चंबल से डकैतों का गर्भनाल का रिश्ता बन गया लगता है. वे जैसे राख से भी उठ खड़े हो रहे हैं. एक का वजूद नष्ट होता है, चार तैयार हो जाते हैं. 2011 के आखिर में क्रिसमस के दिन प्रदेश के पुलिस महानिदेशक एस.के. राउत इधर सतना में डकैत सुंदर पटेल के खात्मे के बाद जोर-शोर से दावा कर रहे थे कि अब राज्य में कोई बड़ा (सूचीबद्ध) डकैत नहीं बचा. यह भी कि दस्यु समस्या लगभग खत्म हो गई है.
ठीक उसी दिन डकैत पप्पू गुर्जर ने शिवपुरी जिले के सुनाज इलाके में बांध बना रही एक कंपनी के सुपरवाइजर कमलेश मिश्र को अगवा कर लिया और कर्मचारियों को धमकी दी कि फिरौती दिए बगैर काम शुरू किया तो खून-खराबा तय समझ्ना. दो ही दिन बाद श्योपुर जिले के विजयपुर इलाके में डकैतों ने खेत सींच रहे एक युवक बंटी को उसके पिता की मौजूदगी में अगवा कर लिया. अभी कुछ दिन पहले ही ग्वालियर के घाटीगांव इलाके से एक जड़ी-बूटी विक्रेता का अपहरण हो गया था.
अगवा सुपरवाइजर मिश्र तो चार दिन बाद छूटकर आ गए, लेकिन इस वाकये ने अंचल में डकैतों के फिर से बढ़ते बोलबाले की पुष्टि कर दी. छिटपुट बदमाश अब गिरोहबंद होकर अपना आतंक बढ़ाने के लिए अपहरण जैसी वारदातें कर रहे हैं. इस क्रम में उन्होंने विकास और व्यावसायिक कामों में लगे लोगों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है.
इससे अंचल में कई निर्माण कार्यों के प्रभावित होने का अंदेशा पैदा हो गया है. शिवपुरी में निर्माणाधीन बांध का काम रुक गया है. इस जिले में पत्थर की खदानों के मालिकों और निर्माण कार्य में लगी कंपनियों से भी चौथ वसूली आसान हो गई है. दो साल पहले भिंड के कनेरा नहर प्रोजेक्ट से इंजीनियरों के अगवा होने के बाद से वहां पर काम रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा. गुना-इटावा रेल लाइन, हाइवे निर्माण, गैस पाइपलाइन और जंगल क्षेत्र में चल रही कई नहर परियोजनाओं का काम प्रभावित होने की आशंका है.
पुलिस मुकम्मल सुरक्षा देने की बात कह रही है लेकिन लोगों में डर समाया हुआ है. चंबल रेंज के डीआइजी डी.पी. गुप्ता इस मामले में सभी जिलों की पुलिस के मिलकर काम करने की बात करते हुए कहते हैं, ''हाल ही में सक्रिय डकैत पप्पू गुर्जर के गिरोह की तलाश जारी है. जिन गांवों के लोगों को धमकी मिली है, वहां पुलिस तैनात है.''
अपहरण के एक उद्योग की तरह काम करने की पुष्टि पुलिस के आंकड़े भी करते हैं. साल भर में अपहरण के 100 से ज्यादा मामले तो थानों में ही दर्ज हैं. दर्ज न होने वाली ऐसी वारदातों की संख्या भी कम नहीं.
वैसे कमलेश मिश्र ने फिरौती की रकम देने से इनकार किया. पुलिस ने भी दबाव बनाने का दावा किया. पर हकीकत यह है कि डकैतों ने आजतक विरले ही किसी मामले में फिरौती के बगैर किसी को छोड़ा है. सूत्रों की मानें तो मिश्र की रिहाई के बदले पप्पू गुर्जर ने 30 लाख रु. वसूले. जाहिर है, पप्पू का आतंक इलाके में बढ़ गया है.
ग्वालियर-चंबल के छह जिलों में इस वक्त आधा दर्जन डकैत गिरोहों का आतंक है. मगर 5,000 रु.-25,000 रु. के इनाम वाले इन डकैतों को पुलिस बड़ा सिरदर्द मानने को तैयार नहीं है. उसने अभी तक इन डकैतों को सूचीबद्ध नहीं किया है. ग्वालियर रेंज के आइजी यू.सी. षडंगी का कहना है कि ''इन गिरोहों ने अभी तक सामूहिक हत्याकांड जैसा कोई बड़ा अपराध नहीं किया है, इसलिए इन्हें सूचीबद्ध नहीं किया गया है.
ये मवेशी चोरी करने वाले डकैत हैं, जो आजकल फिरौती में लग गए हैं. पुलिस इन्हें तुरंत पकड़ने या इनका खात्मा करने के पक्ष में है.'' डीआइजी गुप्ता भी इसमें अपनी राय जोड़ते हैं, ''पप्पू और कल्ली गुर्जर इतने बड़े डकैत नहीं हैं, जिन्हें सूचीबद्ध किया जा सके क्योंकि ये लोग नियमित अपराध नहीं करते और न ही इनके संगठित गिरोह हैं.'' पुलिस डकैतों को जान-बूझ्कर सूचीबद्ध नहीं करती. इस मामले में होता यह है कि मुख्य डकैत के सिर पर तो इनाम घोषित हो जाता है लेकिन उसके गिरोह के सदस्यों के बारे में पुलिस यही कहती है कि वे अस्थायी तौर पर काम करते हैं. डकैतों को सूचीबद्ध न करने से सरकार को भी अपराध कम दिखाने का मौका मिल जाता है.
पुलिस का पक्ष जो भी हो, सूचीबद्ध न किए जाने का फायदा उठाकर डकैत कद बढ़ाने में लगे हुए हैं. श्योपुर के मोरावन गांव में तो पप्पू ने धमकी दे रखी है कि वहां के लोगों ने उसके रिश्तेदार राजेंद्र गुर्जर उर्फ गट्टा की समाधि नहीं बनवाई और 200 ब्राह्मणों को भोज नहीं कराया तो वह तबाही मचा देगा. डकैत गट्टा साल भर पहले मोरावन के पास अपने ही साथियों की गोलीबारी में मारा गया था. डकैतों के डर से कई गांवों के लोग घर छोड़कर चले गए हैं.
चंबल में डकैतों का बढ़ना सिलसिलेवार ढंग से जारी है. चारेक साल पहले पांच लाख रु. के इनामी डकैत गिरोह दयाराम-रामबाबू गड़रिया के खात्मे के बाद शिवपुरी से लेकर ग्वालियर और मुरैना इलाके में लोगों ने चैन की सांस ली थी. लेकिन देखते-देखते इलाके में कई डकैत गिरोह और सक्रिय हो गए. डकैतों की समस्या से गहरे जुड़े रहे अफसर यहां की भौगोलिक-सामाजिक परिस्थितियों को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं.
यहां दस्यु उन्मूलन के प्रभारी रहे पूर्व डीजीपी एस. एस. शुक्ला कहते हैं, ''भौगोलिक, सामाजिक परिस्थितियां ही डकैतों के पनपने के लिए जिम्मेदार हैं. बड़े डकैतों को मारकर पुलिस जैसे ही राहत महसूस करती है, छोटे बदमाश उठ खड़े होते हैं. बाद में वही बड़े डकैत बन जाते हैं. इसलिए डकैतों के साथ छोटे बदमाशों का भी लगातार सफाया होना जरूरी है.''
तस्वीर का एक पहलू यह है कि इलाके में गिरोहों के मूवमेंट की खबर वहां के थाना प्रभारी से लेकर अधीनस्थों को होती है, पर उनकी कोशिश यही रहती है कि छोटे बदमाशों को बड़ा करो, फिर मारो. वजह? समय से पहले प्रमोशन और मैडल का लालच. चंबल इलाके में किसी बड़े डकैत को मारने वाले अफसर को गैलेंटरी अवार्ड जरूर मिलता है. लेकिन इलाके की जनता को डकैतों से निजात कब मिलेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं.