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विश्‍वभर में पर्यटक ही बचाते हैं बाघों को

पर्यटन वन्यजीवन संरक्षण का एक जरूरी तरीका है. उस चीज के संरक्षण में किसी की दिलचस्पी नहीं हो सकती, जिसे देखने या जिसका अनुभव लेने की उन्हें इजाजत ही न हो.

बाघ बचाईये
बाघ बचाईये
अपडेटेड 26 नवंबर , 2011

जन्मजात कोई भी वन्यजीव वैज्ञानिक, वन अधिकारी, विशेषज्ञ या प्रकृतिविद् नहीं होता. हम में से जिस किसी में भी वन्यजीवन के प्रति आकर्षण है, उसने समय के साथ यह रुचि विकसित की है. ज्‍यादातर लोगों के लिए यह सफर जीव-जंतुओं के लिए संरक्षित किसी क्षेत्र के सैलानी के रूप में शुरू हुआ है. वन्यजीवन से जुड़े पर्यटन को लेकर कोई कुछ भी कहे, सच यही है कि पर्यटन बेहतर संरक्षण के लिए उपयोगी है, जैसा कि दुनिया भर में किया जा रहा है.
30 नवंबर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे 

भारत में बाघों के लिए बने संरक्षित क्षेत्र कई तरह की इंसानी  दखलंदाजी के अड्डे बने हुए हैं. मसलन, जरूरी बचाव और प्रबंधन का हवाला देकर वन विभाग वनों में कई तरह के काम करता है. इसके अलावा संरक्षित क्षेत्रों के भीतर तमाम गांवों और परिवारों की बसावट है. सड़कें, रेलवे, बिजली के तार अपना जाल फैला चुके हैं और जैसे-जैसे सरकारी मंजूरी मिलनी आसान हो रही है, खदानें, बांध और दूसरे उद्योग भी पसर रहे हैं.
23 नवंबर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे 

इनके अलावा  पर्यटक तो हैं ही. संरक्षण और प्रबंधन के अलावा, जिस एकमात्र गतिविधि का वन्यजीवन को सीधे तौर पर कोई फायदा हो सकता है, वह पर्यटन है. इससे संरक्षण के लिए मदद और पैसा जुटाने में मदद मिलती है.  पर्यटकों की मौजूदगी वन विभाग की जवाबदेही भी बढ़ा देती है क्योंकि उसके संरक्षण संबंधी प्रयासों के नतीजे जनता भी देख सकती है.
16 नवंबर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे 

पर्यटन के अपने नकारात्मक पहलू भी हैं. देश के कानून और नीतियों की भूमिका इस नुक्सान को कम करने वाली होनी चाहिए. इसके उलट हम अपने कई राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में पर्यटन पर पूर्ण प्रतिबंध की आशंका का सामना कर रहे हैं. यह कहना कि सारा पर्यटन अलग-अलग इस्तेमाल वाले बफर क्षेत्रों में किया जाना चाहिए, बेतुका है क्योंकि वहां कोई वन्यजीवन होता ही नहीं.
09 नवंबर 2011: तस्‍वीरों में देखें इंडिया टुडे 

मैंने ऐसा कोई छपा हुआ आंकड़ा नहीं देखा है, जो यह कहता हो कि राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में दिन की सफारी का बाघों या वन्यजीवन की बाकी नस्लों पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. बाघों के ज्‍यादा घनत्व वाले हमारे कई टाइगर रिजर्व में पर्यटकों की ज्‍यादा आवक है. यह भी देखा गया है कि जब ये इलाके पर्यटन के लिए खोले गए, तो यहां बाघों की संख्या बढ़ गई. शायद, अवैध शिकार के खिलाफ ज्‍यादा संरक्षण के कारण.

वन्यजीवन पर्यटन के उचित नियमन की तुरंत जरूरत है- होटल या लॉज के वन संसाधनों के प्रयोग और कचरे के निबटारे के लिए नियम जरूरी हैं और पार्कों के बाहर पर्यटकों के ठहरने के स्थान वन्यजीवन की हलचलों में अड़चन या दखल न दें. यहां होने वाली आमदनी को स्थानीय लोगों के साथ बांटने के तरीकों को ईजाद करने की भी जरूरत है.

मीडिया में हुई बहस में इस सवाल पर ध्यान दिया गया है. ''जब संरक्षित क्षेत्रों से आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है, तो पर्यटन को अनुमति कैसे दी जा सकती है?'' इस तर्क में समझ का पूरी तरह अभाव नजर आता है. पहली बात तो यह कि ग्राम सभाओं की सहमति के बिना आदिवासियों को संरक्षित क्षेत्रों से विस्थापित किया ही नहीं जा सकता क्योंकि वन अधिकार अधिनियम साफ तौर पर इसकी मनाही करते हैं.

दूसरे, पर्यटन पर रोक लगाने का आदिवासियों और अन्य स्थानीय समुदायों पर जो एकमात्र असर होगा, वह यह कि उनमें से जो आमदनी के लिए पर्यटन पर निर्भर होंगे, वे खुद को बेरोजगार पाएंगे. एक और नजरिया यह है कि वन्यजीवन संरक्षणवादी पाखंडी हैं, जो 'समुदाय' का पत्ता खेलते हैं.

मैं आदिवासी अधिकारों की कार्यकर्ता होने का नाटक नहीं करती. मेरे विचार इस बात पर आधारित हैं कि जंगल में जीवन के लिए क्या बेहतर है और क्या नहीं. सफल वन्यजीवन संरक्षण के लिए स्थानीय सहयोग जरूरी है, मैं स्थानीय समुदायों का समर्थन करती हूं, जहां उनके हित वन्यजीवन के हितों से मेल खाते हैं.

भारतीय वन्यजीवन संस्थान के इस निष्कर्ष का मैं समर्थन करती हूं कि बाघ अभयारण्यों के कोर क्षेत्र में बनी मानव बस्तियां बाघों के लिए ठीक नहीं हैं. ये उन पर्यटकों से भिन्न हैं, जो कोर इलाके के बाहर रहते हैं और जिन्हें दोपहर में कुछ घंटे के लिए थोड़े से इलाके में आने की इजाजत है. कई संरक्षणवादी भी वन्यजीवन पर्यटन से जुड़े हुए हैं, मैं भी उनमें से एक हूं. कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के बाहर एक टूरिस्ट लॉज 2005 में मुझे मेरे पिता से विरासत में मिली है.

नियंत्रित वन्यजीवन पर्यटन संरक्षण का एक तरीका है. उस चीज के संरक्षण में किसी की रुचि नहीं हो सकती, जिसे देखने या जिसका अनुभव लेने की इजाजत उन्हें नहीं है. राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में पर्यटन पर पूर्ण प्रतिबंध बाघों के लिए विनाशकारी होगा और यह अवैध शिकारियों और लकड़ी माफिया के लिए एक खुला निमंत्रण होगा.

बेलिंडा राइट वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक हैं. 

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