रामप्रसाद की तेहरवीं में आपको हंसाने का कितना मौका मिला?
मुझे नहीं लगता कि मैं बहुत हंसा पाऊंगी. फिल्म में बहुत ही इमोशनल कहानी है और अलग-अलग जज्बातों से गुजरते हैं. कैरेक्टर में तो मां हूं मैं, छोटी उम्र में रामप्रसादजी से शादी हुई है. हमारे छह बच्चे हैं. नॉर्थ में तेहरवीं कैसे होती है, किसी की डेथ हो तो कैसा माहौल होता है, क्या होता है हमारी फैमिली के अंदर वो सब सिचुएशनल है.
सीमा भार्गव (पाह्वा) पहली बार निर्देशन कर रही हैं?
सीमा मेरी बहुत अच्छी दोस्त हैं. हम दोनों एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. दोस्ताना रिलेशनशिप तो था ही. लेकिन एक डायरेक्टर के तौर पर उनके साथ काम करना शुरु किया तो मुझे लगा कि कितना अच्छा लिखा है सीमा ने. वह चाहती थी कि हम कुछ जोड़ें. भार्गव परिवार है हमारा. सीमा की वजह से माहौल बना और फिल्म में भी वो दिखता है.
आपका सिनेमाई घर-परिवार है. वहां जीवन किस तरह से जीती हैं?
हमलोग एक तरह से जॉब कर रहे हैं. अपना-अपना काम कर रहे हैं. जैसे दूसरे परिवारों में होता है. वैसे ही हम लोग रहते हैं. कोई नई बात नहीं है. सिर्फ हमलोग प्रोफेशनल ऐक्टर हैं. प्रोफेशन की बातें खूब होती हैं. हम सारे के सारे इसी में हैं. हमारे दोनों छोटे बच्चे भी. मेरी बहन और मेरे बहनोई, सारे सिनेमा में इनवॉल्व हैं. नेचुरली बातें होती हैं किसी के बारे में या सब्जी के बारे में. और हम अपना काम बाहर ही छोड़कर घर आते हैं.
पंकज कपूर के साथ ड्रीम्ज सेहर नाटक करने का अनुभव?
मुझे पंकज जी के साथ काम करके बहुत ही अच्छा लगता है. मैं बहुत प्राउडली कहती हूं कि एक ऐक्टर और एक डायरेक्टर के तौर पर उनके साथ काम करने का मौका मिला और सब कुछ उनसे सीखा है मैंने. आज भी उनके साथ काम करती हूं या उनका काम देखती हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि वाह.
कभी ऐसा महसूस हुआ कि सेट पर वो आपके पति नहीं डायरेक्टर ही हैं?
जी, सेट पर वो मेरे पति होते ही नहीं हैं. मैं ऐक्टर होती हूं और वो मेरे को-ऐक्टर या डायरेक्टर होते हैं. पंकज कपूर तो बहुत मुश्किल से मिलते हैं सेट पे. वो जो कैरेक्टर प्ले करते हैं सेट पर वही रहते हैं.
पंकज जी के साथ और कोई नया नाटक?
पंकज जी अभी खुद कर रहे हैं दोपहरी और हमदोनों साथ में ड्रीम्ज सेहर कर रहे हैं. हम नया कुछ करने वाले थे. लेकिन लॉकडाउन की वजह से वो शुरू नहीं हो सका है. जैसे ही माहौल अच्छा होगा हम जरूर एक नया नाटक लेके आएंगे. दो-तीन नाटक हैं जिसके बारे में फैसला करना है. उनके ही लिखे हुए कुछ काम हैं. जो हम कोशिश कर रहे हैं.
सिनेमा, टीवी, वेब और नाटक इन सभी माध्यमों में आपने काम किया है, वाहवाही भी खूब मिली है आपके काम को. आप अपने अनुभव से बताइए कि कौन-सा माध्यम ज्यादा सहज रहा है आपके लिए?
मैं हमेशा से कहती आई हूं कि मुझे ऐक्टिंग बहुत पसंद है. मैं वही करना चाहती हूं. मुझे कैरेक्टर दे दीजिए, मैं उसे प्ले करूं और ऑडिएंस तक पहुंचा सकूं. चाहे वो थिएटर के जरिए हो, फिल्म हो, वेब सीरीज हो या टीवी हो, जो भी माध्यम हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता मेरी ऐक्टिंग को. मेरी ऐक्टिंग और मेरा जो कैरेक्टर है वो मैं लोगों तक पहुंचाना चाहती हूं. और लोगों को इंटरटेन करना चाहती हूं.
ओटीटी प्लेटफार्म सिनेमा से आगे निकलता जा रहा है. आपका क्या कहना है?
ओटीटी बहुत ही बेहतरीन प्लेटफार्म है. हमें इसे एक्सप्लोर करना चाहिए और अच्छी तरह से करना चाहिए. टेलीविजन भी एक ऐसा माध्यम था, जब आया था. हमारे भारतीय टेलीविजन ने उसे एक दोहराव वाले माध्यम में ढाल दिया. और उसी वजह से उससे युवा पीढ़ी या अन्य लोग अलग होने लगे. उसका चार्म कम हो गया. और अब उसी तरह से वेब सीरीज के बारे में डरती हूं कि वो भी कहीं दोहराव वाला न हो जाएं. ये कितना अच्छा प्लेटफार्म है. इसको कितनी खूबसूरती से ले जा सकते हो आगे. इस पर छोटी फिल्में हो या अच्छी कहानियां हो या हमारा लिटरेचर उठाकर पेश करो. बहुत सारी संभावनाएं हैं.
रामप्रसाद की तेहरवीं के अलावा और क्या कर रही हैं?
मिमी, रश्मि रॉकेट, तूफान जैसी फिल्में कर रही हूं. वेब के लिए एक-दो सीरीज है उसके बारे में बात हो रही है.
वह डायरेक्टर जिनके साथ आप फिर से काम करना चाहती हों?
मैं अपने सारे डायरेक्टर के साथ काम करना चाहूंगी, बहुत मजे आए हैं सबके साथ काम करके. संजय लीला भंसाली के साथ जरूर दोबारा काम करना चाहूंगी, अगर वे मुझे मौका दें तो.
कोरोना के लॉकडाउन में क्या किया आपने?
अच्छा टाइम स्पेंड किया. सोचने के लिए, अपने आपको ज्यादा अहमियत देने के लिए वक्त मिला. पोजिटिव सोच आई बहुत सारी, शायद हमारे अंदर बदल चुकी थी. पहली बार किसी के साथ बैठकें, गप्पे मारी. आप थोडा-सा तकलीफ महसूस कर रहे थे, अभी भी कर रहे हैं. क्या बीमारी है, क्या प्रॉब्लम हैं. मुझे लगता है कि हरेक तकलीफ के साथ कुछ खुशी भी मिलती है जो हमें कोरोना ने दी.
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