मार्च में लाकडाउन लागू होने के कुछ दिन बाद झांसी के रास्ते प्रवासी मजदूर यूपी में अपने घर जाने के लिए जुटने लगे थे. झांसी से कुल दस जिले जिनमें सात मध्य प्रदेश के और तीन यूपी के जुड़े हैं. जैसे ही इन मजदूरों के आने की खबर मिली झांसी के जिलाधिकारी आंद्रा वामसी ने फौरन जिला स्तरीय अधिकारियों की एक टीम बनाकर जिले के आउटररिंग रोड के पास मुंबई रोड पर रक्सा बार्डर के पास डेरा डाल दिया था.
वामसी ने कमिश्नर से लेकर शासन के बड़े अधिकारियों को प्रवासी मजदूरों के मूवमेंट की एक-एक सूचना देनी शुरू की और साथ ही उनके एक-एक निर्देशों को पूरी तरह जमीन पर अमलीजामा पहनाया. देखते ही देखते रक्षा बार्डर पर पर बीस हजार लोगों के ठहरने के लिए पंडाल और इतने ही लोगों के खाने-पीने का इंतजाम किया गया.
मजदूरों के लिए दो सौ रोडवेज बसों के एक बेड़े को लगातार मौजूद रहने के प्रबंध हुआ. इन बसों के ड्राइवरों के ठहरने और भोजन का अलग से इंतजाम हुआ. दूसरे राज्यों से आने वाले मजदूरों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए चौबीस घंटे डाक्टरों की टीम व्यवस्था हुई. किसी प्रकार की गड़बड़ी न होने पाए इसलिए मौके पर एक पुलिस चौकी भी बनाई गई. कुछ ही दिन में रक्सा बार्डर का इलाका एक टाउनशिप जैसे महौल में तब्दील हो गया.
रक्सा बार्डर के आसपास के इलाके प्रवासी मजदूरों के चलते कोरोना संक्रमण की चपेट में न आ जाएं इसके लिए न केवल आसपास के चार गांव का नियमित सैनेटाइजेशन कराया गया बल्कि इन गांव में रहने वाले हर व्यक्ति के सैंपल की जांच भी हुई जोकि निगेटिव आई. लाकडाउन में दूसरे प्रदेशों से करीब दस लाख प्रवासी मजदूर झांसी होते हुए गुजरे हैं. इन सभी मजदूरों का रिकार्ड दर्ज किया गया. फिर मजदूरों से जुड़ी जानकारियों को उनके संबंधित जिले के जिला प्रशासन को भेजी गई. नतीजा यह हुआ कि मजदूर के अपने गृह जिले पहुंचने से पहले उसकी जानकारी उसके जिले के कलेक्टर के पास पहुंच चुकी थी.
झांसी में वामसी और उनकी टीम की निगरानी के बीच अबतक प्रवासी मजदूरों को लेकर 1800 बसें, 48 ट्रेन जा चुकी हैं. साथ ही कोटा के स्टूडेंट्स और मध्य प्रदेश के छह हजार लोगों को वामसी ने झांसी से रवाना किया है.
लाकडाउन लागू होने के शुरुआती एक महीने में झांसी में कोरोना संक्रमण का कोई भी मामला सामने नहीं आया था. असल में झांसी को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए यहां की आउटर रिंग रोड ने बड़ी भूमिका निभाई. प्रवासी श्रमिक हों या कोई और सभी जिले के बाहर से ही निकल गए.
झांसी को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए यहां की भगौलिक परिस्थितियां भी काफी जिम्मेदार थीं. बुंदेलखंड की गर्मी के कारण बहुत सारे लोग दिन में बहुत ज्यादा अपने घरों से बाहर नहीं निकले.
गर्मियों में यहां ज्यादातर सक्रियता सुबह पांच बजे से लेकर 11 बजे तक होती है. इसके बाद गर्मी तेज होने के कारण लोग घरों में ही रहते हैं.
इन परिस्थितयों ने भी झांसी में लाकडाउन को सख्ती से लागू करने में बड़ी भूमिका निभाई. झांसी की 55 फीसदी आबादी ग्रामीण है और 45 फीसदी शहरी है. शहरी आबादी में केवल तीन लाख की आबादी ही सघन बस्तियों में रहती है. बावजूद इसके इस शहर में स्लम की समस्या नहीं है.
आमतौर पर झांसी की बसावट सघन न होने के कारण भी यहां वायरस के संक्रमण को फैलने की अनुकूल दशाएं नहीं मिलीं. यही वजह रही कि लाकडाउन लागू होने के 32 दिन तक यहां कोरोना संक्रमण का एक भी मामला सामने नहीं आया था.
बुंदेलखंड में झांसी एक मजबूत आधारभूत ढांचा कोरोना वायरस के खिलाफ खड़ा था. यहां बुंदेलखंड इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी, बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, दो कैंटोनमेंट बोर्ड, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल) की टाउनशिप, परीक्षा थर्मल पावर प्लांट की टाउनशिप है.
बुंदेलखंड में मौजूद सबसे अच्छे आधारभूत ढांचे वाले शहर को कोविड की जंग के खिलाफ खड़ा करने में वामसी को ज्यादा परेशानी नहीं हुई. लाकडाउन लागू होते ही वामसी ने यहां चल रहे स्वयं सेवी संगठनों, डाक्टरों और अन्य प्रतिष्ठित लोगों के सहयोग से जरूरतमंदों के लिए सरकार की गाइडलाइन आने से पहले ही कम्युनिटी किचेन शुरू कर दिए थे.
लाकडाउन के कुछ दिन बाद झांसी मेडिकल कालेज में एल-1 कोविड अस्पताल तैयार कर लिया गया और कुछ दिन बाद यहां पर कोरोना संक्रमण की जांच के लिए एक लैब ने भी काम करना शुरू कर दिया.
लाकडाउन लागू होने से पहले ही झांसी में सरकार की ओर से दो शेल्टर होम संचालित हो रहे थे. जिले में आसरा योजना फ्लैट को क्वारंटाइन कैंप में तब्दील कर दिया गया. पांच तहसीलों में सौ-सौ बिस्तरों वाले पांच क्वारंटाइन कैंप बनाए गए.
कैंटोंनमेंट बोर्ड और सेना के क्षेत्रों में भी क्वारंटाइन कैंप स्थापित हुए. मुख्यालय में 1600 बिस्तरों वाला क्वारंटाइन कैंप की व्यवस्था की गई. जिले में दो सौ बेड वाला एल-3 कोविड अस्पताल, तीन जगह पर तीन सौ बिस्तरों वाला एल-1 कोविड अस्पताल बनाया गया.
पूरे जिले में कुल मिलाकर सोलह हजार बेड का शेल्टर होम तैयार कराकर वामसी ने जिले के दूसरे विभागीय अधिकारियों के साथ अपने कुशल प्रशासनिक सामंजस्य की मिसाल पेश की. इसी सामंजस्य के जरिए झांसी में पहले से ही कोरोना के लिहाज से –सस्पेक्ट एरिया चिन्हित कर लिए गए थे.
इन इलाकों में लोगों की नियमित स्क्रीनिंग और जांच की गई. इसी प्रक्रिया के तहत झांसी के सुभाषगंज में कोरोना पाजिटिव का केस सामने आया. इस मरीज को आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराया गया. इसके बाद तुरंत इस मरीज के सीधे संपर्क में आने वाले लोगों को क्वारंटाइन सेंटर में भर्ती किया गया.
अप्रत्यक्ष संपर्क में आए लोगों को होम क्वारंटाइन किया गया. इस तरह से झांसी में अबतक सामने आए कुल 65 मरीजों में से 32 कोरोना पाजिटिव मरीज स्वस्थ्य होकर घर जा चुके हैं. इस वक्त जिले में 26 ही एक्टिव केस हैं.
मार्च के अंतिम हफ्ते में जैसे ही दूसरे राज्यों से प्रवासी मजदूर झांसी पहुंचने लगे वामसी ने जिले में “हाउस टू हाउस” मैपिंग शुरू कर दी थी. हर गांव में आशा, आंगनवाड़ी, एएनएम, लेखपाल, ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी, कोटेदार, प्रधान, रोजगारसेवक को शामिल करते हुए एक टीम बनाई जिसने घर-घर जाकर बाहर से आए लोगों और कोरोना के संदिग्ध मरीजों की पहचान की. इसी तरह शहर में भी छह कर्मचारियों की एक-एक टीम बनाई गई.
झांसी में अबतक 34 हजार लोग बाहर से आ चुके हैं. 62 लोग विदेश से आए हैं. इन सभी लोगों को होम क्वारंटाइन कराकर इनके घर के बाहर बकायदा स्टीकर चिपकाए गए. गांव में सतर्कता बढ़ाकर शहर पर बीमारी के फैलने का दबाव नहीं पड़ने दिया.
झांसी में कोरोना संक्रमण को थामकर प्रशासनिक समन्वय का बेहतर उदाहरण पेश करने वाले वामसी आंद्रा मूलत: हैदराबाद के रहने वाले हैं. इनकी शुरुआती शिक्षा विजयवाड़ा में हुई. जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद से इंजीनियरिंग करने के बाद वामसी ने नौकरी करने की बजाय सिविल सेवा में जाने की सोची.
वर्ष 2008 में इनका चयन इंडियन रेवेन्यू सर्विस (आइआरएस) में हुआ. यह विजयवाड़ा में “असिस्टेंट इंकमटैक्स कमिश्नर” के पद पर तैनात हुए. वर्ष 2011 में वामसी “इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस” (आइएएस) में चयनित हुए. ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के रूप में इनकी पहली पोस्टिंग पीलीभीत में हुई.
मथुरा, मुरादाबाद और प्रयागराज में मुख्य विकास अधिकारी सीडीओ के पद पर रहे.
जून, 2016 से अप्रैल 2017 के बीच प्रयागराज में सीडीओ रहने के दौरान वामसी ने जिले में दस हजार से अधिक दिव्यांगों को सहायक उपकरण बांटे थे. इसके लिए इन्हें प्रयागराज जिले को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था. अप्रैल, 2017 में यह कुशीनगर के जिलाधिकारी बने. इसके बाद इन्फॉर्मेशन टेक्नोलाजी विभाग में स्पेशल सेक्रेटरी और कोआपरेटिव में एडीशनल रजिस्ट्रार (बैंकिंग) के पद पर रहने के बाद इसी वर्ष फरवरी से वामसी झांसी के जिलाधिकारी हैं.
बंसी यानी बांसुरी को दक्षिण में वामसी कहा जाता है. बांसुरी की सुरम्य आवाज की तरह वामसी आंद्रा के प्रशासनिक कामकाज का तरीका भी सुरम्य है.
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