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शेना अग्रवाल: अफसर बिटिया के भावी सपने

जीतते रहना शेना अग्रवाल की फितरत है. कैसा भारत देखना चाहती हैं सिविल सेवा परीक्षा की टॉपरडॉ. शेना अग्रवाल.

शेना अग्रवाल
शेना अग्रवाल
अपडेटेड 18 जून , 2012

आइएएस अफसर के रूप में उनके भविष्य के बारे में बात शुरू करते ही शेना अग्रवाल के हाव-भाव फौरन बदल जाते हैं. आंखें चमकने लगती हैं, उनकी नरम आवाज तेज हो जाती है, और छोटे-छोटे वाक्य लंबे और भावुक हो जाते हैं. प्रतिष्ठित सिविल सर्विसेज एक्जाम में अग्रवाल इस साल की टॉपर हैं. वे कहती हैं, ''मैं मैदान में उतरकर काम शुरू करने के लिए अब और इंतजार नहीं कर सकती.''

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से एमबीबीएस डॉक्टर अग्रवाल स्कूल के दिनों से ही यह सपना देखा करती थीं कि वे भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा में बैठेंगी. लेकिन 25 वर्ष की डॉ. अग्रवाल इस बारे में गंभीर तब जाकर हुईं, जब वे इंटर्नशिप के लिए ग्रामीण इलाकों में गईं. तब उन्हें देश की बुनियादी समस्याओं का पता चला. वे कहती हैं, ''मुझे एहसास हुआ कि कोई प्रशासनिक अधिकारी इस तरह की समस्याओं को हल कर सकता है. मैंने सोचा कि अगर मैं सिविल सर्विसेज एक्जाम पास कर लेती हूं तो मैं ज्‍यादा कारगर हो सकती हूं.''

उन्होंने इंटर्नशिप करते हुए 2009 में पहली बार परीक्षा दी. वे हंसते हुए कहती हैं, ''यह महज अभ्यास था. मैं पहला राउंड भी पार नहीं कर सकी.'' दूसरी बार एम्स में जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर के तौर पर काम करते हुए कोशिश की. वे परीक्षा में सफल रहीं और उन्हें भारतीय राजस्व सेवा (आइआरएस) में प्रवेश मिला और अपने तीसरे प्रयास में उन्होंने सबसे बड़ा तीर मार लिया.

वे कहती हैं, ''मैं यह तो महसूस कर रही थी कि मैं परीक्षा में सफल हो जाऊंगी, लेकिन टॉप करने की उम्मीद मैंने कभी नहीं की थी.'' यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. 2011 में सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा में दो लाख लोग बैठे थे, जबकि मुख्य लिखित परीक्षा में लगभग 12,000 उम्मीदवार थे. इनमें से सिर्फ 2,400 को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था.

डॉ. अग्रवाल स्कूल के दिनों से ही लगातार टॉपर रही हैं. 2004 में वे सीबीएसई की प्री-मेडिकल परीक्षा में प्रथम स्थान पर आई थीं और एम्स प्रवेश परीक्षा में वे 75 छात्रों की सूची में 19वें नंबर पर थीं. लिहाजा जब उनकी दादी ने उनकी नवीनतम सफलता के बारे में सुना, तो वे खुश तो हुईं, लेकिन उन्हें हैरानी नहीं हुई.

अपनी पोती से मिलने पटियाला से दिल्ली आईं सरलादेवी अग्रवाल कहती हैं, ''शेना इतनी कड़ी मेहनत करने वाली है कि मुझे पता था कि वह बहुत अच्छा परिणाम लाएगी. वह इस की हकदार है.'' डॉ. अग्रवाल कन्याभ्रूण हत्या के लिए कुख्यात हरियाणा के एक छोटे-से शहर की निवासी हैं. वे कहती हैं, ''मुझे आशा है कि इससे सभी माता-पिता को संदेश मिलेगा कि लड़कियां-लड़के बराबर हैं. लड़कियां वह सब हासिल कर सकती हैं जो लड़के कर सकते हैं.''

सौभाग्य से अपना क्लीनिक चलाने वाले उनके पिता डॉ. सी. के. अग्रवाल और उनकी मां उनके लिए बेहद मददगार रहे. डॉ. अग्रवाल कहती हैं, ''उन्होंने अपने विचार कभी नहीं थोपे और मैं जो भी करना चाहती थी, उसके लिए मुझे प्रोत्साहित किया.'' वे अपने उन दिनों के बारे में बताती हैं जब वे अकसर आत्मविश्वास की कमी से हताश हो जाती थीं.

वे मुस्कराते हुए कहती हैं, ''लेकिन मेरी मां को हमेशा भरोसा था और वह मुझे भरोसा दिलाती थीं कि मेरी एमबीबीएस की डिग्री बहुत अच्छा बैक-अप है.'' उनके भाई शिविन बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग कर रहे हैं और अपनी बहन से मिली प्रेरणा से वे भी सिविल सेवा परीक्षा में बैठने का विचार कर रहे हैं.

डॉ. अग्रवाल सितंबर में लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी चली जाएंगी, जहां उन्हें आइएएस अफसर के तौर पर प्रशिक्षित किया जाएगा. वे कहती हैं, ''मैं सभी के लिए उपलब्ध रहना चाहती हूं.'' ग्रामीण इलाके में अपनी पोस्टिंग के दौरान, डॉ. अग्रवाल एक ऐसी कमजोर महिला से मिली थीं, जो पांचवीं बार गर्भवती हुई थी.

वे कहती हैं, ''मुझे एहसास हुआ कि इस स्थिति को बदलना होगा. अगर कोई महिला अपने पैरों पर खड़ी है, तो वह अपने फैसले खुद ले सकती है.'' लिहाजा एक डॉक्टर के तौर पर अपने अनुभव पर भरोसा करते हुए अग्रवाल का इरादा शुरू में शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा और साफ-सफाई पर ध्यान देने का है.

उनकी प्रेरणा के सबसे बड़े स्त्रोत उनके मामा एस.के. गोयल हैं, जो आइपीएस अधिकारी हैं. वे कहती हैं, ''वे मेरे आदर्श हैं.'' वे गर्व के साथ बताती हैं कि जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तब उन्होंने कैसी भूमिका निभाई थी. वे पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम को भी अपनी प्रेरणा मानती हैं. वे कहती हैं, ''वह मध्यम वर्ग की पृष्ठभूमि के थे और फिर भी इतनी ऊंचाई तक पहुंचे.'' 

अग्रवाल खुशनुमा सपनों के साथ अपने भविष्य में कदम रख रही हैं. महिला आइएएस अफसरों से बातचीत करके उन्हें एहसास हुआ कि महिला होने के नाते यह काम दोगुना चुनौतीपूर्ण है. वे अपनी बात खत्म करते हुए कहती हैं, ''हालांकि समय बदल गया है, लेकिन मुझे अपने आप को लगातार साबित करना होगा क्योंकि मैं एक महिला हूं. लेकिन मैं अब इंतजार नहीं कर सकती.''

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