लाकडाउन के चलते बने हालात में ‘उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम’ (यूपीएसआरटीसी) के प्रबंध निदेशक राजशेखर समेत अन्य सभी अधिकारी घर पर ही रह कर सरकारी कामकाज कर रहे थे. उधर रोज की भांति 27 मार्च को शाम सात बजे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब अपने सरकारी आवास पर अधिकारियों के साथ लाकडाउन के इंतजामों की समीक्षा कर रहे थे उसी दौरान उन्हें पता चला कि मजदूर काफी संख्या में गाजियाबाद और नोएडा के यूपी बार्डर पर पहुंचने लगे हैं.
तनाव बढ़ने की आशंका में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केंद्र सरकार से मजदूरों को लाने का प्रयास शुरू करने की जानकारी दी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से निर्देश मिलने के बाद रात नौ बजे अपर मुख्य सचिव गृह और सूचना अवनीश कुमार अवस्थी ने राजशेखर को फोन करके तुरंत एक हजार बसों को रातोंरात गाजियाबाद और नोएडा में पहुंचाने का निर्देश दिया ताकि सुबह से मजदूरों को निकालना शुरू कर दिया जाए.
लाकडाउन की हालत में रात नौ बजे एक हजार बसों का इंतजाम करना एक कठिन चुनौती थी. वह भी तब जब लाकडाउन के चलते सभी ड्राइवर और कंडक्टर अपने-अपने घरों को जा चुके थे.
राजशेखर ने फौरन इसकी जानकारी परिवहन विभाग के राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार अशोक कटारिया, परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव राजेश कुमार सिंह को दी. इसके बाद उन्होंने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को फोन करके तुरंत लखनऊ के टेढ़ी कोठी में मौजूद परिवहन निगम के मुख्यालय को खोलने को कहा.
इसके साथ प्रदेश में परिवहन निगम के सभी रीजनल मैनेजर (आरएम) और असिस्टेंट रीजनल मैनेजर (एआरएम) के दफ्तरों को भी रात में खोलने का आदेश दिया. रात बारह बजे तक प्रदेश में परिवहन निगम के सभी आरएम और एआरएम के दफ्तर खुल गए थे और अधिकारी भी मौजूद थे.
अवस्थी ने एक हजार बसों का इंतजाम करने को कहा था लेकिन राजशेखर ने तीन हजार बसों का लक्ष्य लेकर ‘आपरेशन’ शुरू किया. ऐसा इसलिए कि लाकडाउन के चलते कई जगहों पर बस चालकों और कंडक्टरों को पहुंचने में दिक्कत होगी. राजशेखर ने पहले गाजियाबाद और नोएडा के आसपास के एक दर्जन से अधिक डिपा में उन छह सौ बसों को रवाना किया जो रिजर्व रखी गई थीं और उनके ड्राइवर और कंडक्टर डिपो में ही रह रहे थे.
इसी बीच सभी आरएम और एआरएम ने अपने-अपने इलाके के ड्राइवर और कंडक्टरों को फौरन डिपो पहुंचने का आदेश जारी किया. यह ड्राइवर और कंडक्टर रात में अपने डिपों में जाने के लिए निकले लेकिन इनमें से ज्यादातर को लाकडाउन में पुलिस ने रोक लिया. आगे नहीं जाने दिया.
अगले दिन 28 मार्च की सुबह छह बजे राजशेखर ने इसकी जानकारी अवनीश कुमार अवस्थी को दी. अवस्थी ने फौरन सभी जिलों के पुलिस कप्तानों को आदेश जारी किया कि जो भी यूपीएसआरटीसी के ड्राइवर और कंडक्टर अपने डिपो जा रहे हैं उन्हें किसी भी हालत में न रोका जाए. इसके बाद सुबह 10 बजे से ड्राइवर, कंडक्टर अपने डिपों में पहुंचने लगे. उधर, देर रात रवाना की गईं छह सौ बसें सुबह आठ बजे तक नोएडा और गाजियाबाद पहुंच गईं.
अब दोपहर 12 बजे से हर घंटे 100 बसें नोएडा और गाजियाबाद पहुंचने लगीं थीं. इसके साथ बसें मजदूरों को लेकर अलग-अलग जिलों के लिए रवाना भी होने लगी थीं.
निगम के सभी 20 रीजन के एक-एक अफसर को नोडल अधिकारी बनाया गया. इनका काम यह था कि ये अधिकारी आरएम-एआरएम से जानकारी लेते थे कि उन्हें जितनी बसें गाजियाबाद और नोएडा भेजने का लक्ष्य दिया गया है उसमें क्या अपडेट है? 27 मार्च की रात से लेकर 29 मार्च की सुबह तक सभी अधिकारी अपने कार्यालय में रहकर लगातार इस पूरे आपरेशन में अपनी जिम्मेदारी के अनुसार काम करते रहे.
राजशेखर इस पूरे आपरेशन की हर दो घंटे पर एक रिपोर्ट जारी करते थे कि कितनी बसें नोएडा गाजियाबाद पहुंची हैं? कितने मजदूर वहां से लाए जा रहे हैं? अगले दो घंटे में कितनी बसें पहुंच जाएंगी और इनसे कितने मजदूरों को लाने का अनुमान है? राजशेखर यह रिपोर्ट मंत्री अशोक कटारिया, प्रमुख सचिव, परिवहन राजेश कुमार सिंह और अपर मुख्य सचिव गृह को भेजते थे. इनके जरिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद इस रिपोर्ट को देखते थे.
जैसे मजदूरों को लाना शुरू हुआ बड़ी संख्या में मजदूर नोएडा गाजियाबाद के लिए निकल पड़े. 28 मार्च की शाम साढ़े छह बजे गाजियाबाद के आरएम ने बेहद घबराई हुई आवाज में राजशेखर को फोन पर बताया कि कौशांबी बस अड्डे पर दस हजार लोग पहुंच गए हैं. पूरा इलाका इस कदर मजदूरों से भर गया है कि बसें अंदर नहीं आ पा रही हैं.
भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी. इतने ही लोग आनंद विहार में हैं और दिल्ली सीमा पर मौजूद लालकुआं इलाके में भी हजारों मजदूर इकट्ठा हो गए हैं. यह जानकारी मिलते ही परिवहन निगम मुख्यालय में मौजूद अधिकारियों में हड़कंप मच गया. एक बार ऐसा लगा कि कहीं कानून व्यवस्था की स्थिति न पैदा हो जाए.
आधे घंटे तक अधिकारियों से बातचीत के बाद राजशेखर ने गाजियाबाद के आरएम से कहा कि वह मौके पर मौजूद पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों को लेकर वहां जाएं जहां बसें फंसी हुई हैं. राजेशखर ने बाहरी इलाकों से ही बसों में मजदूरों को बिठाकर रवाना करने को कहा. इस रणनीति के बाद मजदूरों की भीड़ छंटने लगी और एक घंटे बाद बसों को बस अड्डे पहुंचने का रास्ता मिलने लगा.29 मार्च की शाम तक दो हजार से अधिक बसें मजदूरों को लेकर अलग-अलग जिलों के लिए रवाना हो चुकी थीं.
चुनौती यहीं खत्म नहीं हुई, जैसे ही 28 मार्च को राजस्थान में रह रहे यूपी के मजदूरों को पता चला कि नोएडा, गाजियाबाद से बसें मजदूरों को लेकर जा रही हैं, अगले दिन करीब 50 हजार मजदूर आगरा, मथुरा में यूपी-राजस्थान की सीमा पर आ गए.
इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों के आने से स्थानीय प्रशासन सकते में आ गया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने फौरन अधिकारियों को इससे निबटने की योजना बनाने कहा. उधर, परिवहन मंत्री अशोक कटारिया भी लगातार मुख्यमंत्री कार्यालय और परिवहन विभाग के अधिकारियों के बीच लिंक बने हुए थे. राजशेखर को बसों का इंतजाम करने को कहा गया.
इटावा, अलीगढ़, लखनऊ से कुल मिलाकर एक हजार बसें फौरन आगरा और मथुरा भेजीं. आगरा प्रशासन ने इन मजदूरों को बसों में बिठाकर लखनऊ भेज दिया. इस कारण 30 मार्च को अचानक लखनऊ में मजदूर पहुंचने लगे. इस समस्या से निबटने के लिए राजशेखर ने लखनऊ में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर अस्थाई बस अड्डे स्थापित करवाए. मजदूरों के लिए भोजन और पानी का इंतजाम कराया. यहां साढ़े सौ बसें लगाकर मजदूरों की स्क्रीनिंग करके उन्हें उनके गृह जिलों के लिए रवाना किया. 31 मार्च की शाम तक सभी मजदूर अपने गृह जिलों में सुरक्षित पहुंच गए थे.
इस आपरेशन से मिले अनुभव का लाभ कोटा और प्रयागराज में रह रहे छात्रों को बसों से उनके गृह जिले भेजने में काम आया. मंत्री अशोक कटारिया से निर्देश मिलने के बाद अब राजशेखर लाकडाउन के बाद सोशल डिस्टेंसिंग और गाइडलाइन को मानते हुए बसों के संचालन की रणनीति बनाने में जुट गए हैं. अब बसों से यात्रा करने के लिए मास्क पहने होना जरूरी होने वाला है. हर बस में हैंड सेनेटाइजर मौजूद होगा.
सभी बड़ी चुनौती शारीरिक दूरी बनाते हुए बसों में यात्रियों को बिठाने की होगी. ऐसे में एक बस में केवल 20 से 25 लोग ही यात्रा कर पाएंगे. इन स्थितियों में परिवहन निगम को कम से कम दो सौ करोड़ का घाटा होगा. इसके लिए सरकार को परिवहन निगम को आर्थिक मदद देनी होगी.
लखनऊ में परिवहन निगम के दफ्तर को एक आधुनिक रंग में ढालने वाले राजशेखर मूलत: कर्नाटक के गुलबर्गा जिले के रहने वाले हैं. शुरुआती शिक्षा गुलबर्गा के नवोदय विद्यालय में हुई. ‘इंटर स्कूल माइ्ग्रेशन स्कीम’ के तहत राजशेखर ने वर्ष 1992-93 में नवीं और दसवीं की पढ़ाई के लिए बिहार के बेगुसराय के नवोदय विद्यालय पहुंचे. यही वह समय था जब राजशेखर उत्तरी भारत के कल्चर से परिचित हुए और हिंदी भाषा सीखी.
वापस कर्नाटक के बीदर नवोदय विद्यालय से इंटरमीडियट करने के बाद राजशेखर ने ‘एनिमल हसबेंडरी वेटेनरी साइंस’ में पांच साल का ग्रेजुएशन कोर्स धारवाड़ एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से किया. वर्ष 2004 में राजशेखर भारतीय सिविल सेवा में चयनित हुए और इन्हें यूपी कैडर मिला. राजशेखर ट्रेनिंग पीरियड में एक साल सीतापुर में तैनात रहे. इसके बाद फैजाबाद अब अयोध्या में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के पद पर पहली तैनाती हुई.
ग्यारह महीने यहां रहने के बाद इलाहाबाद अब प्रयागराज के सीडीओ बने. जिलाधिकारी के तौर पर पहली पोस्टिंग भदोही में हुई. यहां यह केवल 21 दिन ही रहे और तत्कालीन बसपा सरकार ने राजशेखर को भदोही से हटाकर उन्नाव का डीएम बना दिया गया. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले इन्हें झांसी के जिलाधिकारी बनाया गया.
दो साल झांसी में डीएम रहने के बाद मुरादाबाद के डीएम रहे. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने इन्हें जालौन का डीएम बनाया. सपा सरकार बनने के बाद राजशेखर पीलीभीत के डीएम रहे. इसके बाद वर्ष 2013 में हुए कुंभ के दौरान राजशेखर इलाहाबाद अब प्रयागराज के डीएम थे. यहां किए गए अच्छे कार्यों का नतीजा राजशेखर को लखनऊ के जिलाधिकारी के पद पर नियुक्ति के रूप में मिला.
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने राजशेखर को रामपुर का जिलाधिकारी नियुक्त किया. विधानसभा चुनाव के बाद यह निदेशक पिछड़ा वर्ग और विशेष सचिव पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग बनाया गया. यहां के बाद लोक निर्माण विभाग में विशेष सचिव पद रहे. बस्ती में कुछ समस्याएं होने पर सरकार ने राजशेखर को यहां का डीएम बनाया. इसके बाद से राजशेखर परिवहन निगम के एमडी के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
फिलहाल परिवहन निगम के सामने दूसरी बड़ी चुनौती पड़ोसी राज्यों में रह रहे यूपी मजदूरों को उनके गृह जिले पहुंचाने की है.
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