यह कांग्रेस के लिए बड़े बदलाव का साल हो सकता है. पार्टी में चर्चा है कि अगले कुछ महीनों में राहुल गांधी और अधिक निर्णायक नेतृत्व निभाने की भूमिका में आ जाएंगे. कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि हालांकि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाना चाहती हैं लेकिन राहुल को लगता है कि अभी वे तैयार नहीं हैं.
वैसे, वे पार्टी में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने के लिए राजी हो गए हैं. अपने लिए छोड़ी गई विरासत संभालने की दिशा में राहुल के कदम बढ़ाने के साथ ही सोनिया एक कदम पीछे हट जाएंगी. पार्टी का नेतृत्व सौंपना उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लक्ष्य की तरफ एक बड़ा कदम होगा.
अप्रैल मई में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस के सांगठनिक ढांचे और केंद्रीय मंत्रिपरिषद में व्यापक फेरबदल करने की योजना है. इसके तहत, मंत्रिमंडल के ज्यादातर दिग्गज नेता संगठन में भेज दिए जाएंगे. पार्टी की बागडोर राहुल के हाथ में होने के साथ ही इस कसरत का फौरी असर यह होगा कि सरकार में संगठन का वर्चस्व बढ़ जाएगा.
इससे पहले आई रिपोर्ट के उलट टीम राहुल में केवल युवा ब्रिगेड के नवयुवक ही नहीं होंगे बल्कि राजीव और संजय गांधी के जमाने के अनुभवी सांगठनिक दिग्गज भी होंगे. संगठन के कामकाज का अनुभव रखने वाले गुलाम नबी आजाद, अंबिका सोनी,वीरभद्र सिंह, सुशील कुमार शिंदे, कमलनाथ, सी.पी. जोशी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे कैबिनेट मंत्रियों को पार्टी के काम में लगा दिया जाएगा. संयोगवश, उनमें से ज्यादातर की शिकायत है कि वे मनमोहन सिंह सरकार के माकूल नहीं हैं, जिसमें राजनैतिक प्रशासन की जगह नौकरशाही जैसे डिलीवरी सिस्टम पर जोर दिया जाता है.{mospagebreak}
इस सरकार में पेशेवरों ने पार्टी के दिग्गजों को बौना कर दिया है. इसमें कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा या जयराम रमेश जैसे लोग आजाद, सोनी या जोशी के मुकाबले ज्यादा सुर्खियों में छाये रहते हैं. एक ही दिग्गज नेता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और वे हैं प्रणब मुखर्जी.
बेहतर प्रदर्शन न कर पाने वाले एस.एम. कृष्ण, बी.के. हांडीक, वीरप्पा मोइली और मनोहर सिंह गिल जैसे मंत्रियों को हटाया जा सकता है. पूर्व खेलकूद मंत्री गिल मंत्रिमंडल के पिछले फेरबदल के दौरान सांख्यिकी विभाग में अलगथलग कर दिए जाने की वजह से नाखुश हैं.
विचार यह है कि एक ऐसी टीम तैयार की जाए, जो राहुल से जुड़ सके. सरकार में शामिल होने वाले नए चेहरों मेंपार्टी प्रवक्ता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी तथा मनीष तिवारी जैसे पेशेवर, गजेंद्र सिंह राजू खेरी जैसे युवा जनजातीय नेता, मणिका टैगोर और विजय इंदर सिंगला जैसे तेजतर्रार युवा नेता हो सकते हैं.
एक कैबिनेट मंत्री बताते हैं, ''राज्यों में खामोशी से काम करने वाले नेताओं को सरकार में शामिल किया जाएगा. उन्हें बताया जाएगा कि वे अपने मंत्री पद का इस्तेमाल अपने अपने राज्यों में विकास के कार्य कराने में करें. हम तो कम से कम यही उम्मीद कर रहे हैं.''
सरकार और पार्टी, दोनों में फेरबदल करने की जरूरत है. कांग्रेस के एक लोकसभा सांसद का कहना है, ''यह ऐसी सरकार है जिसका विदेश मंत्री गलत भाषण पढ़ देता है, जिसके कानून मंत्री ने पिछले 40 साल से किसी अदालत को अंदर से नहीं देखा है, जिसके सूचना एवं प्रसारण मंत्री को सरकार के सूचना प्रबंधन से परे रखा जाता है, और हमारा रक्षा मंत्री जोखिम उठाने से कतराता है और कोई फैसला करने से डरता है.'' कांग्रेसियों की शिकायत है कि यूपीए-2 दरअसल यूपीए-1 का ही विस्तार है.{mospagebreak}
पार्टी के एक और सांसद कहते हैं, ''मंत्रिमंडल में कोई नया चेहरा नहीं है. प्रदर्शन करने वालों और युवा लोगों को लाने की सारी बातों के बावजूद हम वही चंद चेहरे मंत्रिमंडल में देख रहे हैं, जो पिछले साढ़े छह साल से बने हुए हैं.''
यूपीए-2 2009 में सत्ता में आया और उसके बाद से ही पार्टी मुख्यालय में बदलाव का वादा किया गया था. पार्टी के नौ महासचिवों में से तीन कैबिनेट मंत्री बना दिए गए, चौथे को हाल में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया है. बाकी पांच में से केवल एक, दिग्विजय सिंह के साथ राहुल के कामकाज के समीकरण हैं.
वे मोहसिना किदवई के प्रति विनम्र हैं, लखनऊ की उड़ान में उन्होंने मोहसिना का सामान उठाने में उनकी मदद भी की. मोहसिना इंदिरा गांधी के जमाने की नेता हैं, इसके बावजूद उन्होंने राजनैतिक मार्गदर्शन के लिए उन्हें नहीं बुलाया.
एक और महासचिव वी. नारायणनसामी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान राहुल की तेज रफ्तार के साथ नहीं दौड़ पाए थे. पार्टी संगठन संभालने की घड़ी में राहुल को ऐसी टीम की जरूरत होगी, जो उनका संरक्षक होने के साथ ही उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चल भी सके.
वैसे, एक टीम राहुल वजूद में है. युवा सांसदों का एक दल उनके दौरों के कार्यक्रम तय करने से लेकर युवक कांग्रेस के लिए रंगरूट भर्ती करने के काम में उनकी मदद करता रहा है. यह दल पार्टी मुख्यालय नहीं बल्कि तुगलेक लेन के उनके निवास से काम करता है. इसमें मिलिंद देवड़ा, दीपेंदर हुड्डा, जितिन प्रसाद, आर.पी.एन. सिंह, मधु यक्षी, संदीप दीक्षित और सचिन पायलट शामिल हैं.{mospagebreak}
इनमें से अधिकतर तो दूसरी बार सांसद चुने जा चुके हैं और लगभग राहुल के साथ ही विरासत संभालने के लिए राजनीति में कूदे. अब राहुल उन्हें व्यवस्था का अंग बना सकते हैं. उनमें से कुछ तो पहले से मंत्री हैं लेकिन जब राहुल अपने वफादारों को सरकार तथा पार्टी के पदों पर इधर उधर करेंगे तब वे भी इसके हिस्से होंगे. कांग्रेस सचिव जितेंदर भंवर फिलहाल युवा शाखाओं के पुनर्गठन में राहुल की मदद कर रहे हैं और राहुल के दाहिने हाथ के तौर पर पार्टी मुख्यालय में बने रहेंगे.
लेकिन पार्टी वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों के बीच खींचतान सेचिंतित है. एक ओर जहां अभी तक राहुल ने यह संकेत नहीं दिया है कि उन्हें प्रमुख पद में दिलचस्पी है या नहीं, वहीं दूसरी ओर दूसरी पंक्ति के नेताओं के बीच वर्चस्व के लिए संघर्ष छिड़ गया है. एक मंत्री का कहना है, ''खासकर जब वे कार्यकारी अध्यक्ष या कोई महत्वपूर्ण पद संभालेंगे तब प्रस्तावित फेरबदल से यह खत्म हो जाएगा. यह इस सवाल का निर्णायक जवाब होगा कि मनमोहन के बाद कौन होगा?''
कांग्रेसियों ने इस महीने के शुरू में सोनिया के बयानों पर भी ध्यान दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष ने स्वतंत्रता सेनानी और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के पिता दिवंगत रणबीर सिंह हुड्डा के सम्मान में आयोजित एक समारोह में कहा, ''सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने 64 साल की उम्र में राजनीति से संन्यास लेने का फैसला कर लिया. आज जब लोग सत्ता और पद के लिए लालायित हो रहे हैं, इस तरह के नजरिए की अहमियत बढ़ जाती है.'' यह न केवल मंत्रिमंडल में वर्चस्व के संघर्ष पर विराम लगाने का, बल्कि उनके कुछ सहयोगियों का कहना है कि, उनकी अपनी सेवानिवृत्ति योजनाओं का भीसंकेत है. सोनिया 64 साल की हो गई हैं.{mospagebreak}
राजीव गांधी 1983-84 में पार्टी महासचिव थे और उनकी मां पार्टी अध्यक्ष थीं. लेकिन राहुल के उलट उन्होंने खुद को युवा कांग्रेस तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि पार्टी के दूसरे मामलों में भी गहरी दिलचस्पी दिखाई. राहुल में इस तरह की पहल नहीं दिखती. जब भी उनसे पूछा जाता है कि क्या वे पार्टी या सरकार में और जिम्मेदारी लेंगे तो वे अपना कंधा उचका कर कहते हैं कि उनका अपना शेड्यूल है. लिहाजा, उन्हें अपने चुने हुए रास्ते की जगह दूसरी दिशाओं में भी आगे बढ़ाने की जरूरत है.
अभी तक उन्होंने खुद को महासचिव के रूप में बताए गए काम तक ही सीमित रखा है. लेकिन हाल में उन्होंने अनधिकारिक तौर पर ही सही, अपनी गतिविधियों का दायरा बढ़ा दिया है. जब कभी एम. करुणानिधि या हिलेरी क्लिंटन जैसी शख्सियत सोनिया से मिलने के लिए 10, जनपथ पहुंचती हैं, युवा राहुल अपनी मां के पास होते हैं. आधिकारिक तौर पर राहुल से जब भी युवा संगठनों से परे किसी और चीज के बारे में उनकी राय पूछी जाती है तो वे यही कहते हैं कि वे महज एक महासचिव हैं और ऐसे मामलों पर टिप्पणी करने के लिए अधिकृत नहीं हैं. लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उन्हें पार्टी से जुड़े सभी मामलों को देखना होगा जबकि सोनिया यूपीए अध्यक्ष और राजमाता जैसी शख्सियत बनकर पार्टी को देखेंगी.
उधर, उत्तर प्रदेश से मिलने वाली सूचनाएं उत्साहजनक नहीं हैं. इस राज्य के साथ राहुल ने खुद को करीबी से जोड़ रखा है. खासकर बिहार में करारी हार के बाद वहां अगर पार्टी का सफाया होता है तो उनकी साख घट जाएगी. लिहाजा, उन्हें उससे पहले अपना नेतृत्व मजबूत करने की जरूरत है.{mospagebreak}
दरअसल, इस महीने के शुरू में उत्तर प्रदेश का दौरा करते समय राहुल ने रायफुलवारी में पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं से मुलाकात की. जब उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में मायावती को अस्थिर करके ही आगे बढ़ा जा सकता है तो एक युवा कार्यकर्ता ने खड़े होकर कहा, ''अगर आप वास्तव में मायावती को अस्थिर करना चाहते हैं तो प्रियंका को लाइए.''
इंडिया टुडे के 'देश का मिजाज' सर्वेक्षण के मुताबिक, राहुल की रेटिंग महज छह महीने में हीनौ अंक कम हो गई है. जाहिर है, सोनिया को एहसास हो गया कि इससे पहले कि और पार्टी कार्यकर्ता राहुल की जगह प्रियंका को उम्मीद की किरण बताएं, उन्हें तेजी से कदम उठाने होंगे.
चालीस वर्षीय राहुल ने खुद को नेतृत्व संभालने के लिए तैयार करने में पिछले साढ़े छह साल लगाए हैं. पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह हंसते हुए भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं, ''आप 40 पर ही क्यों जोर दे रहे हैं, जबकि 91 साल का व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने की प्रतीक्षा में है.'' (वैसे, आडवाणी अभी 90 साल के नहीं हुए हैं). लेकिन पार्टी में फैलती दिशाहीनता के एहसास से कोई इनकार नहीं कर सकता.
आम कांग्रेस कार्यकर्ता से पूछिए तो वह बताएगा कि सोनिया मनमोहन की जोड़ी कमजोर पड़ रही है. पार्टी को ऊर्जा देने के लिए अनिच्छुक राहुल को बड़ी भूमिका निभानी होगी. पार्टी चाहती है कि अब वे और सक्रिय हों. पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी कहते हैं, ''पार्टी के भीतर और बाहर काफी लोगों का मानना है कि उन्हें विभिन्न सार्वजनिक मामलों में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए.''{mospagebreak}
मनमोहन ने इसी वजह से जनवरी में मामूली फेरबदल करके छोड़ दिया. राहुल की बड़ी भूमिका के लिए योजना अभी तैयार की जा रही है. कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी का कहना है, ''राहुल निचले स्तर पर युवाओं को मजबूत बनाकर खामोश क्रांति ला रहे हैं.'' लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा है. युवा शाखा में लोकतंत्र बहाली की बहुप्रचारित कवायद के तहत चंद नामीगिरामी परिवार के युवाओं को युवक कांग्रेस प्रमुख बनाया गया. राहुल ने एक पत्रकार सम्मेलन में स्वीकार किया कि लोकतंत्र कहीं न कहीं से शुरू करना है. संजय या राजीव के उलट वे पार्टी के भीतर से कारगर लोगों का समूह नहीं तैयार कर सके हैं. मीनाक्षी नटराजन में अंबिका सोनी जैसा जोशखरोश नहीं है.
पिछले साल दिसंबर में बुराड़ी में पार्टी के वार्षिक अधिवेशन में दिग्विजय सिंह ने राहुल को बताया था कि मंच पर मौजूद भूपिंदर सिंह हुड्डा, अहमद पटेल, अशोक गहलोत, मुकुल वासनिक और उनके जैसे ज्यादातर नेताओं को राजीव गांधी उस समय कांग्रेस में लाए थे जब उनकी उम्र तीसेक साल थी. उन्होंने कहा कि अब वे अपनी एक्सपायरी डेट पार कर चुके हैं और अब राहुल के लिए अपनी टीम तैयारी करने का समय है.
यूपीए-2 में मंत्री पद लेने से इनकार करने के बाद से ही राहुल के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की अफवाह है. पार्टी के एक महासचिव कहते हैं, ''मैं इस खबर की न तो पुष्टि कर सकता हूं, न ही इसे नकार सकता हूं.''
कमलापति त्रिपाठी के बाद से अभी तक कोई कार्यकारी अध्यक्ष नहीं बना है. त्रिपाठी को इंदिरा गांधी ने नियुक्त किया था. बाद में राजीव ने अर्जुन सिंह को उपाध्यक्ष बनाया था. यह प्रयोग सफल नहीं हुआ. इससे पार्टी के भीतर वर्चस्व का संघर्ष छिड़ गया. लेकिन सोनिया को अपने उत्तराधिकारी को कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में प्रोत्साहित करने में कोई समस्या नहीं होगी. इंतजार की घड़ी जल्द खत्म होनी चाहिए.