रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की बेंती कोठी के पीछे 600 एकड़ के तालाब से कई तरह के किस्से जुड़े हैं. कुछ स्थानीय लोगों के बीच धारणा थी कि राजा भैया ने इस तालाब में घड़ियाल पाल रखे हैं और अपने दुश्मनों को मारकर फेंक देते हैं. राजा भैया का कहना है, ‘ऐसा वही लोग प्रचारित करते हैं जो मानसिक रूप से दिवालिएपन का शिकार हो गए हैं.’
2003 में मायावती की सरकार ने भदरी में उनके पिता उदय प्रताप के महल और बेंती में राजा भैया की कोठी पर छापा मरवाया था. बेंती के तालाब की खुदाई में एक नरकंकाल मिला था. बताया जाता है कि वह कंकाल कुंडा क्षेत्र के ही नरसिंहगढ़ गांव के संतोष मिश्र का था. संतोष का कसूरः उसका स्कूटर राजा भैया की जीप से टकरा गया था और कथित तौर पर उनके लोग उसे उठाकर ले गए और इतना मारा कि वह मर गया. बाद में उसके शव को बेंती तालाब के पास दफना दिया गया.
इस तालाब को मायावती सरकार ने 16 जुलाई, 2003 को अपने कब्जे में लेकर डॉ. भीमराव आंबेडकर पक्षी विहार घोषित कर दिया. तालाब की बाउंड्रीवाल के भीतर एक गेस्ट हाउस बनाया गया लेकिन आज यहां पक्षी विहार की कोई सुविधा नहीं है. विहार के मुख्य द्वार से राजा भैया की कोठी के सामने से गुजरने वाली सड़क के खड़ंजे तक निकल चुके हैं. वीरान गेस्ट हाउस की खिड़की और दरवाजों पर लगे शीशे आसपास के गांववाले निकाल ले गए. पक्षी विहार की देखरेख के लिए वन विभाग के कर्मचारी बद्रीप्रसाद मिश्र तैनात हैं. मिश्र बताते हैं, ‘सुविधाएं न होने के कारण इस पक्षी विहार को देखने के लिए बीते दो वर्षों के दौरान शायद ही कोई पर्यटक आया हो.’ पर्यटकों को जानकारी मुहैया कराने के लिए मुख्य द्वार पर एक स्वागत कक्ष भी बना है लेकिन आज तक इसका ताला नहीं खुला है.
2003 में मुलायम सरकार ने बेंती के इस तालाब को पक्षी विहार में तब्दील करने के मायावती सरकार के फैसले को पलटकर राजा भैया के हवाले कर दिया था. लेकिन 2007 में मायावती के वापस लौटने पर इस तालाब को पक्षी विहार के रूप में बहाल कर दिया गया. क्या अखिलेश अपने पिता के कदमों पर चलते हुए फिर इस पक्षी विहार को राजा भैया के हवाले कर देंगे?