अभी 2 नवंबर, बृहस्पतिवार के दोपहर के ढाई बजे हैं, और जेपी स्पोर्ट्स इंटरनेशनल (जेपीएसआइ) के प्रबंध निदेशक और भारत में पहली बार आयोजित हुई फॉर्मूला वन ग्रां प्री रेस के पीछे रहे मुख्य शख्स दिल्ली के बाहर ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट स्थित अपने कार्यालय में हमारा स्वागत करते हैं.
40 वर्षीय समीर गौर कॉर्पोरेट जगत की बड़ी हस्ती होने के बावजूद वैसे नजर नहीं आते. वे नीले रंग की जींस और काले रंग की कमीज पहने एकदम साधारण अंदाज में हैं और उनकी दाढ़ी भी दो दिन से नहीं बनी लगती है, उन्होंने सीने पर हाथ रखते हुए बड़ी विनम्रता से हमारा अभिवादन किया. शायद उन्होंने हाथ मिलाने के परंपरागत तरीके के बजाए इसे वरीयता दी.
रेस के सप्ताहांत 29-30 अक्तूबर के लिए 16 से 18 घंटे काम करने के बाद कोई और सीईओ होता तो कुछ दिन छुट्टियां मनाता लेकिन समीर जी-जीन से काम में जुटे हैं. उन्होंने कुछ समय पहले ही हमसे बातचीत के लिए एक मीटिंग का समय बदला है. रेस की कामयाबी के लिए बधाई देने वाले संदेशों की बाढ़ आई हुई है, लेकिन उनके पांव मजबूती के साथ जमीन पर ही टिके हैं.
वे इस कामयाबी का श्रेय खुद लेने के बजाए इसे जेपी ग्रुप को देने पर जोर देते हैं. वे कहते हैं, ''इस मौके के लिए पूरा संगठन एकजुट हो गया था.'' वे अपने दो बड़े भाइयों, मनोज और सनी गौर, और चचेरे भाइयों की निभाई भूमिका पर बात करना जारी रखते हैं, जिन सबकी जेपी ग्रुप में अहम भूमिका है.
वे बताते हैं, ''कल्पना करें, मेरे बड़े भैया सनी गौर जी (वे अपने परिवार के सभी बड़े सदस्यों के नाम के साथ जी लगाते हैं) जो जेपी सीमेंट के प्रबंध निदेशक हैं, लिफ्ट और बिजली के काम को देख रहे थे. ग्रुप के कार्यकारी उपाध्यक्ष सुनील गौर जी, भवनों और सड़कों के प्रभारी थे.
ग्रुप के कार्यकारी उपाध्यक्ष, पंकज गौर हाइड्रोपॉवर के सह प्रबंध निदेशक वेस्ट मैनेजमेंट का काम देख रहे थे और मनोज गौर जी, मेरे सबसे बड़े भाई और समूह के चेयरमैन, सभी गतिविधियों पर नजर रखे हुए थे.'' वे मुस्कराते हुए कहते हैं, ''इसी कारण हम सबको यह इंटरव्यू देना चाहिए. जेपी में कभी कुछ भी किसी व्यक्ति विशेष के बारे में नहीं होता. यह समीर की कामयाबी नहीं है. यह एकजुटता की कामयाबी है.''
समीर कहते हैं कि जेपी ग्रुप का 18,000 करोड़ रु. का टर्नओवर और रियल एस्टेट, सिविल इंजीनियरिंग, बिजली और होटल कारोबार से जुड़ा होना इसे भारत में फॉर्मूला वन के लिए सही साझेदार बना देता है. वे कहते हैं, ''फॉर्मूला वन में बने रहने के लिए कुछ चीजें जरूरी हैं. सबसे जरूरी है एक मुकम्मल संगठन जो जेपी के पास है. इसके बाद जमीन की जरूरत है जो जेपी के पास है; आपको पैसे और सिविल इंजीनियरिंग की विशेषज्ञता की जरूरत है जो हमारे पास है और आखिर में आपके पास हॉस्पिटेलिटी में महारत होना जरूरी है, जो हम रखते हैं.''
उनकी भूमिका के बारे में पूछे जाने पर समीर बहुत ही सादगी से कहते हैं कि उन्होंने वही किया जो ग्रुप के प्रमुख और उनके पिता जय प्रकाश गौर ने कहा. जब 2007 में जेपीएसआइ की स्थापना की गई थी तो उस समय जय प्रकाश गौर ने उन्हें फॉर्मूला वन के बॉस बर्नी एकस्टोन से मिलने के लिए भेजा था जो सिंगापुर और मलेशिया में सफलता के बाद किसी और एशियाई देश में एफ1 के ठिकाने की तलाश में थे. समीर उनकी आंखों में ख्वाब सजाने में सफल रहे और यह मौका भारत की गोद में आ गिरा.
समीर जोर देकर कहते हैं कि वे 2007 से पहले तक फॉर्मूला वन के बारे में कुछ नहीं जानते थे. किस बात ने उन्हें यह मानने के लिए राजी किया कि ग्रां प्री रेस कारोबारी सफलता हासिल कर सकती है? समीर कहते हैं, ''हम सभी क्रिकेट प्रेमी हैं. लेकिन एक भी बड़ा मौका या एक बड़ा खेल ऐसा नहीं है जो क्रिकेट को चुनौती दे सकता हो.
काफी अध्ययन के बाद हमने पाया कि प्राइवेट डेवलपर से सहारा दिया जाए तो इस मोटरस्पोर्ट में संभवानाएं हैं. हम सिंगापुर और मलेशिया में एफ1 की कामयाबी से काफी उत्साहित थे.'' अगर रेस के दिन उमड़ी भीड़ को देखें तो समीर का निशाना सटीक रहा. समीर कहते हैं कि फॉर्मूला वन की सफलता उनके जीवन में बदलाव लाने वाला तीसरा पड़ाव है.
पहला मौका 1990 के दशक में उस समय आया जब वे दिल्ली के भगत सिंह कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने के बाद कार्डिफ में यूनिवर्सिटी ऑफ वेल्स में एमबीए करने के लिए गए. ''इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि अपने दम पर चीजों को किस तरह अंजाम दिया जा सकता है.'' दूसरी चीजों के अलावा समीर ने कार्डिफ में खाना बनाना भी सीखा. अब भी जब उन्हें खुद को तनाव मुक्त करना होता है तो वे परिवार के लिए दाल, चावल और सब्जी बनाते हैं. दूसरा मील का पत्थर 1997 में उस समय आया जब उन्हें जम्मू-कश्मीर में हाइडल प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए भेजा गया. वे कहते हैं, ''तब मैंने सीखा कि लोगों से किस तरह पेश आया जाए.''
समीर के पास ट्रैक को लेकर बड़ी योजनाएं हैं. उन्होंने इसे बनाने में 40 करोड़ डॉलर (1,800 करोड़ रु.) का निवेश किया है और अपने निवेश को पांच साल में पूरा लौटाने की उम्मीद कर रहे हैं. फॉर्मूला वन सीमित राजस्व ही मुहैया कराएगा. वे कहते हैं, ''हमारा अधिकार सिर्फ टिकटों की बिक्री तक ही सीमित है. बाकी सब एफआइए (फेडरेशन इंटरनेशनल द ऑटोमोबाइल, खेल को देखने वाला संगठन) को जाता है.'' जेपीएसआइ को टिकटों से 100 करोड़ रु. मिले है.
समीर के मुताबिक, असली कमाई का जरिया मोटोजीपी और वी8 सुपरकार्स सरीखी प्रतिस्पर्धाएं है जहां उन्हें राजस्व संबंधी और अधिकार हासिल हो सकेंगे. कई कंपनियां पहले से उनके संपर्क में हैं. ''हम 15 नवंबर के बाद उनके साथ बैठेंगे और 2012 के लिए अपने कैलेंडर की योजना बनाएंगे.'' अब ग्रेटर नोएडा ने रसूख हासिल कर लिया और यहां उनकी रियल एस्टेट संबंधी योजनाओं को और दम मिलेगा. ''कई विदेशी भी प्रभावित हुए हैं. ग्रेटर नोएडा में दिल्ली और गुड़गांव की बनिस्बत बेहतर बुनियादी ढांचा है.''
समीर खुद भी वसंत विहार से ग्रेटर नोएडा में रहने लगे हैं. इस आम धारणा कि जेपी ग्रुप उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के काफी करीब है, के बारे में पूछे जाने पर वे कहते हैं, ''जेपी ग्रुप जहां भी काम करता है, वहां सरकारों के करीब होता है. हम देश के 11 राज्यों में काम कर रहे हैं और सभी सरकारों के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखने की जरूरत है.''
आगे क्या? अपनी खिड़की से ट्रैक से आगे खाली पड़ी जगह की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, ''दो माह बाद हम एक लाख की क्षमता वाले क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण शुरू करेंगे. मैं विश्व कप फाइनल की मेजबानी करना चाहता हूं.'' वह दिन ज्यादा दूर नहीं है.