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अमूल गर्ल: छोटी-सी गुड़िया की लंबी कहानी

हमारे अखबारों से भी तेज उसकी काया बदलती रही. और उसके चाहने वालों की तादाद बॉलीवुड सितारों के प्रशंसकों से भी अधिक हो गई.

अपडेटेड 25 जून , 2012

अमूल पारंपरिक अर्थों में कभी भी विज्ञापन अभियान नहीं रहा. यह हमेशा से एक सपने के रूप में हमारे सामने आता रहा है जो नरम-मुलायम, मुंह में पानी लाने जैसा, जीवन में एक बार और फिर कभी नहीं जैसा तजुर्बा-सा कुछ है. सिल्वेस्टर डाकुन्हा की सोच और युस्टास फर्नांडीस की कलाकारी से पैदा हुई अमूल की बच्ची आज 50 साल की हो चुकी है, लेकिन उसका बालपन और सौंदर्य ऐसा अक्षत है कि बड़े-बड़े शरमा जाएं.

हालांकि हम में से कई लोगों ने दशकों तक उसे पाला-पोसा, लेकिन उसके असली जनक थे वर्गीज कुरियन, जिन्हें लोग दूधवाला के नाम से जानते हैं. अगर उस छोटी बच्ची को अपनी तरह से पालने-पोसने के मामले में उन्होंने हम पर भरोसा नहीं जताया होता तो वह भी विज्ञापन के कई शानदार दूसरे विचारों की तरह मरणासन हो जाती. रचनात्मक लोगों के पास ऐसे ग्राहकों की कमी नहीं होती जो सीधे कहते हैं बस कर डालो, मुझ्से पूछो मत, और ऐसा करो जो ''न भूतो, न भविष्यति'' हो. अमूल गर्ल का वजूद और उसकी लगातार बढ़ती लोकप्रियता उन्हीं दूधवाले की बदौलत है.

इस तरह अमूल गर्ल पैदा हुई, और फिर एक बार चल निकलने के बाद वह ठहरी नहीं. वह इतनी तेजी से बदली कि कोई महिला उतनी तेजी से अपना दिमाग या कोई नेता अपनी पार्टी नहीं बदल सकता. मनोरंजक, व्यंग्यात्मक, मीठी छुरी जैसी बच्ची, जिसने कभी किसी की तरफदारी नहीं की, न ही किसी का दिल दुखाया. वह गुजराती, बंगाली, मराठी, मद्रासी कुछ में भी ढल जाती, इलाके और विषय की जरूरत के मुताबिक वैसी ही बन जाती. कहते हैं न, ''पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लगे उस जैसा.''

अपने कई रूपों में उसने उसे चरितार्थ कर दिखाया. हमारे अखबारों से भी तेज उसकी काया बदलती रही और उसके चाहने वालों की तादाद ज्‍यादातर बॉलीवुड सितारों के प्रशंसकों से भी ज्‍यादा हो गई. उसने मक्खन का प्रचार नहीं किया, लोगों के चेहरों पर मुस्कान और खुशी बिखेरी. और इसी ने अमूल को बाजार का सबसे बड़ा ब्रांड बना दिया. पूरी की पूरी पीढ़ी उस छोटी-सी बच्ची के कहे को सुनते बड़ी हुई. इस मामले में आर.के. लक्ष्मण के 'कॉमन मैन' के बाद दूसरे नंबर पर वही थी.

खेल, त्योहार, फैशन, फिल्म हर क्षेत्र पर इसने टिप्पणी की, लेकिन जब बात राजनीति की आती तो इससे बेहतर टिप्पणी कोई नहीं कर सकता था. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही राजनीति में. नीरस और निराशाजनक राजनैतिक घटनाओं के भी उजले पक्ष को दिखा कर उसने मुस्कान पैदा की. हरियाणा में मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशियों पर तंज हो (देवी के भजन की बंसी बाजे, तो हरि आना अमूल लेके) या फिर ओन्नई  विदा मतेन (मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा) नाम की फिल्म में एमजीआर को दिखाते हुए उसने उसका नाम बदलकर वेन्नई विदा मतेन (मैं मक्खन को नहीं छोड़ूंगा) कर दिया.

या शरद पवार के वर्चस्व पर टिप्पणी याद कीजिए-'इट्स शरद ऋतु ऑल इयर राउंड-विद अमूल'. या फिर देश के चंद खूबसूरत नेताओं में से एक राजीव गांधी और उनकी पार्टी के चिक्क पर-'हैंड सम विनर-अमूल'. उस वक्त के वित्त मंत्री ने जब कड़ा बजट पेश किया, तो बच्ची बोल उठी-'स्टॉप वीपी इंग ऐंड सिंग-अमूल बटर कॉस्ट्स लेस'. या फिर फ्रेंच राष्ट्रपति मितरां का स्वागत करते हुए-'हमारे फ्रेंच मितरों के लिए-अमूल बटर.'

उसने राजनैतिक दलों की बदकिस्मती पर भी टिप्पणी की-'इट हैज मेजरिटी इन एवेरी हाउस-अमूल'. देश में क्षेत्रीयता के विभाजनों पर इसने तस्वीरों से दिखाया कि अलग-अलग ब्रेड के टुकड़े मक्खन लगाकर कैसे एक साथ खड़े हो सकते हैं-'यूनाइटेड वी स्टैंड-अमूल द बॉन्ड दैट यूनाइट्स'. या फिर-'अमूल्स राज्‍य इन एवरी सभा.'

मैगी थैचर और उनकी टोरी पार्टी ने ब्रिटेन में चुनाव जीता, तो अमूल की बच्ची ने उन्हें सलामी देते हुए कहा, 'हिस्टोरीइक चॉयस-अटोरीली, बटोरीली अमूल.' उसने जियाउल हक का स्वागत यह कहते हुए किया, 'प्यार से जिया भर आए-जब अमूल बटर खाए.' यहां तक कि गुटनिरपेक्ष देशों का नैम सम्मेलन भी उसकी नजरों से नहीं बच सका-'नाम में क्या रखा है-अमूल हो तो बात बने.' अमूल गर्ल ने आम आदमी की बुनियादी जरूरतों की मांग करते हुए कहा-'रोटी, कपड़ा और मक्खन-अमूल मक्खन'.

जब केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए हफ्ते में पांच दिन के काम की घोषणा की, तो अमूल गर्ल ने पूछा, 'व्हाट डु गवर्नमेंट एम्प्लाइज स्टिल डु सेवन डेज अ वीक? ईट अमूल (सरकारी कर्मचारी अब भी कौन-सा काम सातों दिन करते हैं? अमूल खाते हैं.)' चित्र में अमूल बेबी को सरकारी कर्मचारी की तरह कपड़ा पहने टेबल पर दोनों पांव रख कर अमूल खाते दिखाया गया था और टेबल के नीचे लिखा था-ईट अमूल. इसमें एक गहरा और नया अर्थ छुपा था जो कई लोगों को दिख भी गया. बस टेबल के नीचे 'ईट अमूल' लिख देने से ही विज्ञापन को नया अर्थ मिल गया था. (इस तंज की मंशा नहीं थी, लेकिन आज तक इससे इनकार भी नहीं किया गया).

उसकी यह दास्तान 50 साल से जारी है. हर हफ्ते एक नई टिप्पणी. अंतहीन सूची है ऐसी टिप्पणियों की. जाने कितनी याद रह गईं, कितनी और आनी बाकी हैं. अटरली बटरली अमूल गर्ल अब तक की सबसे बेहतरीन राजनैतिक टीकाकार रही है. और अब तक की सबसे खूबसूरत भी!

भारत दाभोलकर अमूल बटर के विज्ञापनों के निर्माता हैं.

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