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क्रिकेट: दौलत ही सेहत है चलते-फिरते चोटिल चमत्कारों के लिए

फाइनल लिस्ट में कौन-कौन खिलाड़ी हैं?'' सुरेश रैना के पास एक ही सवाल था जब कृष्णमाचारी श्रीकांत ने पिछले हफ्ते चेन्नै में उनसे मुलाकात की.

अपडेटेड 4 जून , 2011

फाइनल लिस्ट में कौन-कौन खिलाड़ी हैं?'' सुरेश रैना के पास एक ही सवाल था जब कृष्णमाचारी श्रीकांत ने पिछले हफ्ते चेन्नै में उनसे मुलाकात की. भारतीय क्रिकेट टीम के प्रमुख चयनकर्ता ने खबर दी थी कि वेस्टइंडीज के दौरे पर एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय (ओडीआइ) और ट्वेंटी-20 टीमों के कप्तान गौतम गंभीर के स्थान पर रैना होंगे.

लेकिन इस सवाल का जवाब उतना आसान नहीं है. उन्हें बताया गया था कि कव्वल तीन खिलाड़ियों को छोड़कर, विश्वकप विजेता टीम का कोई भी खिलाड़ी खेलने की हालत में नहीं है. रैना को अनुभवहीन खिलाड़ियों की एक नई टीम का नेतृत्व करना था.

चोट के कारण बड़ी संख्या में खिलाड़ी पिछले हफ्ते टीम इंडिया से बाहर हो गए. गंभीर चोट, दुर्घटनाओं, बहुत ज्‍यादा क्रिकेट और आराम नहीं करने के कारण भारत के क्रिकेट स्टार के चेहरों की हंसी फीकी पड़ती जा रही है.

विश्वकप और भीषण गरमी में आइपीएल ने उनकी सहनशीलता खत्म कर दी. सचिन तेंडुलकर, कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, गंभीर, वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह और जहीर खान के बाहर रहने के फैसले के बाद देश क्रिकेट के चोटिल खिलाड़ियों की गिनती कर रहा है. पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी कहते हैं, ''घायलों और आराम करने वाले खिलाड़ियों के कारण टूर में जीत की संभावना खत्म होती जा रही है.''

स्पोर्ट्स मेडिसिन के विशेषज्ञों का कहना है कि खेलों के बढ़ने के कारण चोट लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं. दिल्ली के डॉ. जतिन चौधरी का कहना है, ''क्रिकेट की अति है यह.'' उन्होंने 2009 में युवराज सिंह के कॅरियर के लिए खतरा बनी उनके घुटने की चोट को ठीक किया.

उन्होंने तेंडुलकर से लेकर टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को ठीक किया है. उन्होंने कहा, ''हालांकि फुटबॉल या हॉकी की तुलना में क्रिकेट उतना जोखिम भरा खेल नहीं है, लेकिन क्रिकेटर 365 में 250 दिन, खराब मौसम में भी हर तरह का क्रिकेट खेल रहे हैं.''

स्पोर्ट्‌स साइंस ऐंड रिहेबिलिटेशन फॉर द ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट, मुंबई के डायरेक्टर डॉ. निखिल लाटे का कहना है कि भारतीय क्रिकेटरों का कार्यक्रम बहुत ज्‍यादा व्यस्त ही नहीं होता, उन्हें पूरा आराम नहीं मिलता, लगातार यात्रा करते हैं, लंबे समय तक घर से दूर रहकर खेलते हैं और दिमाग बोझ्लि होता जाता है.

वे कहते हैं, ''मांसपेशियों के जरूरत से ज्‍यादा इस्तेमाल और मानसिक थकान के कारण चोट लगती है, बिना आराम के शरीर मानसिक व शारीरिक तौर पर काम करने लायक नहीं रहता.''

कंट्री बनाम क्लब बहस छेड़ने वाले आला खिलाड़ी इस बात से सहमति व्यक्त करेंगे. उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) से टकराव लेकर दलील दी है कि उनके परिवार, स्वास्थ्य और आराम का सबसे पहले ध्यान रखा जाना चाहिए. यह सिर्फ  वाक्‌युद्ध नहीं है.

आइपीएल के बाद सहवाग को कंधे की रोटेटर कफ मसल का दूसरा ऑपरेशन कराना होगा (पहला 2009 में हुआ). इसके अलावा उन्हें इस साल के शुरू में एक शॉर्ट बॉल से पसली में चोट लगी. विश्वकप 2011 के फाइनल लीग मैच के दौरान गंभीर के कंधे को खतरनाक चोट लगी.

एमआरआइ स्कैन से पता लगा कि उन्हें तत्काल इलाज की जरूरत है. तेंडुलकर ने अपने परिवार के साथ रहने का फैसला किया. उन्हें 2004 से अब तक कोहनी से लेकर (वे सबसे भारी बल्ले से खेलते हैं) कंधे तक की सर्जरी करानी पड़ी है, कूल्हे की मांसपेशियों में खिंचाव है  और बाएं घुटने के पीछे की नस की चोट फिर परेशान कर रही है.

युवराज को सांस की तकलीफ  है. उन्हें 2008 से घुटने को मुख्य रूप से सहारा देने वाली स्नायु फट चुकी है. डेफिशिएंट नी, दर्द, सूजन और अकड़न का सामना करना पड़ता है. जहीर 2002 से घुटने के पीछे की नस में खिंचाव, कमजोर नस फड़कने, कंधे में सूजन, कमर में ऐंठन और घुटने की चोट से जूझ रहे हैं.

क्रिकेट के बायोमेकव्निक्स में कुछ तो अनोखा है. भारतीय टीम के ओपनर रहे दिल्ली के क्रिकेटर आकाश चोपड़ा मानते हैं कि इस खेल की अपनी जरूरतें हैं: ''यह बाकी खेलों से अलग उतार-चढ़ाव वाला खेल है. बहुत ही गतिशील, साथ ही  बहुत धैर्य वाला.

दूसरे खेलों में लगातार गति के कारण दिल की धड़कन और मांसपेशियों में जोश बना रहता है. लेकिन क्रिकेट में आप शांत रहते हैं और अचानक गति में आते हैं. शरीर को लगातार झ्टके लगते रहते हैं.'' सो, आश्चर्य नहीं कि क्रिकेटर्स में ''सेकंड इंजरी सिंड्रोम'' आम है. गंभीर के कंधे में परेशानी और कमर की चोट गंभीर है, सहवाग के कंधे और घुटने का यही हाल है.

तेंडुलकर के घुटने के पीछे की नस फिर परेशान कर रही है. युवराज का घुटना और जहीर का पीठ दर्द और अन्य परेशानियां बार-बार सताती हैं क्योंकि उसी मांसपेशी का इस्तेमाल ज्‍यादा होता है.

लीलावती अस्पताल, मुंबई में स्पोर्ट मेडिसिन यूनिट के हड्डी रोग विशेषज्ञ दिलीप नाडकर्णी का कहना है, चार तरह के क्रिकव्टिंग मूवमेंट से चोट लगती हैः धक्का (जब बॉल लगे), केंद्रबिंदु (जब बल्लेबाज भागना शुरू करता है और फिर, किसी कारण वापस आता है.

इससे घुटने या कंधे में चोट लग सकती है), ट्विस्टिंग (खिलाड़ी गेंद के साथ दौड़ता  है, टखने को झ्टका देता है और गिर जाता है), और स्ट्रेचिंग (कैच लेने के लिए डाइव. इससे घुटने के पीछे की नस चोटिल हो सकती है).

तेज गेंदबाज ऐसी चोट के शिकार बनते हैं. नाडकर्णी कहते हैं, ''वह फरारी कार की तरह है जिसे हाइ क्लास सर्विसिंग, सही टेक्निक, रिहैब, प्रीहैब (खास व्यायाम) की जरूरत होती है. इसके अलावा, लंबे प्रतिस्पर्धात्मक खेलों में ज्‍यादा पसीना निकलने के कारण शरीर में पानी की कमी को हम कम महत्व देते हैं.

हमारे शरीर को कोशिकाओं के लिए जरूरी रसायन और इलेक्ट्रोलाइट्स सप्लाई करने के लिए पानी की जरूरत होती है. उन्होंने कहा कि शरीर में पानी की कमी से मांसपेशियों में खिंचाव, धड़कन, एकाग्रता में कमी आ सकती है जिसके परिणामस्वरूप चोट लग सकती है.

पुराने क्रिकेट खिलाड़ी इस तरह की बातों को स्वीकार नहीं करते. पूर्व कप्तान सुनील गावसकर कहते हैं, 'हुएक खिलाड़ी अच्छी तरह जानता है कि उसे कब ब्रेक लेना है. लेकिन अगर वह किसी दौरे के दौरान आराम करता है तो चयनकर्ताओं को कड़ा होना चाहिए कि वे उस खिलाड़ी का भविष्य के दौरे के लिए चयन न करें.'' पूर्व टेस्ट क्रिकेटर अरुण लाल इससे सहमत हैं: ''जब इंग्लैंड ने सर्वश्रेष्ठ टीम को भारत भेजने से इनकार कर दिया, हमने अपमानित महसूस किया. अब हम भी वही कर रहे हैं.''

दिल्ली के डॉ. पुष्पिंदर सिंह बजाज का कहना है कि शारीरिक मेहनत और प्रतिस्पर्धात्मक क्रिकेट के युग में दिखावा काम नहीं करता. जाने-माने खिलाड़ियों का इलाज कर चुके स्पोर्ट इंजरी.ज और आर्थरोस्कोपिक सर्जरी के विशेषज्ञ का कहना है, ''पहले खेल की गति धीमी थी, फायदा हुनर से मिलता था.

लेकिन अब क्रिकेट तेजी से मारने और खतरनाक एक रन लेने का स्मार्ट खेल बन गया है और इसके लिए पूरी तरह फिट होना जरूरी है. उन्होंने कहा, ''आज क्रिकेटिंग का मंत्र है सहनशीलता, तेजी, शक्ति और सटीकता.''

1983 में जब भारत ने पहली बार विश्वकप जीता, टीम के पास कोई फीजियोथेरेपिस्ट नहीं था, 1990 के अंत में कोई टीम मैनेजर नहीं था, भारतीय टीम के पास एक फीजियो-थेरेपिस्ट, डॉ. अली ईरानी थे और खिलाड़ियों के फिटनेस स्तर को बनाए रखने के लिए कोई स्पेशलाइज्‍ड ट्रेनर नहीं था.

न्यूजीलैंड के जॉन राइट 2002 में कोच के रूप में आए और उन्होंने जोर दिया कि बीसीसीआइ को खिलाड़ियों के लिए एक फीजियोथेरेपिस्ट उपलब्ध कराना चाहिए. एंड्रयू लीपस की सेवाएं इसके लिए ली गईं. उनके साथ टीम में एड्रीयन ली रॉक्स ट्रेनर के रूप में शामिल हुए. विशेष ट्रेनिंग शुरू होने पर खिलाड़ियों को अलग-अलग स्पीड में 20 मीटर की दूरी तक दौड़ना पड़ता था, उन्हें शक्ति बढ़ाने के विभिन्न तरीके, सहनशीलता, एरोबिक सिखाई गई.

वर्ष 2008 क्रांतिकारी परिवर्तन का समय था क्योंकि फीजियोथेरेपिस्ट जॉन ग्लोस्टर ने आलो-चनात्मक रिपोर्ट दीः अधिकतर भारतीय खिलाड़ी बाल की खाल निकालते हैं क्योंकि उनके पास चोट से उबरने या जरूरी स्वास्थ लाभ के लिए समय नहीं है. ग्लोस्टर ने हरेक खिलाड़ी को जिस तरह की चोटों का सामना करना पड़ता है उसकी जानकारी दी और साथ में इलाज की रणनीति बताई.

हाल ही में उन्होंने सुझाव दिया कि भारतीय खिलाड़ियों को अपने फिटनेस अनुपात को देखते हुए आइपीएल छोड़ देना चाहिए.

लेकिन ग्लोस्टर की विरासत मिश्रित वरदान बन गई. जैसे ही बीसीसीआइ ने ''चोटिल खिलाड़ियों'' के बाहर होने की बढ़ती संख्या की गिनती शुरू की, स्पोर्ट्‌स मेडिसिन और फीजियोथेरेपिस्ट की भूमिका के बारे में नई जागरूकता पैदा होने लगी लेकिन फीजियोथेरेपिस्ट के आने और छोड़कर जाने से इसके नतीजे  म्युजिकल चेयर की तरह दिखते आए.

पिछले साल न्यूजीलैंड की टीम के भारत दौरे से पहले पॉल क्लोज की नियुक्ति की गई. लेकिन सहवाग, तेंडुलकर और गंभीर ने उनके रवैए पर नाखुशी जाहिर की तो उन्हें छोड़कर जाना पड़ा. क्लोज की विदाई विश्वकप 2011 से ठीक पहले हुई, उसके बाद कई फीजियोथेरेपिस्ट राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी (एनसीए) में शामिल होने के लिए आए.

बीसीसीआइ ने अब क्रिकेट प्रतिभा को सुरक्षित  रखने के लिए भारी खर्च शुरू कर दिया है. फीजियो-ट्रेनर को मिलाकर बोर्ड को हर वर्ष दोनों पर 75,000-1,00,000 डॉलर (यात्रा और अन्य खर्च छोड़कर) खर्च करना पड़ता है. उनकी स्पेशलाइज्‍ड सुविधाओं पर बीसीसीआइ हर साल 50,000 डॉलर खर्च करती है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि खिलाड़ी एनसीए बंगलुरू में प्रशिक्षित होता है या टीम उन्हें मैच स्थल, भारत या विदेश में प्रशिक्षित करती है.

बीसीसीआइ खिलाड़ियों को दुनिया के दूसरे भागों में भी चोट के इलाज की सुविधा देता है. इसके साथ ही ए लिस्टर्स अब तीन फीजियोथेरेपिस्ट की मदद ले सकते हैं: उनका अपना, टीम का थेरेपिस्ट और एनसीए के विशेषज्ञ.

रैना को टेस्ट रैंकिंग में भारत को अव्वल बनाए रखने और अपनी अनुभवहीन टीम के साथ ओडीआइ के पहले स्लॉट में ऑस्ट्रेलिया को हराने का मुश्किल काम करना होगा. उनके सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज हैं शिखर धवन और मनोज तिवारी जिन्हें गंभीर और युवराज के स्थान पर शामिल किया गया है. अभिनव मुकुंद और एस. बद्रीनाथ (बॉक्स देखें) जैसे खिलाड़ियों पर काफी दबाव रहेगा. क्या दुनिया के सबसे संपन्न क्रिकेट बोर्ड को इसकी फिक्र है? अभी तो बीसीसीआइ 28 साल बाद भारत के विश्वकप जीतने का जश्न मना रहा है.

-साथ में कौशिक डेका

चोट से परेशान टीम इंडिया

क्रिकेट की अति
अंगों, मांसपेशियों के अत्यधिक इस्तेमाल से खिलाड़ी के चोटिल होने का खतरा बढ़ता है. लगातार मैचों के कारण उसे पर्याप्त आराम के लिए समय नहीं मिलता.

बायोमेकेनिक्स का मामला
नया विज्ञान क्रिकेट की गड़बड़ियां दिखाता है. इसमें गति और निष्क्रियता एक साथ है. मांसपेशी तुरंत गरम-ठंडा होती रहती है, इससे शरीर को निरंतर झ्टके लगते रहते हैं.

सेकंड इंजरी की समस्या
थकावट और चोट के तुरंत बाद खेलने से अक्सर बड़ी चोट पहुंचती है. गंभीर का कंधा और उरु-मूल, सहवाग का कंधा और घुटना, सचिन का उरु-मूल और हैमस्ट्रिंग, जहीर का हैमस्ट्रिंग निरंतर उठने वाली समस्याएं हैं.

एक अलग खेल
यह अब हुनर पर आधारित, भले-मानुसों का खेल नहीं रह गया है. अब यह तेजी, सहनशीलता, ताकत, सटीकता का  खेल है. बेहत प्रतिस्पर्धात्मक. इसलिए इसके लिए संपूर्ण फिटनेस बहुत जरूरी है.

गरमी और पसीना
अत्यधिक पसीना बहने से शरीर में पानी की कमी हो जाती है, मांसपेशियों में खिंचाव आने लगता है, धड़कन बढ़ जाती है, एकाग्रता भंग होती है. ये सब चोटिल करने के लिए काफी हैं.

 

महेंद्र सिंह धोनी
कमर में ऐंठन के अलावा उन्हें बस उंगली, कुहनी, घुटने में ज्‍यादातर गिरने से चोट लगी है.

वीवीएस लक्ष्मण
कमर में गंभीर ऐंठन की शिकायत, टूटी हुई उंगलियां, घुटने में चोट, मध्यक्रम के इस बल्लेबाज को 2001 से कई चोटें लगीं.

प्रवीण कुमार
इस तेज गेंदबाज को 2011 के विश्वकप में इसलिए नहीं खेलाया गया क्योंकि उनकी कुहनी में चोट लगी थी.

आशीष नेहरा
दाहिने हाथ की बीच वाली उंगली का ऑपरेशन करवा चुके हैं, जो पिछले साल कैच पकड़ने में टूट गई थी.

एस. श्रीसंत
जिस हाथ से गेंद फेंकते हैं उसके कंधे में चोट, घुटने के पीछे की नस फटी, घुटने की स्नायु फटी.

हरभजन सिंह
जिस उंगली से गेंद स्पिन कराते हैं उसमें निरंतर चोट, घुटने के पीछे की नस में चोट उनके कॅरियर का अभिशाप.

इरफान पठान
पिछले साल आइपीएल से उनकी कमर में समस्या शुरू हुई. वापसी के दबाव ने इसे और गंभीर बना दिया.

इशांत शर्मा
छरहरे गेंदबाज को 2008 में पैर के अंगूठे, उंगली में चोट लगी, फिर 2010 में घुटना चोटिल हुआ.

वीरेंद्र सहवाग
दर्द में भी वे खेलते रहे. उन्हें कंधे की मांसपेशी 'रोटेटर कफ मसल' का  दूसरा ऑपरेशन करवाना होगा. पहला ऑपरेशन 2009 में हुआ. घुटने में भी पुरानी चोट है.

गौतम गंभीर
वर्षों से उरु-मूल में खिंचाव, कंधे के ऊतक फटे हैं. इस साल विश्वकप के दौरान खुली बांह के सहारे गिरने से उनके कंधे बुरी तरह जाम हो गए.

युवराज सिंह
उनके फेफड़ों में न्यूमोनाइटिस के धब्बे बन गए हैं उनका बायां घुटना हमेशा तकलीफ देता है क्योंकि उसके भीतर स्नायु फट गई है. यह एक लंबी और दर्दनाक बीमारी है. 

जहीर खान
उनकी चोटों का अंत नहीं दिखता. घुटने के पीछे की नस खिंचती है, कंधे में सूजन है, उरु-मूल में खिंचाव, घुटने में चोट....

सचिन तेंदुलकर
2004 से लगातार  चोटिल -टेनिस एल्बो (सबसे भारी बल्ले से खेलते हैं), कंधे, कूल्हे, घुटने और कमर में चोट-के बावजूद खेल जारी. सचमुच ही  मास्टर.

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