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मुझ पर दाभोलकर, पनसारे और गौरी की तरह हमले का खतराः उर्मिला

उत्तर मुंबई सीट से चुनाव लड़ रही उर्मिला मातोंडकर अपनी स्टार छवि से अलग हटकर चुनाव प्रचार में जुटी हैं. उनका भाजपा के धुरंधर नेता गोपाल शेट्टी से मुकाबला है. उर्मिला का कहना है कि अब उन्हें डराने की कोशिश की जा रही है. डर की वजह से उन्होंने पुलिस सुरक्षा ले ली है.

फोटोः नवीन कुमार
फोटोः नवीन कुमार
अपडेटेड 24 अप्रैल , 2019

रंगीला गर्ल उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस के टिकट पर उत्तर मुंबई सीट से चुनाव लड़ रही हैं. वह अपनी स्टार छवि से अलग हटकर चुनाव प्रचार में जुटी हैं और अपनी रंगीला हवा फैला दी है. उनका भाजपा के धुरंधर नेता गोपाल शेट्टी से कड़ा मुकाबला है. उर्मिला का कहना है कि अब उन्हें डराने की कोशिश की जा रही है. डर की वजह से उन्होंने पुलिस सुरक्षा ले ली है. उनसे नवीन कुमार ने विभिन्न मुद्दों पर बात की जिसके खास अंश पेश हैं-

फिल्म और राजनीति में क्या फर्क महसूस कर रही हैं?

पॉलिटिक्स में कोई शिड्यूल ही नहीं है. फिल्मों में तो पता है कि ये शिफ्ट है, ये वक्त है. फिल्मों में स्क्रिप्ट मिलती है और डायलॉग पता होता है. अलग-अलग वार कहां से होने वाले हैं वो भी पता होते हैं. लेकिन पॉलिटिक्स में डायलॉग नहीं होना इशू नहीं होता, वार होना इशू होता है. उसके लिए तैयार रहना जरूरी है. फिल्मों की तरह ही अब मैं पॉलिटिक्स में भी शत-प्रतिशत दे रही हूं.

फिल्म स्टार होने से क्या परेशानी आ रही है?

मुझे राजनीतिक मुद्दों के बारे में पता है. मैं भारतीय इतिहास, संस्कृति और सामाजिक संरचनाओं को जानती हूं. मैं लोगों से सीधे जुड़ती हूं. मुझे एक स्टार की तरह लोग देखते हैं. लेकिन मैं उनको बताती हूं कि मैं भी उनके बीच की ही हूं. फिल्म स्टार कोई अलग दुनिया की चीज नहीं है. मैं उन्हें गले लगाकर अपनापन का एहसास कराती हूं.

आपने कहा है कि आपको डर लगता है, किससे?

बोरिवली में जो घटना घटी उससे. वह बहुत ही भयानक था. एक भीड़ मुझे घेर रही थी. उसके बाद से मुझे डर लग रहा है कि मुझ पर भी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पनसारे और गौरी लंकेश की तरह हमले हो सकते हैं. बावजूद इसके मैं अपना काम कर रही हूं. आज की तारीख में हमले कई तरह से हो सकते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक.

प्रचार के दौरान किन मुद्दों पर बात होती है मतदाताओं से?

मेरा क्षेत्र देश की आर्थिक राजधानी है. और यहां पानी जैसा मुद्दा भी है. यह एक स्मार्ट सिटी है. मुंबई में बदलाव की जरूरत है. मैं सलम जाकर रफाले की बात नहीं करती हूं. मैं उन मुद्दों पर बात करती हूं जो उनके जीवन से जुड़े हुए हैं जैसे बेस्ट बस भाड़ा, गैस सिलिंडर के दाम और लोकल ट्रेन. दहिसर से चर्चगेट जाने के लिए महिलाओं के एक महिला स्पेशल लोकल है.

भाजपा अब शहीदों के नाम पर भी वोट मांग रही है?

यह बहुत दुखद है. सेना को राजनीति से बाहर रखना चाहिए. भाजपा जब जातीयता और धर्मांधता में फेल हो गई तो अब वे वोट की राजनीति में सेना का इस्मेताल करने लगी है.

फिल्म वाले राजनीति में तो आते हैं. लेकिन चुनाव जीतने के बाद जनता के बीच काम नहीं करते हैं?

मैं अपने बारे में कह सकती हूं कि मैं बस यूं ही नहीं आई हूं. मैं काम करना चाहती हूं. मैंने राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस में प्रवेश किया है. मैंने ऐसी पार्टी का चयन किया जो पावर में नहीं है. मैं अपनी स्टार इमेज से बाहर हूं.

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