scorecardresearch

विद्या बालन की नजर से भारतीय सिनेमा में सेक्‍स

सहस्त्राब्दी के दस्तक देने तक मुख्यधारा के सिनेमा में सेक्स सिर्फ कामेच्छा का प्रदर्शन मात्र नहीं था क्योंकि इसे अनैतिक माना जाता था. 2000 के बाद का समय अपने साथ ऐसी औरतों की पीढ़ी लाया जो पहले से अधिक हठधर्मी, जिनकी अपनी सोच थी तथा सेक्स और वासना में फर्क करना जानती थी.

विद्या बालन
विद्या बालन
अपडेटेड 26 नवंबर , 2011

बॉलीवुड के सफर में पांच सबसे सेक्सी फिल्में

सहस्त्राब्दी के दस्तक देने तक मुख्यधारा के सिनेमा में सेक्स सिर्फ कामेच्छा का प्रदर्शन मात्र नहीं था क्योंकि इसे अनैतिक माना जाता था. 2000 के बाद का समय अपने साथ ऐसी औरतों की पीढ़ी लाया जो पहले से अधिक हठधर्मी, जिनकी अपनी सोच थी तथा सेक्स और वासना में फर्क करना जानती थी.
फोटो: प्‍लेब्‍वॉय की 25 सबसे सेक्‍सी शख्सियत
वे सिर्फ छुअन भर पर प्रतिक्रिया करने वाली नहीं थीं, वे भी शुरुआत करने वाली बन रही थीं. व्यवहार में आए बदलाव के साथ मुख्यधारा के सिनेमा ने भी नाच और मोहपाश में फंसाने वाली परिस्थितियों के उलट दृश्य संबंधी निरूपण के विचार को स्वीकार किया. यौन संबंधों के निरूपण के इतिहास को ध्यान में रखते हुए, मेरी नजर में सबसे ज्‍यादा पांच सेक्सी फिल्में हैं:
फोटो: फिल्‍म डर्टी पिक्‍चर के कुछ उ ला ला...तस्‍वीरें

सत्यम शिवम सुंदरम (1978)
यह उस समय की एकमात्र मुख्यधारा की फिल्म है जिसने कामेच्छा के विषय को संबोधित किया. इसमें सेक्स और जिस्म, दोनों हैं. इसमे एक औरत का दो तरह से विभाजन है जो अपने चेहरे के एक ओर से तो संपूर्ण है और दूसरी ओर से चेहरा जला हुआ है, इससे पता चलता था कि कामेच्छा का सरोकार इस बात से था कि इसको कैसे पेश किया जाता है और रहस्य की समझ भी इससे जुड़ी है.
फोटो: विद्या बालन की अदाएं 

उत्सव (1984)
उत्सव ऐसी फिल्म थी जिसने सेक्स का महिमा मंडन किया और उसे बढ़-चढ़कर बताया. बेशक चाहे यह किसी को मोहपाश में फंसाना हो या खुद इससे जुड़ना, यह इसे प्रकृतिजन्य के तौर पर पेश नहीं करती बल्कि एक शिल्प के रूप में पेश करती है जिसमें पारंगत होना जरूरी है, और जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाया जाना चाहिए.

आस्था (1997)
यह फिल्म उस समय आई जब वैश्वीकरण का विचार अभी आया ही था. यह उपभोक्तावादी युग की शुरुआत थी. फिल्म का विषय यह था कि हर चीज को किसी कीमत पर खरीदा जा सकता है. यह एक मध्यवर्गीय औरत की कहानी है जो अपने बच्चे की जरूरतों को पूरा करने के लिए खुद को बेचती है क्योंकि उसका प्रोफेसर पति अपनी मामूली तनख्वाह से परिवार की इच्छाओं की पूर्ति कर पाने में सक्षम नहीं है, वाकई यह चौंकाने वाला और काफी मार्मिक है.

इश्किया (2010)
इश्किया इसलिए सेक्सी थी क्योंकि हिंदी सिनेमा में पहली बार ऐसी महिला को मुख्य पात्र के रूप में पेश किया गया था जो वासना के आगे झुक  जाती है और एक रात की मस्ती से कतई परहेज नहीं करती. यह परंपराओं का बड़ा उल्लंघन था क्योंकि मुख्यधारा के सिनेमा में बतौर नायिका किसी ने कभी भी कामेच्छाओं को प्रेम से अलग नहीं किया था.

एलएसडी (2010)
यह अन्य किसी भी फिल्म से एकदम अलग थी. फिल्म में नयनसुख को जिस तरह पेश किया गया वह काफी रुचिकर था, साफ तौर पर हल्का और विचारों को जगाने वाला. इसमें लोगों का एक दूसरे के जीवन को लेकर जुनून दिखाया गया है, बताया गया है कि  लोग इसमें गुप्त रूप से झंकने की कीमत चुकाते हैं और कोई इस तरह के जुनून के साथ किस हद तक गुजर सकता है.

विद्या बालन लेखिका बॉलीवुड अभिनेत्री हैं, जल्द ही डर्टी पिक्चर में नजर आएंगीं

Advertisement
Advertisement