राजेश खन्ना किसी कहानी की शख्सियत नजर आते हैं. मान लो कि एक दिन सिनेमा गायब हो जाए लेकिन राजेश ने जो जगह बनाई है वह शाश्वत रहेगी. यहां तक कि उनके सबसे बड़े दुश्मन भी उन्हें प्यार करते हैं. मैं इस बात को जानता हूं. मैं हमेशा उनको लेकर फिल्में बनाना चाहता था लेकिन जब भी उनके पास पहुंचता, वे अपनी डायरी सामने खोलकर रख देते जो डेट्स से भरी होती.
एक दिन मुझे एक कॉल आई और दूसरी तरफ से आ रही आवाज ने कहा, ''डायरी खाली है.'' मैं झट से पहचान गया और बोल पड़ा ''काकाजी! ह्वाट अ सरप्राइज.'' उन्होंने पूछा कि आप आ रहे हैं या मैं आ जाऊं? मैंने कहा कि मैं आ रहा हूं. फूलों का गुलदस्ता लेकर मैं उनके घर पहुंचा, जिसे देखकर उनके चेहरे पर वही आकर्षक मुस्कान फैल गई जिस पर लड़कियां दीवानी हो जाया करती थीं. वहीं बैठकर सौतन की योजना बनी. उसके बाद जो हुआ, उससे तो आप-सब बखूबी वाकिफ हैं.
सौतन बनने के दौरान मैंने जाना कि वे कितने महान इनसान हैं और कितने आत्मीय दोस्त. सौतन ने रिलीज वाले हफ्ते में दर्शकों के सामने गए बिना सोमवार को ही ढेर सारी वाहवाही बटोर ली. उन्होंने रामानंद सागर और शक्ति सामंत को फिल्म दिखाई. दोनों ने कहा कि क्लाइमेक्स में तो वे दोनों हीरोइनें ही सारा श्रेय ले जाती हैं और तुम एक सुपर स्टार होते हुए भी कुछ करते नहीं दिखते.
उन्होंने मुझे अपने घर बुलाया और दो-एक ड्रिंक्स के बाद उन्होंने कहा कि क्लाइमैक्स सीन का गाना काटकर उसे बदल दो जिससे मैं सुपर स्टार के तौर पर दिखाई दूं. मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि वे गलत कर रहे हैं लेकिन वे जिद पर उतर आए और कहा कि वे प्रीमियर पर दिल्ली नहीं जाएंगे. मैंने सख्ती से कहा कि निर्देशक होने के नाते मैं फिल्म से पूरी तरह से संतुष्ट हूं और लोगों की काफी तरीफ भी मिल रही है. उस दिन एक दूसरे से नाराज होकर हम अलग हुए थे.
बुधवार को उनका सेक्रेटरी मेरे पास आया और उसने कहा कि काकाजी दिल्ली आएंगे. मैं खुश था कि उन्हें मेरा नजरिया सही लगा. मैं राजेश और टीना दिल्ली आ गए. प्रीमियर शीला सिनेमा में था और वहां पर 5,000 लोगों की भीड़ जमा थी. हमारे लिए थिएटर तक पहुंच पाना भी मुश्किल हो गया था. मूवी सुपर-डुपर हिट हुई थी.
प्यार से गले लिपटकर उन्होंने कहा, ''सॉरी, मैं गलत था.'' मॉरीशस रातोंरात लोकप्रिय हो गया. दुख की बात है कि मैं उसके बाद उनके साथ कोई फिल्म नहीं बना सका.
उनका स्टाइल, उनकी आवाज, डायलॉग बोलने का उनका अंदाज और आंखों की अदा इन सबने मिलाकर उन्हें हिंदी सिनेमा का एक अलग ही अदाकार बना दिया. सुपरस्टार बनने तक का उनका सफर आसान नहीं था.
बॉलीवुड में उन्होंने टैलेंट हंट के जरिए प्रवेश किया था. उनकी पहली फिल्म थी चेतन आनंद की आखिरी खत (1966). लेकिन उनका जलवा जमा आराधना (1969) से. आराधना की कामयाबी के बाद वे युवतियों के दिलों पर राज करने लगे. वे हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने. फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
उनकी मौत को मैं एक जवान मौत कहूंगा. यह एक अभिनेता, एक उम्दा इनसान, अंशकालिक नेता और सबसे बढ़कर एक असल सुपरस्टार की मौत है.
सावन कुमार फिल्म निर्देशक हैं.