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पढ़ाई के लिए टैबलेट का चलन

कई सरकारें छात्रों को मुफ्त टैबलेट-पीसी देना चाहती हैं, वहीं कुछ कंपनियां इसके जरिए शिक्षा को हमेशा के लिए बदल देने की तैयारी में.

अपडेटेड 7 मई , 2012

इस छोटे चमत्कार ने लैपटॉप की बिक्री में हो रही वृद्धि को हथिया लिया है. यह है टैबलेट कंप्यूटर. अगर आपके घर में कोई बच्चा हो, तो काफी संभावना है कि वह यूट्यूब से परिचित होगा. यह भी संभावना होगी कि यूट्यूब से उसका परिचय किसी टैबलेट कंप्यूटर के जरिए हुआ हो. निष्कर्ष यह है कि टैबलेट को चलाना ज्‍यादा आसान है और इसके जरिए सीखना और भी आसान है. इस निष्कर्ष को लोगों ने आत्मसात भी किया है और अब टैबलेट का फैलाव स्कूलों के जरिए हो रहा है.

उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश यादव ने जो काम सबसे पहले किए, उनमें एक यह भी था कि उन्होंने 10वीं कक्षा पास करने वाले हर छात्र को मुफ्त एक टैबलेट देने की घोषणा कर दी. उधर भारतीय जनता पार्टी भी कैसे पीछे रहती? गोवा के नए मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर ने राज्‍य में कक्षा पांच और छह के सभी विद्यार्थियों को टैबलेट कंप्यूटर देने की घोषणा कर दी. केंद्र सरकार आकाश टैबलेट की हिमायत करती रही है. आकाश के बारे में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल का कहना है कि यह ''डिजिटल विभेद को खत्म कर देगा.''

शिक्षा के क्षेत्र में टैबलेट का चलन अचानक बढ़ गया है. किसी विद्यार्थी के पूरे पाठ्यक्रम को इसके हार्डवेयर में डाल देने या किसी रिमोट सर्वर (क्लाउड) के जरिए पढ़ पाने की सुविधा देने से स्कूल का बस्ता बेकार हो जाएगा. उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार, राज्‍य के विद्यालयों में 10वीं पास करने वाले विद्यार्थियों के लिए 28 लाख टैबलेट की जरूरत पड़ेगी. कंसल्टेंसी फर्म टेक्नोपैक एडवाइजर्स के अनुमान के मुताबिक, राष्ट्रीय स्तर पर मांग की संभावना काफी अधिक है क्योंकि भारत में 13 लाख स्कू ल हैं. कंसल्टेंसी फर्म केपीएमजी के नारायणन रामास्वामी कहते हैं, ''टैबलेट अपनी पहुंच और डिलीवरी की वजह से भारतीय शिक्षा क्षेत्र को बदल देगा.''

इस मौके को देखते हुए कई कंपनियां आगे आई हैं और कई टैबलेट निर्माताओं ने कंटेंट मुहैया कराने वाली कंपनियों से समझौते किए हैं. कंटेंट उपलब्ध कराने वाली बोस्टन स्थित कंपनी एक्रॉस वर्ल्ड एजुकेशन ने भारत में एटैब नामक टैबलेट लांच करने के लिए दिल्ली स्थित गो-टेक के साथ समझौता किया है. दोनों कंपनियां 5,000 रु. कीमत वाले टैबलेट को बेचने की कोशिश कर रही हैं.

एक्रॉस वर्ल्ड का दावा है कि उसने स्कूलों के लिए दुनिया का सबसे पहला क्लाउड-आधारित प्लेटफॉर्म तैयार किया है. इस प्लेटफॉर्म के जरिए दुनियाभर के स्कू ल, कॉलेज और विश्वविद्यालय मुफ्त शिक्षा सामग्री पा सकते हैं. इसके सीईओ और प्रेसिडेंट स्टीफन थिरिंगर उत्तर प्रदेश में गजरौला से ओडीसा में राउरकेला और दक्षिण में पुड्डुचेरी तक विद्यार्थियों से मिलने के लिए देशभर में घूम रहे हैं. वे कहते हैं, ''हमारा उत्पाद हार्डवेयर और सेवा दोनों एक साथ उपलब्ध करा रहा है, इसलिए हमें पूरा विश्वास है कि भारतीय ग्राहक इसे अपनाएंगे.''

हार्डवेयर के क्षेत्र में दिग्गज कं पनी एचसीएल इन्फोसिस्टम्स को किसी साझेदार की जरूरत महसूस नहीं हो रही. कं पनी के लर्निंग बिजनेस के प्रमुख आनंद एकंबरम का कहना है, ''हम पहले से ही टैबलेट के क्षेत्र में हैं और शिक्षा के क्षेत्र में भी. ऐसे में हमारा इस क्षेत्र में उतरना स्वाभाविक है.'' कंपनी ने दो टैबलेट बाजार में उतारे हैं -पहला स्कूल विद्यार्थियों के लिए और दूसरा उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों के लिए. इन दोनों में कंटेंट साथ में दिया गया है. स्कूल वाले टैबलेट की कीमत 11,499 रु. और उच्च शिक्षा वाले की कीमत 9,999 रु. है. ई-लर्निंग से संबंधित सामग्री मुहैया कराने वाली कं पनी एडुकॉम्प सॉल्यूशंस ऐसा कं टेंट पेश करने वाली है जो उपकरण को पहचान ले और किसी भी टैबलेट पर चल सके. एडुकॉम्प के प्रबंध निदेशक और सीईओ शांतनु प्रकाश का कहना है, ''इसमें पूरा पाठ्यक्रम होगा, टेक्स्ट बुक, डिजिटल कंटेंट, रेमिडियल और ट्यूटोरियल सेवाओं सहित.'' कं पनी अपने खुद के ब्रांडेड टैबलेट लाने की भी योजना बना रही है. कोचिंग और काउंसलिंग सेवाएं देने वाली संस्था करियर लांचर ने अपने इंडस वर्ल्ड स्कू ल में टैबलेट के साथ पाइलट परियोजनाएं शुरू की हैं. करियर लांचर के संस्थापक और चेयरमैन सत्य नारायणन आर. कहते हैं, ''विद्यार्थी इस टैबलेट से होमवर्क कर सकते हैं और वापस आ कर इसे सीधे सर्वर पर अपलोड कर सकते हैं.''

टैबलेट बनाने वाली मुंबई स्थित कंपनी विशटेल इंडिया ने ताइवान की कंपनी वीआइए टेक्नोलॉजीज के साथ साझेदारी में दो नए शैक्षणिक टैबलेट पेश किए हैं. इनमें आइआरए 4,000 रु. और आइआरए थिंग 5,500 रु. का है. विशटेल इंडिया के सीईओ मिलिंद शाह का कहना है, ''हमारे टैबलेट के जरिए विद्यार्थी भौतिकी, रसायन विज्ञान आदि की वर्चुअल प्रयोगशालाओं तक अपनी पहुंच बना सकेंगे.'' माइक्रोमैक्स इन्फॉर्मेटिक्स भी पिछले दिनों 6,499 रु. के फनबुक के जरिए टैबलेट बाजार में कूद पड़ी. कंपनी का दावा है कि उसका टैबलेट विद्यार्थियों को शिक्षा और मनोरंजन दोनों उपलब्ध कराएगा. उसने कंटेंट के लिए पियर्सन इंडिया और चेन्नै स्थित एवरॉन एजुकेशन से हाथ मिलाया है. माइक्रोमैक्स के सीईओ दीपक मेहरोत्रा कहते हैं, ''हमारे साझीदार अपने एजुकेशन प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की होस्टिंग कर रहे हैं.''

लेकिन क्या भारत इस क्रांति के लिए तैयार है? इंडियन सेलुलर एसोसिएशन के अध्यक्ष पंकज महेंद्रू देश की एक प्रमुख समस्या की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, ''इन टैबलेट को चार्ज करने के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है.'' दूसरी बाधा है इंटरनेट कनेक्टिविटी.

इसके अलावा कंटेंट की भी समस्या है. साइबर मीडिया रिसर्च के विश्लेषक नवीन मिश्र कहते हैं, ''यह पक्का नहीं है कि हायर सेकेंडरी स्तर पर इंटरेक्टिव कंटेंट उपलब्ध है या नहीं. अगर ये लोग किसी टेक्स्ट बुक को पीडीएफ रूप में टैबलेट में दे रहे हैं तो इससे मदद नहीं मिलेगी.''

-साथ में सनी सेन

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