक्कत न हो.

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