आज के साधु-संत लोग सुर्खियों में रहने की कला जानते हैं. बाबा रामदेव का नौ दिन का अनशन जब मीडिया सर्कस में बदल गया तब आध्यात्मिक यात्रा में उनके कुछ सहयोगी भी उनके इस बहु-प्रचारित अभियान में शामिल हो गए.
जब रामदेव ने देहरादून के हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में अनशन तोड़ा तो उन्हें जूस पिलाने के लिए श्री श्री रविशंकर, मुरारी बापू और कृपालु महाराज के अलावा कई साधु-संत मौजूद थे. हर पल नया रंग बिखेरते इस इंद्रधनुष में अपना भी रंग जोड़ने के लिए वे सभी उनके बिस्तरे के नजदीक पहुंच चुके थे.
रामदेव ने जूस पीने के बाद कहा, ''मैं धर्मात्माओं की अपील पर अनशन तोड़ रहा हूं लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ मेरा अभियान जारी रहेगा.'' इसके बाद सभी साधु-संत रामदेव की सेहत का ब्यौरा देने और भ्रष्टाचार से निबटने के बारे में अपने विचार बताने के लिए मीडिया की तरफ बढ़ गए.
बाद में श्री श्री रविशंकर ने इंडिया टुडे को बताया, ''मैं भी काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ हूं, लेकिन रातोरात कोई चमत्कार नहीं हो सकता. सिर्फ भावावेग या अनशन से तुरत-फुरत कोई नतीजा नहीं निकल सकता. यह काफी लंबी लड़ाई है, इसलिए, मैं समझ्ता हूं कि आमरण अनशन इसका कोई हल नहीं है.''
रामदेव के बिस्तर से दो बिस्तर दूर एक स्वामी ने कोई पहचान और तारीफ बटोरे बिना ही दम तोड़ दिया. स्वामी निगमानंद गंगा में खनन के विरोध में अनशन पर थे. वे जिस मांग के लिए भूख हड़ताल पर थे वह इतनी आकर्षक नहीं थी सो वे रामदेव की तरह जूस पीने से वंचित रह गए. आध्यात्मिक जगत में भी कारण रेटिंग से ज्यादा अहम नहीं होता.
अमीरों और मशहूर लोगों के गुरु श्री श्री रविशंकर
रामदेव ने जब अनशन तोड़ा, सर्जिकल मास्क पहने हुए भारत के सबसे तामझाम वाले गुरु उनके नजदीक खड़े थे. आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक 55 वर्षीय श्री श्री रविशंकर रामलीला मैदान की घटना के बाद अपना अमेरिका दौरा बीच में ही छोड़ लौट आए और एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर शांति बनाए रखने की अपील जारी कर दी.
जल्दी ही वे भी उसी तरह सुर्खियों में आ गए जिस तरह बाबा रामदेव आए थे. शायद इसलिए कि वे रामदेव के समर्थन में और भ्रष्टाचार के खिलाफ इंटरव्यू देने में लगे हुए थे. इन अफवाहों का खंडन करते हुए कि उन्हें केंद्र के दूत के बतौर भेजा गया है, उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, ''जहां कहीं विवाद हो रहा हो और संवाद बंद हो गया हो वहां दखल देने का मेरा स्वभाव है.
मैंने देखा कि बाबा रामदेव आमरण अनशन पर बैठे हैं जो मुझे नहीं जंचा, इसलिए मैं उनके पास गया और उन्हें समझाया कि वे अपना अनशन खत्म कर दें.......हमें भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ संयम और मजबूती से लड़ना होगा.''
उनकी वेबसाइट में डाली गई एक प्रेस विज्ञप्ति में साधारण शब्दों में लिखा था, ''श्री श्री रविशंकर ने बाबा रामदेव को अपना अनशन तोड़ने के लिए समझाया, बाबा मान गए.'' वे 'जीवन के रहस्य' (जो उनके प्रवचन का प्रिय विषय है) के साथ-साथ मार्केटिंग की कला भी बेहतर जानते हैं.
ब्रांड मैनेजमेंट की कला में ये ग्लोबल गुरु इतने तजुर्बेकार हैं कि अटकलों के अनुसार, उनके नाम पर दो बार श्री श्री उनकी पहचान मशहूर सितारवादक पंडित रविशंकर से अलग रखने के लिए लगाया गया है.
श्री श्री अण्णा हजारे के आंदोलन के भी सक्रिय समर्थक रहे हैं.
अण्णा हजारे और सामाजिक कार्यकर्ता तथा लोकपाल विधेयक मसौदा समिति के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने बंगलुरू के इस धार्मिक नेता के समर्थन के लिए सार्वजनिक तौर पर उनका हार्दिक आभार जताया था.
हालांकि वे किसी राजनैतिक समूह से संबद्ध नहीं हैं, लेकिन श्री श्री ने अपने लिए समझैते कराने वाले की भूमिका गढ़ने की कोशिश की है. चाहे वह बाबा रामदेव बनाम सरकार के बीच गतिरोध हो या अगस्त, 2008 में अमरनाथ यात्रा को लेकर उठा विवाद.
जून 2008 में भोपाल में लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा माई कंट्री, माय लाइफ के विमोचन के समय वे रामदेव के बगल में बैठे थे. रामदेव के अनुयायी श्री श्री को अमीर और मशर लोगों का गुरु मानते हैं. लेकिन बाबा रामदेव उनके लिए आम लोगों के मसीहा हैं.
गहरी सांस का अभ्यास कराने वाले दोनों योगी हरिद्वार में एक साझे मंच पर एक बार फिर एक साथ आए जहां उन्हें समाचार चैनलों पर अच्छी रेटिंग मिलना तय था.
बाबा रामदेव को अपनी भूख हड़ताल तोड़ने के लिए मना लेने के साथ ही श्री श्री रविशंकर भी उसी तरह सुर्खियों में आ गए जिस तरह योग गुरू थे और उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध मीडिया को अपने विचार विचार बताए
मध्यस्थता के लिए हरदम मौजूद मुरारी बापू
रामदेव इस बात को लेकर बहुत उत्सुक थे कि मुरारी बापू हरियाणवी उनके भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का हिस्सा बनें. दिल्ली में अपना अनशन शुरू करने से काफी पहले उन्होंने उन्हें अपने साथ आने का न्यौता दिया था, लेकिन मुरारी बापू ने यह कहकर मना कर दिया कि वे कथा में व्यस्त हैं.
गुजरात में भावनगर के इन गुरु को उनके धार्मिक प्रवचनों और विवादों को हल करने की क्षमता के लिए जाना जाता है. अंबानी बंधुओं की मां कोकिलाबेन के अनुरोध पर उन्होंने 2004 में मुंबई में दोनों भाइयों के बीच मुंबई में उनके घर पर सुलह कराने की कोशिश की थी.
रामदेव-मुरारी बापू का संबंध छह साल पुराना है. बापू अपनी कथा खत्म होते ही देहरादून के लिए निकल पड़े़ थे और उन्होंने रामदेव को अपना अनशन खत्म करने के लिए मना लिया. कुछ लोगों के अनुसार उनकी अपील भी श्री श्री के की अपील जितनी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि रामायण कथाकार के रूप में वे एक मानी हुई हस्ती हैं.
एक अर्थ में इन दो दिग्गजों की मौजूदगी के कारण रामदेव को अनशन तोड़कर अपनी प्रतिष्ठा बचाने का मौका मिल गया. बापू ने मीडिया को बताया, ''मैं उनकी सेहत का हाल जानने के लिए उनसे मिलने आया था. मुझे खुशी है, उन्होंने अपना अनशन खत्म कर दिया. वे जो संदेश देना चाहते थे, वह दे दिया गया है.''
लेकिन बाबा रामदेव के विपरीत, 65 वर्षीय बापू विवाद से दूर रहते हैं. वे धार्मिक प्रवचनों तक सीमित रहते हैं और उन्होंने कभी भी किसी विवादास्पद विषय पर कठोर रवैया नहीं अपनाया है. उन्होंने हाल ही में रामदेव के आश्रम में रामायण कथा की. उनका किसी पार्टी के लिए कोई खास झुकाव नहीं है हालांकि उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के समारोहों में कथा की है.
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उन लोगों में से हैं जो उनका आदर करते हैं. बापू को कोई राष्ट्रीय या राजनैतिक मुद्दे उठाने की बजाए उनकी कथा कहने की दक्षता के लिए जाना जाता है. वे दुनिया भर में 690 बार रामायण कथा सुना चुके हैं. अपनी कथा को धर्मार्थ कार्यों से जोड़कर उन्होंने करोड़ों रु. जुटाए हैं. सांस्कृतिक दुनिया में भी उनकी अच्छी पहचान है. भावनगर के नजदीक महुआ में वे हर साल वार्षिक संगीत समारोह करते हैं जिसमें कई नामचीन शास्त्रीय संगीतज्ञ शामिल होते हैं.
बाबा रामदेव के जहां मशहूर राम कथा वाचक मुरारी बापू से अच्छे संबंध हैं तथा वे बापू का बड़ा आदर करते हैं, और श्री श्री के साथ उनकी एक तरह से बराबरी की समानता है, वहीं कृपालु महाराज से उनकी करीबी कभी नहीं रही है
कृष्ण की सजीव लीला के रचयिता बाबा कृपालु महाराज
बाबा रामदेव को जूस पिलाने के लिए अस्पताल में कृपालु महाराज को देखकर खुद रामदेव से ज्यादा शायद किसी को आश्चर्य नहीं हुआ होगा. रामदेव कभी भी 89 वर्षीय कृपालु महाराज के करीब नहीं रहे. यहां तक कि कृपालु और रामदेव कभी भी एक दूसरे के आश्रम में नहीं गए.
कृपालु का आश्रम उत्तर प्रदेश के मनगढ़ गांव में है. वे मसूरी जा रहे थे लेकिन देहरादून में रुक गए और अस्पताल पहुंच गए. इस तरह वे भी उस फोटोग्राफ का हिस्सा बन गए जो अगले दिन सभी अखबारों के पहले पन्ने पर छपा था.
कृपालु महाराज को उत्तर प्रदेश कांग्रेस विधायक दल के कद्दावर नेता प्रमोद तिवारी का राजनैतिक समर्थन हासिल है. दोनों उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पड़ोसी गांव के रहने वाले हैं. कृपालु महाराज राधा माधव सोसाइटी के मुखिया हैं जिसके आश्रम दुनियाभर में फैले हैं. मनगढ़ के अलावा उनके वृंदावन और अमेरिका में ऑस्टिन, टैक्सस में भी आश्रम हैं. वे अपने लीला पद (राधा और कृष्ण के गीतों) के लिए मशहूर हैं और आस्था चैनल का जाना-पहचाना चेहरा हैं.
कृपालु महाराज उस समय सुर्खियों में आए जब पिछले साल उनके आश्रम में मची भगदड़ में 85 लोगों की मौत हो गई. लेकिन गुरु ने बड़ी तेजी से खुद को इस घटना से यह कहते हुए अलग कर लिया कि ज्यादातर लोग ''बिना न्यौते'' के आए थे. उन्होंने एक स्थानीय टीवी चैनल को बताया, '' मेरी पत्नी की पुण्यतिथि पर हमने ब्राह्मणों के लिए भोज रखा था. गरीब लोगों सहित कई लोग खाने के लिए इकट्ठा हो गए और हमने उन्हें सिर्फ खाना दिया था.
-साथ में आयेशा अलीम