आधुनिक भारत के निर्माता/ गणतंत्र दिवस विशेष
कुछ लोग वी.पी. सिंह को सामाजिक न्याय का मसीहा मानते थे. वे खुद को भी इसी रोशनी में देखते थे.
कई लोग मानते थे कि वे एक शातिर नेता से ज्यादा कुछ नहीं थे क्योंकि उन्होंने अपना अस्तित्व बचाने के लिए बोतल से जिन्न को बाहर तो निकाल दिया लेकिन उसे वापस भीतर नहीं डाल सके.
उनका फैसला उनके भी बाद आने वाली तमाम सरकारों को सालता रहा जब तक कि तमाम पार्टियां सैद्धांतिक रूप से देश की आबादी में 52 फीसदी हिस्सा रखने वाले पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की अपरिहार्यता को लेकर रजामंद नहीं हो गईं.
बाद में उन्होंने खालिस पूरबिया शैली में मजाकिया टिप्पणी की थी, ''गोल कर दिया पर टांग टूट गई.'' उनकी राजनीति ने बाद में आने वाली सरकारों और गठबंधनों की दिशा तय कर दी.