अजमल आमिर कसाब 21 मई, 2009 को मुंबई की आर्थर रोड जेल में स्थित जस्टिस एम.एल. तहलियाणी के कोर्ट में बयान दे रहा था. 26/11 के हमले में एकमात्र जिंदा बचा पाकिस्तानी बंदूकधारी कसाब ने अचानक एक नाम लिया. उसने बताया कि 60 घंटे के इस ऑपरेशन के लिए कराची के एक कंट्रोल रूम में उनका प्रमुख गाइड अबू जंदाल था.
भारत में किसी ने भी यह नाम नहीं सुना था. कई लोग इस नाम से हैरान रह गए. सरकारी वकील उज्ज्वल निकम का मानना था कि यह गुमराह करने वाली जानकारी है और इस तरह के मामलों में जैसा कि अकसर होता है, अबू जंदाल का नाम फाइलों में गुम हो गया.
तीन साल बाद 21 जून, 2012 को सऊदी अरब ने लश्कर-ए-तैयबा (लश्कर) के एक वांछित आतंकी, 30 वर्षीय सैयद जबीउद्दीन को दबोच लिया और उसे एक प्लेन में बिठाकर नई दिल्ली भेज दिया. अंसारी के अबू जंदाल जैसे कई और नाम हैं. जब मुंबई में जेल की अपनी कोठरी में कसाब ने यह सुना कि अबू जंदाल को सऊदी अरब ने प्रत्यर्पित कर दिया है और अब वह भारत में बंदी है तो अधिकारियों के मुताबिक वह चिंता में पड़ गया. इस जटिल पहेली की कड़ियां अब जुड़ती जा रही हैं.
मुंबई पर हुए बर्बर आतंकी हमले की व्यापक योजना में भ्रम का तत्व ही शायद इस पूंछ का सबसे जहरीला डंक था. इस हमले की साजिश इंटर-सर्विसेज इंटेलीजेंस (आइएसआइ) ने रची और लश्कर ने उसे अंजाम दिया. करीब 166 जानें लेने वाला यह आतंक जब खत्म हुआ तो आइएसआइ ने ऐसे उलझाने वाले संकेत छोड़े, जिससे भारत के खिलाफ सबसे जबरदस्त हमले में भारतीयों को ही फंसाया जा सके.
यह एक ऐसा कथानक था, जिसका मुख्य कर्ताधर्ता अंसारी था. महाराष्ट्र के बीड जिले के गवराई गांव में जन्मे अंसारी ने 10वीं तक की पढ़ाई के बाद एक आइटीआइ से कोर्स किया और इलेक्ट्रीशियन बन गया. साल 2002 के गुजरात दंगों के बाद वह भारत विरोधी कट्टरपंथी बन गया और आतंकवाद के अंधेरे में फंसता चला गया. सबसे पहले वह स्टुडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) में शामिल हुआ और उसके बाद लश्कर से जुड़ा.
अंसारी एक बार दूसरे मामले में पुलिस के रडार पर आया था. यह मामला था 2006 में औरंगाबाद में 43 किलो आरडीएक्स, 16 एके-47 राइफल और 50 हैंड ग्रेनेड की खेप भेजने का. आतंकी हमलों के इरादे से भेजी गई इस खेप को महाराष्ट्र पुलिस ने पकड़ लिया था. इसके बाद दबाव बढ़ने पर अंसारी ने लश्कर-ए-तैयबा से संपर्क किया और पाकिस्तान भाग गया.
सार्वजनिक तौर पर उसका नाम तब सामने आया, जब भारत सरकार ने मार्च, 2007 में पाकिस्तानी अधिकारियों को 50 सबसे वांछित भगोड़ों की एक सूची सौंपी.
लेकिन अंसारी लश्कर के लिए बेशकीमती साबित होता जा रहा था. पूरी तरह से प्रतिबद्ध आतंकी अंसारी मुंबई के भौगोलिक नक्शे से अच्छी तरह वाकिफ था और उसने 26 नवंबर, 2008 के हमले के दौरान आतंकियों को निर्देश दिए थे. वह 13 फरवरी, 2010 को पुणे की जर्मन बेकरी में हुए विस्फोट की योजना बनाने में भी शामिल था, जिसमें 17 लोग मारे गए थे. लेकिन भारत को 26/11 के हमले में उसकी भूमिका की जानकारी नहीं थी. मई, 2010 में एक बड़ी सफलता मिली, जब दिल्ली पुलिस ने भारत स्थित आतंकी अजमल के एक फोन कॉल को इंटरसेप्ट किया, जो अपने पाकिस्तानी आका के संपर्क में था.
अजमल ने उसी साल दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान विदेशियों पर हमले की योजना बनाई थी. उसने अपने आका अबू जंदाल का नाम लिया. खुफिया एजेंसियों ने पता लगा लिया कि अबू जंदाल पाकिस्तान में है. वह रियासत अली के नाम से वहां रह रहा था और लाहौर के नजदीक शहर मुरिदके में स्थित लश्कर के मुख्यालय से लेकर कराची तक उसका आना-जाना लगा रहता था. तभी पुलिस ने एक जबरदस्त जानकारी हासिल कर ली.
अबू जंदाल, रियासत अली और जबीउद्दीन अंसारी दरअसल एक ही व्यक्ति हैं. अब पुलिस अपने इस निशाने के पाकिस्तान से बाहर जाने का इंतजार कर रही थी.
साल 2011 की शुरुआत में पाकिस्तान ने उसे एक पासपोर्ट दिया और लश्कर की तरफ से भारतीय श्रमिकों में से संभावित जिहादियों की भर्ती के लिए उसे सऊदी अरब भेज दिया. पाकिस्तानी नागरिक रियासत अली के रूप में दम्माम के तेल संपन्न बंदरगाह पर अंसारी किराए पर टैक्सी देने का एक छोटा-सा कारोबार करने लगा. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने सऊदी अरब को अंसारी के आतंकी संपर्कों के बारे में चेताया और रियाद ने उसकी निगरानी शुरू कर दी.
इस बीच भारत सरकार ने सऊदी अरब शाही हूकूमत को इस बात के सबूत दिए कि रियासत अली दरअसल लश्कर का आतंकी जबीउद्दीन अंसारी है, जो मूलतः एक भारतीय नागरिक है. उसके रिश्तेदारों के डीएनए सैंपल सऊदी सरकार को भेजे गए और गृह मंत्रालय ने औरंगाबाद हथियार सप्लाई मामले में अंसारी की संलिप्तता के सबूत भी भेजे. इस डर से कि अंसारी के प्रत्यर्पण से मुंबई हमले में पाकिस्तान का हाथ होने से इनकार करने के उसके झूठ का पर्दाफाश हो जाएगा, पाकिस्तान सरकार यह कहती रही कि अंसारी पाकिस्तानी नागरिक है और उसे पाकिस्तान वापस भेज दिया जाए.
लेकिन सऊदी अधिकारियों ने अंसारी से पूछताछ की और यह पता लगा लिया कि वह वाकई लश्कर का आतंकी है. इसके बाद उन्हें इस बात का निर्णय लेना था कि अपने लंबे समय के साथी पाकिस्तान की बात मानते हुए लश्कर आतंकी अंसारी को दम्माम में रहने दिया जाए या अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करते हुए उसे भारत को सौंप दिया जाए? सऊदी सरकार ने आखिरकार उसे भारत भेजने का निर्णय लिया.
राजधानी की लोदी कॉलोनी स्थित दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के एक सुरक्षित मकान में अंसारी एक-एक कर मुंबई पर घातक हमलों के गोपनीय कथानक के राज उगल रहा है. उनका इरादा दोतरफा वार करने का था. पहले वार से मुंबई को हिला देना. दूसरे वार से मीडिया, नीति-नियंताओं और राजनेताओं के एक वर्ग के बीच इस तरह के घरेलू साजिश के सिद्धांत को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त 'सबूत' फैलाना था कि इस हत्याकांड के पीछे हिंदू आतंकवादियों का हाथ है.
घरेलू साजिश के सिद्धांत को मानने वालों ने पाकिस्तान को निराश नहीं किया. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुर्रहमान अंतुले ने महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे की मौत पर 18 दिसंबर, 2008 को लोकसभा के बाहर कहा, ''आंखों को जो कुछ दिखता है, उससे अलग कहीं कुछ और बात है.''
करकरे, अतिरिक्त आयुक्त अशोक कामटे और इंस्पेक्टर विजय सालस्कर पर 26 नवंबर, 2008 को अजमल कसाब और उसके साथी इस्माइल खान ने हमला कर उनकी हत्या कर दी थी. करकरे मालेगांव बम विस्फोट मामले की जांच में लगे हुए थे, जिसमें हिंदू अतिवादी तत्वों जैसे ले.
कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और स्वामी असीमानंद को गिरफ्तार किया गया था. भारत के उर्दू मीडिया के बड़े वर्ग ने हमले के लिए यहूदी-आरएसएस के शैतानी गठजोड़ को जिम्मेदार बताया. उर्दू अखबार रोजनामा राष्ट्रीय सहारा के समूह संपादक अजीज बर्नी ने इस हमले के लिए हिंदू अतिवादियों को जिम्मेदार ठहराया. इस अखबार में 29 नवंबर को एक खबर की हेडलाइन जोर-शोर से कहती है, ''क्या 26/11 के हमले और मालेगांव आतंकी हमले के बीच कोई संबंध है?''
30 नवंबर, 2008 को उर्दू टाइम्स कहता है, ''यह संघ परिवार और मोसाद का संयुक्त आतंकी अभियान है.'' इसके बाद 5 दिसंबर को रोजनामा राष्ट्रीय सहारा एक और खबर छापता हैः ''काबिले यकीन कौन? दहशतगर्द 'कसाब' या शहीद करकरे.'' इस खबर में अखबार संकेत देता है कि 26/11 का हमला हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा किया गया और यह करकरे को निपटाने की उनकी सोची-समझी योजना थी. इसी प्रकार 6 दिसंबर, 2008 को अखबार-ए-मशरिक लिखता है, ''मुंबई हमले के पीछे हिंदू आतंकवादियों का हाथ.'' सितंबर, 2009 में महाराष्ट्र पुलिस के एक रिटायर्ड आइजी एस.एम. मुशरिफ ने अपनी किताब हू किल्ड करकरे? में आरोप लगाया कि 26/11 के हमलों के पीछे आइबी और हिंदू अतिवादियों का हाथ था.
मुस्लिम वोटों के लालच में इस साजिश सिद्धांत को कुछ राजनेताओं ने भी जोर-शोर से आगे बढ़ाया. 6 दिसंबर, 2010 को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 26/11 हमले पर बर्नी की एक किताब, 26/11: आरएसएस की साजिश का लोकार्पण किया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि 26/11 की घटना की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में आरएसएस का हाथ है. इसके पांच दिन बाद दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि अपनी हत्या से पहले करकरे ने उनके पास फोन किया था और कट्टर हिंदू संगठनों से मिल रही धमकियों और दबावों की शिकायत की थी.
लेकिन अंसारी की स्वीकारोक्ति पाकिस्तान के गुप्त कथानक की परतें उघाड़ देती है. उसने जांच अधिकारियों को बताया कि उसने 26/11 के हमलावरों को हिंदी सिखाई थी. उसने उन्हें हिंदी पत्रिकाएं पढ़ने के लिए दी थीं और कराची छोड़ने से पहले उनके लिए ऐसे संवाद सत्र चलाए थे, जिससे उनकी हिंदी अच्छी हो सके.
उसने हमलावरों को यह भी सिखाया था कि भारत में कैसे घुल-मिल जाएं, लोगों का अभिवादन 'नमस्ते' से करें, लो-प्रोफाइल रहें और महिलाओं के प्रति विनम्र रहें. इस पटकथा के कई अन्य पहलू भी हैं-आतंकवादियों ने अपनी कलाई पर लाल धागा (रक्षा सूत्र) बांधा था, जो लश्कर के जासूस डेविड कोलमैन हेडली ने 20-20 रु. में मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर से खरीदे थे. सभी 10 आतंकवादियों के पास हैदराबाद के अरुणोदय कॉलेज का फर्जी आइकार्ड था.
उन्होंने अपना हिंदू नाम भी रख लिया था. अजमल कसाब ने समीर चौधरी नाम रखा था, जबकि इस्माइल खान का नाम नरेश वर्मा था. एलईटी के एक आतंकी ने खुद को 'भारत का खड़क सिंह' बताया और उसने एक अमेरिकी कंपनी से 250 डॉलर (10,000 रु.) में इंटरनेट कॉलिंग सेवा खरीदी. ये सभी आतंकी भारतीय सिम कार्डों वाले फोन इस्तेमाल कर अपने कराची स्थित आकाओं से बात कर रहे थे.
अंसारी के मुताबिक लश्कर कराची स्थित सेना की स्टाइल में बने अपने विशेष कमांड और नियंत्रण केंद्र से इस पूरे हमले पर नजर रखे हुए था और इस केंद्र में लश्कर के कई अगुआओं के साथ आइएसआइ के अधिकारी भी मौजूद थे. कंट्रोल रूम टीवी सेटों (जिन पर भारतीय चैनल चल रहे थे), सैटेलाइट फोन और कंप्यूटरों से लैस था. साजिद मीर, अबू अल कामा, अबू काहाफा और मुजम्मिल जैसे आका 10 आतंकवादियों को लगातार निर्देश दे रहे थे.
अंसारी ने नरीमन हाउस पर हमला करने वाले लश्कर के दो आतंकियों को बताया कि भारतीय मीडिया से हिंदी में क्या बात करनी है. उसने उनसे कहा था कि वे खुद को असंतुष्ट मुस्लिम युवा बताएं. ऐसा करते वक्त उसने एक हिंदी शब्द 'प्रशासन' का इस्तेमाल किया था. इस बातचीत को टेप कर रही भारतीय खुफिया एजेंसियां एक पाकिस्तानी आका द्वारा हिंदी शब्द के इस्तेमाल पर चकित थीं.
असल में पाकिस्तानी छल-कपट का जाल अमेरिका के संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआइ) द्वारा जून, 2010 में लश्कर के मुखबिर हेडली की गिरफ्तारी के बाद ही बिखरने लगा था. उसने भारतीय अधिकारियों को पूछताछ में बताया था कि 26/11 के हमले में पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ की पूरी तरह से संलिप्तता है. वह आइएसआइ के दो सेवारत अधिकारियों मेजर इकबाल और मेजर समीर अली के संपर्क में था. हेडली ने एक और सनसनीखेज खुलासा यह भी किया था कि लश्कर के हर वरिष्ठ अगुआ को आइएसआइ का एक अधिकारी निर्देशित करता है.
अब अंसारी से पूछताछ ने पाकिस्तान के सामने फिर शर्मिंदगी की स्थिति पैदा कर दी है. उसने यह खुलासा किया है कि हमले की निगरानी और उसके लिए निर्देश जारी करने के लिए लश्कर ने जो कंट्रोल रूम बनाया था, उसमें पाकिस्तान के आइएसआइ के अधिकारी भी मौजूद थे. अंसारी ने यह भी साफ किया कि मास्टरमाइंड जकीउर रहमान लखवी तथा जरार शाह की गिरफ्तारी और पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित अदिआला जेल में आतंकवाद रोधी अदालत में उन पर चल रहे मुकदमे का लश्कर पर कोई असर नहीं हुआ है.
यह आतंकी संगठन अब भी नए सिरे से भारत पर हमले की योजनाएं बनाने में लगा हुआ है. आमतौर पर लश्कर को पाकिस्तानी सेना की छद्म शाखा ही माना जाता है. भारत के खिलाफ इसकी लड़ाई जम्मू-कश्मीर से बाहर निकलकर अब शेष भारत में पहुंच गई है.
इस साल अप्रैल में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने लश्कर के मुखिया हाफिज सईद की गिरफ्तारी का सुराग देने वाले को 1 करोड़ डॉलर (50 करोड़ रु.) का इनाम देने की घोषणा की. पाकिस्तान को यह बात व्यथित कर रही है कि अंसारी को उसके घनिष्ठ सहयोगी देश सऊदी अरब ने गिरफ्तार और प्रत्यर्पित किया. पाकिस्तान की सेना और राजनीतिक प्रतिष्ठानों पर सऊदी राजशाही की पकड़ कम नहीं है. लेकिन अंसारी के प्रत्यर्पण से उसने यह संकेत दिया है कि अब वह पाकिस्तानी आतंकियों को और संरक्षण नहीं दे सकता. एक और संदिग्ध आतंकी इंडियन मुजाहिदीन के फसीह मोहम्मद को भी सऊदी अरब में गिरफ्तार किया गया है, जिसकी 17 अप्रैल, 2010 को बंगलुरू के बाहर स्थित चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुए दोहरे बम विस्फोट में भूमिका है. वह भी जल्द ही प्रत्यर्पित होकर भारत आ सकता है.
अब जबकि घरेलू साजिश की कलई खुल चुकी है, इसके कई मूल सिद्धांतकार पीछे हट गए हैं. दिग्विजय सिंह ने कहा कि वह पहले ही 26/11 के बारे में अपने बयान पर सफाई दे चुके हैं. उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''अब इसमें कुछ और नहीं कहना है. मुझे खुशी है कि गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने आतंकवाद के मसले पर प्रयास तेज किए हैं और पाकिस्तान पर यह दबाव डाला है कि वह इन तथ्यों को स्वीकार करे कि जंदाल ने मुंबई पर हमला करने वाले आतंकियों को प्रशिक्षित किया था.'' दूसरी तरफ, अंतुले ने 27 नवंबर के अपने बयान को एक 'स्वाभाविक गलती' बताया. उन्होंने कहा, ''हमले के बाद कई तरह की कहानियां सामने आ रही थीं, खासकर करकरे की मौत से जुड़ी हुई.''
हालांकि अंतुले यह बात स्वीकार करते हैं कि हिंदू आतंकवाद के एंगल ने पल भर के लिए देश का ध्यान लश्कर की तरफ से हटा दिया था. मुशरिफ अब यह कहते हुए कोई टिप्पणी करने से इनकार करते हैं कि 26/11 का मामला कोर्ट में है. लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि इस हमले में पाकिस्तान की भूमिका पर उन्होंने कभी भी सवाल नहीं उठाए हैं.
बर्नी के अखबार ने अपनी खबर के लिए 29 जनवरी, 2010 को पहले पेज पर खेद प्रकाशित किया था. लेकिन खुद बर्नी को इस पर कोई खेद नहीं है और वे कहते हैं कि 26/11 के कई सवालों के जवाब अब भी नहीं मिले हैं. फिल्म निर्माता महेश भट्ट कहते हैं कि इसमें पाकिस्तान की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन वह भारतीय जांच एजेंसियों द्वारा अब प्रसारित की जा रही कहानियों पर भी भरोसा नहीं करते और इस पर बहस की जरूरत बताते हैं. वे कहते हैं, ''9/11 के हमले के बाद अमेरिका में लोगों ने हमलावरों की पहचान को लेकर कई सवाल उठाए थे. उनके इस विचार को लेकर किसी ने भी खेद प्रकट नहीं किया है.''
हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे का मानना है कि हाल के घटनाक्रम ने उनके इस रुख को प्रमाणित किया है कि यह हमला घरेलू साजिश नहीं है.
लेकिन पाकिस्तान को कोई खेद नहीं है. अब वह अपने इस भारतीय सहयोगी अंसारी से ही दूरी बनाने की कोशिश कर रहा है. अंसारी के भारत पहुंचने के सिर्फ एक हफ्ते बाद 27 जून को पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक ने जल्दबाजी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की. मलिक ने कहा, ''अब चीजें साफ हो रही हैं. कौन जानता है, शायद भारत में किसी ने स्टिंग ऑपरेशन किया हो?'' मलिक ने अपनी सेना और आइएसआइ का बचाव किया, लेकिन इस बात पर चुप ही रहे कि भारतीय नागरिक अंसारी ने आखिर पाकिस्तान का पासपोर्ट और प्रवासी पाकिस्तानियों को मिलने वाला राष्ट्रीय पहचान पत्र कैसे हासिल कर लिया.
4 से 5 जुलाई को भारत और पाकिस्तान के बीच नई दिल्ली में विदेश सचिव स्तर की वार्ता के बीच पाकिस्तानी दूतावास के एक अज्ञात सूत्र ने मीडिया को बताया कि मुंबई हमले में 40 भारतीय नागरिक लिप्त थे. साफ है कि एक अंसारी के पकड़ में आने से दुनिया में जिहाद के सबसे खतरनाक खिलाड़ी के मंसूबे कमजोर नहीं हुए हैं. साजिश के सिद्धांत के अगले दौर की प्रतीक्षा करें, जो इस्लामाबाद द्वारा लिखा और प्रचारित किया जाएगा.
-साथ में शांतनु गुहा रे, किरण तारे, भावना विज अरोड़ा और मोहम्मद वकास