प्रदेश में चिटफंड और मल्टीलेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनियों के खिलाफ अगर अभियान न चलता तो पता ही न चल पाता कि यहां लाखों लोगों के निवेश को किस अंधेरगर्दी के साथ लूटा जा रहा है और किसी को इसकी भनक तक नहीं. गोल्ड सुख नाम की एक कंपनी की करोड़ों रु. की ठगी उजागर होने के बाद प्रदेश सरकार ने अपनी साख बचाने के लिए अभियान छेड़ा तो सबके पांवों तले से जैसे जमीन ही सरक गई. दर्जनों कंपनियों के यहां चल रही छापामारी से निवेशकों में हाहाकार मचा हुआ है. कई मालिक भाग निकले हैं. छोटे मुलाजिम पुलिस के हत्थे चढ़ रहे हैं. भीलवाड़ा, चित्तौड़, बांसवाड़ा, झुंझुनूं आदि कई जिलों के अलावा दूसरे प्रदेशों में भी इन कंपनियों का जाल है.
21 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
पिछले हफ्ते भीलवाड़ा में 2,000 करोड़ रु. से ज्यादा का कारोबार कर रही राइट कॉन्सेप्ट मार्केटिंग (आरसीएम) पर छापे मारकर 1,500-2,000 करोड़ रु. की ठगी का खुलासा किया गया. इसके मुखिया त्रिलोकचंद छाबड़ा बेटे, बेटी और भाई के साथ फरार हो लिए. देशभर के हवाई अड्डों को अलर्ट किया गया कि वे कहीं विदेश न निकल लें. कंपनी के चार अधिकारी जरूर पकड़े गए. कंपनी के 15 बैंकों में मौजूद 40 खाते भी सीज कर दिए गए. इस कंपनी का कोई पंजीकरण ही नहीं है. छाबड़ा फैशन शूटिंग लि. की अपनी फर्म की आड़ में इसे चला रहे थे. देश भर में इसके करीब 3,000 आउटलेट हैं. कंपनी के सवा करोड़ ग्राहक अब माथे पर हाथ धरे बैठे हैं. कंपनी के परिसर से 11,600 कट्टे गें और आटा भी जब्त किया गया. वह भारतीय खाद्य निगम से गरीबों को मिलने वाले गें का आटा बनाकर बेच रही थी.
प्रदेश में एमएलएम की शुरुआत कराने वाले झुंझुनूं जिले में पुलिस सक्रिय हुई तो 3 लाख रु. से ज्यादा सदस्यों वाली, 1996 से सक्रिय प्रिया कंपनी को लपेटा. इसके चेयरमैन तेजपाल नूनियां और निदेशक सुरेंद्र और महेश नूनियां को गिरफ्तार किया है. उसके एक दफ्तर के बाहर पैसा वापस करने की मांग को लेकर निवेशक फूट पड़े. कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के पास शिकायत दर्ज करवाई गई. कंपनी के 28 से ज्यादा खातों में से 11 खातों को सील करवाया जा चुका है.
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
07 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
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गोल्ड सुख प्रकरण की जांच कर रहे प्रदेश के पुलिस महानिरीक्षक (अपराध) पी.के. व्यास कहते हैं, ''अब पीड़ितों की शिकायत के बिना भी प्रदेश में चल रही ऐसी कंपनियों की धरपकड़ होगी.'' एमएलएम फंडे पर आधारित प्रिया परिवार ने झुंझुनूं से निकलकर शेखावाटी और पिछले कुछ सालों में पूरे राजस्थान में अपना जाल बिछा लिया था. इस वक्त कंपनी के 3 लाख से ज्यादा सदस्य बताए जाते हैं. ज्यादा से ज्यादा युवाओं को कमाऊ औजार बनाने के लिए उन्हें मोटे मुनाफव् के साथ कार, मोटरसाइकिल जैसे प्रलोभन दिए गए थे.
कंपनी का पूरा गणित तीन तरह की योजनाओं में था. इसी में से एक के तहत निवेशकों को 6,800 रु. के निवेश पर तीन साल में 25,000 रु. देने का वादा किया. इसके करीब डेढ़ लाख सदस्य बने और करोड़ों रु. आए. लालच बढ़ा. चौथी योजना आईः कंप्यूटर शिक्षा. पढ़ाई करो और कंपनी के लिए सदस्य बनाकर पैसे कमाओ. पीले रंग की मारुति पर सवार कंपनी के सदस्य आपको प्रदेश के गांव-गांव में इसके फायदे बताते मिल जाएंगे.
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
पंद्रह सौ रु. लेकर सदस्य बनाने वाली भीलवाड़ा की आरसीएम का सालाना कारोबार करीब 1,200 करोड़ रु. था. सदस्य को 300-400 रु. का किट दिया जाता था. डीएसपी सदर, रामकुमार कस्वां बताते हैं, ''सदस्यों को 5,000-10,000 रु. जमा कराने पर 10 फीसदी और साढ़े तीन लाख रु. का बिजनेस देने पर 25 फीसदी बोनस का झांसा दिया जाता था.'' ज्यादा रकम आने पर कंपनी ने उत्तराखंड और बिहार तक में रियल एस्टेट में पैसा लगाना शुरू कर दिया. भीलवाड़ा के पास भी जमीन खरीदकर फ्लैट बनाकर बेचने की बात सामने आई है. छाबड़ा बंधु और उनके परिजन 32 अन्य छोटी-बड़ी कंपनियां चला रहे हैं.
भीलवाड़ा में तो दो दर्जन कंपनियों के बारे में शिकायतें मिलीं. भीलवाड़ा के पुलिस अधीक्षक उमेशचंद्र दत्ता बताते हैं, ''गुजरात और छतीसगढ़ तक से शिकायतें आ रही हैं.'' जिला पुलिस ने 10 कंपनियों के खिलाफ धरपकड़ के तहत 30 लोगों को हिरासत में लिया है. आरसीएम का फंडा कुछ अलग तरह का है. पहले सदस्य फीस में कमाई, फिर अपने उत्पाद उन्हीं सदस्यों को बेचकर कमाई. फिर ये सदस्य कंपनी का उत्पाद भी लाभ के लालच में बेचेंगे. यानी कंपनी की हर तरफ से कमाई.
23 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
भीलवाड़ा के पूर्व विधायक रामरिछपाल नुवाल की कंपनी स्टारनेट भी पुलिस के हत्थे चढ़ चुकी है. नुवाल ने सार्वजनिक छवि की आड़ में भीलवाड़ा और बाहर के निवेशकों को चूना लगाया. लेकिन दूसरों से इतर उनका तरीका थोड़ा नाटकीय थाः एक बकरी दो, पांच साल बाद कंपनी तीन बकरियां देगी. ग्राहक को 5,000 रु. जमा करने होते थे. पांच साल बाद 9,000 रु. नकद और बकरी पालन से होने वाले फायदे से कमीशन देने का वादा भी किया गया था. नया सदस्य बनाने पर 500 रु. कमीशन भी दिया जाता था.
पुलिस ने स्टारनेट के करीब दस कर्मचारियों को हिरासत में लिया है पर नुवाल पुत्र-पौत्र समेत फरार हैं. सहायक पुलिस अधीक्षक रा'ल कोटोकी के मुताबिक, ''कंपनी को आइएसओ सर्टिफिकेट मिला हुआ था. इसीलिए भरोसे के साथ लोग जुड़ते चले गए. 2008 से शुरू कंपनी चार साल में करोड़ों रु. का कारोबार करने लगी. संचालकों ने ऑस्ट्रेलिया से उन्नत नस्ल की बकरी मंगवाकर पालने, दूध के उत्पाद और मींगणियों से बनी दवा विदेश भेजने का झांसा दिया. ऑस्ट्रेलिया से एक भी बकरी भीलवाड़ा नहीं आई.''
9 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे2 नवंबर 201: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
राज्य सरकार को भेजी गई खुफिया विभाग की रिपोर्ट में बताया गया है कि नुवाल ने इसके अलावा शहर के पास रायला में भूखंड प्लानिंग की स्कीम बना डाली. गोट फार्मिंग से जुड़े सदस्यों को ही भूखंड प्लानिंग स्कीम से जोड़ने का प्रयास करते हुए किस्तों में 75,000 रु. लिए गए. लोगों ने मौके पर जाकर पता किया तो जमीन किसी और के नाम निकली. दूसरे भी प्रलोभन दिए गए पर सब गोलमाल निकला. स्टारनेट के शहर के बैंकों के 8 खाते सील किए हैं. नुवाल के विरोध में कई पीड़ित थाने भी पहुंचे लेकिन उनके रसूख के आगे पुकार बौनी पड़ गई. कई मामले दब गए तो कई दबा दिए गए. उनकी कंपनी में डेढ़ से दो लाख के बीच सदस्य बताए जाते हैं. भीलवाड़ा में जिन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है उनमें सर्वोदय, साजन ज्वेलर्स, डू-वेल इंटरनेशनल, स्टार गुड, स्काइ वे क्रेडिट, मंथन प्रमोटर्स भी शामिल हैं.
भीलवाड़ा का एक शिक्षक मोटे लाभांश के चक्कर में अपनी नौकरी छोड़ एक कंपनी से जुड़ा और जबरदस्त मेहनत की बदौलत काफी लोगों को जोड़ लिया. वह कंपनी से अच्छे पैसे कमाने लगा . तभी उसके नीचे की पूरी चेन किसी दूसरे के नीचे लगा दी गई. नाराज हो शिक्षक ने काम करना बंद कर दिया. अब कंपनी का भी इसी में भला था. चेन का गणित ऐसा है कि कंपनियां कभी भी किसी को उलझा सकती हैं. शेखावाटी में तो पूरी चेन बिकती है.
19 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
12 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
5 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
दरअसल, एमएलएम की तर्ज पर काम करने वाली कंपनियों का पैसा ऐंठने का तरीका काफी रणनीति वाला है. प्रिया प्रकरण में सीकर जिले के पीड़ित राजीव गोरा की सुनिए, ''झांसे में आकर पहले खुद सदस्य बना, बाद में पचासों की संख्या में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को इस कंपनी से जोड़ा. कंपनी ने पहले तो लाभांश दिया और बाद में सब देना बंद कर दिया. सदस्य बनाते रहने तक सदस्यता फीस में से कुछ कमीशन मिलता रहेगा. न जोड़ पाने पर कंपनी का दबाव आपको इतना अखर जाएगा कि आप खुद कंपनी से दूर चले जाएंगे. दोस्ती/रिश्तेदारी के लिहाज के चलते आपके नीचे जुड़ने वाले सदस्य भी आप पर दबाव नहीं बना सकते. यानी सबका पैसा कंपनी के खाते में हजम.
चिटफंड कंपनियां ग्राहकों में पकड़ बनाने के लिए सेलिब्रिटीज को बुलाते हैं. गोल्ड सुख ने प्रदेश के कई बड़े पुलिस अफसरों और बॉलीवुड की हस्तियों को बुलाया. प्रिया परिवार ने जयपुर के सांसद महेश जोशी और कई नेताओं को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया. पिछले कुछ महीनों से कई प्रकरणों में किरकिरी झेल चुकी सरकार इस मामले में चेहरा बचाने को सख्त दिखाई दे रही है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दूध का दूध पानी का पानी होता है या नहीं? या फिर प्रदेश में ऐसे ही ठगों का राज चलता रहेगा.
बोलते तथ्य
राजस्थान में वित्तीय कंपनियों की धोखाधड़ी के खिलाफ दर्ज होने वाले मामलों के ब्यौरेः
-2009 में 46 मामले दर्ज हुए. इनमें से 21 मामलों में चालान पेश किए गए और 23 मामलों में फाइल बंद कर दी गई. 2010 में 144 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 31 लंबित हैं. 73 मामलों में चालान पेश हुए और 40 में फाइल बंद कर दी गई. 2009 और 2010 में गिरफ्तारी एक भी नहीं हुई. 2011 के मौजूदा साल में 222 मामले दर्ज हुए हैं. एक अनुमान के मुताबिक, 162 करोड़ रु. के निवेश जुटाए गए. इसमें से सिर्फ 30 लाख रु. और 15 किलो सोना ही बरामद हुआ है. अब तक 162 गिरफ्तारियां हुई हैं. 43 चालान पेश किए जा चुके हैं और 118 मामले अभी भी लंबित हैं. 61 मामले बंद कर दिए गए.
28 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
21 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
7 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
-राज्य के पुलिस महानिदेशक हरीश चंद्र मीणा ने पर्याप्त जांच किए बगैर ही वित्तीय कंपनियों के खिलाफ मामले बंद कर देने पर दो उप पुलिस अधीक्षक और 4 थानेदारों को हटा दिया. इन पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच चल रही है. एक एडीजी, एक आइजी और एक एसपी स्तर के अधिकारियों पर भी इन कंपनियों में बड़े पैमाने पर निवेश करने या उनमें उनका हिस्सेदारी का अपुष्ट आरोप है. पुलिस महकमे की छवि बुरी तरह धूमिल करने वाली इन रिपोर्टों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उच्चस्तरीय जांच के आदेश अभी तक नहीं दिए हैं. सीबीआइ जांच से ही सच सामने आ सकते हैं.
-2011 में सबसे ज्यादा 95 मामले-कुल 144 करोड़ रु. के-जयपुर संभाग में दर्ज किए गए.