मध्य प्रदेश के रतलाम नगर के विधायक पारस सकलेचा जब विधानसभा में नहीं होते तो क्लास में होते हैं या फिर एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा करते रहते हैं. 57 वर्षीय सकलेचा अपनी संस्था 'युवाम' के बैनर तले युवाओं को राजनीति का पाठ नहीं पढ़ाते बल्कि शिक्षित-बेरोजगारों को प्रतियोगी परीक्षाओं खासकर बैंक में नौकरी के लिए होने वाली परीक्षा पास करने के गुर सिखाते हैं.
ऐसा वे 1977 से यानी 34 वर्षों से कर रहे हैं और वह भी मुफ्त. वे कहते हैं ''किसी को प्यार चाहिए तो किसी को पैसा. मैंने प्यार को प्राथमिकता दी इसलिए मुफ्त पढ़ाने का फैसला किया.'' 1979 में सकलेचा के मार्गदर्शन से बैंक की नौकरी में आए 53 वर्षीय पूनम पटेल जो इन दिनों मुंबई में भारतीय स्टेट बैंक में सहायक महाप्रबंधक (एजीएम) हैं, कहते हैं, ''निःस्वार्थ-निःशुल्क मार्गदर्शन की ऐसी मिसाल कहीं देखने को नहीं मिलती. उनके मार्गदर्शन से जीवन की दिशा ही बदल गई.''
सकलेचा ने 1977 में भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी शुरू की थी. उस समय रतलाम जैसे छोटे शहर में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोई कोचिंग नहीं थी इसलिए बैंक में नौकरी के इच्छुक युवा सकलेचा से मार्गदर्शन लेने आते थे. रेलवे में क्लर्क पिता के बेटे सकलेचा को परिवार के दो कमरे के मकान में जगह कम पड़ने लगी. सो, तब 23 वर्षीय सकलेचा ने स्थानीय महाविद्यालय में एक कमरा मांगा जहां वे शाम को युवाओं को कोचिंग दे सकें.
नियमानुसार कमरा किसी संस्था को ही दिया जा सकता था इसलिए उन्होंने 'युवाम' के नाम पर आवेदन दिया और उन्हें कमरा मिल गया. यही 'युवाम' आज देशभर में रतलाम की पहचान बन गया है. आज भी 1,200 से ज्यादा युवा यहां बैंक परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं जिनमें से करीब 400 से ज्यादा दूसरी जगहों से आए हैं.
सकलेचा के मार्गदर्शन से जो युवा चुने गए, उनसे उन्होंने अपना कुछ समय युवाओं को मार्गदर्शन देने में लगाने को कहा. कुछ युवा इसके लिए तैयार हो गए और कक्षाएं बढ़ती गईं. 'युवाम' के पहले बैच में पढ़कर बैंक में नौकरी पाने वाले और दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में एजीएम पुरुषोत्तम माहेश्वरी कहते हैं, ''जब हमें निःशुल्क मार्गदर्शन के बूते सफ लता मिली तो हमने भी उसमें हाथ बंटाना शुरू किया.
इससे हमें आत्मिक संतोष मिला.'' आज 'युवाम' की मुफ्त कक्षाएं गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ में 200 केंद्रों पर चल रही हैं. राजस्थान तो एक बड़ा केंद्र बन गया है. कक्षाएं तहसील स्तर तक लगाई जाती हैं और गांव-देहात के संसाधनों की कमी से जूझ रहे प्रतिभाशाली युवाओं की पहचान की जाती है.
समय के साथ-साथ बैंक के अलावा वस्तुनिष्ठ प्रणाली से ली जाने वाली सभी परीक्षाओं की तैयारी भी शुरू की गई और इसका नतीजा है कि बीते 34 वर्षों में 1 लाख से ज्यादा युवा सकलेचा के मार्गदर्शन में रेलवे, बैंक तथा दूसरी प्रशासनिक सेवाओं में नौकरी हासिल कर चुके हैं. इनमें बड़ी संख्या थांदला, झाबुआ, बड़वानी जैसे आदिवासी अंचलों के गरीब युवाओं की है.
ऐसे युवाओं ने उन्हें नगर के विकास में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार किया और उन्होंने 1999 में बैंक की नौकरी छोड़ रतलाम महापौर पद के लिए बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ा तथा खासे बहुमत से जीते. राजनीति में बुद्धिजीवियों के आने की बहस के बीच उन्होंने विधानसभा के लिए भी दावेदारी की और 2008 में भारी वोटों से जीते. विधायक की व्यस्तता के बावजूद सकलेचा आज भी नियमित कक्षाएं लेते हैं. वे कहते हैं, ''पढ़ाने से मुझे ऊर्जा मिलती है.''

