आखिरी बार आप नशे में कब टुल हुई थीं? ''फिलहाल मैं पी ही रही हूं, आपको इस बात का अंदाजा नहीं कि मुझे सही शब्द लिखने में कितनी मशक्कत करनी पड़ रही है.'' जरा सोचिए, ये शब्द मुंबई में रहने वाली एक प्यारी-सी 22 वर्षीया लड़की के हैं. फिलहाल वह अपने कंप्यूटर के सामने बैठी है और एमटीवी के रियलिटी शो द रीयल वर्ल्ड के लिए डिजिटल ऑडिशन फॉर्म भर रही है.
युवाओं के लिए इस शो के मायने ''मशहूर होने का ख्वाब है.'' वह जोर देकर कहती है, ''मुझे पार्टी को लेकर कोई दीवानगी नहीं है. मैं सिर्फ इसलिए पीती हूं कि वक्त अच्छा कटे. मैं एक बहुत अच्छी लड़की हूं.'' हाथ में जाम थामे हुए वह अकेली नहीं है. यंगिस्तान आजकल बोतल, पेग, पिंट और शॉट पर अनुभवी पियक्कड़ की तरह हाथ साफ कर रहा है, हर उपलब्ध मौके पर वे शराब पीते हैं: जन्मदिन हो, क्रिकेट मैच हो, परीक्षा से पहले, परीक्षा खत्म होने पर, जश्न के लिए या फिर बोरियत को दूर करने के लिए.
अगर मौका मिल जाए तो ये नौजवान उस हद तक पीते हैं जब तक वे किसी दिक्कत में न पड़ जाएं. एक ऐसा देश जिसे वर्जनाओं और पाबंदियों के लिए जाना जाता है, वहां कौन, क्या, कहां, कब और क्यों पी रहा है कि प्राचीन धारणा तेजी से ध्वस्त होती नजर आ रही है.
लेकिन वयस्कों ने इस चलन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा हैः हिमाचल प्रदेश हाइ कोर्ट ने 13 जून को आदेश जारी किया कि नाबालिगों को एल्कोहल उत्पाद नहीं बेचे जाएंगे. अप्रैल में दुबई में हुई वर्ल्ड कार्डियोलॉजी कांग्रेस में एक अध्ययन पेश किया गया जिसने बताया कि फिल्म देखने वाले भारतीय युवाओं के बीच एल्कोहल का उपभोग तीन गुना ज्यादा है क्योंकि वे फिल्म में हीरो को खुलेआम शराब पीते देखते हैं.
इसको ध्यान में रखते हुए केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) ने निर्देश दिए थे कि फिल्मों में धूम्रपान और मद्यपान के दृश्यों के दौरान नीचे एक पट्टी चलनी चाहिए जिस पर इनके खिलाफ वैधानिक चेतावनी लिखी हो. 17 जून को बोर्ड की अध्यक्ष लीला सैमसन ने घोषणा की कि यह चेतावनी फिल्म की शुरुआत और इंटरवल के बाद दो बार जारी की जानी होगी.
वैसे, ये सब बातें नौजवान पियक्कड़ों के लिए कोई मायने नहीं रखतीं. एमटीवी की साइट पर नागपुर का एक लड़का खुश होकर लिखता है, ''अपने दोस्त के जन्मदिन की पार्टी पर मैंने एक दोस्त को चांटा मार दिया, पूरे कमरे में उलटी की, छत पर चढ़ गया, जोर-जोर से चिल्लाया और पड़ोसी की पानी की टंकी में पेशाब कर दिया.''
दिल्ली का एक लड़का बताता है, ''मैंने खूब पी, परीक्षा के लिए गया और और प्रश्नपत्र पर ही उल्टी कर दी.'' हैदराबाद का एक लड़का बताता है कि जिस दिन भारत ने क्रिकेट विश्वकप जीता था, उस रात वह पिए हुए था और उसकी खूब पिटाई हुई थी और जब वह सुबह जागा तो उसकी टांग टूटी हुई थी. कोलकाता की एक लड़की को अपने मित्र के साथ पहली शराबखोरी पर पहली बार सेक्स का मजा लेने का मौका मिला. वह बताती है, ''मैं नशे में धुत हो गई और फिर हमने सेक्स किया.''
पिछले एक दशक से एल्कोहल के प्रभावों का अध्ययन कर रहे बंगलुरू स्थित निमहैंस के डॉ. जी. गुरुराज बताते हैं कि युवा कम उम्र में शराब चख रहे हैं, मौज-मस्ती के लिए पीते हैं (कम समय में ढेर सारी शराब पीने की बाजी), हर मौके पर पीते हैं और इस तरह सामाजिक तौर पर पीने को ज्यादा से ज्यादा स्वीकार्यता मिलती जाती है.
एसोचैम ने 2009 में 2,000 किशोरों का अध्ययन किया था जिसमें यह बात सामने आई कि पिछले पांच साल के दौरान 19 से 26 वर्ष के किशोरों में शराब का उपभोग 60 फीसदी बढ़ा है. महानगरों में रहने वाले किशोरों में 45 फीसदी से ज्यादा महीने में पांच से छह बार पीते हैं जबकि 70 फीसदी सामाजिक मौकों पर पीते हैं.
नवंबर 2011 में एसोचैम के ही एक अन्य सर्वेक्षण में पाया गया कि पिछले दस साल के दौरान 15 से 18 वर्ष के युवाओं के बीच पीने की आदत में 100 फीसदी का इजाफा हुआ है.
मुंबई के हीरानंदानी अस्पताल में मनोवैज्ञानिक डॉ. हरीश शेट्टी कहते हैं, ''इन दिनों शराब पीना उतनी बड़ी समस्या नहीं जितना शराब पीकर समस्या खड़ी करना है. शराब पीने वाले 20 फीसदी लोग ऐसे होते हैं जो पीकर बेकाबू हो जाते हैं.'' इसी वजह से 2011 में आइआइटी दिल्ली के कुछ छात्र सुर्खियों में आए थे. उन्हें नशे में अराजक व्यवहार करने के कारण आइआइटी-कानपुर के फेस्टिवल से चलता कर दिया गया था.
शेट्टी कहते हैं कि खाने की मेज पर शराब का होना अब स्वीकार्य हो चला है, ''किशोर अपने पिता को मेहमानों को शराब परोसते देखते हैं और माताएं किटी पार्टियों में पीती हैं. 12-13 वर्ष के बच्चे अब बकार्डी ब्रीजर लेते हैं.'' एल्कोहल और स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एल्कोहल का ज्वार-सा आ गया है और पीने की उम्र घटती जा रही है. अस्सी के दशक में 28 वर्ष से पीने की उम्र अब 15 वर्ष पर आ गई है. माना जा रहा है कि महानगरों के कुछ हिस्सों में तो यह 13 वर्ष तक पहुंच चुकी है.
दिल्ली के मैक्स हेल्थकेयर में चीफ साइकिएट्रिस्ट डॉ. समीर पारिख और उनकी टीम ने जब दो साल पहले दिल्ली के बड़े स्कूलों के 100 छात्रों के बीच एक सर्वेक्षण किया तो वे ठगे से रह गए. इनमें 22 फीसदी बच्चों का मानना था कि पार्टी में एक पेग तो सभी लेते हैं, जबकि 26 फीसदी का मानना था कि 'कूल' होने का मतलब है तीन से चार पेग. डॉ. पारिख कहते हैं, ''13-17 वर्ष की उम्र में पीना एक सामान्य सी बात होती जा रही है.''
महानगरों में हैपी आवर किड्स तेजी से उभरे हैं. अब कैफे और फास्ट फूड रेस्तरांओं में बीयर परोसी जा रही है और पब तथा बार में शाम के शुरू के समय को हैपी आवर बताकर सस्ता कर दिया गया है, ऐसे में स्कूल के बाद या ट्यूशन से पहले बच्चों की एल्कोहल तक पहुंच आसान हो गई है.
*लड़कियों और युवतियों में एल्कोहल का उपभोग बढ़ता जा रहा है और यह समस्या राष्ट्रीय स्तर पर नजर आ रही है.
*अधिकतर स्कूल भले इस बात को न मानें, लेकिन बच्चे क्लासरूम में पीने लगे हैं. इंदौर के केबी पटेल गुजरी विद्यालय में इसी जून में उस समय तीन लड़कियों को स्कूल से निकाल दिया गया जब वे क्लास में पानी की बोतल में से चुपके-चुपके वोदका गटक रही थीं. जब एक लड़की ने क्लास में उल्टी कर दी, उस समय इस रहस्य पर से परदा उठ गया.
*लखनऊ में कॉलेज के छात्र मॉडल दुकानों या हाइवे के किनारे फ्राइड पनीर के साथ 'अंग्रेजी शराब' पीने के आदी हो रहे हैं. दोपहर से शुरू कर के वे रात तक पीते हैं, बलवा करते हैं और यहां तक कि हत्या भी हो रही हैं.
*सिकंदराबाद की प्रेंडरघास्ट रोड की अंधेरी गलियों में शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों का कहर है. यहां छात्र और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में काम करने वाले कार के भीतर सस्ती शराब पीते हैं. चूंकि इन इलाकों में पुलिस की आम तौर पर गश्त नहीं होती, लिहाजा वीकेंड पर झूमने से पहले ये कार में बैठ कर एकाध पेग लगा लेते हैं.
*महानगरों में पब और बार के भीतर विशाल स्क्रीन, कबाब, कॉकटेल, बीयर, टैटू, फेस पेंटिंग और टीम मर्चेंडाइज नया चलन बन रहे हैं. 2011 में एसोचैम ने अपने सर्वे में बताया था कि क्रिकेट मैचों के दौरान यहां तक कि किशोर भी एल्कोहल पीने की मात्रा को दोगुना कर देते हैं.
*चुपके से शराब पीने के कुछ नए तरीके महानगरों के युवाओं में फैल चुके हैं. इसके अलावा महानगरों में हुक्का लाउंज भी इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं. विभिन्न स्वाद वाले 'क्के के बेस में आम तौर पर वोदका या वाइन होती है.
पंद्रह वर्ष की उम्र से शराब पी रहे दिल्ली के 19 वर्षीय राहुल कपूर बताते हैं, ''हमें पता है कि कौन-से बार में किशोरों को शराब परोसी जाती है. अकसर बाउंसरों या मैनेजर से जान-पहचान काम कर जाती है.'' किशोर पियक्कड़ आम तौर पर जेब को रास आने वाली पॉप वाइनों से शुरुआत करते हैं जिनमें एल्कोहल की मात्रा बीयर से दोगुनी होती है और जिसमें फलों के फ्लेवर होते हैं. इसके बाद वे शराब की ओर बढ़ते हैं, जिनमें वोदका उनकी पहली पसंद होती है.
कम्युनिटी अगेंस्ट ड्रंकन ड्राइविंग ने 2010 में दिल्ली के 1,000 किशोरों को लेकर एक सर्वे किया था जिसमें पाया गया था कि 16 से 18 वर्ष के बीच के एक-तिहाई किशोर पब और बार में जाकर शराब पीते हैं.
महाराष्ट्र ने पीने की उम्र को बढ़ाकर 25 वर्ष कर दिया है जिससे बॉलीवुड में हड़कंप मच गया. इस बगावत की अगुआई करने वाले हैं युवा अभिनेता इमरान खान. सामाजिक न्याय मंत्री सचिन अहीर के मुताबिक, यह कदम ''किसी की समझ्दारी पर सवाल खड़ा करने के लिए नहीं, सिर्फ उनके बचाव'' के लिए है. हरियाणा और मेघालय में कानून के हिसाब से पीने की न्यूनतम उम्र 25 वर्ष है जबकि आंध्र प्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में 21 वर्ष है. केरल, गोवा, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश 18 वर्ष को पीने के लिए आदर्श उम्र मानते हैं.
मुंबई के करीब 7,500 बार, रेस्तरां और परमिट रूम्स का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था एएचएआर के सचिव सुकेश शेट्टी कहते हैं, ''इस तरह से शराब पीना कम नहीं होने वाला.'' उन्होंने बताया कि राज्य ने मार्च में जब से शराब पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई है, युवा पब में जाने से पहले ही कहीं कोने में एकाध घूंट मार लेते हैं ताकि पैसे बचा सकें.
मुंबई के खार में तृप्ति वाइन शॉप के मालिक कहते हैं कि वीकेंड पर युवा आम तौर पर पीकर ड्राइव करते हैं, और इस दौरान शराब की बिक्री खासी बढ़ जाती है. 27 वर्षीया अभिनेत्री मौली गांगुली मानती हैं कि रॉक कंसर्ट या क्रिकेट मैचों के दौरान आम तौर पर युवा पानी की बोतलों में वोदका छुपा कर ले जाते हैं और ऐसे नियम उन्हें गलत तरीके अपनाने के लिए मजबूर ही करते हैं. वे कहती हैं, ''लोग बगावत करेंगे ही. इससे छिप कर पीने के रुझान में इजाफा होगा.''
कुछ प्रगतिशील स्कूलों ने स्कूल में पीने के चलन को रोकने के लिए नए तरीके अपनाने पर जोर दिया है. पुणे के करीब रिवरडेल इंटरनेशनल रेजिडेंशियल स्कूल के हॉस्टल में 2009 में कुछ छात्र शराब पीते पकड़े गए थे. स्कूल ने शुरू में तो उन्हें निकाल दिया लेकिन बाद में वापस ले लिया और तुरंत ही उनकी इमेजिनेटिव काउंसलिंग करवाई गई जिसके 95 फीसदी तक सकारात्मक नतीजे मिले हैं.
ह्ढिंसिपल पयाम शोघी कहते हैं, 'सिर्फ नियम बनाने और उन्हें लागू करने या 'यह करो और यह मत करो' बताने से फर्क नहीं पड़ता. स्कूल ने आवासीय छात्रों के अध्यापकों, संरक्षकों और माता-पिता के साथ तीन स्तरीय कार्यक्रम भी शुरू किया है.
एक चिंताजनक बात लड़कियों और युवतियों में कम उम्र में शराब पीने का चलन है. दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में साइकिएट्री के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अचल भगत कहते हैं, ''इनके बीच एलकोहल का उपभोग काफी बढ़ा है.'' उनके मुताबिक, अधिकतर महिलाएं घर के पुरुषों से प्रभावित होती हैं. कोलकाता की जाधवपुर यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ विमेंस स्टडीज की डायरेक्टर शमिता सेन कहती हैं, ''लड़के जो काम करते हैं, उसकी नकल करने के प्रोत्साहन के कारण इस रुझन में इजाफा हुआ है. असल में लड़कियां लड़कों जैसे तरीके ही अपनाना चाहती हैं.''
जानकारों का मानना है कि कम उम्र की कामकाजी औरतें अपने दोस्तों के दबाव में आकर शराब पीना शुरू कर देती हैं. उदाहरण के लिए, डॉ. समीर पारिख के पास एक 23 वर्षीया बीपीओ एक्जीक्यूटिव इलाज कराने आई थी. उसकी शुरुआत नाइट आउट से हुई. यह नियमित होता चला गया और उसने काम के दौरान भी पीना शुरू कर दिया था.
डॉ. पारिख कहते हैं, ''उसे नौकरी से निकाल दिया गया और वह मदद के लिए मेरे पास आई थी. युवा दरअसल इस बात को नहीं समझ्ते कि कभी-कभार शराब का सेवन भी लत का रूप ले सकता है क्योंकि एल्कोहल का जैविक असर भी तो इसमें भूमिका निभाता है.'' पुणे के मुक्तांगन रिहैबिलिटेशन सेंटर की डिप्टी डायरेक्टर मुक्ता पुणतांबेकर को इन बातों पर कोई आश्चर्य नहीं है. पुणतांबेकर कहती हैं, ''एल्कोहल की चार फीसदी मात्रा वाला ब्रीजर भी किसी व्यक्ति को शराब की लत लगा सकता है.''
भारत के शुरुआती नशा मुक्ति केंद्रों में से एक मुंबई स्थित कृपा फाउंडेशन के संस्थापक फादर जो परेरा कहते हैं, ''पहले सामाजिक स्तर पर पीने वाले आदमी को इसकी लत लगने में दस साल का समय लगता था. आज सिर्फ दो साल में ही उसे लत लग जाती है.'' बेशक वे इस बात को जानते होंगे. उन्होंने नशे के आदी कई युवाओं को देखा हैः संपन्न परिवारों और अभिजात्य पृष्ठभूमि के लड़के, लड़कियां और युवा वयस्क.
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने मई, 2012 में एक अध्ययन में पाया कि बॉलीवुड की 59 फिल्मों में शराब पीने के दृश्यों का असर करीब 4,000 किशोरों पर हुआ. जब पूछा गया कि क्या उन्होंने ये फिल्में देखी हैं, तो यह बात सामने आई कि जिन्होंने देखी थी वे उन लड़कों के मुकाबले करीब तीन गुना ज्यादा शराब आजमा चुके थे जिन्होंने फिल्में नहीं देखी थीं.
यह नया चलन तेजी से भारत को अपनी जद में ले रहा है. यह आने वाले बरसों में न जाने कितनी तबाही लेकर आएगा. क्या कोई सुन रहा है और इस तबाही की बू सूंघ भी पा रहा है?
-साथ में गुंजीत स्त्रा, अदिति पै और अमरनाथ के. मेनन