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धर्म/अध्यात्म: अच्छाई की कठिनाई

महाभारत जैसे महाकाव्य को आधार बनाकर कॉर्पोरेट प्रशासक गुरचरण दास ने ताजा मिसालों के साथ की उसकी समसामयिक व्याख्या.

अपडेटेड 16 जुलाई , 2012

गुरचरण दास
पेंगुइन यात्रा बुक्स, पंचशील पार्क, नई दिल्ली
कीमतः 299 रु.
customer.service@in.penguingroup.com

गुरचरण दासः प्राचीन ग्रंथ की ताजा व्याख्या

महाभारत आज

महाकाव्य महाभारत को आधार बनाकर लिखी गई पुस्तक द डिफिकल्टी ऑव बीईंग गुड के हिंदी अनुवाद अच्छाई की कठिनाई में उस महाग्रंथ में निहित दुविधाओं, घटनाओं और चरित्रों की वर्तमान के संदर्भ में व्याख्या की गई है. पुस्तक के मूल लेखक प्रोक्टर ऐंड गैंबल के पूर्व सीईओ और कॉर्पोरेट जगत के जाने-माने हस्ताक्षर गुरचरण दास हैं, जिन्होंने इस पुस्तक के जरिए महाभारत काल की परिस्थितियों की समकालीन विवेचना करने का सार्थक प्रयास किया है.

इसमें उन्होंने अपने कॉर्पोरेट जगत के अनुभवों को भी आधार बनाया है. अनुवादक मनोहर नोतानी और उनके सहयोगी अनिल सिंह ने मौलिक पुस्तक की भावना को काफी हद तक प्रस्तुत तो किया है लेकिन कई जगहों पर यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि लेखक ने कहना क्या चाहा था. यदि इस कमजोरी को नजरअंदाज किया जाए तो पुस्तक में कई पठनीय बातें हैं. लेकिन अनूदित होने के कारण कहीं-कहीं पुस्तक अत्यधिक क्लिष्ट हो गई है. इस वजह से इस पुस्तक को एक साथ पढ़कर समझना थोड़ा मुश्किल होगा.

लेकिन तमाम अध्यायों को अलग-अलग करके पढ़ा जाए तो इसे महाभारत के कुछ अंशों पर लंबी और सापेक्ष विवेचना कहा जा सकता है जो पाठकों को आज की दुनिया की अवसरवादी नैतिकता से रू-ब-रू करती है. पुस्तक में हिंदुत्व पर भी चर्चा है और धर्म के अर्थ पर बहस भी जो कि काफी सारगर्भित है. पुस्तक का बुनियादी संदेश यह है कि महाभारत का युद्ध निरर्थक और सर्वनाशी था और व्यक्तिगत द्वेष के लिए लड़ा गया था और उसके किरदार आज के समाज के लोगों की ही तरह स्वार्थी, ईर्ष्यालु, कु टिल और निजी लाभ के वशीभूत थे.

दरअसल लेखक यह साबित करना चाहता है कि युद्ध एक ऐसी विवशता है जिसमें जीत किसी पक्ष की नहीं होती पर इस आदिसत्य को जानने/सुनने के बावजूद युद्ध होते आए हैं, हो रहे हैं. इस लिहाज से पुस्तक सोच को पर्याप्त सामग्री देती है.

लेखक ने पुस्तक के शीर्षक के माध्यम से यह बहस चलाने का प्रयास किया है कि अच्छाई के मार्ग में कठिनाइयां हैं लेकिन इसके बावजूद अच्छाई ही श्रेयस्कर है. अच्छाई क्या है, यह तय करना भी काफी मुश्किल है. धर्म और कर्म के अंतर्द्वंद्व का भी विश्लेषण है यहां. लेखक के ही शब्दों में ''महाकाव्य का केंद्रीय प्रसंग नैतिक शुद्धता और मानव कर्म के बीच पसरी दुविधा को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करता है.''

इस पुस्तक के माध्यम से महाभारत के आलोक में लेखक ने नैतिकता, नीति और व्यावहारिकता में सामंजस्य बैठाने की वकालत की है, जो कि आज के समय के लिए उपयुक्त मार्ग है. पुस्तक में वैश्विक परिदृश्य पर भी महाभारत के संदर्भ में तथ्यपरक टिप्पणी की गई है. मसलन, मंदी और लेहमन ब्रदर्स का पराभव. वर्तमान में महाभारत की घटनाओं के आधार पर बहुत कुछ सीखा, समझा, सुधारा भी जा सकता है.

पुस्तक के विशेष पठनीय भाग इसके दो आखिरी अध्याय 'निष्कर्ष' और 'धर्म-कथा एक शब्द की' हैं, जिसमें पुस्तक का सार है. धर्म की शास्त्रीय विवेचना करते हुए इस लेखक ने कई गूढ़ लेकिन बुनियादी विषयों पर सोदाहरण टिप्पणी की है, जो कि इस पुस्तक की खासियत है.

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